Saturday, April 5, 2008

राजभाषा कर्मियों की स्थिति


राजभाषा कर्मियों के वेतनमान एवं पदोन्नतियों का परिप्रेक्ष्य
- डॉ. सी. जय शंकर बाबु

भारत का संविधान भाग-17 धारा 343 (1) के अनुसार भारत संघ की राजभाषा हिंदी है । राजभाषा के लिए भारत के संविधान में किए गए प्रावधानों के आधार पर तत्पश्चात् संघ के राजकीय प्रयोजनों, संसद में कार्य के संव्यवहार, केंद्रीय और राज्य अधिनियमों और उच्च न्यायालयों में कतिपय प्रयोजनों के लिए प्रयोग में लाई जा सकने वाली भाषाओं के संबंध में उपबंध करने के लिए संसद द्वारा अधिनियमित राजभाषा अधिनियम, 1963; संसद के दोनों सदनों में पारित राजभाषा संकल्प, 1968 तथा राजभाषा (संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग) नियम, 1976 (यथा संशोधित, 1987) बनाए गए हैं । राजभाषा अधिनियम की धारा 3(3) में की गई व्यवस्था के कारण 26 जनवरी, 1965 से सामान्य आदेश, प्रशासनिक रिपोर्ट आदि कुछ निर्धारित दस्तवेज द्विभाषी रूप में जारी करना अनिवार्य बना । इसे सुनिश्चित करने के लिए तथा संविधान एवं अधिनियम में किए गए अन्य तमाम प्रावधानों अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार के मंत्रालयों, विभागों, अधीनस्थ कार्यालयों, सांविधिक एवं स्वायत्त संगठनों, उपक्रमों, बैंकों आदि में कुछ विशिष्ट पदों का सृजन हुआ है । इन पदों पर तैनात पदधारियों को हम संक्षेप में राजभाषा कर्मी कह सकते हैं । इन पदों में निदेशक, संयुक्त निदेशक, उप निदेशक, सहायक निदेशक वरिष्ठ एवं हिंदी अनुवादक एवं कनिष्ठ अनुवादक के पद हैं । कुछ विभागों में हिंदी आशुलिपिक एवं हिंदी टंकक के पद भी हैं । राजभाषा के रूप में हिंदी को प्रतिष्ठित करने के कार्य में संलग्न इन राजभाषा अधिकारियों को अपने दायित्वों की पूर्ति हेतु विशिष्ट योग्यताओं तथा एवं बहुमुखी प्रतिभा की अपेक्षा होती है ।
सरकारी कामकाज में राजभाषा के रूप में जनभाषा हिंदी को स्थापित करना तथा उसका प्रचार-प्रसार सुनिश्चित करना हिंदी कर्मियों की मूल जिम्मेदारी है । राजभाषा अधिनियम, 1963 में किए गए प्रावधानों के आलोक में कुछ निर्धारित दस्तावेज हिंदी तथा अंग्रेजी द्विभाषी रूप में भी जारी किया जाना सुनिश्चित करने हेतु उनका अनुवाद करना तथा राजभाषा हिंदी का ज्ञान सभी पदधारियों को देकर कार्यालयों में सरकारी कामकाज मूल रूप से हिंदी में संपन्न होने के लिए उचित माहौल बनाना आदि कई दायित्व हिंदी कर्मियों के पास हैं । वास्तव में राजभाषा नियम, 1976 के नियम 12 के अनुसार सरकारी कार्यालयों में राजभाषा संबंधी संवैधानिक प्रावधानों के अनुपालन का उत्तरदायित्व प्रत्येक कार्यालय के प्रशासनिक प्रधान का होता है । मगर कार्यालय के सर्वोच्च अधिकारी के पास अन्य कई दायित्व होने के कारण हिंदी कार्यान्वयन की पूरी जिम्मेदारी हिंदी अधिकारियों, अनुवादकों को सौंप दी जाती है । अतः केवल एक सलाहकार के रूप में संवैधानिक प्रावधानों की जानकारी देने तथा अनुवाद कार्य करने तक कोई राजभाषा अधिकारी कदापी सीमित नहीं रह सकते हैं । इस रूप में अधीनस्थ कार्यालयों में राजभाषा कार्यान्वयन सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी आमतौर पर हिंदी अधिकारी की बन जाती है । इन सबसे बढ़कर इस दायित्व को पूरा करने हेतु अन्य कार्यों के लिए नियुक्त पदधारियों की तुलना में हिंदी अधिकारियों में बहुमुखी प्रज्ञा एवं कुशलता की बड़ी ज़रूरत