विद्यार्थी जीवन से ही महेंद्रभटनागर की कविताओं का पाठक रहा हूँ।
उन्होंने कविता सहित साहित्य की अन्य विधाओं में भी उल्लेखनीय व स्मरणीय
लेखन किया है। एक जीवन में इतना स्तरीय और विपुल लेखन किसी भी रचनाकार के
लिए आदर्श और स्पृहा का विषय हो सकता है। महेंद्रभटनागर के साहित्य पर जो
शोध-कार्य हुए हैं और जो आलोचना-पुस्तकें लिखी गयी हैं वे उनके महत्त्व की
जीवन्त साक्षी हैं।
महेंद्रभटनागर की कविताओं में जो जीवन्तता और जिजीविषा का उद्दाम स्वर है; वह प्रभावित करता है। इस तरह की अनेक कविताएँ हैं जो हमारा ध्यान आकृष्ट करती हैं। जैसे —
रुकावट हटाते हुए हम चलेंगे
अँधेरा मिटाते हुए हम चलेंगे!
X X X
सजग रह सतत आज बढ़ते रहेंगे
इमारत नयी एक गढ़ते रहेंगे!
हमें यह पता है —
जवानी मनुज की कभी लड़खड़ाती नहीं है!
ठिठक कर रहेंगी विरोधी हवाएँ,
फिसल कर गिरेंगी सभी आपदाएँ,
हमें यह पता है —
कि हिम्मत की साँसें कभी व्यर्थ जाती नहीं हैं!
इसी प्रकार, ‘आदमी और स्वप्न’ की ये पंक्तियाँ भी अत्यन्त प्रेरक लगती हैं —
आदमी का प्यार सपनों से सनातन है!
मृत्यु के सामने वह
मग्न होकर देखता है स्वप्न,
सपने देखना —
मानो जीवन की निशानी है,
यम के पराजय की कहानी है!
कवि का यह स्वप्नदर्शी मन निरन्तर आशाओं-आकांक्षाओं से भरा है, उसकी सहानुभूति और पक्षधरता शोषित, वंचित, उपेक्षित और पीड़ित व्यक्ति के न केवल साथ है; उसके दुखों के कारणों की भी बड़ी शिद्दत से तलाश करती है —
फूल जो मुरझा रहे
जग-वल्लरी पर
अधखिले
कारण उसी का खोजता हूँ!
इस तरह की पंक्तियाँ बहुत सारगभित हैं।
भाग्य से अथवा जगत से
हर प्रताड़ित व्यक्ति को
आजन्म संचित स्नेह मेरा है समर्पित!
जैसी पंक्तियाँ भी उसी भाव की हैं।
महेंद्रभटनागर की कविताओं में प्रेम, सौन्दर्य और प्रकृति की विविध छवियाँ तो हैं ही, उनमें जो संघर्ष-धर्मी चेतना और विद्रोही तेवर हैं, वे भी जन-स्वभाव के क़रीब हैं और वे आज के इस तनाव, कुण्ठा और हताशा भरे समय में, विचारधाराओं के अंत की घोषणाओं के समय में अधिक प्रासंगिक भी हैं। उदाहरण के लिए —
ओ भवितव्य के अश्वो!
तुम्हारी रास
हम आश्वस्त अंतर से सधे
मज़बूत हाथों से दबा
हर बार मोड़ेंगे!
वर्चस्वी धरा के पुत्र हम
दुर्धर्ष, श्रम के बन्धु हम
तारुण्य के अविचल उपासक
हम तुम्हारी रास
ओ भवितव्य के अश्वो!
सुनो, हर बार मोड़ेंगे!’
अथवा —
उट्ठो, करोड़ों मेहनतकश नौजवानो!
विश्व का नक़्शा बदलने के लिए ...!
महेंद्रभटनागर की इस तरह की कविताएँ अपनी लयात्मकता के कारण भी स्मरणीय हैं।
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महेंद्रभटनागर की कविताओं में जो जीवन्तता और जिजीविषा का उद्दाम स्वर है; वह प्रभावित करता है। इस तरह की अनेक कविताएँ हैं जो हमारा ध्यान आकृष्ट करती हैं। जैसे —
रुकावट हटाते हुए हम चलेंगे
अँधेरा मिटाते हुए हम चलेंगे!
X X X
सजग रह सतत आज बढ़ते रहेंगे
इमारत नयी एक गढ़ते रहेंगे!
हमें यह पता है —
जवानी मनुज की कभी लड़खड़ाती नहीं है!
ठिठक कर रहेंगी विरोधी हवाएँ,
फिसल कर गिरेंगी सभी आपदाएँ,
हमें यह पता है —
कि हिम्मत की साँसें कभी व्यर्थ जाती नहीं हैं!
इसी प्रकार, ‘आदमी और स्वप्न’ की ये पंक्तियाँ भी अत्यन्त प्रेरक लगती हैं —
आदमी का प्यार सपनों से सनातन है!
मृत्यु के सामने वह
मग्न होकर देखता है स्वप्न,
सपने देखना —
मानो जीवन की निशानी है,
यम के पराजय की कहानी है!
कवि का यह स्वप्नदर्शी मन निरन्तर आशाओं-आकांक्षाओं से भरा है, उसकी सहानुभूति और पक्षधरता शोषित, वंचित, उपेक्षित और पीड़ित व्यक्ति के न केवल साथ है; उसके दुखों के कारणों की भी बड़ी शिद्दत से तलाश करती है —
फूल जो मुरझा रहे
जग-वल्लरी पर
अधखिले
कारण उसी का खोजता हूँ!
इस तरह की पंक्तियाँ बहुत सारगभित हैं।
भाग्य से अथवा जगत से
हर प्रताड़ित व्यक्ति को
आजन्म संचित स्नेह मेरा है समर्पित!
जैसी पंक्तियाँ भी उसी भाव की हैं।
महेंद्रभटनागर की कविताओं में प्रेम, सौन्दर्य और प्रकृति की विविध छवियाँ तो हैं ही, उनमें जो संघर्ष-धर्मी चेतना और विद्रोही तेवर हैं, वे भी जन-स्वभाव के क़रीब हैं और वे आज के इस तनाव, कुण्ठा और हताशा भरे समय में, विचारधाराओं के अंत की घोषणाओं के समय में अधिक प्रासंगिक भी हैं। उदाहरण के लिए —
ओ भवितव्य के अश्वो!
तुम्हारी रास
हम आश्वस्त अंतर से सधे
मज़बूत हाथों से दबा
हर बार मोड़ेंगे!
वर्चस्वी धरा के पुत्र हम
दुर्धर्ष, श्रम के बन्धु हम
तारुण्य के अविचल उपासक
हम तुम्हारी रास
ओ भवितव्य के अश्वो!
सुनो, हर बार मोड़ेंगे!’
अथवा —
उट्ठो, करोड़ों मेहनतकश नौजवानो!
विश्व का नक़्शा बदलने के लिए ...!
महेंद्रभटनागर की इस तरह की कविताएँ अपनी लयात्मकता के कारण भी स्मरणीय हैं।
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प्रोफ़ेसर हिन्दी-विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी — 221005 (उ. प्र.)
कवि महेंद्रभटनागर का वैशिष्ट्य
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