Friday, October 28, 2011

साहित्यपुर का संत-- श्रीलाल शुक्ल (श्रद्धांजलि)

साहित्यपुर का संत-- श्रीलाल शुक्ल
- डॉ. प्रेम जनमेजय
अभी- अभी दुखद समाचार मिला कि हमारे समय के श्रेष्ठ रचनाकार एवं मानवीय गुणों से संपन्न श्रीलाल शुक्ल नहीं रहे। बहुत दिनों से अस्वस्थ थे परंतु निरंतर यह भी विश्वास था कि वे जल्दी स्वस्थ होंगे। परंतु हर विश्वास रक्षा के योग्य कहां होता है। यह मेरे लिए एक व्यक्तिगत क्षति है। उनके जाने से एक ऐसा अभाव पैदा हुआ है जिसे भरा नहीं जा सकता है। परसाई की तरह उन्होंने भी हिंदी व्यंग्य साहित्य को ,अपनी रचनात्मकता के द्वारा, जो सार्थक दिशा दी है वह बहुमूल्य है।पिछले दिनों उनसे आखिरी बात तब हुई थी जिस दिन उन्हें ज्ञानपीठ द्वारा सम्मान दिए जाने की घोषणा हुई थी।

21 सितम्बर को सुबह, एक मनचाहा, सुखद एवं रोमांचित समाचार, पहले सुबह छह बजे आकाशवाणी ने समाचारों द्वारा और फिर सुबह की अखबार ने दिया- श्रीलाल शुक्ल और अमरकांत को ज्ञानपीठ पुरस्कार। ‘नई दुनिया’ ने शीर्षक दिया, ‘उम्र के इस पड़ाव में खास रोमांचित नहीं करता पुरस्कार- श्रीलाल।’ पढ़ते ही मन ने पहली प्रतिक्रिया दी कि श्रीलाल जी पुरस्कार आपको तो खास रोमांचित नहीं करता पर मेरे जैसे, आपके अनेक पाठकों को, बहुत रोमांचित करता हैं, विशेषकर व्यंग्य के उस विशाल पाठक वर्ग को, जिसे लगता है कि यह पुरस्कार बड़े स्तर पर व्यंग्य की स्वीकृति की भी घोषणा है। इस समाचार को पढ़कर मेरा मन तत्काल श्रीलाल जी को फोन करने का हुआ, पर यह सोचकर कि इन दिनों उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है, कुछ देर बाद करूं तो अच्छा रहेगा, रुक गया। पर अधिक नहीं रुक पाया। मेरा मन अनत सुख नहीं पा रहा था और बार-बार इस जहाज पर आ बैठता था कि श्रीलाल जी से बात की जाए। मन चाहे वद्ध हो अथवा युवा, उसकी बात माननी ही पड़ती है। सुबह के सवा आठ बजे के लगभग श्रीलाल जी की बहू, साधना शुक्ल को फोन लगाया। साधना जी का स्वर बता रहा था कि इस समाचार से वे बहुत प्रसन्न हैं। मैंने उन्हें बधाई दी और कहा- ‘आज सुबह बहुत ही अच्छा समाचार मिला, आपको बहुत-बहुत बधई।’ साध्ना जी ने कहा- आपको भी।’ मैंने कहा- श्रीलाल जी ने ‘नई दुनिया’ के संवाददाता से कहा है कि उम्र के इस पड़ाव में यह पुरस्कार कोई खास एनर्जी या रोमांच नहीं देता। साध्ना जी, उन्हें न करता होगा पर यह पुरस्कार उनके विशाल पाठक वर्ग को एनर्जी देता है, रोमांचित करता है।’ साध्ना शुक्ल- बिलकुल, प्रेम जी। बहुत ही अच्छा लग रहा है।’ मैं- श्रीलाल जी को मेरी ओर से बधाई दीजिएगा।’ साधना शुक्ल ने पूछा- पापा से बात करेंगे।’ मैं- उनका स्वास्थ्य. . .कर पाएंगे क्या वो बात. . .।’ साधना शुक्ल- मैं उन्हें देती हूं।’ कुछ देर बाद श्रीलाल जी का स्वर सुनाई दिया। मैंने कहा- सर, प्रणाम, आपको इस सम्मान पर बहुत-बहुत बधई।’ श्रीलाल जी- धन्यवाद, प्रेम जी।’ मैंने दोहराया- सर, आपने कहा है कि आपको उम्र के इस पड़ाव में यह पुरस्कार कोई खास एनर्जी या रोमांच नहीं देता, पर यह पुरस्कार मुझ समेत आपके विशाल पाठक वर्ग तथा हिंदी व्यंग्य, को एनर्जी देता है, रोमांचित करता है।’ श्रीलाल जी- ऐसा नहीं है प्रेम जी, ऐसे पुरस्कारों से संतोष अवश्य होता है। इस उम्र में अक्सर साहित्यकारों को उपेक्षित कर दिया जाता है। यह पुरस्कार संतोष देता है कि मैं उपेक्षित नहीं हूं।’

जानता था कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा है, इसलिए कहा- अच्छा सर अब आप आराम करें।’ श्रीलाल जी- प्रेम जी, आपने मुझ पर अच्छी पुस्तक संपादित की है। इस पुस्तक ने मुझे रीबिल्ड ;त्मइनपसकद्ध किया है। इसकी एक प्रति और भिजवा सकेंगे?’;;श्रीलाल जी ‘व्यंग्य यात्रा’ के, उन पर केंद्रित अंक के संदर्भ में अपनी बात कह रहे थे। जिसे नेशनल पब्लिशिंग हाउस ने- ‘श्रीलाल शुक्ल: विचार विश्लेषण एवं जीवन’ के रूप में पुस्तकाकार प्रकाशित किया है।द्ध मैं- क्यों नहीं सर, मैं प्रकाशक से कहकर भिजवाता हूं। प्रणाम।’ मैंने बात समाप्त करते हुए कहा। मन चाह रहा था कि उनसे अधिक से अधिक बात हो पर साथ ही उनके स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी भी, मन निरंतर दे रहा था।

श्रीलाल जी कि साहित्य के प्रति गहरी समझ और उनके अध्ययनशील व्यक्तित्व से मैंने बहुत कुछ सीखा है। वे बहुत सजग हैं और ‘हम्बग’ से चिढ़ के कारण वे लाग लपेट में विश्वास नहीं करते हैं। वे बातचीत में बहुत जल्दी अपनी आत्मीयता को सक्रिय कर देते हैं। अपने लेखकीय व्यक्तित्व की एकरूपता को वे तोड़ते रहे हैं। ऐसे में जब अधिकांश साहित्यकार स्वयं को एक फ्रेम में बंधे होता देख प्रसन्न होते हैं वे अपनी अगली कृति में अपने पिछले फ्रेम को तोड़ते दिखाई देते हैं। एक ही रचना से अति प्रसिद्धि प्राप्त करने के पश्चात वैसी ही कृति को दोहराकर उसे भुनाने तक का प्रयास श्रीलाल जी ने नहीं किया है। उनके साहित्यकार व्यक्तित्व के अनेक रंग हैं। वे अपनी रचनाओं के माध्यम से वर्तमान व्यवस्था की विसंगतियों पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष प्रश्नचिह्न लगाते हैं। उनका लेखन एक चुनौती प्रस्तुत करता है। उन्होंने विषय एवं शिल्प के ध्रातल पर ऐसी अनेक चुनौतियां उपस्थित की हैं जो सकारात्मक सृजनशील प्रतियोगिता का मार्ग प्रशस्त करती हैं । ‘राग दरबारी’ एक क्लासिक है तथा कोई भी क्लासिक दोहराया नहीं जा सकता। हां ‘राग दरबारी’ के बाद व्यंग्य उपन्यास लिखे गए पर वे चुनौती प्रस्तुत नहीं कर पाए। आप श्रीलाल जी पर कुछ भी सतही कहकर किनारा नहीं कह सकते हैं। वे विनम्र हैं पर ऐसी संतई विनम्रता नहीं कि आप इसे उनकी कमजोरी मान लें।