होती है और इनके लिए उच्च शैक्षिक योग्यताएँ भी निर्धारित की गई हैं । इन योग्यताओं से हिंदी अधिकारी, अनुवादक भारत सरकार के कार्यालयों, उपक्रमों एवं बैंकों में बखूबी अपने दायित्व का पालन कर रहे हैं । कई हिंदीतर प्रदेशों में वहाँ कार्य परिस्थितियों तथा अधिकारियों की अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए हिंदी कार्यों से संबंधित दायित्वों के अतिरिक्त सौंपे गए गैर हिंदी कार्यों के दायित्व भी हिंदी कर्मी बड़ी कुशलता एवं निष्ठा के साथ निभा रहे हैं ।
लगन, निष्ठा एवं कार्यों में तत्परता के बावजूद आमतौर कार्यालयों में हिंदी कर्मियों के प्रति यह धारणा नज़र आती है कि हिंदी संवर्ग के अधिकारियों के पास कोई जिम्मेदारी ही नहीं है और उनके कार्यों का कोई महत्व भी नहीं है । यह अत्यंत भ्रामक एवं ग़लत धारणा है । ऐसी धारणा के घर कर जाने के कारण अन्य संवर्ग के अधिकारियों की तुलना में बृहत्तर जिम्मेदारी निभाने वाले हिंदी कर्मियों के पद उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं । इनकी पदोन्नतियों के अवसरों की बिल्कुल कमी है । वेतनमानों में भी काफी विसंगतियाँ हैं । भारतीय संविधान में किए गए प्रावधानों के आलोक में संघ के सरकारी प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग संबंधी सरकारी नीति के तहत अधीनस्थ कार्यालयों के लिए सृजित हिंदी पदों पर नियुक्त अधिकारियों के वेतनमान एवं पदोन्नतियों के अवसरों का सिंहावलोकन करें तो हमें यह स्पष्ट हो जाएगा कि इनके हितों की किस रूप में अवहेलना की गई है । आमतौर पर यह धारणा बनी हुई है कि हिंदी कार्यान्वयन का कार्य उत्पादन विहीन है । शायद राजभाषा कर्मियों के प्रति दर्शायी जा रही उपेक्षा का यह भी एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है ।
हिंदी संवर्ग के पदधारियों के लिए निर्धारित न्यूनतम एवं सामान्य योग्यता स्नातकोत्तर उपाधि है । इसके अलावा कुछ पदों के लिए अन्य तकनीकी कुशलताएँ यथा अनुवाद का डिप्लोमा, कंप्यूटर ज्ञान, अध्यापन या पत्रकारिता अथवा राजभाषा कार्यान्वयन कार्य में अनुभव, कार्यशालाओं, संगोष्ठियों, समारोहों, बैठकों आदि के आयोजन का अनुभव आदि योग्यताओं तथा कुशलताओं की अपेक्षा की जाती है । हिंदी अधिकारी के पद पर नियुक्ति के लिए तो पाँच वर्ष का अनुभव भी जरूरी है । ऐसी योग्यताओं के साथ नियुक्त होने वाले अधिकारियों को आज अधिकांश कार्यालयों अनुवाद, हिंदी कार्यान्वयन से संबद्ध समस्त दायित्वों के अलावा मुख्य धारा से संबद्ध कार्यों की जिम्मेदारी भी सौंपी जाती है । राजभाषा कार्यान्वयन से संबंधित लक्ष्य हासिल करने तथा अन्य सौंपे गए दायित्वों को निभाने में इनके पास कार्यों का अधिक भोज रहता है । हिंदी कर्मियों द्वारा राजभाषा कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने हेतु किए जानेवाले कुछ कार्यों का ब्यौरा इस प्रकार है -
अनुवाद तथा अनुवाद का पुनरीक्षण कार्य
नेमी तथा विशेष अनुवाद कार्य जिसमें धारा 3(3) के दस्तावेज, पत्राचार, आवधिक रिपोर्ट, वार्षिक कार्यक्रम, वार्षिक रिपोर्ट, बैठकों की कार्यसूचियाँ, कार्यवृत्त, प्रशिक्षण सामग्री, मानक मसौदें, फार्म, स्टेशनरी सामग्री, रबड़ मुहरें, सील, नामपट्ट, जनसूचना हेतु प्रदर्शित किये जाने वाले सूचनापट्ट, बैनर, वेबसाइट की सामग्री, ई-मेल आदि का अनुवाद । राजभाषा नियमों को सुनिश्चित करने हेतु हिंदीतर प्रदेश के पदधारियों को इनमें से कई चीजों का अनुवाद क्षेत्रीय भाषाओं में भी करना पड़ता है । अनुवाद के पुनरीक्षण कार्य भी इन्हीं के द्वारा किया जाता है ।
