दक्षिण भारत में हिंदी पत्रकारिता का उदय
-डॉ. सी. जय शंकर बाबु
दक्षिण भारत में हिंदी पत्रकारिता का उदय विगत शताब्दी के आरंभिक दशकों में हुआ । हिंदी प्रचार आंदोलन के आरंभ हो जाने से हिंदी पत्रकारिता की वृद्धि का मार्ग भी प्रशस्त हो गया । दक्षिण भारत में हिंदी पत्रकारिता के उदय एवं विकास संबंधी तथ्यों का आकलन स्वातंत्र्यपूर्व तथा स्वातंत्र्योत्तर युगों के परिप्रेक्ष्य में किया जा सकता है । दक्षिण भारत में स्वातंत्र्यपूर्व युग में हिंदी पत्रकारिता का समग्र अध्ययन आगे प्रस्तुत है ।
दक्षिण भारत में स्वातंत्र्यपूर्व हिंदी पत्रकारिता
भारत में जब औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध संघर्ष छेड़ा गया और स्वाधीनता हासिल करने हेतु आंदोलन का सूत्रपात हुआ, उन्हीं दिनों में जन जागृति पैदा करने की दृष्टि से अनेक देश-भक्तों ने देश के विभिन्न प्रांतों से भारतीय भाषाओं में समाचारपत्रों के प्रकाशन आरंभ किए । इसी दौर में दक्षिण भारत में भी आज़ादी आंदोलन की गतिविधियों में तेजी लाने के लिए जहाँ एक ओर स्थानीय भाषाओं में समाचारपत्रों का प्रकाशन आरंभ हुआ, वहीं दूसरी ओर आंदोलन की सफलता हेतु भारत की जनता में भावात्मक एकता जगाने की अनिवार्यता को महसूस करते हुए दक्षिण में हिंदी भाषा प्रचार की आवश्यकता भी महसूस की गई तथा तत्परता से इस कार्य की रूप-रेखा भी बनाई गई । दक्षिण में हिंदी प्रचार की गतिविधियों के परिणामस्वरूप हिंदी पत्रकारिता का उद्भव एवं कालांतर में विकास भी संभव हो पाया ।
स्वाधीनता पूर्व युग में भारतीय पत्रकारिता का उदय शासकों द्वारा प्रशासन की सुविधा हेतु स्थापित प्रेसिडेंसी केंद्रों में हुआ था । दक्षिण भारत में मद्रास महानगर भी ऐसा एक प्रेसिडेंसी केंद्र था, जहाँ अंग्रेज़ी के अलावा तमिल, तेलुगु आदि भाषाओं में पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन आरंभ हुआ था । स्वाधीनता आंदोलन के तिलक तथा गांधी युगों के दौर में मद्रास को केंद्र बनाकर हिंदी प्रचार की गतिविधियाँ आरंभ होने के साथ ही दक्षिण भारत की हिंदी पत्रकारिता का उदय हुआ ।
सर्वप्रथम तमिल के सुप्रसिद्ध कवि सुब्रह्मण्य भारती ने अपनी तमिल पत्रिका ‘इंडिया’ के माध्यम से तमिलभाषियों से अपील की थी कि वे राष्ट्रीयता के हित में हिंदी सीखें । इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु उन्होंने अपनी पत्रिका में हिंदी की सामग्री के प्रकाशन के लिए भी कुछ पृष्ठ सुरक्षित रखना सुनिश्चित किया था । महाकवि भारती ने अपने तमिल पत्र के माध्यम से हिंदी भाषाई प्रेम एवं हिंदी पत्रकारिता की नींव डाली थी । मद्रास (चेन्नई) से ही दक्षिण भारत के प्रथम हिंदी पत्र का प्रकाशन हुआ सन् 1921 में । इस पत्र के उदय के समय तक हिंदी प्रचार का व्यवस्थित आंदोलन भी शुरू हो चुका था और आंदोलन के कार्यकर्त्ता के रूप में उत्तर भारत से