Friday, March 28, 2008

भारतीय रेलवे


भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार में रेलवे की भूमिका
- डॉ. सी. जय शंकर बाबु
“आधुनिक भारत की संस्कृति एक विकसित शतदल कमल के समान है, जिसका एक-एक दल एक-एक प्रांतीय भाषा और उसकी साहित्य-संस्कृति है । किसी एक को मिटा देने से उस कमल की शोभा ही नष्ट हो जाएगी । हम चाहते हैं कि भारत की सब प्रांतीय बोलियाँ जिनमें सुंदर साहित्य सृष्टि हुई है, अपने-अपने घर में (प्रांत में) रानी बनकर रहे, प्रांत के जन-गण की हार्दिक चिंता को प्रकाश भूमिस्वरूप कविता की भाषा होकर रहे और आधुनिक भाषाओं के हार की मध्य मणि हिंदी भारत भारती होकर विराजती रहे ।”
कवींद्र रवींद्र की उक्त पंक्तियों को साकार करने की दिशा में कई व्यक्ति सक्रिय हैं और कई संस्थाएँ अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही हैं । भारतीय भाषाओं के विकास में योगदान देनेवाले महत्वपूर्ण संगठनों में भारतीय रेलवे भी शामिल है । औपनिवेशिक शासन के दौरान ही भारतीय रेलवे का जन्म हुआ था । तब से लेकर यह भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार में विशिष्ट भूमिका रही है ।
औपनिवेशिक भारत में सर्वप्रथम अप्रैल 16, 1853 को मुंबई से थाने के बीच 34 कि.मी. की दूरी की यात्रा के लिए रेल को हरी झंडी दिखाई गई थी । एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश को रेल के माध्यम से जोड़ने का यह एक अनूठा प्रयास था । आगे यह सिलसिला जारी रहा । आज लगभाग 63,000 मार्ग कि.मी. रेल मार्ग है । प्रतिदिन 2 मिलियन ट्रेन कि.मी. 8,700 यात्री गाड़ियों के माध्यम से लगभग 14 मिलियन यात्री अपनी यात्रा तय करते हैं और 5,700 माल गाड़ियों द्वारा 1.4 मिलियन टन माल का लदान का यातायात तय होता है । इस संख्या के आधार पर यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि भारतीय रेल प्रतिदिन लगभग 40 देशों की आबादी के बराबर यात्रियों को यात्रा का सौभाग्य प्रदान करती है, इस प्रकार देखा जाए तो भारतीय रेल की गाड़ियाँ एक दिन में पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी के चार गुणा के बराबार फेरे तय करती हैं !
भारत में एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच यातायात के लिए रेल अत्यंत लोकप्रिय एवं प्रमुख यातायात साधन है । बच्चे, जवान, प्रौढ़ एवं बूढ़े लोग भी रेल की यात्रा काफ़ी पसंद करते हैं । रेल की इसी लोकप्रियता के कारण बच्चों के खेलों में ‘रेल का खेल’ और उनकी प्यारी वाणी में गाने के लिए ‘रेल गीत’ भी सभी भाषाओं में उपलब्ध हैं और ये काफ़ी मशहूर भी हैं । मिसाल के तौर पर रेल संबंधी एक बाल गीत यहाँ प्रस्तुत है -
“आओ बच्चो खेलें खेल / छुक-छुक छुक-छुक चलती रेल
मेरा इंजन सबको खींचे / सब जुड़ जाओ मेरे पीछे
बिना टिकिट चढ़ना मत कोई / आपस में लड़ना मत कोई
नदियां पर्वत बाग-बगीचे / सबको करती जाती पीछे
हिंदू सिख या मुसलमान / सबका हक़ है एक समान ।