हिंदी भाषा एवं टंकण, आशुलिपि प्रशिक्षण का प्रबंधन
कार्यालय के कर्मचारियों को हिंदी भाषा, टंकण एवं आशुलिपि प्रशिक्षण दिलवाने हेतु उन्हें रोस्टरबद्ध करना, नियमित एवं पत्राचार प्रशिक्षण के लिए पदधारियों को नामित करना, हिंदी कक्षाओं में पढ़ाने के लिए हिंदी प्राध्यापक की अनुपलब्धता या अनुपस्थिति की स्थिति में कक्षाओं में पढ़ाने का कार्य संभालना, पत्राचार पाठ्यक्रम के प्रशिक्षार्थियों को प्राप्त सत्रीय कार्यों को हल करने में मार्गदर्शन एवं मदद, हिंदी टंकण का कंप्यूटर पर प्रशिक्षण का आयोजन आदि ।
कार्यशालाओं आयोजन
हिंदी कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कर्मचारियों को समय-समय पर उनका ज्ञान अद्यतन करने तथा हिंदी में कार्य करने में उनकी कठिनाइयों का समाधान करने तथा हिंदी में टिप्पण एवं आलेखन का प्रशिक्षण देने हेतु हिंदी कार्यशालाओं का आयोजन ।
प्रशिक्षण सामग्री तैयार करना
कार्यशाला तथा अन्य प्रशिक्षण कार्यक्रमों के अवसर पर प्रशिक्षणार्थियों के उपयोगार्थ विभागीय साहित्य, विभागीय शब्दावलियों का संकलन, मसौदों के प्रारूप आदि तैयार करना ।
पदधारियों को हिंदी में कार्य करने हेतु प्रोत्साहित करना
हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त तथा हिंदी में प्रवीणता हासिल पदधारियों को हिंदी में कार्य करने हेतु प्रोत्साहित करना, उन्हें अपेक्षित मदद करना, इस क्रम में उनके लिए कई मानक मसौदें हिंदी अथवा द्विभाषी रूप में तैयार तथा करना उनका उचित उपयोग हेतु अपेक्षित मार्गदर्शन एवं परामर्श नियमित रूप से देते रहना ।
राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठकों का नियमित रूप से आयोजन
राजभाषा कार्यान्वयन की प्रगति की समीक्षा हेतु राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठकों का नियमित रूप से आयोजन, इस क्रम में कार्यसूची, कार्यवृत्त, पूर्व बैठकों के निर्णयों पर कार्रवाई रिपोर्ट आदि तैयार करना, बैठक में लिए गए निर्णयों पर अनुवर्ती कर्रवाई सुनिश्चित करना, निर्णयों के अनुपालन हेतु समन्वय का कार्य ।
संगोष्ठियों का आयोजन
हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु समय-समय पर हिंदी की संगोष्ठियों का आयोजन।
सभा-समारोहों का आयोजन, हिंदी सप्ताह/पखवाड़ा/मासोत्सव आदि का आयोजन
इस क्रम में विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन, प्रतियोगिताओं के प्रश्नपत्र आदि बनाना, प्रविष्टियों का मूल्यांकन, समय-समय पर हिंदी से संबंधित प्रदर्शनियों का आयोजन, पुरस्कार वितरण समारोह आदि का आयोजन ।
अधीनस्थ कार्यालयों में राजभाषा कार्यान्वयन को मानिटर करना
अधीनस्थ कार्यालयों में राजभाषा कार्यान्वयन की प्रगति की समीक्षा, निर्धारित लक्ष्य हासिल करने हेतु मार्गदर्शन देना तथा समय-समय पर निरीक्षण करना ।
रिपोर्ट तैयार करना, नेमी पत्राचार आदि कार्य
राजभाषा कार्यान्वयन से संबंधित आवधिक रिपोर्ट तैयार करना, हिंदी कार्यान्वयन के कार्य से संबंधित फाइलों पर टिप्पण एवं आलेखन का कार्य, हिंदी से संबंधित समस्त रजिस्टरों का रखरखाव ।
कंप्यूटरों में हिंदी का कार्य