श्रीलाल जी से अनेक बार मिला हूं। उनके साथ नेशनल बुक ट्रस्ट के लिए हिदी हास्य-व्यंग्य संकलन तैयार करते हुए, ‘व्यंग्य यात्रा’ के उनपर कें्िरदत अंक को तैयार करते हुए। उनपर कें्िरदत अंक तैयार करते हुए मेरा बहुत मन था कि उनसे एक बेतकल्लुफ बातचीत की जाए। इस बीच श्रीलाल जी की बीमारी की सूचनाओं एवं सुविधाजनक समय की तलाश के कारण समय खिसकने लगा। दिसंबर, 2008 के प्रथम सप्ताह की एक तिथि तय कर ली गई और लखनउफ में गोपाल चतुर्वेदी से अनुरोध् किया गया कि वे इसका सुभीता जमाएं। पर उनसे 11 दिसंबर की एक सुबह तय हुई। मैं दोपहर का भोजन कर सभी तरह से लैस हो, श्रीलाल जी से मिलने की तैयारी कर रहा था कि गोपाल चतुर्वेदी का फोन आया- प्रेम भाई, अभी श्रीलाल जी की बहु का पफोन आया है कि आज सुबह कुछ साहित्यिक आ गए थे और मेरे बार-बार मना करने के बावजूद उन्होंने बहुत समय ले लिया। श्रीलाल जी बुरी तरह थक गए हैं और आज शाम मिलना नहीं हो पाएगा।’ ऐसी घोर निराशा के क्षण मैंने बहुत जिए हैं जब आपको लगता है कि सपफलता हाथ इस अप्रत्याशित से मैं सन्न रह गया। मैं तो दिल्ली से समय लेकर आया था और जो समय लेकर नहीं आए थे वे सफल हुए। शायद जीवन में सफलता की यही कुंजी है। मैं नहीं चाहता था कि अस्वस्थ श्रीलाल जी को परेशान करूं पर मेरे अंदर का संपादक बार-बार गोपाल चतुर्वेदी से प्रार्थना कर रहा था कि वे कुछ जुगाड़ बिठाएं जिससे मेरी मनोकामना पूर्ण हो। वे भी मुझसे कम परेशान नहीं थे। अगले दिन 11 बजे से माध्यम की गोष्ठी थी जिसकी अध्यक्षता गोपाल चतुर्वेदी को करनी थी और मुझे विषय प्रवर्तन करना था। अगले दिन का ही समय मिला साढे दस बजे का। सोचा आधे घंटे में बातचीत करके 11 बजे लौटेंगे- कवि लोगों ने रतजगा किया है, साढ़े ग्यारह से पहले गोष्ठी क्या आरंभ होगी। आध घंटा मुझे उंट के मुंह में जीरे से भी कम लग रहा था पर बकरे की मां को तो खैर ही मनाना पड़ता है। न होने से कुछ होना अच्छा- थोड़ी बहुत बात कर लेंगे और कुछ चित्र ले लूंगा। मैंने अपने बार-बार के आग्रह से गोपाल जी को विवश करदिया कि हम वहां आध घंटा पहले पहुंचें और श्रीलाल जी के तैयार होने का उनके घर ही इंतजार करें। मैं इसके लिए भी तैयार था कि समय से पहले पहुंचने की वरिष्ठ लेखक की डांट मैं खा लूंगा। पर श्रीलाल जी सही मायनों में वरिष्ठ हैं। हम जब पहुंचे, उन्होंने नाश्ता भी नहीं किया था। पर उन्होंने जिस गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया उसे देख सरदी की गुनगुनी धूप भी शरमा गई होगी। हमारे समय से पूर्व पहुंचने का कहीं रोष नहीं। वो तो हमारे लिए नाश्ते का भी त्याग करने को तैयार थे, पर हमारे आग्रह और अपनी बहू साधना के अधिकार के सामने उनकी एक न चली। मैं जिस तनाव में जी रहा था उससे मैं एकदम मुक्त हो गया। फोटो सेशन के समय, उनकी चारपाई पर, सम्मान के कारण उनसे कुछ दूर बैठकर जब मैं पफोटो खिंचवाने लगा तो उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखकर मुझे अपने नजदीक करते हुए कहा- ‘नजदीक आइए फोटो अच्छा आएगा।’ उस दिन हम दस मिनट का समय लेकर गए थे पर दो घंटे का समय लेकर आए। वे अद्भुत अविस्मरणीय क्षण थे।

ऐसे अनेक क्षण मेरी अमूल्य धरोहर है।
 
युगमानस की भावभीनी श्रद्धांजलि

महेंद्र भटनागर जी कविताएँ फ्रेंच में अनूदित


सुख्यात कवि एवं युग मानस के पाठक के सुपरिचित लेखक डॉ. महेंद्र भटनागर जी की कविताएँ कई भारतीय भाषाओं के अलावा फ्रेंच में भी अनूदित हुई हैं ।  उनकी फ्रेंच में प्रकाशित कविताएँ आप ऑनलाइन में भी पढ़ सकते हैं ।  लिंक यहाँ दिया जा रहा है ।  युग मानस के पाठकों से अनुरोध है कि वे डॉ. भटनागर जी की रचनाएँ पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें ।
[‘ A Modern Indian Poet Dr. Mahendra Bhatnagar — UN POÈTE INDIEN ET MODERNE’]


Plz. Click the following LINK:

http://content.yudu.com/Library/A1raa8/POEMSMAHENDRABHATNAG/resources/index.htm


‘Poet Mahendra Bhatnagar : His Mind And Art’

Plz. Click the following LINK :

http://content.yudu.com/Library/A1r9wg/CRITICISM/resources/index.htm

Wednesday, October 26, 2011

श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र

II श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र II



( मूल पाठ-तद्रिन हिंदी काव्यानुवाद-संजीव 'सलिल' )



नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते I

शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II१II



सुरपूजित श्रीपीठ विराजित, नमन महामाया शत-शत.

शंख चक्र कर-गदा सुशोभित, नमन महालक्ष्मी शत-शत..



नमस्ते गरुड़ारूढ़े कोलासुर भयंकरी I

सर्व पापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II२II



कोलाsसुरमर्दिनी भवानी, गरुड़ासीना नम्र नमन.

सरे पाप-ताप की हर्ता, नमन महालक्ष्मी शत-शत..



सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी I

सर्व दु:ख हरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II३II



सर्वज्ञा वरदायिनी मैया, अरि-दुष्टों को भयकारी.

सब दुःखहरनेवाली, नमन महालक्ष्मी शत-शत..



