Saturday, November 2, 2024

भावभीनी श्रद्धांजलि - हिंदी लेखिक स्वर्ण ज्योति जी अमर हैं

भावभीनी श्रद्धांजलि

हिंदी लेखिक स्वर्ण ज्योति जी अमर हैं 

दीदी स्वर्ण ज्योति जी के साथ ढाई दशकों की साहित्यिक मैत्री रही है ।  कल उनके स्वर्गवास का दुखद समाचार डॉ. उषा रानी राव ने कल रात ही वाट्सैप संदेश भेजा था, जिसे मैं आज सुबह ही देख पाया और बिल्कुल विश्वास नहीं हुआ ।  क्योंकि कैंसर जैसी भयानक बीमारी को भी दीदी स्वर्ण ज्योति ने चुनौती दी थी, बड़े ही साहस के साथ उससे संघर्ष जारी रखते हुए भी वे बहुत सक्रिय रहीं ।  अक्तूबर 18-19 को चेन्नै में ऑथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया के अधिवेशन में उनके आगमन की अपेक्षा थी, वे नहीं आयीं थी, उन्हें विलंब से ही अधिवेशन की सूचना गयी थी ।  अन्यथा उनका दर्शन का सौभाग्य मिल जाता ।

दीदी स्वर्ण ज्योती जी लगभग तीन साल पहले से बेंगलूरु में रहने लगी हैं ।  उससे पूर्व तीन दशकों से वे पांडिच्चेरी में रहती थी ।  मेरे पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य आरंभ करने से पूर्व से वे सुपरिचित थीं ।  कोयंबत्तूर आगमन पर भी मुलाक़ात होती रही ।  युग मानस के लिए उनकी रचनाएँ मिलती थीं ।  ‘सिरि भूवलय’ (जैन संत सिरि कुमुदेंदु गुरु विरचित सर्व भाषायी कन्नड़ काव्य) का हिंदी अनुवाद उन्होंने किया था ।  लगभग 7वीं-11वीं सदी के बीच मूल रचना कर्नाटक प्रांत के चिक्क बल्लापुर, नंदीग्राम के यहाँ येल्लवल्लीपुरा में संत कुमुदेंदु गुरु ने इसकी सर्जना की थी ।  इस कृति के आधार पर वे मद्रास विश्वविद्यालय के संबद्ध एक महाविद्यालय में पीएच.ड़ी. के लिए अनुसंधान कार्य करना चाहती थी ।  डॉक्टरल समिति से असंतुष्टि होकर उन्होंने यह प्रयत्न छोड़  दिया ।

वे ‘युग मानस’ (मेरे द्वारा संस्थापित और संपादन में प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका) के साथ भी सक्रिय जुड़ी हुई थीं ।  उनकी एक रचना 27 सितंबर, 2008 को ऑनलाइन ‘युग मानस’ (https://yugmanas.blogspot.com/2008/09/blog-post_27.html?m=1) में प्रकाशित हुई थीं, जो यहाँ प्रस्तुत है –

नया युग
-
स्वर्ण ज्योति

हर एक दिन
सुंदर कल के इंतजार में
खुद को खोते गए
अब तो ढूँढ़ना भी
बेमानी हो गया है
बुलंद इमारतों के साए में
आदमी बौना हो गया है
पाई-पाई जोड़ते जोड़ते
वह खिलौना हो गया है
सपनों के लिए
रातें औ नींद की है जरूरत
पालियों के जाल में फँसकर
सपना देखना भी
सपना हो गया है
बढ़ती गई ऐसी आबादी
जैसे चढ़ती बाढ़ में नदी
हो गई इतनी आपूर्ति
कि ज़िंदगी ही हो गई
बिलकुल सस्ती
दंगा-फसाद, बम-ब्लास्ट
दो दिनों का है मातम
हो जाता है फिर
दिमाग से सब कुछ लॉस्ट
क्योंकि
आदमी खुद को ढूँढ़ने में
नाकाम हो गया है
आधुनीकरण औ मशीनीकरण
की दौड़ में
वह भी केवल
एक पुर्जा बन गया है ।