कंप्यूटरों में हिंदी का प्रयोग सुनिश्चित करने हेतु विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन, विभिन्न अनुभागों के कंप्यूटरों में उस अनुभाग विशेष में प्रयुक्त होनेवाले मानक मसौदें तैयार करना एवं उनके प्रयोग के लिए संबद्ध पदधारियों को प्रशिक्षण देना आदि ।
संसदीय राजभाषा समिति के दौरा कार्यक्रमों के अवसर समस्त कार्यों का प्रबंधन
संसदीय राजभाषा समिति की प्रश्नावली भरना, समिति के निरीक्षण से संबंधित समस्त कार्यों का प्रबंधन, निरीक्षण के अवसर पर हिंदी कार्यान्वयन पर प्रदर्शनी का आयोजन ।
संपादन एवं प्रकाशन कार्य
हिंदी पत्रिका एवं अन्य सहायक सामग्री आदि का प्रकाशन का प्रबंधन, रचनाएँ प्राप्त करना, संपादन, प्रूफ़ पठन आदि कार्य ।

अन्य कार्य
उक्त समस्त कार्यों से संबंधित सामग्री का टंकण, कार्यालयों में हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त पदधारियों की कमी हो तो सभी रजिस्टरों, फाइलों आदि पर शीर्षक द्विभाषी रूप में लिखना, अधिकारियों तथा कर्मचारियों को राजभाषा संबंधी संवैधानिक प्रावधानों, अधिनियम, नियम तथा राजभाषा विभाग द्वारा समय-समय पर जारी आदेशों की जानकारी देना । विभिन्न बैठकों के लिए अधिकारियों के भाषण हिंदी में तैयार करना, पुस्तकालय एवं वाचनालय का प्रबंधन, पुस्तकों तथा पत्र-पत्रिकाओं की खरीद, संबंद्ध रजिस्टरों का रखरखाव, पुस्तकें तथा पत्र-पत्रिकाओं का उपयोग करने हेतु पदधारियों को प्रेरित करना , कार्यालय की कार्य प्रकृति के आधार पर अन्य आवधिक रिपोर्ट हिंदी में बनाना आदि ।
गैर-हिंदी कार्य (स्थाई ढंग के कार्य)
कार्यालय या विभाग से संबंधित मुख्य धारा के महत्वपूर्ण कार्य जो लगभग एक अलग पदधारी के लिए आबंटित होता है, उतनी मात्रा में अतिरिक्त कार्य का बार बराबर हिंदी संवर्ग के अधिकारियों को सैंप दिया जाता है ।
इन तमाम जिम्मेदारियों को निभाने के लिए कुशल अनुवादक, निष्ठावान शिक्षक, योग्य प्रशासक, गतिशील संगठक, सफल समन्वयकर्ता, संपादक, प्रकाशक आदि कई भूमिकाएँ इन्हें अदा करनी पड़ती है । इन तमाम जिम्मेदारियों के कारण हिंदी कर्मियों को अन्य कार्य न सौंपे जाने के बारे में राजभाषा विभाग द्वारा समय-समय पर निदेश जारी किए जाने के बावजूद अधिकांश कार्यालयों में हिंदी स्टाफ को स्थाई रूप से दायित्वपूर्ण कार्य सौंपे जाते हैं । इस तरह देखा जाए तो हिंदी कार्यान्वयन से संबंधित जिम्मेदारी के अलावा उन्हें सौंपे गए अन्य कार्यों के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अधीनस्थ कार्यालयों में पदस्थ हिंदी कर्मियों को दोहरी भूमिका निभानी पड़ती है । हिंदी प्रांतों की तुलना में दक्षिण में ही हिंदी कर्मियों को गैर-हिंदी कार्य अधिक कार्य सौंपे जाते हैं । दक्षिण में हिंदी कर्मियों के समक्ष उपस्थित गंभीर चुनौतियों को समझने के लिए एक छोटा-सा उदाहरण काफी है । संघ लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित एक सहायक निदेशक (राजभाषा) पदभार ग्रहण करने हेतु संबंधित कार्यालय में पहुँचते ही वहाँ कार्यालय के प्रधान ने उनका स्वागत इस रूप में किया - “हमारे यहाँ हिंदी का कोई काम नहीं है, दूसरे अनुभाग का कार्य दे रहा हूँ, पहले जाकर वहाँ का कार्य देखो”, इतना कहकर चुप नहीं रहा, उसी दिन गैर-हिंदी काम का आदेश भी जारी कर दिया । यह घटना वर्तमान स्थिति का दर्पण है । ऐसी स्थिति के बावजूद हिंदी अधिकारी हिंदी कार्यान्वयन संबंधी अपना दायित्व निभाते हुए अतिरिक्त सौंपे गए कार्यों की जिम्मेदारी भी निष्ठापूर्वक निभा रहे हैं । इन्हें अपनी जिम्मेदारियों के निभाने हेतु अपेक्षित मौलिक सुविधाओं से भी वंचित रखा जाता है । राजभाषा विभाग द्वारा समय-समय पर जारी निदेश तथा हर वर्ष जारी होने वाले वार्षिक कार्यक्रमों की भूमिका में इस तथ्य के स्पष्ट सबूत मिल जाते हैं ।