सिद्धि-बुद्धिप्रदे देवी भुक्ति-मुक्ति प्रदायनी I

मन्त्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II४II



भुक्ति-मुक्तिदात्री माँ कमला, सिद्धि-बुद्धिदात्री मैया.

सदा मन्त्र में मूर्तित हो माँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..



आद्यांतर हिते देवी आदिशक्ति महेश्वरी I

योगजे योगसंभूते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II५II



हे महेश्वरी! आदिशक्ति हे!, अंतर्मन में बसो सदा.

योग्जनित संभूत योग से, नमन महालक्ष्मी शत-शत..



स्थूल-सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोsदरे I

महापापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II६II



महाशक्ति हे! महोदरा हे!, महारुद्रा सूक्ष्म-स्थूल.

महापापहारी श्री देवी, नमन महालक्ष्मी शत-शत..



पद्मासनस्थिते देवी परब्रम्ह स्वरूपिणी I

परमेशीजगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II७II



कमलासन पर सदा सुशोभित, परमब्रम्ह का रूप शुभे.

जगज्जननि परमेशी माता, नमन महालक्ष्मी शत-शत..



श्वेताम्बरधरे देवी नानालंकारभूषिते I

जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II८II



दिव्य विविध आभूषणभूषित, श्वेतवसनधारे मैया.

जग में स्थित हे जगमाता!, नमन महालक्ष्मी शत-शत..



महा लक्ष्यमष्टकस्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर: I

सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यंप्राप्नोति सर्वदा II९II



जो नर पढ़ते भक्ति-भाव से, महालक्ष्मी का स्तोत्र.

पाते सुख धन राज्य सिद्धियाँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..



एककालं पठेन्नित्यं महापाप विनाशनं I

द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन-धान्यसमन्वित: II१०II



एक समय जो पाठ करें नित, उनके मिटते पाप सकल.

पढ़ें दो समय मिले धान्य-धन, नमन महालक्ष्मी शत-शत..



त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रु विनाशनं I

महालक्ष्मीर्भवैन्नित्यं प्रसन्नावरदाशुभा II११II



तीन समय नित अष्टक पढ़िये, महाशत्रुओं का हो नाश.

हो प्रसन्न वर देती मैया, नमन महालक्ष्मी शत-शत..



II तद्रिन्कृत: श्री महालक्ष्यमष्टकस्तोत्रं संपूर्णं II



fतद्रिंरचित, सलिल-अनुवादित, महालक्ष्मी अष्टक पूर्ण.

नित पढ़ श्री समृद्धि यश सुख लें, नमन महालक्ष्मी शत-शत..



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Tuesday, October 25, 2011

शरद पवार को गुस्सा क्यों आता है

शरद पवार को गुस्सा क्यों आता है

-संजय द्विवेदी

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार को अपने प्रधानमंत्री पर सार्वजनिक रूप से हमला बोलना चाहिए या नहीं यह एक बहस का विषय है। किंतु पवार ने जो कहा उसे आज देश भी स्वीकार रहा है। एक मुखिया के नाते मनमोहन सिंह की कमजोरियों पर अगर गठबंधन के नेता सवाल उठा रहे हैं तो कांग्रेस को अपने गिरेबान में जरूर झांकना चाहिए। गठबंधन सरकारों के प्रयोग के दौर में कांग्रेस ने मजबूरी में गठबंधन तो किए हैं किंतु वह इन रिश्तों को लेकर बहुत सहज नहीं रही है। वह आज भी अपनी उसी टेक पर कायम है कि उसे अपने दम पर सरकार बनानी है, जबकि देश की राजनीतिक स्थितियां बहुत बदल चुकी हैं। देश पर लंबे समय तक राज करने का अहंकार और स्वर्णिम इतिहास कांग्रेस को बार-बार उन्हीं वीथिकाओं में ले जाता है, जहां से देश की राजनीति बहुत आगे निकल आई है। फिर मनमोहन सिंह कांग्रेस के स्वाभाविक नेता नहीं हैं। वे सोनिया गांधी के द्वारा मनोनीत प्रधानमंत्री हैं, ऐसे में निर्णायक सवालों पर भी उनकी बहुत नहीं चलती और वे तमाम मुद्दों पर 10-जनपथ के मुखापेक्षी हैं। सही मायने में वे सरकार को नेतृत्व नहीं दे रहे हैं, बस चला रहे हैं। उनकी नेतृत्वहीनता देश और गठबंधन दोनों पर भारी पड़ रही है। देश जिस तरह के सवालों से जूझ रहा है उनमें उनकी सादगी, सज्जनता और ईमानदारी तीनों भारी पड़ रहे हैं। उनकी ईमानदारी के हाल यह हैं कि देश भ्रष्टाचार के रिकार्ड बना रहा है और अर्थशास्त्री होने का खामियाजा यह कि महंगाई अपने चरम पर है। सही मायने में इस दौर में उनकी ईमानदारी और अर्थशास्त्र दोनों औंधे मुंह पड़े हैं। अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राजग ने गठबंधन का जो सफल प्रयोग किया, उसे अपनाना कांग्रेस की मजबूरी है। किंतु समय आने पर अपने सहयोगियों के साथ न खड़े होना भी उसकी फितरत है। इस अतिआत्मविश्वास का फल उसे बिहार जैसे राज्य में उठाना भी पड़ा जहां राहुल गांधी के व्यापक कैंपेन के बावजूद उसे बड़ी विफलता मिली। देखें तो शरद पवार, ममता बनर्जी सरीखे सहयोगी कभी कांग्रेस का हिस्सा ही रहे। किंतु कांग्रेस की अपने सहयोगियों की तरफ देखने की दृष्टि बहुत सकारात्मक नहीं है। लालूप्रसाद यादव, रामविलास पासवान, मुलायम सिंह यादव, मायावती सभी तो दिल्ली की सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे हैं, किंतु कांग्रेस का इनके साथ मैदानी रिश्ता देखिए तो हकीकत कुछ और ही नजर आएगी। कांग्रेस गठबंधन को एक राजनीतिक धर्म बनाने के बजाए व्यापार बना चुकी है। इसी का परिणाम है अमर सिंह जैसे सहयोगी उसी व्यापार का शिकार बनकर आज जेल में हैं। सपा सांसद रेवतीरमण सिंह का नंबर भी जल्दी आ सकता है। यह देखना रोचक है कि अपने सहयोगियों के प्रति कांग्रेस का रवैया बहुत अलग है। वहां रिश्तों में सहजता नहीं है। शरद पवार के गढ़ बारामती इलाके की सीट पर राकांपा की हार साधारण नहीं है। एक तरफ जहां कांग्रेस की उदासीनता के चलते महाराष्ट्र में राकांपा हार का सामना करती है। वहीं केंद्रीय मंत्री के रूप में शरद पवार हो रहे हमलों पर कांग्रेस का रवैया देखिए। कांग्रेसी उन्हें ही महंगाई बढ़ने का जिम्मेदार ठहराने में लग जाते है। एक सरकार सामूहिक उत्तरदायित्व से चलती है। भ्रष्टाचार हुआ तो ए. राजा दोषी हैं और महंगाई बढ़े तो शरद पवार दोषी ,यह तथ्य हास्यास्पद लगते हैं। फिर खाद्य सुरक्षा बिल जैसै सवालों पर मतभेद बहुत जाहिर हैं। श्रीमती सोनिया गांधी के द्वारा बनाया गयी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद मंत्रियों और कैबिनेट पर भारी है, उसके द्वारा बनाए गए कानून मंत्रियों पर थोपे जा रहे हैं। यह सारा कुछ भी सहयोगी दलों के मंत्री सहज भाव से नहीं कर रहे हैं, मंत्री पद का मोह और सरकार में बने रहने की कामना सब कुछ करवा रही है। सीबीआई का दुरूपयोग और उसके दबावों में राजनीतिक नेताओं को दबाने का सारा खेल देश के सामने है। ऐसे में यह बहुत संभव है कि ये विवाद अभी और गहरे हों। सरकार की छवि पर संकट देखकर लोग सरकार से अलग होने या अलग राय रखने की बात करते हुए दिख सकते हैं। ममता बनर्जी सरकार में मंत्री रहते हुए अक्सर ऐसा करती दिखती थीं और अपना जनधर्मी रूख बनाए रखती थीं। सहयोगी दलों की यह मजबूरी है कि वे सत्ता में रहें किंतु हालात को देखते हुए अपनी असहमति भी जताते रहें, ताकि उन्हें हर पाप में शामिल न माना जाए। शरद पवार जैसै कद के नेता का ताजा रवैया बहुत साफ बताता है कि सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। जब गठबंधन नकारात्मक चुनावी परिणाम देने लगा है, सहयोगी दल चुनावों में पस्त हो रहे हैं तो उनमें बेचैनी स्वाभाविक है। जिस बारामती में शरद पवार, कांग्रेस के बिना भी भारी पड़ते थे वहीं पर अगर वे कांग्रेस के साथ भी अपनी पार्टी को नहीं जिता पा रहे हैं, तो उनकी चिंता स्वाभाविक है। जाहिर तौर पर सबके निशाने पर चुनाव हैं और गठबंधन तो चुनाव जीतने व सरकार बनाने के लिए होते हैं। अब जबकि गठबंधन भी हार और निरंतर अपमान का सबब बन रहा है तो क्यों न बेसुरी बातें की जाएं। क्योंकि सरकार चलाना अकेली शरद पवार की गरज नहीं है, इसमें सबसे ज्यादा किसी का दांव पर है तो कांग्रेस का ही है। शरद पवार से वैसे भी आलाकमान के रिश्ते बहुत सहज नहीं रहे क्योंकि सोनिया गांधी के विदेशी मूल का सवाल उठाकर एनसीपी ने रिश्तों में एक गांठ ही डाली थी। बाद के दिनों में सत्ता साकेत की मजबूरियों ने रास्ते एक कर दिए। ऐसी स्थितियों में शायद कांग्रेस को एक बार फिर से गठबंधन धर्म को समझने की जरूरत है, किंतु अपनी ही परेशानियों से बेहाल कांग्रेस के इतना वक्त कहां है? श्रीमती सोनिया गांधी की खराब तबियत जहां कांग्रेस संगठन को चिंता में डालने वाली है वहीं कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की क्षमताएं अभी बहुज्ञात नहीं हैं।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Tuesday, October 18, 2011

