Tuesday, September 27, 2016

‘अंजो दीदी’ नाटक में अंजो दीदी की पात्र-समीक्षा

लेख
अंजो दीदी नाटक में अंजो दीदी की पात्र-समीक्षा
-          आर.के. जयमालिनी

अंजो दीदी में खास पात्र अंजली ही हैं। वह अहँ की प्रतीछाया है। वह चाहती है कि जीवन को अनुशासित बनाना चाहिए। इस रास्ते में वह एकदम दृढ़ रहती हैं लेकिन अपनी अज्ञानता की पहचान के बिना काम करती है और दीदी बनती है। इसका परिणाम यह हुआ कि वह दूसरों का भी मन विचलित कर देती है और स्वयं व्यक्तिगत ह्रास का कारण बनती है उसके हठी स्वभाव के कारण सारे परिवार का सुख सत्यानाश हो जाता है।
नाटककार अश्क जी का विचार है अँह की भावना परम्परागत प्रवृत्ती है जो अपनी मनोवृत्तियों को दूसरों पर जबरदस्त डालता है। वह न अपनी उन्नति करती है न दूसरों की। अंजली को यह अहँ की भावना उसके नाना से मिली है।
नाटक की शुरूआत अंजो दीदी के डायनिंग रुम में होती है। वह अपनी नौकरानी को फटकारती है -  मुन्नी नाश्ता रखो मेंज पर (तनिक कडे स्वर में) तुम कर क्या रही हो आठ बजने का आये है और नाश्ते का पता नहीं। अंजों की तानाशाही केवल नौकरानी पर ही नहीं सारे पात्रों पर होती है। वह अपने बेटे से कहती है –
धीरज बेटा, कपडे बदल लिये तुमने? अंजली ने दैनिक कार्यक़्रम का कठोर नियम बना लिया है कि ठीक आठ बजे सारा परिवार नाश्ता करे, दिन के एक बजे दोपहर का भोजन करें तीन बजे नाश्ता और रात के नौ बजे भोजन होना चाहीए। उसका बेटा नीरज अपनी माँ के नियम का पालन करता है समय पर आराम करता है और समय पर खेलता है। चूंकि वह अंजली के इशारे पर चलता है इसलिए वह मन ही मन खुश होती है और अनिमा से उसकी तारीफ करती है।
अंजली के पति इंद्रनारायण है वे पहले सदा हँसमुख रहते थे, लेकिन पत्नी के दमन स्वभाव के कारण वे अपनी हँसमुख प्रवृत्ति खो बैठे और उसके कठपुतली बन गये। लाचारी से वे पत्नी के इशारे पर चलने लगे। अपने पति के परिवर्तन पर अंजली गर्व से कहती है – बडे सिट पिटाये थे पहले पहल, पर मै ही आयी अपने टब पर ...........
अपने पति बेटे और नौकरों पर नेतागिरी करती है उसकी यह आदत नौकरानी पर भी जम गयी है। मुन्नी श्रीपत जैसे मनर्मेंजी आदमी से कहती है – आप खाना खा लीजिये हम लोगों के आराम के समय है।
अंजली समय की पावंदी से एकदम जुड गयी है उसके अनुसार – जीवन एक महान गति है, प्रात: सन्ध्या उसकी सुइयॉ हँ नियमबद्रध एक दूसरे के पीछे घूमती रहती है, मैं चाहती हूँ –  मेरा घर भी उसी घडी की तरह चले और हम सब इसके पुर्जें बन जाय और नियमपूर्वक अपना काम करके जाये
