Tuesday, November 10, 2009

कविता

पतझर के दोहे

-आचार्य संजीव 'सलिल'

पतझर के रंग देखकर, आया मुझको याद.
आज ढला कल उगता, मत रो कर फरियाद..

देश-विदेश सभी जगह, पतझर दे सन्देश.
सुख-दुःख चुप रह झेल ले, हो उदास मत लेश..

सुधा-गरल दोनों 'सलिल'' प्रकृति के वरदान.
दे-ले जो वह सृष्टि में, पुजता ईश समान..

पतझर में पत्ते सभी, बदला करते रंग.
संसद को नेता करें, जैसे मिल बदरंग..

झर जाते देते नहीं, पत्ते रंग उधार.
रंग बदल बतला रहे, मुस्का गम में यार..

पतझर में होते नहीं, पत्ते तनिक उदास.
जल्दी ही उगें नए, करते 'सलिल' प्रयास.

झर-गिर फिर उठता मनुज, बढ़ता धर कर धीर.
पतझर से सीखे 'सलिल', चुप रह सहना पीर..

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