आगत श्री क्षेमानंद राहत के प्रयासों से साप्ताहिक ‘भारत तिलक’ के प्रकाशन के साथ ही दक्षिण भारत में हिंदी पत्रकारिता का उदय हुआ । पूर्णतः हिंदी में प्रकाशित दक्षिण भारत का पहला पत्र होने कारण ‘भारत तिलक’ को ही दक्षिण भारत की हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में दक्षिण भारत की प्रथम हिंदी पत्र के रूप में स्थान मिलना समीचीन होगा । लगभग उन्हीं दिनों में हिंदुस्तानी सेवा दल के मद्रास केंद्र की ओर से डॉ. एस.एन. हार्डिंकर के संपादन में ‘स्वयं सेवक’ के नाम से एक अंग्रेजी-हिंदी द्विभाषी पत्रिका का प्रकाशन भी आरंभ भी हुआ था । 1923 में हिंदी प्रचार आंदोलन की मुखपत्रिका के रूप में ‘हिंदी प्रचारक’ का प्रकाशन दक्षिण में हिंदी प्रचार आंदोलन की गति सुनिश्चित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ । हिंदी प्रचार आंदोलन की पत्रकारिता का उदय भी ‘हिंदी प्रचारक’ से ही माना जा सकता है ।
मद्रास प्रेसिडेंसी केंद्र से हिंदी पत्रकारिता के उदय के लगभग एक दशक के बाद क्रमशः आंध्र, पांडिच्चेरी तथा केरल से हिंदी पत्रकारिता का उदय हुआ । कर्नाटक प्रांत में हिंदी पत्रकारिता का उदय स्वाधीनता प्राप्ति के बाद ही संभह हो पाया । इन प्रदेशों में हिंदी पत्रकारिता के उदय के कारण तथा उदय के दिनों की परिस्थितियों में विविधता व भिन्नता भी नज़र आती है । आंध्र में मुख्यतः हैदराबाद व उसके आस-पास के प्रांत निज़ाम रियासत के रूप में मुसलमान शासकों के अधीन था । आरंभ से हैदराबाद का शासन विवादों से मुक्त आदर्श प्रदेश के रूप में ख्यात् था । किंतु निज़ाम नवाब स्वभावतः अंग्रेज़ों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखते हुए उनकी अधीनता को स्वीकृति दे चुके थे । इसी दौर में हैदराबाद रियासत में सांप्रदायिक विद्वेश की भावनाएँ फैल गईं । निज़ाम शासकों के आशीर्वाद प्राप्त कट्टर इस्लामी उग्रपंथियों ने हिंदुओं को यातनाएँ देते हुए धर्म परिवर्तन के लिए उन पर जोर-जबरदस्ती भी शूरू कर दी थी, इतिहास के पन्नों से हमें इन घटनाओं की जानकारी मिलती है । सनातन धर्मियों के समक्ष उपस्थित खतरे को दूर करने, धर्म प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से 1931 में श्री अर्जुन प्रसाद मिश्र कंटक के प्रयासों से मासिक हिंदी पत्रिका ‘भाग्योदय’ के प्रकाशन से आंध्र प्रांत में हिंदी पत्रकारिता का उदय हुआ । आंध्र प्रांत से आरंभिक दिनों में प्रकाशित लगभग सभी हिंदी की पत्र-पत्रिकाएँ धार्मिक - राष्ट्रीय चेतना के परिणामस्वरूप ही प्रकाशित हुई थीं । आर्य समाजीय हिंदी पत्रकारिता का उद्देश्य भी राष्ट्रीय चेतना का प्रसारण ही रहा है ।
