विजय कुमार सप्पट्टि की कविताएँ
(कविता लेखन, चित्र-लेखन, फ़ोटोग्रफी, अध्यात्म आदि में विशेष रुचि रखने वाले श्री विजय कुमार सप्पट्टि सिकंदराबाद में वरिष्ठ महाप्रबंधक (विपणन) के रूप में कार्यरत हैं । विजय कुमार जी की तीन कविताएँ यहाँ प्रस्तुत हैं । इन कविताओं पर प्रतिक्रियाओं का स्वागत है । - सं.)
सिलवटों की सिहरन
अक्सर तेरा साया
एक अनजानी धुंध से चुपचाप चला आता है
और मेरी मन की चादर में सिलवटे बना जाता है ...
मेरे हाथ, मेरे दिल की तरह
कांपते हैं, जब मैं
उन सिलवटों को अपने भीतर समेटती हूँ ...
तेरा साया मुस्कराता है और मुझे उस जगह छू जाता है
जहाँ तुमने कई बरस पहले मुझे छुआ था,
मैं सिहर सिहर जाती हूँ, कोई अजनबी बनकर तुम आते हो
और मेरी खामोशी को आग लगा जाते हो …
तेरे जिस्म का एहसास मेरे चादरों में धीमे धीमे उतरता है
मैं चादरें तो धो लेती हूँ पर मन को कैसे धो लूँ
कई जनम जी लेती हूँ तुझे भुलाने में,
पर तेरी मुस्कराहट,
जाने कैसे बहती चली आती है,
न जाने, मुझ पर कैसी बेहोशी सी बिछा जाती है …
कोई पीर पैगंबर मुझे तेरा पता बता दे,
कोई माझी, तेरे किनारे मुझे ले जाए,
कोई देवता तुझे फिर मेरी मोहब्बत बना दे...
या तो तू यहाँ आजा,
या मुझे वहां बुला ले...
मैंने अपने घर के दरवाजे खुले रख छोड़े है ... ।
***
तू
मैं अक्सर सोचती हूँ
कि,
खुदा ने मेरे सपनो को छोटा क्यों बनाया
करवट बदलती हूँ तो
तेरी मुस्कारती हुई आँखे नज़र आती है
तेरी होटों की शरारत याद आती है
तेरे बाजुओ की पनाह पुकारती है
तेरी नाख़तम बातों की गूँज सुनाई देती है
तेरी क़समें, तेरे वादें, तेरे सपने, तेरी हकीक़त ..
तेरे जिस्म की खुशबु, तेरा आना, तेरा जाना ..
एक करवट बदली तो,
तू यहाँ नहीं था..
तू कहाँ चला गया..
खुदाया !!!!
ये आज कौन पराया मेरे पास लेटा है... ।
मैं अक्सर सोचती हूँ
कि,
खुदा ने मेरे सपनो को छोटा क्यों बनाया
करवट बदलती हूँ तो
तेरी मुस्कारती हुई आँखे नज़र आती है
तेरी होटों की शरारत याद आती है
तेरे बाजुओ की पनाह पुकारती है
तेरी नाख़तम बातों की गूँज सुनाई देती है
तेरी क़समें, तेरे वादें, तेरे सपने, तेरी हकीक़त ..
तेरे जिस्म की खुशबु, तेरा आना, तेरा जाना ..
एक करवट बदली तो,
तू यहाँ नहीं था..
तू कहाँ चला गया..
खुदाया !!!!
ये आज कौन पराया मेरे पास लेटा है... ।
***
बीती बातें
दिल बीती बातें याद करता रहा
यादों का चिराग रातभर जलता रहा
नज़म का एक एक अल्फाज़ चुभता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा
जाने किसके इंतजार में
शब्बा ऐ सफ़र कटता रहा
जो गीत तुमने छेड़े थे
रात भर मैं वह गुनगुनाता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा
शमा पिगलती ही रही थी
और दूर कोई आवाज दे रहा
जुबां जो न कह पा रही थी
अश्क एक एक दास्तां कहता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा
यादें पुरानी आती ही रहीं,
दिल धीमे धीमे दस्तक देता रहा
चिंगारियां भड़कती ही रहीं
टूटे हुए सपनों से कोई पुकारता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा
यादों का चिराग रातभर जलता रहा
नज़म का एक एक अल्फाज़ चुभता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा ।
दिल बीती बातें याद करता रहा
यादों का चिराग रातभर जलता रहा
नज़म का एक एक अल्फाज़ चुभता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा
जाने किसके इंतजार में
शब्बा ऐ सफ़र कटता रहा
जो गीत तुमने छेड़े थे
रात भर मैं वह गुनगुनाता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा
शमा पिगलती ही रही थी
और दूर कोई आवाज दे रहा
जुबां जो न कह पा रही थी
अश्क एक एक दास्तां कहता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा
यादें पुरानी आती ही रहीं,
दिल धीमे धीमे दस्तक देता रहा
चिंगारियां भड़कती ही रहीं
टूटे हुए सपनों से कोई पुकारता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा
यादों का चिराग रातभर जलता रहा
नज़म का एक एक अल्फाज़ चुभता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा ।
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