 


स्व. डॉ. मधुधवन जी के साथ वे सक्रिय रूप से जुड़ी थी ।  पुदुच्चेरी राजनिवास में माननीय उपराज्यपाल डॉ. इकबाल सिंह से साहित्यिक गतिविधियों के सिलसिले में मुलाक़ात के लिए जब जाती, मुझे अवश्य बुलाती थी ।  डॉ. इकबाल सिंह जी के कमकमलों से हिंदी सेवी के रूप में दो बार वे सम्मानत हुई थीं ।  जैन ग्रंथ सिरि भूवल का कन्नड़ से हिंदी में अनुवाद के लिए कर्नाटक के माननीय राज्यपाल श्री त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी करकमलों से वे सम्मानित हुई थीं ।  कवयित्री व कथा-लेखिका के लिए रूप में उनकी आधे दर्जन कृतियाँ, कन्नड़, तमिल और अंग्रेज़ी से अनूदित आठ कृतियाँ प्रकाशित हुई हैं ।  पहला काव्य-संकलन का शीर्षक है - अच्छा लगता है ।  इसी शीर्षक से वे ब्लॉग भी चलाती थीं 2006 से ।  मगर 2006, 2007, 2018 और 2019 में ही उन्होंने अपनी रचनाएँ प्रकाशित की   थीं ।  अपने ब्लॉग के संदर्भ में ब्लॉग (https://achchalagthahai.blogspot.com) में ही उन्होंने लिखा है –

“सभी मित्रों को नमस्कार
मैं स्वर्ण ज्योति पाँडीचेरी से आप सब का मेरे इस ब्लोग में आमंत्रित कर स्वागत करती हूँ
वैसे तो मेरी मातृ भाषा कन्नड है और यहाँ की स्थानीय भाशा तमिल
परन्तु मैं हिन्दी में रचनायें लिखती हूँ । वास्तव मे मेरे लिए हिन्दी ही मेरी सखि सहेली और संबंधी भी है
२५ साल पहले जब मैं यहाँ आई थी तब मुझे तमिल नहीं आती थी और कन्नड के कोई भी दोस्त मुझे नहीं मिले तब मेरी सखी बन कर हिन्दी ने ही मुझे अकेलेपन से उबारा था रचनायें तो मैं सालों से करती थी परन्तु यहाँ आकर मेरी रचनाओं में निखार आया क्योंकि अकेलेपन में मैंने हिन्दी को ही दोस्त बना कर हिन्दी से ही बातें की। आज मेरी दो कविताओं की किताब  छप चुकी है। अभी मैंने एक तमिल काव्य संग्रह का हिन्दी में अनुवाद किया है और एक जैन ग्रंथ का जो कि कन्नड में है अनुवाद कर चुकी हूँ  और भी कई पुस्तकों का अनुवाद कर रही हूँ । आज इंटरनेट के माध्यम से मैं आप सब को यह बातें बता रही हूँ जबकि मेरी रचनायें २५ साल पुरानी हैं आज आप सब तक पहुँचाने के लिए यह जरिया मिला है वरना यहाँ तो हिन्दी कोई पढता ही नहीं है, बावजूद इसके मैंने हिन्दी में काम करना नहीं छोडा । अब आप से गुजारिश है कि मेरी रचनाओं को पढ कर मुझे प्रतिक्रिया भेजें । इस ब्लोग में आप मैं मेरी कविताओं के साथ-साथ कहानी और लेख भी पढ सकते हैं । आशा करती हूँ कि आप सब का सहयोग मुझे प्राप्त होगा ।
धन्यवाद सहित
स्वर्ण ज्योति”