आओ प्यारे साथी आओ / जहाँ भी जाना हो चढ़ जाओ
मूंगफली, फल या हो खाना / इसमें कूड़ा मत फैलाना
अगर पास में हो सामान / रखना उसका पूरा ध्यान
जगह जगह पर जाती रेल / सबको सैर कराती रेल
प्यार बढ़ाती सबका सबसे / और कराती सबका मेल
आओ बच्चो खेलें खेल ।। ”
भारतीय रेल में समूचे हिंदुस्तान के लोग बिना किसी भेद-भाव के एक साथ सफ़र करते हैं । “जगह जगह पर जाती रेल / सबको सैर कराती रेल / प्यार बढ़ाती सबका सबसे / और कराती सबका मेल“ – उक्त गीत के इन चार पंक्तियों में ही रेल की महत्ता को विशिष्ट रूप से आंका गया है । सबके बीच में प्यार बढ़ाने में ही नहीं, बल्कि समूचे भारतीयों के बीच एकता का मंत्र फूंकने में भी रेलवे की भूमिका सर्वविधित है । भारतीय रेल भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार का प्रमुख माध्यम की भूमिका शुरू से ही निभा रहा है । भारतीय रेलवे की पटरियाँ अधिकाँश भारतीय भू-भाग पर फैली हुई हैं, इन पटरियों पर हर दिन हजारों की संख्या में चलने वाली गाड़ियों में लाखों की संख्या में यात्री सफ़र करते हैं । इन यात्रियों की कोई एक भाषा नहीं है । ऐसे यात्रियों की सेवा में कोई चूक न रह जाए, इस हेतु रेलवे की सेवाओं में सभी भारतीय भाषाओं को विशिष्ट महत्व दिया जाता है । रेलवे स्टेशनों के नाम क्षेत्रीय लिपि, देवनागरी तथा रोमन लिपि में लिखे जाते हैं । अलावा इसके सभी प्रकार की सूचनाएँ उक्त लिपियों का प्रयोग करते हुए क्रमशः क्षेत्रीय भाषा, हिंदी तथा अंग्रेज़ी में प्रदर्शित की जाती हैं । भिन्न-भिन्न प्रदेशों के यात्री सफ़र के दौरान विभिन्न प्रदेशों गुज़रते हुए न केवल वहाँ के रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा एवं रीति-रिवाजों से परिचित होते हैं, उन्हें वहाँ भाषाओं की सुरीली आवाजें सुनने तथा रेलवे स्टेशनों में प्रदर्शित विभिन्न सूचनापटों के माध्यम से क्षेत्रीय लिपियों को देखने का सौभाग्य भी मिल जाता है । अपनी भाषा में सूचनाएँ प्राप्त करने के अलावा अन्य भाषाओं की सुगंध भी सूंघने का सौभाग्य यात्रियों के मिल जाता है ।
दो तीन राज्यों के बीच चलने वाली किसी भी रेल के एक डिब्बे में देखें, वहाँ अखिल भारतीयता का दर्शन हो जाता है, समूचे भारत के भिन्न भाषा-भाषी लोग नज़र आते हैं, ये अपने सगे-संबंधियों के साथ अपनी मातृभाषा में तथा अन्य सहयात्रियों के साथ किसी संपर्क भाषा में बोल लेते हैं । रेल में सफ़र करने वाले विभिन्न भाषा-भाषियों के बीच संपर्क भाषा के रूप में हिंदी-हिंदुस्तानी की सदा विशिष्ट भूमिका रही है । भिन्न भाषा-भाषी रेल में आपसी संपर्क हेतु अनायास ही हिंदी का प्रयोग करते नज़र आते हैं । रेलवे टिकट से लेकर रेलवे आरक्षण फार्म तक हर किसी प्रकार के महत्वपूर्ण कागज़ात में क्षेत्रीय भाषा, हिंदी और अंग्रेज़ी का प्रयोग के कारण यात्रियों को इनका उपयोग करने में कोई कठिनाई नहीं होती है, बड़ा आनंद का अनुभव करने लगते हैं । रेलवे आरक्षण सूची में रोमन/अंग्रेज़ी के अलावा देवनागरी/हिंदी को भी शामिल करना निश्चय ही भारत की महत्वपूर्ण संपर्क भाषा हिंदी को उचित स्थान देने का ही एक विशिष्ट प्रयास है । रेलवे कार्यालयों में प्रयुक्त होने वाली लेखन-सामग्री में भी हिंदी का प्रयोग नज़र आता है । सार्वजनिक प्रयोगवाले प्रपत्रों में क्षेत्रीय भाषा का भी प्रयोग दिखता है । रेलकर्मियों तथा रेलवे अधिकारियों के बैजों में, पहचानपत्रों में हिंदी का प्रयोग सर्वत्र नज़र आता है । इसके अलावा रेलवे स्टेशनों में तथा रेल गाड़ियों के अंदर आहार-यान के कर्मीदल के बैजों में भी हिंदी का प्रयोग होता है । रेलों में भी सभी प्रकार की सूचनाएँ त्रिभाषी रूप में नज़र आती हैं ।