पांडिच्चेरी (पुदुच्चेरी) प्रदेश में स्वाधीनता आंदोलन के आध्यात्मिक नेता महात्मा श्री अरविंद के आश्रम से चौथे दशक में हिंदी पत्रिका ‘अदिति’ के प्रकाशन के साथ ही हिंदी पत्रकारिता का उदय हुआ । राष्ट्रीयता के आराधक श्री अरविंद की विचारधाराओं के प्रचार-प्रसार हेतु ‘अदिति’ का प्रकाशन हुआ था । राष्ट्रीय विचारधारा को बल प्रदान करने में ‘अदिति’ की अग्रणी भूमिका रही ।
केरल की हिंदी पत्रकारिता के उदय का मूल कारण हिंदी प्रचार आंदोलन ही रहा । हिंदी प्रचार की गतिविधियों में संलग्न मलयालम भाषी हिंदी प्रेमी एवं हिंदी प्रचार आंदोलन के कर्मठ कार्यकर्त्ता श्री नीलकंठन नायर के प्रयासों से प्रकाशित ‘हिंदी मित्र’ से केरल की हिंदी पत्रकारिता का उदय माना जा सकता है । ‘हिंदी मित्र’ के प्रकाशन के बाद ही केरल से अन्य हिंदी पत्रकाओं का प्रकाशन आरंभ हुआ । हिंदी प्रचार संबंधी राष्ट्रीय महत्व के कार्य में हाथ बंटाने के उद्देश्य से केरल की मलयालम पत्रकारिता ने भी साप्ताहिक हिंदी परिशिष्ट प्रकाशित करके सद्भाना दर्शायी थी । कर्नाटक में भले ही हिंदी प्रचार आंदोलन का सूत्रपात स्वाधीनतापूर्व युग में ही हुआ था, किंतु कोई पत्र-पत्रिकाएँ उक्त अवधि में वहाँ से हिंदी में प्रकाशित नहीं हो पाईं । हिंदी प्रचारार्थ स्थापित एक संस्था की मुखपत्रिका के रूप में 1954 में प्रकाशित ‘हिंदी वाणी’ से कर्नाटक में हिंदी पत्रकारिता का उदय हुआ था ।
दक्षिण के सभी प्रदेशों में हिंदी पत्रकारिता के उदय के कारणों एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं के उद्देश्यों के अध्ययन से यह तथ्य उजागर हो जाता है कि राष्ट्रीयता की प्रबल भावनाओं से ही दक्षिण भारत में हिंदी पत्रकारिता का उदय हुआ था । स्वाधीनता आंदोलन को अपेक्षित संबल प्रदान करने की दिशा में दक्षिण भारत की हिंदी पत्रकारिता ने भी अग्रणी भूमिका निभाई थी । हिंदी प्रचार आंदोलन, धार्मिक जागरण जैसी जो भी घटनाएँ आज़ादी आंदोलन के युग में दक्षिण में घटीं, उनका प्रमुख उद्देश्य यहाँ की जनता की सोच को उचित दिशा देकर राष्ट्रीय आंदोलन के प्रति मनसा-वाचा-कर्मणा समर्पित होने के लिए अपेक्षित भावभूमि तैयार करने में तत्पर होने के लिए विवश करने का ही रहा है, इसमें दो राय नहीं हैं । राष्ट्रीय आंदोलन के एक अभिन्न अंग के रूप में हिंदी प्रचार एवं खादी प्रचार को अपना दैनिक कार्यक्रम मानते हुए अनुशासनबद्ध कार्यकर्त्ताओं ने गाँव-गाँव में पहुँचकर राष्ट्रभक्ति की भावनाएँ फैलाई थीं । इन आंदोलनों को हिंदी पत्रकारिता से अपेक्षित प्रेरणा एवं संबल भी मिला था ।
दक्षिण भारत में स्वातंत्र्यपूर्व हिंदी पत्रकारिता की चेतना
दक्षिण भारत में हिंदी पत्रकारिता के उदय से संबंधित अध्ययन से यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि राष्ट्रीयता के भावबोध एवं राष्ट्रीय आंदोलन के अंग के रूप में हिंदी पत्रकारिता का उदय हुआ था । हिंदी पत्रकारिता की मूल चेतना राष्ट्रीयता की भावना ही रही है । स्वाधीनतापूर्व युग में हिंदी पत्रकारिता के उदय के दिनों से लेकर स्वाधीनता की प्राप्ति तक प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं के उद्देश्य, उनमें प्रकाशित सामग्री तथा उन पत्र-पत्रिकाओं की देन को ध्यान में रखते हुए दक्षिण भारत की स्वातंत्र्यपूर्व हिंदी पत्रकारिता की मूलचेतना को आंकने का प्रयास अगले अनुच्छेदों में किया जा रहा है ।