बहुमुखी प्रतिभाशाली लेखिका, गीतकार, नर्तकी श्रीमती स्वर्ण ज्योति जी ने पांडिच्चेरी और तमिलनाडु में हिंदी के प्रचार-प्रसार में सक्रिय योगदान दिया है। एक समिर्पित कार्यकर्ता के रूप में राजभाषा, राष्ट्रभाषा, संपर्क भाषा के स्तर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार शिक्षण में स्वैच्छिक योगदान के साथ-साथ एक लेखिका व अनुवादक के रूप में सृजनात्मक लेखन व अनुवाद के माध्यम से उन्होंने हिंदी, तमिल, कन्नड़ तथा अंग्रेज़ी भाषाओं के बीच आदान-प्रदान का काम किया है।

राजभवन से लेकर सब्जीवाले तक, सरकारी कार्यालय से शैक्षिक संस्थाओं तक हर जगह समय-समय पर पहुँचकर उन्होंने हिंदी को बढ़ावा दिया है । हिंदी शिक्षण, प्रशिक्षण में औपचारिक गतिविधियों में आपकी जितनी सक्रियता थी, उतनी ही सक्रियता अनौपचारिक गतिविधियों में सक्रिय रही है। बहु-भाषी लेखिका संघ, तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी, कन्नड संघ, पुदुच्चेरी आदि कई संस्थाओं से सक्रिय रूप जुड़कर उन्होंने हिंदी के प्रसार के लिए योगदान दिया है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समन्यात्मक संस्कृति के विकास को महत्व दिया है।

हिंदीतर भाषी के रूप में हिंदीतर प्रदेश में हिंदी के प्रचार-प्रसार में मनसा-वाचा-कर्मणा सक्रिय समर्पित हिंदी सेवी श्रीमती स्वर्ण ज्योति जी कैन्सर से पीड़ित होने की ख़बर से उनके हितैषियों में बड़ी चिंता जाहिर हुई थी ।  बड़ी साहसी महिला होने के नाते वे लगभग दो वर्ष कैन्सर से संघर्ष करती  रहीं ।  11 जनवरी, 2023 को मुझे प्रेषित संदेश में उन्होंने लिखा था – “आज से मेरा इलाज कीमो थेरेपी शुरू हो रहा है ।  मुझे फेफड़ों का कैंसर हो गया है जो थोड़ा-थोड़ा शरीर के अलग अंगों को भी फैल गया है ।  ब्रेन में भी पहुँच गया है ।  बाकी सब ठीक है ।”...... “नमस्कार बाबू, आपकी चिंता बन गई थी इस कारण पाँच बार अलग-अलग डॉक्टरों से परीक्षण कराया ।  मेरे भाई ने आस्ट्रेलिया में भी दिखाया ।  सबका जवाब एक ही था ।  इस चक्कर में इलाज का प्रारंभ भी 15 दिन आगे कर दिया गया ।  परंतु अब और रुकना सही नहीं होगा, इसलिए लिए अब इलाज प्रारंभ किया गया ।  आप सभी अपना ख्याल रखें ।  बहुत-बहुत आशीर्वाद आप सभी को ।” 

उनकी चिकित्सा जारी रही ।  इस बीच भी वे सक्रिय रहीं ।  समय-समय पर विभिन्न महत्वपूर्ण दिनों और त्योहारों के अवसर पर शुभकामना संदेश भेजती रही ।  मेरी श्रीमती डॉ. ए. राधिका को भी समय-समय पर वह संदेश भेजती रही ।  22 अगस्त, 2024 को एक समाचार क्लिप दीदी स्वर्ण ज्योती जी ने मुझसे साझा किया । समाचार क्लिप का शीर्षक था – “सिरि भूवलय ग्रंथ पर ऑनलाइन कक्षा का नया सत्र शुरू ।” समाचार क्लिप यहाँ अवलोकनीय है ।  इसके साथ श्री राजेंद्र जैस गुलेच्छा जी ने जो संदेश साझा किया था, वह इस प्रकार था – “प्रखर साहित्यकार डॉ. स्वर्ण ज्योति जी द्वारा हिंदी में अनूदित, जैन आचार्य कुमदेंद रचित, सिरि भूवलय ग्रंथ पर अभी ऑनलाइन कक्षा सत्र के माध्यम से भी शिक्षण प्रदान किया जा रहा है ।  उसी से संबंधित एक समाचार आज के पत्रिका अंक में प्रकाशित हुआ है ।  आप सबकी जानकारी के लिए उसे संलग्न कर रहा हूँ ।  स्वर्ण ज्योती जी पर हम सबको अत्यंत ही गर्व है ।”

