झील आपकी नाव मेरी
-सुधीर सक्सेना ‘सुधि’
यह झील सारी आपकी ही है,
लेकिन जो नाव इसमें चलती है
वह मेरी है ।
सूरज के ढ़लने के बाद,
सांझ के उड़ते रंगों का जमघट
तट पर बंधी मेरी नाव के समीप होगा,
ठिठक कर रुकी
आपकी झील का पानी
मेरी नाव के आकर्षण से
चला आएगा,
लहरों पर सवार होकर
तब घर लौटने की जल्दी होगी
और होगी हलचल
ठीक वैसी ही जैसे कि आप
अपनी झील के शांत जल में
कंकर फेंक कर
हलचल पैदा करते हैं
और खुश होते हैं
क्योंकि झील आपकी है
झील का पानी आपका है
लेकिन याद रखिए जो नाव
इसमें चलती है वह मेरी है ।
-सुधीर सक्सेना ‘सुधि’
यह झील सारी आपकी ही है,
लेकिन जो नाव इसमें चलती है
वह मेरी है ।
सूरज के ढ़लने के बाद,
सांझ के उड़ते रंगों का जमघट
तट पर बंधी मेरी नाव के समीप होगा,
ठिठक कर रुकी
आपकी झील का पानी
मेरी नाव के आकर्षण से
चला आएगा,
लहरों पर सवार होकर
तब घर लौटने की जल्दी होगी
और होगी हलचल
ठीक वैसी ही जैसे कि आप
अपनी झील के शांत जल में
कंकर फेंक कर
हलचल पैदा करते हैं
और खुश होते हैं
क्योंकि झील आपकी है
झील का पानी आपका है
लेकिन याद रखिए जो नाव
इसमें चलती है वह मेरी है ।
1 comment:
बहुत ही उम्दा कविता.
कहने को जी चाहता हैं
कविजी
बेशक कलम आपकी हैं
लेकिन कविता अब
हमारी हैं.
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