ऐसी उपेक्षा एवं संवेदनापूर्ण स्थितियों के मूल कारणों के बारे में यदि हम चिंतन करें तो स्पष्ट है कि हिंदी कर्मियों के उन्नयन के लिए कहीं भी उचित प्रावधान नज़र नहीं आते हैं । वेतनमानों में बड़ी विसंगतियाँ हैं । सरकारी कार्यालयों की तुलना में उपक्रमों तथा बैंकों में इस संवर्ग के उन्नयन एवं वेतनमानों की स्थिति बेहतर हैं, किंतु उपेक्षा की स्थिति में तो सर्वत्र बराबरी नज़र आती है । कहीं भी राजभाषा अधिकारियों के कार्यों का उचित मूल्यांकन करने का प्रयास नहीं किया जाता है । कार्यालय के गैर हिंदी कार्यों में उनके योगदान का भी नज़रअंदाज किया जाता है । सर्वत्र इस तरह की मानसिकता के पनपने के कारण कहीं भी अधीनस्थ कार्यालयों में कार्यरत हिंदी कर्मियों के लिए आज तक न अलग हिंदी संवर्ग का गठन हुआ है । उचित वेतनमानों का भी प्रवधान नहीं है, इनके लिए उचित सुविधाएँ उपलब्ध कराना तो दूर की बात है । पदोन्नति के अवसर तो बिल्कुल ही नहीं नज़र आते हैं । एक कनिष्ठ हिंदी अनुवादक अपने सेवानिवृत्ति से कुछ साल पहले कहीं वरिष्ठ अनुवादक के रूप में पदोन्नति पाता है तो वह उसका बड़ा सौभाग्य मानिए । एक हिंदी अधिकारी जिनकी सीधी भर्ती उसी पद पर हुई हो, बीस-तीस साल उन्हें उसी पद रहकर सेवानिवृत्ति लेनी पड़ती है । उनके समक्ष ही अवर श्रेणी लिपिक के पद पर नियुक्त पदधारी भी पदोन्नतियाँ पाते हुए सीधा उस हिंदी अधिकारी के ही बॉस बन जाते हैं, यह कई कार्यालयों का यथार्थ है । ऐसी स्थिति में हिंदी संवर्ग के अधिकारियों के मनोबल को ठेस पहुँचना स्वाभाविक है । एक हिंदी अधिकारी ने अपनी स्थिति पर करार व्यंग्य करते हुए ऐसा भी कहा है “चौबीस साल से मैं हिंदी अधिकारी ही हूँ । मगर मेरी इतनी उन्नति हो गई है कि पहले ‘गधा’ (हिंदी अधिकारी) कहते थे, अब ‘डांकी’ (सहायक निदेशक) कहने लगे हैं ।” कई वर्षों तक स्तर या वेतनमान किसी में भी वृद्धि न होने पर इन हिंदी कर्मियों की मानसिक स्थिति ऐसा बदलना स्वाभाविक है ।
इससे स्पष्ट है कि हिंदी कर्मी बराबर दुर्भाग्य का शिकार रहे हैं । इस दुर्भाग्य का कारण क्या है ? क्या सरकार इनके हितों का ख्याल नहीं रख रही है ? हिंदी कर्मियों के दायित्वों तथा इनके पदों के राष्ट्रीय एवं संवैधानिक महत्व के बावजूद आज तक इनके उपेक्षित रहने के संबंध में यदि हम सोचने का प्रयास करेंगे तो ऐसे और कई सवाल हमारे सामने उठ खड़े हो जाते हैं । मगर वास्तव में देखा जाए तो भारत सरकार की नीति कभी हिंदी कर्मियों के हिदों के विरुद्ध नहीं रही है । हिंदी के विकास एवं राजभाषा कार्यान्वयन संबंधी दायित्व के संबंध में सरकार सदा सचेत रही है और सरकार की नितियाँ भी हिंदी कर्मियों के सम्मान, उन्नयन एवं इनकी बेहतर स्थिति के अनुकूल ही रही हैं । मगर क्यों ऐसी स्थिति बनी हुई ? इस सवाल का जवाब पाने के लिए विगत बीस वर्षों के परिदृश्य पर यदि संक्षेप में हम ध्यान देंगे तो हमें स्थिति बहुत स्पष्ट हो जाएगी ।