भारतीय भाषाओं के प्रयोग में तमिलनाडु राज्य स्थित मदुरै रेलवे स्टेशन का विशेष उल्लेख किया जाना चाहिए । इस स्टेशन में महत्वपूर्ण सूचनापटों में भारत की सात-आठ भाषाओं का प्रयोग किया गया है । रेलवे द्वारा भारतीय भाषाओं के प्रयोग की निष्ठा अन्य सभी विभागों के लिए अनुकरणीय है । रेलवे विभाग की इस नीति के प्रति यात्री अनायास ही विशेष आंतरिक श्रद्धा प्रकट करते हैं ।
गांधीजी ने कहा था – “आज की पहली और सबसे बड़ी समाज सेवा यह है कि हम अपनी देशी भाषाओं की ओर मुड़ें और हिंदी को राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करें । हमें अपनी सभी प्रादेशिक कार्रवाइयाँ अपन-अपनी भाषाओं में चलानी चाहिए तथा हमारी राष्ट्रीय कार्रवाइयों की भाषा हिंदी होनी चाहिए ।” पूज्य बापू की इस संकल्पना को अक्षरशः अनुपालन करने में तथा भारतीय भाषाओं के लिए भारत के संविधान में किए गए प्रावधानों के अनुरूप पूरी निष्ठा के साथ भारतीय रेलवे भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार में योग दे रहा है । हिंदी की प्रसार-वृद्धि करना और भारत की सामासिक संस्कृति की अभिव्यक्ति करनेवाली सक्षम भाषा के रूप में उसका विकास करना संविधान के अनुच्छेद 351 के अनुसार भारत सरकार का दायित्व है । इस दायित्व की पूर्ति की दिशा में रेलवे जैसा संगठन जिसका विस्तार लगभग समूचे भारत में होने के कारण महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है । ऐसी भूमिका अदा करने में रेलवे के द्वारा स्थापित आदर्श सबके लिए अनुकरणीय है ।
गुंतकल दक्षिण मध्य रेलवे में एक महत्वपूर्ण जंक्शन है । इसके अलावा दक्षिण मध्य रेलवे का एक मंडल भी जिसका मंडल कार्यालय गुंतकल में है । इस कारण नगरपालिक शहर गुंतकल में एक तिहाई रेलवे की आबादी (रेल कर्मी व रेलवे पर आधारित लोग) ही है । इन पंक्तियों के लेखक का जन्म इसी शहर में हुआ था और पढ़ाई इसी शहर में हुई थी । स्कूली शिक्षा के दौरान ही रेल गाड़ियों की डिब्बों पर तथा माल गाड़ियों के वैगनों पर हिंदी में लिखी सूचनाएँ देखने-पढ़ने की आदत पढ़ जाने से, अपनी भाषा के अलावा हिंदी के प्रति विशिष्ट आकर्षण उत्पन्न हो जाने के कारण न केवल हिंदी में प्रवीणता हासिल की, मगर स्नातक की पढ़ाई के दिनों में ही इसी शहर से नियमित रूप से एक हिंदी साहित्यिक पत्रिका भी प्रकाशित की थी । क्रमशः ‘युग मानस’ तथा ‘युग साहित्य मानस’ के नाम से प्रकाशित यह पत्रिका लगातार दस वर्षों तक नियमित रूप से प्रकाशित होती रही । वास्तव में गुंतकल में हिंदी प्रचार सभा के पाठ्यक्रम के माध्यम से हिंदी पढ़ने के सिवाय कोई परिवेश न था, न ही कोई हिंदी भाषा या साहित्य अथवा पत्रकारिता से जुड़ा हुआ पारिवारिक व्यवसाय । हाँ, गुंतकल रेलवे मंडल कार्यालय से प्रकाशित होने वाली राजभाषा पत्रिका ‘गुंतकल वाणी’ के एकाध अंक देखने का मौका ही मिला था । अखिल भारतीय स्तर पर एक हिंदी साहित्यिक पत्रिका चलाने की क्षमता एवं निष्ठा केवल रेलवे तथा डाक विभाग में हिंदी प्रयोग की प्रगति को देखने से प्राप्त प्रेरणा से ही उत्पन्न हुई थी । इन पंक्तियों के लेखक ने इसी सद्प्रेरणा के कारण आगे चलकर हिंदी में डॉक्टरेट की उपाधि भी हासिल की है । इसका श्रेय हिंदी प्रचार-प्रसार में संलग्न संस्थाओं एवं व्यक्तियों को ही जाता है । ‘युग मानस’ के प्रेवशांक के प्रकाशन की समीक्षा रेलवे मुख्यालय की पत्रिका ‘रेल राजभाषा’ ने भी अप्रैल-जून, 1997 के अंक में की थी ।