दक्षिण भारत से विभिन्न केंद्रों से 1921 से 1947 तक प्रकाशित हिंदी पत्र-पत्रिकाओं को समग्र रूप में स्वाधीनतापूर्व की हिंदी पत्रकारिता के रूप में मानकर यदि हम मूल्यांकन करें तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि दक्षिण भारत की स्वाधीनतापूर्व हिंदी पत्रकारिता की चेतना के मूल में किस प्रकार की भावनाएँ थीं ।
स्वाधीनतापूर्व युग में दक्षिण भारत से लगभग डेढ़ दर्जन पत्र-पत्रिकाएँ हिंदी में प्रकाशित हुई थीं । आधे दर्जन अन्य भाषा (तमिल एवं मलयालम) के समाचारपत्रों ने कुछ समय तक हिंदी की समग्री को स्थान देकर भाषाई सद्भावना का उदाहरण उपस्थित किया था । तमिलनाडु से प्रकाशित हिंदी पत्रिकाओं की मूल चेतना की ओर यदि हम दृष्टिपात करेंगे तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि तमिलनाडु में राष्ट्रीय भावनाओं के पोषणार्थ हिंदी पत्रकारिता ने कार्य किया । तमिल की पत्र-पत्रिकाओं ने भी हिंदी की सामग्री के प्रकाशन के साथ भाषाई सद्भावना दर्शायी थी । समाचार प्रकाशनार्थ प्रकाशित पत्रों के माध्यम से राजनीतिक चेतना जगाने की कोशिशें की गई थीं । हिंदी प्रचार आंदोलन को गति देने के उद्देश्य से दो-चार पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ जिन की मूल चेतना भावात्मक एकता की प्राप्ति की दिशा में योग देने में निहित थी । साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गरिमा को रेखांकित करने की दृष्टि से जहाँ एक ओर साहित्यिक पत्रकारिता का योग रहा जबकि सांप्रदायिक सिद्धांतों के प्रचारार्थ धार्मिक चेतना को जगाने की दृष्टि से भी दो पत्रिकाएँ प्रकाशित हुई थीं । इस विश्लेषण से यह तथ्य उद्घाटित होता है कि स्वाधीनतापूर्व युग में तमिलनाडु से प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं की समग्र चेतना से राष्ट्रीय आंदोलन को बल मिला था । स्वाधीनता के परम लक्ष्य की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा एवं निष्ठा भरने में इन पत्र-पत्रिकाओं ने अवश्य ही तत्परता दर्शायी थी ।
आंध्र प्रदेश की हिंदी पत्रकारिता की पृष्ठभमि तमिलनाडु की स्थितियों से भिन्नता रखती है । यहाँ धार्मिक चेतना जगाने, सनातन धर्म प्रचारार्थ, आर्य समाजीय वैचारिक मूल्यों के प्रसारार्थ पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित हुई थीं । आर्य समाजीय पत्र-पत्रकाओं का लक्ष्य जन-जागृति भी था । इन्हीं दिनों में व्यापार की रीति-नीतियों पर केंद्रित एक पत्रिका भी हैदराबाद से प्रकाशित हुई थी । हैदराबाद रियासत में इस्लाम