दिनेश कुमार माली सम्मानित

अखिल भारतीय राजभाषा संगोष्ठी, मदुरै में राजभाषा अधिकारी दिनेश कुमार माली सम्मानित




मदुरै के होटल जरमानस में आयोजित दिनांक 12.10.2011 से 14.10.2011 तक अखिल भारतीय राजभाषा संगोष्ठी के अवसर पर महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड के वरिष्ठ अधिकारी दिनेश कुमार माली को राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में उल्लेखनीय योगदान तथा साहित्य सृजन में विशिष्ट उपलब्धियों के लिए भारतीय राजभाषा विकास संस्थान, देहरादून की ओर से सम्मानित किया गया । इस संगोष्ठी में देश के ख्याति प्राप्त औद्योगिक संस्थानों जैसे केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संस्थान ,पेट्रोनेट एलएनजी लिमिटेड,भारतीय समवेत औषध संस्थान, नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन, पावर ग्रिड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, ड्रेजिंग कार्पोरेशन ऑफ इंडिया, कॉल इंडिया की अनुषंगी कंपनियाँ –भारत कोकिंग कॉल लिमिटेड, नार्दन कोलफील्ड्स लिमिटेड के सौ से ज्यादा अधिकारी उपस्थित थे । समापन समारोह के अवसर पर महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,वर्धा के भूतपूर्व कुलपति प्रो॰जी॰ गोपीनाथन,केरल विश्वविद्यालय,तिरुवनतपुरम के पूर्व प्रोफेसर एवं डीन डॉ॰वी॰पी॰मुहम्मद कुंज मेत्तर, सुखाडिया विश्वविद्यालय उदयपुर राजस्थान के पूर्व प्रोफेसर विजय कुलश्रेष्ठ , मैसूर विश्वविद्यालय कर्नाटक के पूर्व प्राध्यापक डॉ॰तिप्पेस्वामी,दामोदर घाटी निगम के सचिव श्री उमेश कुमार ,स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड ,भिलाई के कार्यकारी निदेशक श्री आर॰के॰नुरुला तथा महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड के भूतपूर्व अध्यक्ष-सह-प्रबन्ध निदेशक श्री रामजी उपाध्याय मंचासीन थे । तालचेर कोलफील्ड्स के लिंगराज क्षेत्र में कार्यरत दिनेश कुमार माली ,वरिष्ठ प्रबन्धक (खनन) ,जो कि लिंगराज क्षेत्र के नामित राजभाषा अधिकारी भी है, को तकनीकी विषयों में हिन्दी के अधिकाधिक प्रयोग और प्रसार के लिए “विशेष राजभाषा विशिष्टता सम्मान” से सम्मानित किया गया । साथ ही साथ , उनकी ओडिया से हिन्दी में अनूदित कृतियों ‘पक्षीवास’,’सरोजिनी साहू की श्रेष्ठ कहानियाँ’,’ओडिया-भाषा की प्रतिनिधि कवितायें’एवं ‘बंद-कमरा’ से हिन्दी साहित्य में सराहनीय योगदान तथा संगोष्ठी में उनके आलेख “हिंदीतर क्षेत्र में राजभाषा के उन्नयन के तरीकों की समीक्षा” के प्रस्तुतीकरण पर “राजभाषा विशिष्टता सम्मान”से सम्मानित किया गया । उन्हें इस अवसर पर शील्ड एवं प्रशस्ति –पत्र प्रदान किया गया ।
(प्रस्तुति - अल्का एम.एस.)