प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में दि.2.12.1987 को संपन्न केंद्रीय हिंदी समिति की बैठक में हिंदी अधिकारियों-कर्मचारियों को पदोन्नति के अवसर उपलब्ध कराने के संबंध में विस्तृत चर्चा की गई थी तथा अनुकूल निर्णय भी लिए गए थे । मगर इन निर्णयों का भरपूर लाभ केवल केंद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा के कर्मियों को ही मिला है । एक तो इस सेवा में प्रत्येक श्रेणी में पदों की संख्या पर्याप्त है । दूसरी बात पाँचवें वेतन आयोग ने इन्हें अधिक वेतनमानों की सिफारिश भी कर दी थी । इन सिफारिशों के लागू होने के कारण केंद्रीय हिंदी सचिवालय राजभाषा सेवा में शामिल हिंदी कर्मियों तथा अधीनस्थ कार्यालयों में कार्यरत हिंदी कर्मियों के वेतनमानों में बड़ी विसंगति पैदा हो गई है । केंद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा का गठन 1981 में हुआ था । इस सेवा के तहत चयनित पदधारियों की तैनाती इस संवर्ग की संज्ञा के अनुरूप केंद्र सरकर के विभिन्न मंत्रालयों के सचिवालयों में ही हो रही है । देश के विभिन्न प्रांतों में स्थित अधीनस्थ कार्यालयों में कार्यरत हिंदी कर्मियों को भी इस सेवा में शामिल करने की बात इस बहाने टाली गई थी कि ऐसे कार्यालय भारत के प्रत्येक राज्य में दूर-दूर जगहों पर फैले हुए हैं अतः किसी ऐसे संवर्ग का गठन प्रशासन की दृष्टि से संभव नहीं है । इस तर्क पर केंद्रीय हिंदी समिति की उक्त बैठक में सदस्यों ने सुझाव दिया था कि जो विभाग इस सेवा में शामिल नहीं हुए हैं उन सभी विभागों के अधीनस्थ कार्यलयों में हिंदी अधिकारियों-कर्मचारियों के पदोन्नति के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराए जाने चाहिए जिससे वे राजभाषा नीति के कार्यान्वयन का काम पूरी दिल्चस्पी से कर सकें । चूँकि केंद्रीय हिंदी समिति हिंदी के प्रचार-प्रसार एवं संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी प्रगामी प्रयोग की दिशा में सरकारी नीतियों के निर्धारण करनेवाली सर्वोच्च समिति(स्थापना-1967) है, इस समिति की दि.2.12.1987 को संपन्न बैठक में अभिव्यक्त विचारों के कार्यान्वयन पर अनुवर्ती कार्रवाई के रूप में राजभाषा विभाग द्वारा एक कार्यालय ज्ञापन (सं.17/5/88 – रा.भा.(सेवा), दिनांक 6.4.1988) के माध्यम से वित्त मंत्रालय आदि से यह अनुरोध किया गया था कि वे अपने अधीनस्थ कार्यालयों में हिंदी पदों पर कार्य कर रहे अधिकारियों-कर्मचारियों की पदोन्नति के अवसरों के बारे में जांच करें और यदि अवसर अपर्याप्त हैं तो उन्हें बढ़ाने के उपाय करें जिससे हिंदी पदों पर कार्यरत व्यक्ति राजभाषा कार्यान्वयन का काम पूरी लगन व निष्ठा से कर सकें ; जो विभाग-मंत्रालय संबद्ध कार्यालय केंद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा में शामिल नहीं हैं, वे भी इस प्रकार की जांच अपने-अपने कार्यालयों में हिंदी पदों पर कार्य कर रहे अधिकारियों-कर्मचारियों के बारे में कर लें ।
संसदीय राजभाषा समिति ने भी अपने प्रथम खंड में इस संबंध में सिफारिश की थी कि विभिन्न मंत्रालयों-विभागों तथा उपक्रमों को अपने-अपने अधीनस्थ कार्यालयों में संघ की राजभाषा नीति के अनुपालन के लिए अनुवाद संबंधी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए कार्यरत अधिकारियों-कर्मचारियों का भी अलग-अलग संवर्ग गठित करना चाहिए । इस सिफारिश को महामहिम राष्ट्रपति महोदय द्वारा इस संशोधन के साथ स्वीकृति दी गई थी कि जहाँ संवर्ग का गठन संभव हो बनाया जाए तथा जहाँ यह संभव न हो वहाँ स्टाफ को पदोन्नति के