अंजली की इस प्रकार की मनोवृत्ति का मौलिक कारण है, उसकी अँह । और इस भावना उसे अपना नानाजी से प्राप्त करने के सबूत मिलते है। वह कहती है हमारे नानाजी कहा करते थे, नौकरों को सदा साफ सुधरा रहना चाहिए। नानाजी कहा करते थे, वक्त की पावन्दी सम्यता की पहली निशानी है। नाटक में हरेक पात्र के विपरित का ....... काफी दिलचस्प होता है श्रीपत ऐसा ही पात्र है जो अंजो की आदत को तोडता है। वह अंजली को समझाता है कि उसके कडे स्वभाव के कारण सारे परिवार का भविष्य समस्यामूलक हो जायेगा। श्रीपत चाहता है कि हरेक मनुष्य अपना नैसर्गिक स्वभाव न छोडें। जब से श्रीपत अंजली के घर आये तब से घर के परिवारों का मनोभाव बदलते लगा। वह अंजली के वकील पति से कहता है – कसम आपकी जीजाजी, शादी ने आपको, बुड़ढा बना दिया है। धीरे धीरे श्री पत के प्रभाव से घर के सारे सदस्य अपनी अपनी नयी आदत सुधारते हैं, नीरज निस्संकोच अंजली से कहता है- मुझे डिप्टी कमीशनर नही बनना। मै तो क्रिकेट का काप्तन बनूँगा। तब श्रीपत लौटने लगता है, तब नीरज उनसे क्रिकेट का सामान भिजवाने की सिफारिश भी करता है। तब अंजली को मालूम पड गया कि श्रीपत के कारण घर का वातावरण बदल गया है तब वह साधु से कहती है – घडी टूट गयी राधू, घडी टूट गयी। शायद मैने इसे ज्यादा चाबी दे दी।
श्रीपत चले जाते है। फिर एक परिवार के सभी लोगों को अपने वश में करना चाहती है लेकिन असमर्थ हो जाती है। मानसिक रोग से पीडित हो जाती है। अपनी ऊपरी आप आक्रमण करती है आत्महत्या कर लेती है। इसके तीन मनोवैज्ञानिक कारण है, 1. विरोधन, 2. स्शानात्तरण 3. स्वास्थमन।
अंजो के अंह का परिणाम इंद्रनारायण पर थे हुआ कि वे शराब की आदत में फंस गये और श्रीपत के लौटने के बाद भी अपनी यह आदत छोड न सकें। अंजो भी पछताती है ले किन अपने कोई पूरा जिम्मेदार नहीं समझती। अंजली के मरे तीन साल गुजर जाते है उसका बेटा नीरज बनावटी स्वभावन के पीछे चलने लगता है और उसका पति इंद्रनारायण अपने पत्नी के आदर्शां पर चलने लगता है इस प्रकार मरने के बाद भी अंजली का दमन जारी रहता है।
अंजली के कठोर स्वभाव के कारण बताते हुए श्रीपत कहते है, अंजो सब तुम मार्बिड और जालिम भी क्योंकि उसके नाना मार्बिड और भी जालिम थे। श्रीपत के अंजली के गुरु का झिकार नीरज को ही माना है। अंजली नीरज को कमीश्नर बनाना चाहती है, लेकिन नीरज स्वयं क्रिकट का काप्तान बनना चाहता है। नीलम हवी बनना चाहता है लेकिन माता के नियंत्रण के कारण नहीं बन सका। इस नाटक की द्रजेडी आनुवंशिक प्रवृत्ति पर निर्भर है।
शिक्षा मनोविज्ञान का कहना है कि संसार में समस्यामूलक बच्चे नहीं, बलकि समस्यामूलक माँ – बॉप है, अर्थात अंजली ही समस्यामूलक माँ है न अपने बच्चों को अपने अपने इच्छा से जीने देती है न अपने पती को..... अंजली के प्रधान पात्र के रूप में नाटककार ने बनाकर मनोविज्ञान के आधार पर उसकी मनोवृत्ति का शोधन किया है। इस पात्र द्वारा नाटककार हमको ये सबक सिखाना चाहते है कि जो जैसा हो वह वैसा ही रहे जब कोई भी आदमी अपनी वास्तविक मनोवृत्ति का उल्लेखन करता है, वह जीवन में असफलता पाता है।
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Saturday, September 10, 2016