‘मीडिया शिक्षाःमुद्दे और अपेक्षाएं’

मीडिया शिक्षा पर एक बेहतर किताब

भोपाल। भारत में मीडिया शिक्षा एक लंबी यात्रा पूरी कर चुकी है। इसका विस्तार निरंतर हो रहा है। इस विधा में हो रहे विस्तार और इसके सामने उपस्थित चुनौतियों पर प्रकाश डालती हुई एक किताब ‘मीडिया शिक्षाःमुद्दे और अपेक्षाएं’ का प्रकाशन दिल्ली के यश पब्लिकेशन्स ने किया है।     पुस्तक के संपादक, माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता और संचार विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने बताया कि इस पुस्तक देश के जाने माने मीडिया शिक्षकों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों के लेख शामिल किए गए हैं। जिन्होंने मीडिया शिक्षा के विविध पक्षों पर अपनी बेबाक राय रखी है। उन्होंने कहा कि आज जबकि मीडिया शिक्षा एक विशिष्ठ अनुशासन के रूप में अपनी जगह बना रही है तब उसपर गंभीर विमर्श जरूरी है। आज जबकि सीबीएससी के पाठ्यक्रमों से लेकर मीडिया अध्ययन में पीएचडी तक के कोर्स देश के तमाम विश्वविद्यालय में उपलब्ध हैं, तब यह जरूरी है कि हम मीडिया शिक्षा के तमाम प्रकारों पर संवाद करें और उसकी सार्थकता के लिए रास्ते निकालें।    माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता के पूर्व कुलपति और जनसत्ता के पूर्व संपादक श्री अच्युतानंद मिश्र को समर्पित की गयी इस पुस्तक में स्व.माखनलाल चतुर्वेदी, अच्युतानंद मिश्र, प्रो. बी.के. कुठियाला, विश्वनाथ सचदेव, डा.संजीव भानावत, सच्चिदानंद जोशी, प्रो.कमल दीक्षित, डा.मनोज दयाल, डा.श्रीकांत सिंह, डा. मानसिंह परमार, डा.मनीषा शर्मा, डा.वर्तिका नंदा, डा. शिप्रा माथुर, बृजेश राजपूत, प्रो. ओमप्रकाश सिंह, सचिन भागवत, प्रो.ओमप्रकाश सिंह, धनंजय चोपड़ा, डा.सुशील त्रिवेदी, प्रकाश दुबे, डा. देवब्रत सिंह,संजय कुमार, मोनिका गहलोत, संदीप कुमार श्रीवास्तव, माधवी श्री, मिथिलेश कुमार, मीतेंद्र नागेश, जया शर्मा, आशीष कुमार अंशू,मधु चौरसिया, सुमीत द्विवेदी आदि के लेख शामिल हैं। 159 पृष्ठ की इस पुस्तक का मूल्य 295 रूपए है। प्रकाशक का पता हैः यश पब्लिकेशंस, 1/10753, गली नंबर-3, सुभाष पार्क, नवीन शाहदरा, नियर कीर्ति मंदिर, दिल्ली-110032

मीडिया विमर्श का नया अंक

मीडिया विमर्श के नए अंक में एक बड़ी बहस‘लोक’ ऊपर या ‘तंत्र’


भोपाल। जनसंचार के सरोकारों पर केंद्रित लोकप्रिय पत्रिका मीडिया विमर्श का नया अंक (सितंबर, 2011) एक बड़ी बहस छेड़ने में कामयाब रहा है। इस अंक में अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों से उपजे हालात पर विमर्श किया गया है। इस अंक की आवरण कथा इन्हीं संदर्भों पर केंद्रित है। ‘अन्ना ने किया दिल्ली दर्प दमन’ शीर्षक संपादकीय में पत्रिका के कार्यकारी संपादक संजय द्विवेदी ने कहा है कि हमें अपने लोकतंत्र को वास्तविक जनतंत्र में बदलने की जरूरत है। इसके साथ ही इस अंक में जनांदोलनों पर केंद्रित कई आलेख हैं, जिसमें प्रख्यात लेखिका मैत्रेयी पुष्पा ने यह सवाल खड़ा किया है कि आखिर जनांदोलनों में साहित्यकार और लेखक क्यों गायब दिखते हैं। इसके साथ ही डा. विजयबहादुर सिंह का एक लेख और एक कविता इन संदर्भों को सही तरीके से रेखांकित करती है। उदीयमान भारत की वैश्विक भूमिका पर केंद्रित माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला का लेख एक नई दिशा देता है। धार्मिक चैनलों और मीडिया में धर्म की जरूरत पर डा. वर्तिका नंदा एक लंबा शोधपरक लेख ‘चैनलों पर बाबा लाइव’ शीर्षक से प्रकाशित है। समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर ने मजीठिया वेज बोर्ड के बारे में एक विचारोत्तेजक लेख लिखकर पत्रकारों का शोषण रोकने की बात की है। अंक में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित अमरकांत एवं प्रख्यात पत्रकार रामशरण जोशी के साक्षात्कार भी हैं। इसके साथ ही गिरीश पंकज के नए व्यंग्य उपन्यास ‘ऊं मीडियाय नमः’ के कुछ अंश भी प्रकाशित किए गए हैं। पत्रिका के अंक के अन्य प्रमुख लेखकों में नवीन जिंदल, संजय कुमार, प्रीति सिंह, लीना, डा. सुशील त्रिवेदी, मधुमिता पाल के नाम उल्लेखनीय हैं।
अगला अंक सोशल नेटवर्किंग पर केंद्रितः
मीडिया विमर्श का आगामी अंक सोशल नेटवर्किग पर केंद्रित है। भारत जैसे देश में भी खासकर युवाओं के बीच संवाद का माध्यम सोशल नेटवर्किंग बन चुकी है। इससे जुड़े विविध संदर्भों पर इस अंक में विचार होगा। सोशल नेटवर्किंग के सामाजिक प्रभावों के साथ-साथ संवाद की इस नई शैली के उपयोग तथा खतरों की तरफ भी पत्रिका प्रकाश डालेगी। इस अंक में जाने-माने पत्रकार, साहित्यकार और बुद्धिजीवियों के लेख शामिल किए जा रहे हैं। इस अंक में आप भी अपना योगदान दे सकते हैं। अपने लेख, विश्वेषण या अनुभव 10 नवंबर,2011 तक मेल कर दें तो हमें सुविधा होगी। लेख के साथ अपना एक चित्र एवं संक्षिप्त परिचय जरूर मेल कर सकते हैं, ई-मेल पता है- mediavimarsh@gmail.com

Thursday, October 13, 2011

अंडमान में 'राष्ट्रीय डाक सप्ताह' का आयोजन

अंडमान में 'राष्ट्रीय डाक सप्ताह' का आयोजन




'विश्व डाक दिवस' (9 अक्तूबर) के साथ-साथ पूरे देश में 9-14 अक्तूबर तक चलने वाले राष्ट्रीय डाक सप्ताह का आरंभ हुआ.मुख्यभूमि के साथ-साथ सुदूर अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भी हर्षोल्लास के साथ इसे मनाया जा रहा है. एक तरफ जहाँ डाक मेलों द्वारा लोगों को डाकघरों की सेवाओं के बारे में बताने के साथ-साथ राजस्व अर्जन पर जोर दिया जा रहा है, वहीँ नई पीढ़ी को डाक घरों से जोड़ने हेतु भी बच्चों के लिए डाक घरों का विजिट, डाक टिकट प्रदर्शनी, पत्र-लेखन, पेंटिंग और प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताएं आयोजित की जा रही हैं. पोर्टब्लेयर में राष्ट्रीय डाक सप्ताह का उद्घाटन निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव द्वारा किया गया। इस अवसर पर श्री यादव ने कहा कि डाकघर ही एक मात्र ऐसा संस्थान है जो देश के सुदूरतम कोनो को जोडता है और इस तरह ऐसे क्षेत्रों में रह रहे लोगो को तमाम सुविधा मिलना सुनिश्चित हो जाती हैं। श्री यादव ने कहा कि इन द्वीपों में सभी प्रमुख डाक सेवाएं उपलब्ध हैं, जो मुख्य भूमि में मिलती हैं।



