हिंदी के साथ भारत
की अस्मिता जुड़ी हुई है - प्रो. गिरीश्वर मिश्र
हिंदी के साथ भारत की अस्मिता जुड़ी हुई
है, इसकी अस्मिता आज दुनिया के नब्बे से अधिक देशों में फैल चुकी है, वहाँ भी
हिंदी का पठन-पाठन, अनुसंधान हो रहा है ।
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गिरीश्वर
मिश्र ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा । उन्होंने तमिलनाडु केंद्रीय विश्वविद्यालय,
तिरुवारूर में बुधवार को त्रिदिवसीय राजभाषा संगोष्ठी का उद्घाटन किया । उन्होंने
कहा कि हिंदी भारतीयता का प्रतीक है ।
भारतीय भाषाओं के बीच हिंदी जोड़ने का काम कर रही है । अगर हिंदी राजभाषा नहीं होती तो अन्य भारतीय
भाषा-भाषियों को उससे भय नहीं होता । उद्घाटनसत्र
में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय
विश्वविद्यालय, सतना के भूतपूर्व कुलपति प्रो. कृष्ण बिहारी पांडेय ने अपने भाषण
में कहा कि हमारी हिंदी और भक्तिभावना ने विदेशियों को भारत की ओर आकर्षित किया
। विदेशी हिंदी से आकर्षित होकर भारत में जो
आए, उन्होंने हिंदी और भारतीय भाषाओं का बड़ा उद्धार भी किया । उन्होंने कहा कि हिंदी को जनता से जोड़ने के
लिए राजभाषा के चौकट से बाहर निकालना जरूरी है ।
तमिलनाडु केंद्रीय विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति प्रो. सेंगादीर ने
अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि भाषाओं के प्रति लोगों में आकर्षण बढ़ाने के लिए
हमें अपने अध्यापन के तरीके को ही बदलना होगा ।
जिस ढंग से हम विज्ञान और तकनीकी विषयों को पढ़ाने में आकर्षक शिक्षण
पद्धतियों को अपनाते हैं उसी ढंग से पढ़ाकर भाषाओं के प्रति भी आकर्षण पैद किया जा
सकता है ।
उद्घाटन सत्र में
अतिथियों का स्वागत तमिलनाडु केंद्रीय विश्वविद्यालय के सहायक निदेशक (राजभाषा)
डॉ. आनंद पाटिल ने किया और उन्होंने अपने स्वागत भाषण में कहा कि राजभाषा से राज
उपसर्ग को हटाकर केवल भाषा बनाना चाहिए, इस तरह हिंदी लोकप्रिय बन सकती है । हिंदी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. विनायक काले
ने धन्यवाद ज्ञापन किया । उद्घाटन
सत्रोपरांत संपन्न विशेष सत्र में प्रो. कृष्ण बिहारी पांडेय ने ‘विविध प्रांतों को
जोड़ता हिंदी का सेतु – चुत्रकूट से रामसेतु तक’, आईआईआईटी, हैदराबाद की सहयोगी प्रोफेसर
डॉ. सोमा पॉल ने ‘राजभाषा कार्यान्वयन में अनुवाद उपकरण और हिंदी शब्दजाल का महत्व’ विषय प्रस्तुतियाँ
पेश की ।
प्रथम तकनीकी सत्र
राजभाषा हिंदी और उसके कार्यान्वयन पर केंद्रित रहा जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय
हिंदी प्रशिक्षण संस्थान, चेन्नई के सहायक निदेशक डॉ. अजय मलिक ने किया । सत्र में क्रमशः डॉ. घनश्याम शर्मा (हैदराबाद) ने ‘धर्म की भाषा बनाम
कर्म की भाषा’, डॉ. ईश्वरचंद्र मिश्र (बैंगलूर) ने ‘भारतीय बुद्धिजीवियों की अनुवाद विषयक
उदासीनता’,
श्रीमती सरोज शर्मा (नई दिल्ली) ने ‘हिंदी की विकास यात्रा’, श्री राजेश कुमार माँझी (नई दिल्ली) ने ‘राजभाषा कार्यान्वयन
की समस्याएँ और उनके समाधान’, डॉ. सी. जय शंकर बाबु (पांडिच्चेरी केंद्रीय
विश्वविद्यालय, पांडिच्चेरी) ने राजभाषा कार्यान्वयन में ‘सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की भूमिका’, श्रीमती एस. जानकी
(उद्योगमंडल) ने ‘राजभाषा हिंदी के कार्यान्वयन का स्वरूप’, डॉ. गोपाल कृष्ण
(बैंगलूर) ने ‘बी.ई.एल में राजभाषा कार्यान्वयन की नई दिशाएँ’ विषय पर अपने विचार प्रकट किए ।
शाम में आयोजित
काव्य संध्या में देश के कोने-कोने से पधारे कवियों ने अपनी कविताएँ सुनाईं । काव्य प्रस्तुति करने वाले कवियों में अशोक रावत
(गज़लकार, आगरा), ईश्वर करुण (चेन्नई), ईश्वर चंद्र झा (बैंगलूर), अजय मलिक (चेन्नै),
प्रकाश जैन (हैदराबाद), घनश्याम शर्मा (हैदराबाद), राजेश माँझी (नई दिल्ली),
डॉ. सी. जय शंकर
बाबु (पांडिच्चेरी) तमिलनाडु केंद्रीय विश्वविद्यालय, तिरुवारूर के
डॉ. आनंद पाटिल, ऋषभमहेंद्र, आरुषि,अमित कुमार आदि शामिल थे ।
प्रकाश जैन, हैदराबाद
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