धर्मी शासकों के दौर में जब अल्प संख्यक कट्टरपंथियों द्वारा अधिसंख्य हिंदू धर्मियों पर खतरा के बादल मंडराने लगे, तब व्यक्तिगत एवं संस्थागत प्रयासों से धार्मिक चेतना जगाकर जन जागृति लाने, तद्वारा राष्ट्रीयता की भावनाओं को सींचने का प्रयास किया गया । आरंभिक दिनों में जहाँ वैयक्तिक प्रयासों से सनातन धर्म प्रचारार्थ पत्रिकाएँ निकाली गईं, वहीं दूसरी ओर आर्य समाज की ओर से जन जागृति एवं जातीय चेतना को लक्ष्य में रखते हुए पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन किया गया । निज़ाम शासकों के विरुद्ध जनमत तैयार करने में संलग्न इन पत्र-पत्रिकाओं पर शासक पक्ष द्वारा रोक लगाए जाने के बावजूद इधर-उधर से प्रकाशित होते हुए अपने अस्तित्व को बरक़रार रखते हुए इन पत्रों ने नवचेतना को सींचकर जागृति पैदा की थी । आंध्र के इन सभी प्रयासों की समग्र चेतना भी अखंड राष्ट्र की संकल्पना हेतु धार्मिक चेतना जगाकर राष्ट्रीय चेतना में प्रवृत्त करने की थी ।
केरल की हिंदी पत्रकारिता का आदर्श हिंदी प्रचार आंदोलन को गति देने का रहा । व्यक्तिगत प्रयासों से प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से भाषाई प्रेम, राष्ट्रीय एकता की भावनाओं का प्रचार किया गया था । मलयालम की पत्र-पत्रिकाओं ने भी कुछ समय तक हिंदी के परिशिष्ट छापकर भाषाई सद्भवाना का श्रेष्ठ उदाहरण उपस्थित किया था ।
पांडिच्चेरी कि पत्रकारिता की मूल-प्रेरणा भी राष्ट्रीय चेतना से ओत-प्रोत विराट व्यक्तित्व महात्मा अरविंद की रही है । दक्षिण भारत से स्वाधीनतापूर्व प्रकाशित समस्त हिंदी पत्र-पत्रिकाओं की मूल चेतना राष्ट्रीय आंदोलन को बल देने की ही थी । राष्ट्रवादियों के चिंतन को बौद्धिक एवं हृदयगत संबल देने की दिशा में अपने स्तर पर संभव योगदान इन पत्र-पत्रिकाओं ने सुनिश्चित किया था ।
दक्षिण भारत में स्वातंत्र्यपूर्व हिंदी पत्रकारिता का स्वरूप एवं प्रमुख प्रवृत्तियाँ
दक्षिण भारत में स्वातंत्र्यपूर्व युग में प्रकाशित हिंदी पत्र-पत्रिकाओं को मुख्यतः निम्नांकित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है –
1. हिंदी प्रचार के उद्देश्य से प्रकाशित हिंदी समाचारपत्र ।
2. हिंदी प्रचार आंदोलन में संलग्न संस्थाओं की मुख-पत्रिकाएँ ।
3. हिंदी साहित्यिक पत्रिकाएँ ।
4. धार्मिक आंदोलन के अंग के रूप में प्रकाशित पत्र-पत्रिकाएँ (विभिन्न सांप्रदायिक सिद्धांतों के प्रचार हेतु प्रकाशित पत्रिकाएँ, आर्य समाज द्वारा वैदिक धर्म के प्रचार एवं जनजागृति हेतु प्रकाशित पत्र-पत्रिकाएँ भी इस वर्ग में शामिल मानी जाएंगी ।)
5. अन्य पत्र-पत्रिकाएँ ।