राष्ट्रीय डाक सप्ताह के तहत अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में 10 अक्टूबर को ‘बचत बैंक दिवस‘ के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर जहाँ बचत मेला लगाया गया, वहीं लोगों को बचत बैंक सेवाओं के बारे मे जानकारी देते हुए बचत खाते खोलने की तरफ प्रवृत्त किया गया। डाक निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा नेटवर्क की दृष्टि से डाकघर बचत बैंक देश का सबसे बड़ा रीटेल बैंक है।

172 मिलियन से अधिक खाताधारकों के ग्राहक आधार और 1,54,000 शाखाओं के नेटवर्क के साथ डाकघर बचत बैंक देश के सभी बैंकों की कुल संख्या के दोगुने के बराबर है। द्वीप समूह के डाकघरों से बचत खाता, आवर्ती जमा, सावधि जमा, मासिक आय स्कीम, लोक भविष्य निधि, किसान विकास पत्र, राष्ट्रीय बचत पत्र और वरिष्ठ नागरिक बचत स्कीम की खुदरा बिक्री की जाती है। ज्ञातव्य है कि ये सभी जमा राशियाँ केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों के विकास कार्यों के लिए दी जाती हैं। डाकघर की जमा योजनाओं में आकर्षक ब्याज दरें हैं। द्वीप समूह में वर्तमान में लगभग 1 लाख 8 हजार खाते चल रहे हैं और वित्तीय वर्ष 2010-11 के दौरान लगभग 67 करोड़ रूपये डाकघरों में जमा हुए। वर्तमान परिवेश में डाक विभाग वन स्टाप शाप के तहत बचत, बीमा, गैर बीमा, पेंशन प्लान इत्यादि सेवायें प्रदान कर रहा है। इनमें से कई सेवायें अन्य फर्मों के साथ अनुबंध के तहत आरम्भ की गयी हैं। मनरेगा के तहत कुशल/अर्ध-कुशल/अकुशल मजदूरों के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने में भारत सरकार को सहयोग देते हुए डाकघर मजदूरी का भुगतान करने का माध्यम भी बन चुका है। द्वीप समूह में मनरेगा के 269 खाते संचालित है।



निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि यह एक सुखद संकेत है कि डाक-सेवाएं नवीनतम टेक्नालाजी का अपने पक्ष में भरपूर इस्तेमाल कर रही हैं। डाकघरों की मनीआर्डर सेवा को द्रुतगामी बनाते हुए इसे “ई-मनीआर्डर“ में तब्दील कर दिया गया है। 'इंस्टेंट मनीआर्डर सेवा’ के तहत संपूर्ण भारत में आनलाइन मनी ट्रांसफर के तहत धनादेश भेजने व प्राप्त करने की सुविधा है। विदेशों में रह रहे व्यक्तियों द्वारा द्वीप समूहों में अपने परिजनों को तत्काल धन अन्तरण सुलभ कराने हेतु ’वेस्टर्न यूनियन’ के सहयोग से ’अंतर्राष्ट्रीय धन अन्तरण सेवा’ पोर्टब्लेयर, बम्बूफलाट और हैवलाक डाकघरों में उपलब्ध है। इसी क्रम में 11 अक्टूबर को 'मेल दिवस' मनाया गया जिसमें स्कूली बच्चों ने प्रधान डाकघर का दौरा किया जिसमें स्कूली बच्चों को मेल सार्टिगं, मेल वितरण, बचत बैंक, फिलैटलिक,प्रोजेक्ट एरो एंव टेक्नालॅाजी इत्यादि के बारे बताया गया। डाक निदेशक श्री यादव ने बताया कि 12 अक्टूबर को फिलैटलिक दिवस के रुप में मनाया जाएगा। जिसमें स्कूली बच्चों के लिए पत्र लेखन,प्रश्नोत्तरी एंव पेटिंग प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी। डाक विभाग के कर्मचारियों के साथ-साथ स्कूली बच्चों में भी डाक-सप्ताह के प्रति काफी उत्साह देखा जा रहा है.

अरुण श्रीवास्तव ‘मुन्ना जी’ नहीं रहे....



श्री अरुण श्रीवास्तव ‘मुन्ना जी’

हम सब साथ साथ के सहयोगी प्रकाशन, झांसी से प्रकाशित होने वाली कायस्थ

समाज की लोकप्रिय पत्रिका ‘चित्रांश ज्योति’ के संस्थापक व प्रकाशक झांसी

निवासी श्री अरुण श्रीवास्तव ‘मुन्ना जी’ का गत् 5 अक्तूबर, 2011 को लखनऊ

स्थित मेडिकल कालेज में एक बीमारी के चलते आकस्मिक निधन हो गया। वह 52

वर्ष के थे। अपने पीछे वह पत्नी सहित दो नाबालिग बच्चे छोड़ गए हैं। आप

लगभग तीन दशकों तक दैनिक जागरण, झांसी के संपादकीय विभाग में कार्य करते

हुए बतौर लेखक मुख्यतः 70-90 के दशक में रेडियो के अलावा दैनिक जागरण

सहित धर्मयुग, लोटपोट, बाल भारती, दीवाना तेज, पराग, फिल्मी दुनिया,

माधुरी आदि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे थे। विभिन्न

पत्र/पत्रिकाओं में प्रकाशित ‘आपके अटपटे प्रश्न और मुन्नाजी के चटपटे

उत्तर’ आपका लोकप्रिय स्तंभ रहा था। इस स्तंभ के अंतर्गत पाठकों के अटपटे

प्रश्नों के जवाब में आपके चटपटे व काव्यात्मक उत्तर उस समय बेहद

लोकप्रिय रहे थे। आपने किशोरावस्था में ही लेखन व पत्रकारिता शुरू कर दी

थी और उसी समय आपने ‘मृगपाल’ नामक एक मासिक पत्रिका का संपादन भी

प्रारम्भ कर दिया था। आपको लेखन व पत्रकारिता के अलावा गायन व समाज सेवा

का भी शौक था। आपने झांसी जिले में कायस्थ समाज के उत्थान के लिए भी अनेक

कार्यक्रम आयोजित किए और अंतिम समय तक कायस्थ समाज की पत्रिका ‘चित्रांश

ज्योति’ का प्रकाशन भी करते रहे। आपको विभिन्न उल्लेखनीय कार्यों के चलते

अनेक सम्मान भी प्राप्त थे। आप अत्यन्त मिलनसार व सामाजिक प्रकृति के

व्यक्ति थे। आपके आकस्मिक निधन से आपके हजारों चाहने वाले दुखी व स्तब्ध

हैं।


 प्रेषकः किशोर श्रीवास्तव,

द्वारा, हम सब साथ साथ पत्रिका,

916- बाबा फरीदपुरी, वेसट पटेल नगर,

नई दिल्ली-110008 मो. 9868709348

Wednesday, October 12, 2011

डॉ. बशीर को मोटूरि सत्यनारायण सम्मान

युग मानस के रचनाकार डॉ. बशीर को मोटूरि सत्यनारायण सम्मानित हुए हैं,
उन्हें हार्दिक बाधाइयाँ ।

Tuesday, October 11, 2011

रोचक चर्चा : कौन परिंदा?, कौन परिंदी??...




कौन परिंदा?, कौन परिंदी??...

-विजय कौशल, संजीव 'सलिल'


*


कौन परिंदा?, कौन परिंदी? मेरे मन में उठा सवाल.






किससे पूछूं?, कौन बताये? सबने दिया प्रश्न यह टाल..