हिंदी को लोकप्रिय बनाने की दिशा में रेलवे विभिन्न अंचलों द्वारा विशिष्ट प्रयास किए जा रहे हैं । कई अंचलों तथा मंडलों की ओर से राजभाषा हिंदी की पत्रिकाएँ प्रकाशित की जा रही हैं । पश्चिम रेलवे के वेबसाइट पर ‘रेल दर्पण’ के दो अंक उपलब्ध हैं । हाल ही (अक्तूबर, 2007 में) पूर्व रेलवे ने ‘पूर्वोदय’ के नाम से एक ई-मासिकी का प्रकाशन शुरू किया है । यह रेलवे संगठन का पहला ई-मासिक है और यह एक अनूठा प्रयास है । कंप्यूटर-इंटरनेट के विश्व व्याप्त जाल हिंदी के कोई भी प्रयास सामयिक और प्रचार-प्रसार एवं व्यापकता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है । हिंदी के प्रचार-प्रसार में केवल रेल मंत्रालय ही नहीं, स्वयं माननीय रेल मंत्री भी सक्रिय हैं । हर साल संसद में हिंदी में बजट भाषण देते हुए माननीय रेल मंत्री श्री लालू प्रसाद यादव जी हिंदी को लोकप्रिय बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं । अपनी विशिष्ट प्रबंधन क्षमता के कारण वे भारतीय रेलवे को बुलंदियों पर पहुँचा चुके हैं । अपनी विशिष्ट कार्यक्षमता एवं कर्मठता के लिए वे श्रद्धा के पात्र ही नहीं आकर्षण का केंद्र भी बने हुए हैं । भारतीय गणतंत्र में रेलवे विभाग के बाद ही आम बजट की चर्चा होती है । आज तक तमाम रेल मंत्रियों में अपने अन्यतम स्थान बनाने वाले लालू प्रसाद यादव जी सबसे लोकप्रिय रेल मंत्री बन गए हैं । उनका बजट भाषण सुनते-सुनते कई सांसदों में ही नहीं, कई हिंदीतर भाषी आम नागरिकों में भी हिंदी के प्रति आकर्षण जागृत हो गया है । मिसाल के तौर वर्ष 2007-08 के लिए बजट संसद में प्रस्तुत करने के अवसर पर दिए गए भाषण के कुछ अंशों का अवलोकन हम कर सकते हैं ।
माननीय रेल मंत्र जी ने बड़ी विनम्रतापूर्वक बजट भाषण में कहा था – “आज भले ही लोग रेलवे के कायाकल्प का श्रेय मुझे दे रहे हैं लेकिन मैं पूरी विनम्रता के साथ सम्मानित सदन को यह बताना चाहूँगा कि यह करिश्मा चौदह लाख रेलकर्मियों के अथक परिश्रम और देशवासियों के अपार स्नेह और समर्थन की बदौलत ही हो पाया है । महोदय, मैं बस इतना ही कहना चाहूँगा कि –
नवाज़िश है सबकी, करम है सभी का,
बड़े फ़ख्र से हम बुलंदी पर आए ।
तरक्क़ी के सारे मयारों से आगे,
नए ढंग लाए, नई सोच लाए ।।”
दुनिया में भारतीय रेलवे की विशिष्ट पहचान बनाने में सक्रिय माननीय रेल मंत्री जी ने कवितात्मक पंक्तियों का प्रयोग करते हुए अपने भाषण से सबको सम्मोहित कर दिया था । उक्त बजट भाषण के अवसर पर ही उन्होंने कहा था – “वस्तुतः हमारी कायाकल्प की रणनीति व्यावसायिक सूझ-बूझ एवं आम जनता के प्रति संवेदनशीलता का ऐसा प्रतीक बन गई है जिसने भारतीय रेल को देश-विदेश में आकर्षण का केंद्र बना दिया है –
माना कि बड़ी-बड़ी बातें करना हमें नहीं आया
मगर दिल पर बड़ी कारीगरी से नाम लिखते हैं”
यात्रियों की सुविधाओं में वृद्धि को सदा ध्यान रखनेवाले मंत्री महोदय जी ने इन कवितात्मक पंक्तियों का भी वाचन किया था –
“बात मैं क़ायदे की करता हूँ, देश के फ़ायदे की करता हूँ ।