जयप्रकाश कर्दम का छप्पर में दलित अस्मिता की खोज

आलेख
जयप्रकाश कर्दम का छप्पर में दलित अस्मिता की खोज
रेजी जोसफ
आजादी के बाद स्वतंत्रता, समानता एवं भाईचारे के मूल्यों को स्थापित करने का महान प्रयास है जयप्रकाश कर्दम के छप्पर नामक उपन्यास। इसमें मानवीय भावों और एहसासों का संस्पर्श है। वे इस उपन्यास के माध्यम से ब्राह्मणवाद के मुखौटे को उखेडने की कोशिश करते हैं जो हमारे समाज को खोखला बनाये रखने के लिए सक्रिय है। इस उपन्यास के मुख्य पात्र चंदन और उसके पिता सुक्खा ब्राह्मणवाद की साजिशों के शिकार हैं और पूरे जीवनकाल में उनके द्वारा बनाये गये षडयंत्रों को सहते रहते हैं। परंतु चंदन के नेतृत्व में सामाजिक बदलाव के लिए की गयी आंदोलनों की व्यापक प्रतिक्रिया सारे समाज में व्याप्त हो जाती है। फलतः भ्रम और भ्रांति के शिकार लोग यथार्थ को पहचानते हैं और जन्म के आधार पर व्यक्ति को श्रेष्ठ या हीन मानने की भावना कम होने लगते हैं। शनै – शनै समाज में यह भावना पैदा होने लगती है कि जन्म से नहीं बल्कि अपने गुण-धर्म, योग्यता आदि के आधार पर ही मनुष्य श्रेष्ठ और हीन बनता है। जो मनुष्य शील और मर्यादाओं का पालन करता है, ईमानदार और सत्यनिष्ठ हो, छल और कपट से दूसरों को धोखा न दें, मेहनत का फल खाता हो वही समाज में श्रेष्ठ बनता है। जो मनुष्य बुरे व्यवहार करते हो, बईमान हो,छल कपटी हो, दूसरों की मेहनत की कमाई खाते हो, वह हीन है। यह संदेश छप्पर उपन्यास के माध्यम से पेश करने में कर्दमजी सफल हो गये हैं। मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठानों में बंधे हुए हैं। किसी न किसी धार्मिक अनुष्ठान से उनकी दिनचर्या शुरू हो जाती है और नींद में जाते वक्त तक मनुष्यों के द्वारा निर्मित अंधविश्वासों की जंजीरों में जकडे हुए हैं। कुछ लोगों ने बदलाव की हवा को पहचाना और उन्होंने पूजा-पुरोहिताई का धंधा छोड दिया और दूसरे धंधों की ओर उन्मुख हुए। इसी कारण ब्राह्मणवाद के इतने गहरे जाल के बीच भी चंदन,सुक्खा,हरिया आदि पात्रों को कोई खरोच तक नहीं आती। वे बिना कुछ खास प्रयास किये ही जीते हैं ,सामाजिक बदलाव लाने की कोशिश करते हैं और नये समाज का निर्माण करने में सक्षम हो जाते हैं। इस उपन्यास के माध्यम से वर्णव्यवस्था के खोखलेपन को दिखा कर चंदन के मुँह से कहलवाया है कि एक तरफ तुम हो और दूसरी तरफ वे लोग हैं जो किसी जाति में जन्म लेने से श्रेष्ठ समझे जाते हैं, चाहे वे कुरूप और आचरण से गिरे हुए हो। वे लोग हैं जो बंगलों में रहते हैं,कारों में घूमते हैं जिनकी तिजोरियाँ नोटों से भरी हैं। जो तुम्हारी कमर तोड मेहनत के बदले तुम्हें उचित मजदूरी तक नहीं देते। ठाकूर साहब की मान्यता है कि दलित समाज के ये लोग पढ-लिख कर ऊँचे ओहदों तक पहुँचने लगेंगे तो हमारी श्रेष्ठता कहाँ रह जायेंगी। यदि ये लोग स्वावलम्बन और स्वाभिमान का जीवन जीने लगेंगे तो फिर हमारा महत्व क्या होगा। इसलिए ठाकुर हरनाम सिंह अपनी बेटी रजनी को समझाते हैं – इतिहास और परम्परा से समाज में हमारा वर्चस्व रहा है। हमारी अस्मिता इसी में है। अस्मिता के बिना मनुष्य जिंदा नहीं रह सकता।
      छप्पर उपन्यास में हरिया और उसकी पुत्री कमला,  सुक्खा और उसका पुत्र चंदन, सवर्ण समाज के प्रतिनिधि ठाकुर हरनाम सिंह की पुत्री रजनी आदि के सहयोग एवं आत्मिक जुडाव से   सामाजिक बदलाव लाने की कोशिश करते हैं। छप्पर के माध्यम से दी गयी आधुनिक सामाजिक दृष्टि वर्तमान काल में भी प्रासंगिक है। ग्रामीण-रामप्यारी ,चंदन-रजनी-कमल, रामहेत- नंदलाल-रतन, ठाकु हरनाम सिंह- काणा, पंडित सेठ दुर्गादास जैसे पात्र दलित एवं सवर्ण समाज के हैं लेकिन सामाजिक बदलाव को स्वीकार करते हैं। उपन्यासकार ने रजनी के मुँह से कहलवाया है- संविधान के अनुसार देश के प्रत्येक नागरिक को सम्मान एवं स्वाभिमानपूर्वक जीने का हक है। यदि चंदन पढ-लिख कर काबिल बनना चाहता है तो यह उसका संवैधानिक हक है, इस पर किसी को ऐतराज क्यों होना चाहिए ? इस बात पर तो समूचे गॉव को गर्व होना चाहिए। सुक्खा यदि अपना पेट काट कर अपने बेटे को पढाना चाहता है तो उसको ऐसा करने से क्यों रोका जाये ?’ जब तक दूसरे लोग भी सुक्खा की तरह अपने बच्चों को काबिल बनाने की ओर ध्यान नहीं देंगे तब तक  न देश का उत्थान होगा और न समाज का। उपन्यासकार सवर्ण समाज की रजनी के माध्यम से स्वतंत्र भारत की आधुनिक नारी तथा संविधान में प्रत्याशित स्वतंत्रता, समानता, बंधुता एवं धर्मनिरपेक्षता के समाज की संरचना को स्वीकार करने की आशा करते हैं।
संदर्भ ग्रंथ –
o    भारतीय दलित साहित्य : परिप्रेक्ष्य – अजय नवारिया।
o    दलित साहित्य का सौंदर्य शास्त्र : ओमप्रकाश वाल्मीकि।
o    दलित साहित्य सृजन के संदर्भ : जयप्रकाश कर्दम।
o    दलित साहित्य का सौंदर्यबोध : रामअवतार यादव।
o    दलित अस्मिता और हिंदी उपन्यास : डॉ. पुरुषोत्तम सत्यप्रेमी।


रेजी जोसफ कर्पगम विश्वविद्यालय कोयम्बत्तूर,तमिलनाडु में डॉ.के.पी. पद्मावति अम्मा  के निर्देशन में पीएच.डी. उपाधि के लिए शोधरत हैं।