मदद करी तस्वीर ने मेरी,बिन बूझे हल हुई पहेली.


देख आप भी जान जाइये, कौन सहेला?, कौन सहेली??..


करी कैमरे ने हल मुश्किल, देता चित्र जवाब.


कौन परिंदा?, कौन परिंदी??, लेवें जान जनाब..

 
*
अनथक श्रम बिन रुके नसीहत, जो दे वही परिन्दी.



मुँह फेरे सुन रहा अचाहे, अंगरेजी या हिन्दी..


बेबस हुआ परिंदा उसकी पीर नहीं अनजानी,.


'सलिल' ज़माने से घर-घर की यह ही रही कहानी..

मुक्तिका : भजे लछमी मनचली को..

मुक्तिका :


भजे लछमी मनचली को..

संजीव 'सलिल'

*

चाहते हैं सब लला, कोई न चाहे क्यों लली को?

नमक खाते भूलते, रख याद मिसरी की डली को..



गम न कर गर दोस्त कोई नहीं तेरा बन सका तो.

चाह में नेकी नहीं, तू बाँह में पाये छली को..



कौन चाहे शाक-भाजी-फल खिलाना दावतों में

चाहते मदिरा पिलाना, खिलाना मछली तली को..



ज़माने में अब नहीं है कद्र फनकारों की बाकी.

बुलाता बिग बोंस घर में चोर डाकू औ' खली को..



राजमार्गों पर हुए गड्ढे बहुत, गुम सड़क खोजो.

चाहते हैं कदम अब पगडंडियों को या गली को..



वंदना या प्रार्थना के स्वर ज़माने को न भाते.

ऊगता सूरज न देखें, सराहें संध्या ढली को..



'सलिल' सीता को छला रावण ने भी, श्री राम ने भी.

शारदा तज अवध-लंका भजे लछमी मनचली को..



*****

Monday, October 10, 2011

यूनिकोड आधारित हिन्दी उपकरण के नवीन संस्करण

यूनिकोड आधारित हिन्दी उपकरण के नवीन संस्करण



आप सभी को यह जानकारी देते हुए अत्यधिक हर्ष हो रहा है कि हमारे
द्वारा विकसित विभिन्न यूनिकोड आधारित हिन्दी उपकरण जैसे कि फ़ॉन्ट
परिवर्तक, डिक्शनरी, टाइपिंग उपकरण आदि के नवीन संस्करण जारी किए हैं।
संक्षिप्त विवरण एवम् डाउनलोड लिंक दी जा रहीं हैं, जहाँ से उक्त उपकरण
के नवीन संस्करण प्राप्त किए जा सकते हैं।

• नवीन संस्करण के इंस्टालेशन के लिए डाटनेट फ़्रेमवर्क वर्जन 2 या 3.5
जरूरी है। डाटनेट फ़्रेमवर्क वर्जन 2 या 3.5 पर कार्य करने वाले उपकरण के
नवीन संस्करण इस प्रकार से हैं:-

1. DangiSoft Prakhar Devanagari Font Parivartak: प्रखर देवनागरी फ़ॉन्ट
परिवर्तक Version 2.1.5.0 : First and Only software for the purpose of
Conversion of Devanagari Text in various ASCII/ISCII (8 bit) Fonts
into Unicode (16 bit) Text immediately and easily with 100% accuracy.

http://www.4shared.com/file/zXERndaY/PrakharParivartak.html

2. DangiSoft UniDev: यूनिदेव (Version : 2.0.5.0) - UniDev (Unicode to
ASCII/ISCII Font Converter) is a latest new UNICODE CONVERTER FOR
HINDI, SANSKRIT, MARATHI, NEPALI and Other DEVANAGARI SCRIPTS. It can
easily convert Mangal Unicode font to Kruti Dev with 100% accuracy.

http://www.4shared.com/file/qs8-bXyl/UniDev.html

3. DangiSoft ShabdaJnaan: DangiSoft - ShabdaGyaan (Eng.-Hindi-Eng.)
UNICODE BASED A DUPLEX DICTIONARY (A TOOL FOR OFFLINE USE)
शब्द-ज्ञान यूनिकोड आधारित 'अंग्रेज़ी-हिन्दी- अंग्रेज़ी ' डिक्शनरी (ऑफ़लाइन)
Version 2.0.5.0

http://www.4shared.com/file/gUAGYIVO/ShabdaGyaan.html

4. DangiSoft Prakhar Devanagari Lipik: प्रखर देवनागरी लिपिक : (Version
2.0.5.0) - Remington Based Unicode Typing Tool with 100% accuracy....

http://www.4shared.com/file/NlV7Z_y7/PrakharLipik.html

5. DangiSoft Pralekh Devanagari Lipik: प्रलेख देवनागरी लिपिक (फ़ॉनेटिक
इंगलिश टंकण प्रणाली आधारित) Version 2.0.5.0 Phonetic English Based
Unicode Typing Tool with 100% accuracy....

http://www.4shared.com/file/Ycf9LpP1/PralekhLipik.html


• डाटनेट फ़्रेमवर्क वर्जन 1.1 पर कार्य करने वाले उक्त उपकरण के नवीन
संस्करण इस प्रकार से हैं:-
DOTNET FRAMEWORK V1.1 LINK:-
http://www.4shared.com/file/rO2qAZm1/dotnetfx.html

1. DangiSoft Prakhar Devanagari Font Parivartak: प्रखर देवनागरी फ़ॉन्ट
परिवर्तक Version 1.1.5.0 : First and Only software for the purpose of
Conversion of Devanagari Text in various ASCII/ISCII (8 bit) Fonts
into Unicode (16 bit) Text immediately and easily with 100% accuracy.

http://www.4shared.com/file/gJY3QkSE/PrakharConverter.html

2. DangiSoft UniDev: यूनिदेव (Version : 1.0.5.0) - UniDev (Unicode to
ASCII/ISCII Font Converter) is a latest new UNICODE CONVERTER FOR
HINDI, SANSKRIT, MARATHI, NEPALI and Other DEVANAGARI SCRIPTS. It can
easily convert Mangal Unicode font to Kruti Dev with 100% accuracy.

http://www.4shared.com/file/vvqAWeca/UniDev1.html

3. DangiSoft ShabdaJnaan: DangiSoft - ShabdaGyaan (Eng.-Hindi-Eng.)
UNICODE BASED A DUPLEX DICTIONARY (A TOOL FOR OFFLINE USE)
शब्द-ज्ञान यूनिकोड आधारित 'अंग्रेज़ी-हिन्दी- अंग्रेज़ी ' डिक्शनरी (ऑफ़लाइन)
Version 1.0.5.0

http://www.4shared.com/file/U_3SZO2a/ShabdaGyaanV1.html

4. DangiSoft Prakhar Devanagari Lipik: प्रखर देवनागरी लिपिक : (Version
1.0.4.0) - Remington Based Unicode Typing Tool with 100% accuracy....

http://www.4shared.com/file/tnxq2vVr/PrakharLipikV1.html

5. DangiSoft Pralekh Devanagari Lipik: प्रलेख देवनागरी लिपिक (फ़ॉनेटिक
इंगलिश टंकण प्रणाली आधारित) Version 1.0.5.0 Phonetic English Based
Unicode Typing Tool with 100% accuracy....