सर्वप्रथम मद्रास से प्रकाशित ‘भारत तिलक’ वास्तव में एक समाचारपत्र का रूप लिया हुआ था और इसमें स्थानीय समाचार प्रकाशित होते थे । हिंदी प्रचार आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्त्ता द्वारा संपादित होने के कारण हिंदी प्रचार-प्रचार भी इस पत्र का अभिन्न उद्देश्य बन गया था । हिंदी प्रचार आंदोलन को गति देने के उद्देश्य से हिंदी प्रचार कार्य में संलग्न संस्थाओं की ओर से प्रकाशित मुख-पत्रिकाओं में हिंदी प्रचार आंदोलन की गतिविधियों की खबरें, अन्य महत्वपूर्ण सूचनाएँ, लेख आदि प्रकाशित होती थीं । ऐसी पत्रिकाओं में ‘हिंदी प्रचारक’ प्रथम पत्र है जो कालांतर में ‘हिंदी प्रचार समाचार’ के नाम से प्रकाशित होने लगी थी और आज भी उसी नाम से प्रकाशित हो रही है । ‘हिंदी पत्रिका’ के नाम से एक पत्रिका भी तमिलनाडु के तिरुच्चिरापल्ली से प्रकाशित हुई थी, जो अब भी प्रकाशित हो रही है । इन पत्रिकाओं की प्रमुख प्रवृत्तियाँ हिंदी प्रचार आंदोलन के कार्यकर्त्ताओं के लिए प्रेरक एवं उपयोगी लेख, हिंदी प्रचार की गतिविधियों से संबंधित खबरें व अन्य सामग्री प्रकाशित करने की रही हैं ।
उक्त पत्रिकाओं के अलावा हिंदी साहित्यिक पत्रिकाएँ ‘दक्षिण भारत’ और ‘दक्खिनी हिंद’ मद्रास से प्रकाशित हुई थीं । इनमें मौलिक एवं अनूदित रचनाओं के अलावा आलोचनात्मक लेख, तुलनात्मक आलेख आदि को स्थान दिया जा रहा था । हिंदी प्रचार आंदोलन में दीक्षित कार्यकर्त्ताओं द्वारा व्यक्तिगत प्रयासों से केरल में ‘हिंदी मित्र’ तथा ‘विश्वभारती’ पत्रिकाएँ प्रकाशित हुई थीं जिनके माध्यम से हिंदी में मौलिक सर्जना को संबल देने का प्रयास किया गया था ।
एक ओर जब हिंदी प्रचार की गतिविधियों में तेजी थी, उन्हीं दिनों में दक्षिण भारत में धार्मिक जागृति हेतु भी कई प्रयास किए गए । मध्व संप्रदाय के प्रचारार्थ ‘पूर्णबोध’, द्वैत सिद्धांतों के प्रचारार्थ ‘नृसिंहप्रिय’, सनातनधर्म के प्रचारार्थ ‘भाग्योदय’, दशनाम गोस्वामियों की परंपरा की पत्रिका के रूप में ‘गोस्वामी पत्रिका’, वैदिक सिद्धांतों, आर्य समाजीय मूल्यों के प्रचारार्थ आर्य समाज की ओर से कुछ पत्र-पत्रिकाएँ स्वाधीनतापूर्व युग में प्रकाशित हुई थीं । संबद्ध धर्म, संप्रदाय के सिद्धांतों पर केंद्रित सामग्री प्रकाशित करना इन पत्रिकाओं की मूल-प्रवृत्ति थी । आर्य समाज की पत्रकारिता ने राजनीतिक क्रांति की आवाज़ भी दी थी ।
स्वातंत्र्यपूर्व युग में हिंदुस्तानी सेवा दल की ओर से एक मुख-पत्र अंग्रेज़ी में प्रकाशित होती थी, जिसमें हिंदी में भी कुछ सामग्री प्रकाशित की जाती थी, जो मुख्यतः राजनीतिक चेतना के प्रसारण के लक्ष्य से प्रकाशित होती थी । निज़ाम रियासत में व्यापार विषयक एक पत्रिका भी प्रकाशित हुई थी जो स्वातंत्र्यपूर्व युग में दक्षिण भारत की हिंदी पत्रकारिता की विविधता को उजागर करती है ।
दक्षिण भारत में हिंदी पत्रकारिता के उदगम के दिनों में प्रकाशित सभी पत्र-पत्रिकाओं के समग्र मूल्यांकन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि आरंभिक दशाब्दियों में ही पत्रकारिता के विविध आयामों का विकास हो पाया था ।*