(साभार - राजस्थान पत्रिका)

इस बीच भी दीदी जी संपर्क में रहीं ।  एक संदेश में कहा कि “मैं ठीक ही हूँ । कभी बेंगलूरु आना हो तो मिलने आइएगा ।”  इस संदेश के ही में पूर्ण स्वस्थ न होने का तथा संदेश में मित्रों से मिलने की इच्छा जाहिर है ।  उनके अंतिम संदेश क्रमशः  2 और 3  सितंबर, 2024 के थे ।  2 सिंतबर, 2024 के संदेश – “नमस्कार, आपने शायद दो वर्ष पूर्व एक सम्मान हेतु मेरे लिए एक अनुशंसा पत्र लिखा था ।  यदि आपके पास वह पत्र सुरक्षित हो तो कृपया पुनः भेज दीजिए ।  किसी सम्मान के लिए नहीं मेरे स्वयं के लिए ।”  3 सितंबर, 2024 को मेरे वाट्सैप स्टेटस में राजस्थान पत्रिका का समाचार क्लिप (मुझे राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान - 2024 प्रदान की घोषणा संबंधी समाचार जो राजस्थान पत्रिका के चेन्नै संस्करण में प्रकाशित हुआ था) देखकर उन्होंने मुझे हार्दिक बधाई दी थी ।

कई साहित्यिक संस्थाओं से इस बीच भी बेंगलूरु में वे जुड़ी रहीं । उनके साहित्यिक सामाजिक अवधानों के लिए योग्य सम्मानों से वे वंचित रही । जो भी सम्मान मिलें, बस उन्हीं के साथ अपनी जीवन-यात्रा समाप्त कर दी ।  उनसे जुड़े कई संस्मरण हैं ।  इन दुखद क्षणों में वे तमाम संस्मरण यहाँ साझा नहीं कर पा रहा हूँ ।  आत्मीय दीदी होने के नाते छोटे भाई के रूप में मुझे उनसे लड़ने-भिड़ने का अधिकार होता था ।  उनके पति देव श्री रमेश बी.आर. बहुते स्निल व्यक्ति हैं ।  कई बार मुलाकातें हुईं ।  हमारे आवास पधारे थे ।  उनकी तीनों पुत्रियाँ (मनसा, अपूर्वा, अक्षता) चूँकि पुदुच्चेरी से बाहर रह रहीं थीं, अतः मुलाक़ात नहीं हो पायी थी ।  दीदी स्वर्ण ज्योति कन्नड़ संघ की अध्यक्षा भी थी, कन्नड़ भाषी सक्रिय मिलते थे, उनके प्रवास के बाद से कन्नड़ संघ की सक्रियता नज़र नहीं आयी थी ।  शैक्षिक, साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों में दीदी जी की सक्रियता अवस्मिरणीय है ।

सदा जीवंत, सक्रिय और स्नेहशील व हँसमुख चेहरा के साथ दीदी स्वर्ण ज्योती का दर्शन असंभव है, मगर उनके विचारों, रचनाओं पर चिंतन और उनकी आत्मीयता का स्मरण सदा संभव है ।  स्वर्ण ज्योति जी से जुड़े संस्मरणों का ‘युग मानस’ में प्रकाशनार्थ स्वागत है ।

ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें और उनके परिवार को अपूरणीय क्षति और दुःख सहने की अपार शक्ति दें ।