http://www.4shared.com/file/rHuXCOh7/DangiSoftPralekhV1.html

उक्त उपकरणों के संबंध में अगर आप कुछ सुझाव देना चाहें या अधिक जानकारी
चाहें तो आपका स्वागत है हमें जरूर लिखें।
धन्यवाद!
सादर
इंजी॰ जगदीप सिंह दाँगी
Cell:+91-9826343498
E-mail:dangijs@gmail.com
http://www.4shared.com/u/5IPlotQZ/DangiSoft_India.html
http://www.hindimedia.in/2/index.php/hindijagat/vishesh/433-jagdip-dangi-vishisht-akadami-awad.html

Friday, October 7, 2011

अस्मिताओं के सम्मान से ही एकात्मताः सहस्त्रबुद्धे









पत्रकारिता विश्वविद्या​लय में व्याख्यान


अस्मिताओं के सम्मान से ही एकात्मताः सहस्त्रबुद्धे

भोपाल, 7 अक्टूबर। विचारक एवं चिंतक विनय सहस्त्रबुद्धे का कहना है कि छोटी-छोटी अस्मिताओं का सम्मान करते हुए ही हम एक देश की एकात्मता को मजबूत कर सकते हैं। वे यहां माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल द्वारा आयोजित व्याख्यान ‘मीडिया में विविधता एवं बहुलताः समाज का प्रतिबिंबन’ विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अस्मिता का सवाल अतार्किक नहीं है, इसे समझने और सम्मान देने की जरूरत है। बहुलता का मतलब ही है विविधता का सम्मान, स्वीकार्यता और आदर है। उन्होंने कहा कि इसके लिए संवाद बहुत जरूरी है और मीडिया इस संवाद को बहाल करने और प्रखर बनाने में एक खास भूमिका निभा सकता है। ऐसा हो पाया तो मणिपुर का दर्द पूरे देश का दर्द बनेगा। पूर्वोत्तर के राज्य मीडिया से गायब नहीं दिखेंगें। बहुलता के लिए विधिवत संवाद के अवसरों की बहाली जरूरी है। ताकि लोग सम्मान और संवाद की अहमियत को समझकर एक वृहत्तर अस्मिता से खुद को जोड़ सकें। आध्यात्मिक लोकतंत्र इसमें एक बड़ी भूमिका निभा सकता है। इससे समान चिंतन, समान भाव, समान स्वीकार्यता पैदा होती है। समाज के सब वर्गों को एकजुट होकर आगे जाने की बात मीडिया आसानी से कर सकता है। किंतु इसके लिए उसे ज्यादा मात्रा में बहुलता को अपनाना होगा। उपेक्षितों को आवाज देनी पड़ेगी। अगर ऐसा हो पाया तो विविधता एक त्यौहार बन जाएगी, वह जोड़ने का सूत्र बन सकती है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि दूसरों को सम्मान देते हुए ही समाज आगे बढ़ सकता है। मैं को विलीन करके ही समाज का रास्ता सुगम बनता है। मीडिया संगठनों की रचना ही बहुलता में बाधक है। साथ ही समाचार संकलन पर घटता खर्च मीडिया की बहुलता को नियंत्रत कर रहा है। विविध विचारों को मिलाने से ही विचार परिशुद्ध होते हैं। वरना एक खास किस्म की जड़ता विचारों के क्षेत्र को भी आक्रांत करती है। कार्यक्रम के प्रारंभ में विषय प्रवर्तन करते हुए जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने कहा कि समाज में मीडिया के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर यह जरूरी है कि समाज की बहुलताओं और विभिन्नताओं का अक्स मीडिया कवरेज में भी दिखे। इससे मीडिया ज्यादा सरोकारी, ज्यादा जवाबदेह, ज्यादा संवेदनशील, ज्यादा संतुलित और ज्यादा प्रभावी बनेगा। इसकी अभिव्यक्ति में शामिल व्यापक भावनाएं इसे प्रभावी बना सकेंगी। उन्होंने कहा कि विभिन्नताओं में सकात्मकता की तलाश जरूरी है क्योंकि सकारात्मकता से ही विकास संभव है जबकि नकारात्मकता से विनाश या विवाद ही पैदा होते हैं। कार्यक्रम का संचालन प्रो. आशीष जोशी ने किया। इस मौके पर रेक्टर सीपी अग्रवाल, डा. श्रीकांत सिंह ने अतिथियों का पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया।

(संजय द्विवेदी)

नेह

कविता


नेह


कंचन झा
भगत सिंह नगर,डेराबस्सी
मोहाली ,पंजाब
पिन -140507


एक बंधन .
शून्य में ,
अनंतता का परिचय .
सम व विषम
के मध्य .
जीवन से अथवा
बेजान से .
न कहने की बात .
न सुनने की जरूरत .
कड़े से मजबूत .
अनंततम तन्य भी .
न शुरू का पता .
न अंत की खबर .
यूँ मानो जैसे
" ईश्वर ".

Tuesday, October 4, 2011

अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन, बैंकाक, थाईलैंड

अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन हेतु पंजीयन प्रारंभ

रायपुर । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी और हिंदी-संस्कृति को प्रतिष्ठित करने के लिए सृजन-सम्मान, छत्तीसगढ़ द्वारा, किये जा रहे प्रयासों और पहलों के अनुक्रम में आगामी 15 से 21 दिसंबर तक थाईलैंड में चतुर्थ अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है । इसके पूर्व संस्था द्वारा तीन अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन विदेशों में और 8 राष्ट्रीय आयोजन देश में किया जा चुका है । इस सम्मेलन में हिंदी के आधिकारिक विद्वान, अध्यापक, लेखक, भाषाविद्, पत्रकार, टेक्नोक्रेट एवं हिंदी प्रचारक भाग ले रहे हैं । सम्मेलन का मूल उद्देश्य स्वंयसेवी आधार पर हिंदी-संस्कृति का प्रचार-प्रसार, भाषायी सौहार्द्रता एवं सांस्कृतिक अध्ययन-पर्यटन का अवसर उपलब्ध कराना है। उक्त अवसर पर आयोजित संगोष्ठी – हिन्दी की वैश्वकिता पर प्रतिभागी अपना आलेख पाठ कर सकेंगे । इसके अलावा प्रतिभागियों के लिए बैंकाक, पटाया, कोहलर्न आईलैंड थाई कल्चरल शो, गोल्डन बुद्ध मंदिर, विश्व की सबसे बड़ी जैम गैलरी, सफारी वर्ल्ड आदि स्थलों का सांस्कृतिक पर्यटन का अवसर भी उपलब्ध होगा । इच्छुक रचनाकार रचनात्मक भागीदारी को मद्देनज़र रखते हुए संस्था आपको सादर आमंत्रित करती है ।

आयोजन में सम्मिलित होने की सहमति की स्थिति में प्रतिभागी को पंजीयन हेतु 10 अक्टूबर, 2011 के पूर्व अनिवार्यतः पासपोर्ट की मूलप्रति, दो श्वेत श्याम पासपोर्ट साईज छायाचित्र जमा करना होगा । प्रतिभागियों को दोनों संस्थाओं की ओर से मानपत्र, प्रतीक चिन्ह,1000 रुपये की साहित्यिक कृतियां भेंट स्वरूप प्रदान की जायेगी । अन्य वांछित जानकारी हेतु डॉ. जयप्रकाश मानस, रायपुर मो.- 94241-82664, srijangatha@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है ।