जिस तरह पेड़ छाया देता है, हर मुसाफिर का ध्यान रखता हूँ ।।“
***
“हो इज़ाजत तो करूँ बयां दिल अपना ।
संजो रखा है मैंने रेल का एक सपना ।।“
***
“जिसने पहुँचाया बुलंदी पर उसे सम्मान दें ।
कड़ी मेहनत को उनकी मिलकर मान दें ।।“
ऐसी ही कई काव्यमय उक्तियों से अपने भाषण को आकर्षक बनाने और भारतीय संसद में हिंदी की धाक जमाने वाले रेल मंत्री जी ने उक्त भाषण के अंत में यह भी कहा था –
“हर साल नया साल तरक्की का, प्रगति का ।
आपका है साथ तो फिर ये सफ़र जारी रहेगा ।।“
हम सब आशा करें कि रेलवे की तरक्की का सफ़र और लोकप्रिय रेल मंत्री जी का नेतृत्व जारी रहे । भारतीय रेल भारतीय जन चेतना का विशिष्ट आधार है । अपने हर कदम में आधुनिकता को अपनाकर अग्रसर रेलवे से भारतीय भाषाओं के लिए कई अपेक्षाएँ हैं । भारत में कंप्यूटरों के आगमन के आरंभिक दौर में ही रेलवे आरक्षण प्रणाली को कंप्यूटरीकृत करने तथा सभी महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशनों में भारतीय भाषाओं के डिजिटल डिस्प्ले बोर्ड लगाकर रिकार्ड क़ायम करने वाला यह संगठन रेलों में भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार के लिए डी.वी.डी. प्लेयरों के माध्यम से यात्रियों के मनोरंजन के लिए विभिन्न भारतीय भाषाओं के कार्यक्रमों का प्रसारण कर सकता है । इसके माध्यम से विज्ञापनों के द्वारा रेलवे के आय में भी वृद्धि हो सकती है । लंबी दूर तक जानेवाली रेल गाड़ियों में छोटी पुस्तकालयों की व्यवस्था भी की जा सकती है, जिसमें विभिन्न भारतीय भाषाओं की लोकप्रिय तथा अध्यतन कृतियों को स्थान देकर भाषाओं की तरक्की में योग दिया जा सकता है । सबसे महत्वपूर्ण और सामयिक बात यह है कि रेलवे का वेब साइट पूरी तरह से हिंदी में उपलब्ध नहीं हो पाया है, थोड़ा बहुत जो भी हिंदी में है, उसके लिए भी यूनिकोड़ फांट का उपयोग नहीं किया गया है । हर दिन करोड़ों का कारोबार करने वाली इतनी बड़ी संस्था के लिए न केवल अंग्रेज़ी और हिंदी में, मगर समस्त मशहूर भारतीय भाषाओं में भी अपना वेब साइट बना सकता है । इससे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से भी रेलवे को फ़ायदा होगा । आज कंप्यूटर और इंटरनेट की पहुँच बढ़ चुकी है । यदि सभी भारतीय भाषाओं में कंप्यूटर-इंटरनेट पर सूचनाएँ उपलब्ध होने पर अवश्य ही लोग इन वेबसाइटों के साथ अपना संपर्क बढ़ाएंगे । यूनिकोड़ फांट का प्रयोग करते हुए महत्वपूर्ण भारतीय भाषाओं में रेलवे के वेब साइट बनाने की पहल रेल विभाग को यथाशीघ्र करना चाहिए । मैं आशा करता हूँ कि यह विभाग अपने उपलब्ध विविध श्रोतों का उपयोग करते हुए इस दिशा में अवश्य अग्रसर होगा ।
“निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति का मूल”
भारतेंदु हरिश्चंद्र की इस उक्ति को चरितार्थ करते हुए अग्रसर रेलवे और कई तरीक़ों से भारतीय भाषाओं के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है ।
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3 comments:

रवि रतलामी said...

इस विषय पर यह एक परिपूर्ण आलेख है. मदुरै स्टेशन जैसा प्रयोग भारत के हर स्टेशन पर किया जाना चाहिए.

Anonymous said...

भाई साहब,आपके विचार आंदोलित करने वाले हैं आप अपना ईमेल पता himrekha.blogspot.com पर लिख दें. मै आपको हिन्दी और सम्बन्धीत मुद्दो पर कुछ सामग्री भेजना चाहता हूं.

Alpana Verma said...

very good efforts!
best wishes.