लिए अन्य प्रकार से व्यवस्था की जाए । इसका कुछ हद तक अनुपालन उपक्रमों तथा बैंकों में किया गया है । वहाँ या तो मुख्यधारा के अधिकारियों के बराबर हिंदी संवर्ग के पदधारियों को रखा गया है या उनकी पदोन्नति के लिए बेहतर प्रावधान सुनिश्चित किए गए हैं । मगर केंद्र सरकार के विभिन्न अधीनस्थ कार्यालयों में कार्यरत हिंदी कर्मियों के लिए ऐसा कोई बेहतर व्यवस्था नज़र नहीं आई है । पांचवें वेतन आयोग की सिफारिशों के परिणाम स्वरूप केंद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा के अधिकारियों-कर्मचारियों को लाभ मिला, इससे फील्ड कार्यालयों तथा सचिवालय के हिंदी कर्मियों के वेतनमानों में विसंगति पैदा हुई । जहाँ कहीं इन वेतनमानों को अधीनस्थ कार्यालयों के कर्मियों के लिए भी लागू करने की मांग उठी तो इस ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया । यह बहाना बनाया गया कि ये वेतनमान अधीनस्थ कार्यालयों के लिए लागू नहीं हैं । एकाध विभागों में ही किसी तरह ये वेतनमान लागू हो पाए हैं । अन्य विभागों में जहाँ कहीं इस मांग पर ध्यान देकर वेतनमान बढ़ाए भी गए, वहाँ कुछ समय बाद उन आदेशों को रद्द करके वसूली कार्रवाई भी की गई है । इस मामले में न्याय के लिए हिंदी कर्मियों के द्वारा प्रशासनिक अधिकरण तथा न्यायलयों के दरवाजों पर दस्तक देना पड़ा । कहीं इनके अनुकूल फैसले भी हुए हैं । इसके बावजूद कहीं न्याय के आसार नज़र नहीं आए हैं । संसद के दोनों सदनों में इस संबंध में माननीय सदस्यों द्वारा सवाल उठाए गए किंतु कोई अनुकूल परिणाम नहीं निकला । वास्तव में इस संबंध में राजभाषा विभाग द्वारा मंत्रालयों तथा विभागों को समय-समय पर (क्रमशः 6.4.1988, 13.11.1990, 25.4.1991, 14.8.1997, 23.3.1999, 28.9.1999) कार्यालय ज्ञापन जारी करके अलग से राजभाषा संवर्ग गठित करने या राजभाषा कर्मियों की पदोन्नति के लिए समुचित अवसर सुनिश्चित करने की दिशा में कदम उठाने के लिए अनुरोध किया गया है । इन तमाम प्रयासों के बावजूद कोई अनुकूल परिणाम न निकलना दुर्भाग्य की बात है । इस स्थिति के आलोक में संसदीय राजभाषा समिति ने पुनः इस संबंध में अपने प्रतिवेदन के छठे खंड में सिफारिश की है । समिति की संस्तुति इस प्रकार है – “केंद्रीय सरकार के मंत्रालय स्तर के लिए तो राजभाषा कैडर बना है जिसके कारण एक कनिष्ठ अनुवादक निदेशक (राजभाषा) पद तक पहुँच जाता है, किंतु भारत सरकार के अधीनस्थ/संबद्ध/उपक्रमों/प्रतिष्ठानों में राजभाषा कैडर की व्यवस्था नहीं है । इस कारण राजभाषा अनुभाग में कार्य करने वाले अधिकारी-कर्मचारी विभागीय पदोन्नति से इस कारण वंचित रह जाते हैं कि वह राजभाषा हिंदी में कार्य कर रहा है । अतः उक्त कार्यालय में राजभाषा कैडर के आधार पर पदोन्नति होनी चाहिए अथवा उनके विभाग में उनकी वरीयता के आधार पर पदोन्नति की जानी चाहिए । एक मंत्रालय के अधीन जितने उपक्रम/प्रतिष्ठान/अधीनस्थ/संबद्ध कार्यालय हैं उनका राजभाषा कैडर बनाया जाए ।” इस संस्तुति को स्वीकृति भी मिली थी और राजभाषा विभाग द्वारा दि.7.4.2005 को जारी कार्यालय ज्ञापन के माध्यम से सभी मंत्रालयों-विभागों-संबद्ध व अधीनस्थ कार्यालय व उनके नियंत्रणाधीन उपक्रमों से आवश्यक कार्यवाही करने का अनुरोध भी किया गया था । मगर इस संबंध में कहीं कोई अनुकूल कार्रवाई हुई हो पता नहीं, समग्र विश्लेषण से यह तथ्य उभर कर सामने आता है कि लगभग विगत बीस वर्षों