Sunday, October 31, 2010

श्यामल सुमन की पांच कविताएँ

श्यामल सुमन


काव्य-रचनाएँ



यह जीवन श्रृंगार प्रभु




सबकी है सरकार प्रभु
क्या सबको अधिकार प्रभु

आमलोग जीते मुश्किल से
इतना अत्याचार प्रभु

साफ छवि लाजिम है जिनकी
करते भ्रष्टाचार प्रभु

मँहगाई, आतंकी डर से
दिल्ली है लाचार प्रभु

रिश्ते-नाते आज बने क्यों
कच्चा-सा व्यापार प्रभु

अवसर सबको मिले बराबर
यह जीवन श्रृंगार प्रभु

लोग खोजते अब जीवन में
जीने का आधार प्रभु

देव-भूमि भारत में अब तो
लगता सब बेकार प्रभु

सुना युगों से करते आये
जुल्मों का संहार प्रभु

सुमन आस है, नहीं डरोगे
क्या लोगे अवतार प्रभु




क्या बात है




अपनों के आस पास है तो क्या बात है
यदि कोई उसमें खास है तो क्या बात है
मजबूरियों से जिन्दगी का वास्ता बहुत,
दिल में अगर विश्वास है तो क्या बात है

आँखों से आँसू बह गए तो क्या बात है
बिन बोले बात कह गए तो क्या बात है
मुमकिन नहीं है बात हरेक बोल के कहना,
भावों के साथ रह गए तो क्या बात है

इन्सान बन के जी सके तो क्या बात है
मेहमान बन के पी सके तो क्या बात है
कपड़े की तरह जिन्दगी में आसमां फटे,
गर आसमान सी सके तो क्या बात है

जो जीतते हैं वोट से तो क्या बात है
जो चीखते हैं नोट से तो क्या बात है
जो राजनीति चल रही कि लुट गया सुमन,
जो सीखते हैं चोट से तो क्या बात है




मुस्कान ढ़ूँढ़ता हूँ






तेरे प्यार में अभी तक मैं जहान ढ़ूँढ़ता हूँ
दीदार हो सका न क्यूँ निशान ढ़ूँढ़ता हूँ

जब मतलबी ये दुनिया रिश्तों से क्या है मतलब
इन मतलबों से हटकर इन्सान ढ़ूढ़ता हूँ

खोया है इश्क में सब आगे है और खोना
खुद को मिटाने वाला नादान ढ़ूढ़ता हूँ

एहसास उनका सच्चा गिरकर जो सम्भलते जो
अनुभूति ऐसी अपनी पहचान ढ़ूढ़ता हूँ

कभी घर था एक अपना जो मकान बन गया है
फिर से सुमन के घर में मुस्कान ढ़ूढ़ता हूँ


दूजा नया सफ़र है




निकला हूँ मैं अकेला अनजान सी डगर है
कोई साथ आये, छूटे मंजिल पे बस नजर है

महफिल में मुस्कुराना मुश्किल नहीं है यारो
जो घर में मुस्कुराये समझो उसे जिगर है

पी करके लड़खड़ाना और गिर के सम्भल जाना
इक मौत जिन्दगी की दूजा नया सफर है

जब सोचने की ताकत और हाथ भी सलामत
फिर बन गए क्यों बेबस किस बात की कसर है

हम जानवर से आदम कैसे बने ये सोचो
क्यों चल पड़े उधर हम पशुता सुमन जहर है




दिल्ली से गाँव तक




अंदाज उनका कैसे बिन्दास हो गया
महफिल में आम कलतक वो खास हो गया
जिसे कैद में होना था संसद चले गए,
क्या चाल सियासत की आभास हो गया

रुकते ही कदम जिन्दगी मौत हो गयी
प्रतिभा जो होश में थी क्यों आज सो गयी
कल पीढ़ियाँ करेंगी इतिहास से सवाल,
क्यों मुल्क बचाने की नीयत ही खो गयी

मरते हैं लोग भूखे बिल्कुल अजीब है
सड़ते हैं वो अनाज जो बिल्कुल सजीव है
जल्दी से लूट बन्द हो दिल्ली से गाँव तक,
फिर कोई कैसे कह सके भारत गरीब है

आतंकियों का मतलब विस्तार से यारो
शासन की कोशिशे भी संहार से यारो
फिर भी हैं लोग खौफ में तो सोचता सुमन,
नक्सल से अधिक डर है सरकार से यारो





श्यामल सुमन का परिचय

नाम : श्यामल किशोर झा

लेखकीय नाम : श्यामल सुमन

जन्म तिथि: 10.01.1960

जन्म स्थान : चैनपुर, जिला सहरसा, बिहार

शिक्षा : स्नातक, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र एवं अँग्रेज़ी

तकनीकी शिक्षा : विद्युत अभियंत्रण में डिप्लोमा

वर्तमान पेशा : प्रशासनिक पदाधिकारी टाटा स्टील, जमशेदपुर

साहित्यिक कार्यक्षेत्र : छात्र जीवन से ही लिखने की ललक, स्थानीय समाचार पत्रों सहित देश के कई पत्रिकाओं में अनेक समसामयिक आलेख समेत कविताएँ, गीत, ग़ज़ल, हास्य-व्यंग्य आदि प्रकाशित

स्थानीय टी.वी. चैनल एवं रेडियो स्टेशन में गीत, ग़ज़ल का प्रसारण, कई कवि-सम्मेलनों में शिरकत और मंच संचालन।
अंतरजाल पत्रिकाएँ अनुभूति, हिन्दी नेस्ट, साहित्य कुञ्ज, साहित्य शिल्पी, युग मानस आदि में सैकड़ों रचनाएँ प्रकाशित।

गीत ग़ज़ल संकलन "रेत में जगती नदी" कला मंदिर प्रकाशन में शीघ्र प्रकाशनार्थ ।

रुचि के विषय : नैतिक मानवीय मूल्य एवं सम्वेदना ।

Monday, October 4, 2010

कोयंबत्तूर में राष्ट्रीय हिंदी संगोष्ठी सुसंपन्न







विभिन्न दक्षिण भारतीय भाषाओं के विद्वानों उपस्थिति में
दक्षिण में हिंदी की स्थिति, गति एवं प्रगति पर केंद्रित महत्वपूर्ण परिसंवाद
भारतीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए भारतीय भाषाओं का विकास जरूरी है – वर्गीस एम.पी.

नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, कोयंबत्तूर एवं डॉ. जी.आर.दामोदरन विज्ञान महाविद्यलय, कोयंबत्तूर के संयुक्त तत्वावधान में कोयंबत्तूर में 4 अक्तूबर, 2010 को राष्ट्रीय हिंदी संगोष्ठी का आयोजन किया गया । संगोष्ठी का उद्घाटन नराकास, कोयंबत्तूर के अध्यक्ष एवं क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त श्री एम.पी. वर्गीस ने दीप प्रज्वलन के साथ किया । उद्घाटन सत्र में अपने अध्यक्षीय भाषण में वर्गीस जी ने कहा कि राष्ट्रीय एकता की संकल्पना को साकार बनाने के लिए जहाँ एक संपर्क भाषा की जरूरत है, वहीं भारतीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए भारतीय भाषाओं का विकास जरूरी है । भारतीय संविधान इस संकल्पना के लिए प्रतिबद्ध है ।
समिति के सदस्य-सचिव एवं संगोष्ठी के संयोजक डॉ. सी. जय शंकर बाबु ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि दक्षिण के आंध्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल एवं पांडिच्चेरी प्रदेशों में शैक्षिक, सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक, व्यावसायिक, वाणिज्यिक, औद्योगिक, प्रशासनिक क्षेत्रों के अलावा मीडिया एवं फिल्मी क्षेत्रों में भी आज हिंदी का विस्तृत प्रचार-प्रसार के आलोक में समग्र स्थिति का जायज़ा लेने के लिए आज इस एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है ।
तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी की महासचिव डॉ. मधुधवन ने नई पीढ़ी का आह्वान करते हुए कहा कि उन्हें आगे बढ़कर हिंदी प्रचार-प्रसार का दायित्व संभालना चाहिए । वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार डॉ. पी.के. बालसुब्रमणियन जी ने तमिल साहित्य को हिंदी में अनुवादित करने के लिए नई पीढ़ी को प्रेरित किया और जानकारी दी कि इसके लिए तमिलनाडु सरकार आर्थिक मदद देती है ।
उद्घाटन सत्र में श्रीमती उषा वर्गीस, महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. ए. पोन्नुसामी ने भी अपने विचार प्रकट किए और बच्चों को हिंदी अवश्य पढ़ाने का आग्रह किया ।
दक्षिण भारत में शिक्षा, साहित्य, संस्कृति एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में हिंदी पर केंद्रित प्रथम सत्र की अध्यक्षता डॉ. पी.के. बालसुब्रमण्यन ने किया । विशिष्ट अतिथियों के रूप में डॉ. ना. गोपालकृष्णन, निदेशक, केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, श्री ईश्वर चंद्र झा, मंडल प्रबंधक, दि न्यू इंडिया एश्योरेंस कं.लि., उपस्थित थे । इस सत्र में बीज वक्तव्य देते हुए श्री सुदर्शन मलिक विश्व के एक बड़े जनतंत्रात्मक राष्ट्र की प्रचलित हिंदी को आज विश्व की भाषा का स्तर दिलाना आवश्यक है, इसके लिए हर ढंग से हमें पहल की जानी चाहिए । इस सत्र का संचालन डॉ. सी. जय शंकर बाबु ने किया ।
दूसरे सत्र का दक्षिण भारत में प्रशासनिक, व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्षेत्रों में हिंदी की प्रगति पर केंद्रत रहा । इस सत्र में डॉ. एस. बशीर, डॉ. वासुदेवन शेष विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे । डॉ. सी. जय शंकर बाबु ने बीज वक्तव्य देते हुए कहा कि दक्षिण भारत में हिंदी की प्रगति का कोई ऐसा आयाम नहीं है, जिस ओर हिंदीतर भाषियों का ध्यान नहीं गया हो । दक्षिण में हिंदी में पत्रकारिता आज विकसित स्थिति में है और आज दक्षिण में कई हिंदी ब्लागर हैं जो हिंदी को दुनिया की भाषा बनाने की पहल कर रहे हैं । इस सत्र का संचालन श्री डी. राम मोहन रेड्डी, शाखा प्रबंधक, न्यू इंडिया एश्योरेंस ने किया ।
दोनों सत्रों में लगभग चालीस विद्वानों ने अपने शोध-पूर्ण आलेख प्रस्तुत किए । अंत में काव्य गोष्ठी में वरिष्ठ कवियों ने अपनी कविताओं तथा गीतों से श्रोताओं का मन बहलाया । अंत में सभी विद्वानों का सम्मान, श्रीमती सी.आर. राजश्री, भाषा विभागाध्यक्ष, डॉ. जी. आर. डी. विज्ञान महाविद्यालय के धन्यवाद ज्ञापन तथा राष्ट्रगान के साथ संगोष्ठी सुसंपन्न हुई ।