से हिंदी कर्मी बड़ी उपेक्षा का सहन करते आ रहे हैं । राष्ट्र की पहचान मानी जानी वाली हिंदी, जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकारिक भाषा भी बनाने की कोशिशों भी जारी हैं, ऐसी भाषा को भारत सरकार के कार्यालयों में सरकारी कामकाज में प्रयोग को बढ़ावा देने एवं प्रचार-प्रसार कार्य में पूरी निष्ठा के साथ संलग्न हिंदी कर्मियों को न्याय नहीं मिलना तथा बराबर उपेक्षा के शिकार होना पड़ना निश्चय चिंताजनक है । उपेक्षा, अवहेलना के शिकार इन हिंदी कर्मियों के हित में सोचकर न्यायमूर्ति श्री कृष्ण की अध्यक्षता वाला छठा वेतन आयोग ने इस भांति इस वर्ग का हित करने की कोशिश की है जैसे द्रौपदी के चीर हरण के समय श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा की थी । आयोग ने सचिवालयों तथा अधीनस्थ कार्यालयों के हिंदी कर्मियों को समान वेतना की सिफारिश की है । इससे वेतनमानों में बराबरी की संभावना का रास्ता खुल गया है । पदोन्नतियों के संबंध में या मंत्रालयों, विभागों में अलग हिंदी कैडर के गठन के संबंध में अभी कार्यवाही शेष रह गई है । सरकार की नीतियाँ सदा अपने कर्मचारियों को समानता का अवसर देने की ही रही हैं । हिंदी कर्मियों को पदोन्नतियों के अवसर उपलब्ध कराने के संबंध में प्रधान मंत्री की अध्यक्षता वाली केंद्रीय हिंदी समिति तथा गृह मंत्री की अध्यक्षता वाली संसदीय राजभाषा समिति की सिफारिशों के आधार माननीय राष्ट्रपति महोदय की स्वीकृति के बाद भी इतने समय से कोई उचित कार्रवाही नहीं होना अफ़सोस की की बात है ।
लंबी अवधि से हो रही इस उपेक्षा को समाप्त करने की दिशा में सचिवालय के हिंदी कर्मियों तथा अधीनस्थ कार्यालयों के हिंदी कर्मियों के वेतनमानों में बराबरी की तरफ़दारी करने की सिफारिशों के द्वारा छठे वेतन आयोग ने तो शरुआती पहल की है । इस अनुकूल परिणाम का स्वागत करने के साथ-साथ अब होना यह चाहिए कि इन सिफ़ारिशों को लागू करने का प्रयास करने के साथ-साथ लंबी अवधि की इस समस्या को हल करने के लिए समन्वित उपाय भी ढूंढ़ने की आवश्यकता है । अखिल भारतीय स्तर पर राजभाषा संवर्ग बनाने का प्रयास अवश्य किया जाना चाहिए । इस कार्रवाई को अलग-अलग मंत्रालयों एवं विभागों के भरोसे छोड़ने से यों तो यथास्थिति बनी रहने का अथवा किन्हीं एकाध मंत्रालयों में ही ऐसा कैडर का गठन होकर अन्य मंत्रालयों, विभागों में नहीं होने से पुनः विसंगतियों खतरा उत्पन्न होगा । इस समस्या का समाधान इस संवर्ग के गठन के लिए एक अलग स्वतंत्र मंत्रालय या विभाग के नियंत्रण में समूचे काडर को संरक्षण देना की योजना बनाना समय की मांग है । हिंदी की श्रीवृद्ध हेतु किए जाने वाले प्रयासों के अंतर्गत हिंदी से जुड़े अधिकारियों तथा कर्मचारियों के हितों को भी ध्यान में रखना परम आवश्यक है । आज सूचना-क्रांति की उपस्थिति में कोई भी कार्य असंभव या असाध्य नहीं रह गया है । अतः अखिल भारत स्तर पर हिदी कर्मियों के लिए एक संवर्ग का गठन करके इनकी पदोन्नतियों के समुचित अवसर सुनिश्चित करना तथा राजभाषा कार्यान्वयन कार्य को प्रभावी बनाने हेतु अपेक्षित सुविधाएँ एवं साधन उपलब्ध कराने के प्रयास तुरंत किया जाना भी अपेक्षित है । ऐसे प्रयासों के बाद ही संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकारिक भाषाओं की सूची में हिंदी को प्रतिष्ठित करने के सपने साकार होने के रास्ते साफ नज़र आ पाएंगे ।