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Wednesday, March 9, 2011

नरसिंहगढ़ का फुन्सुक वांगडू 'हर्ष गुप्ता'

हर्ष गुप्ता


नरसिंहगढ़ का फुन्सुक वांगडू 'हर्ष गुप्ता'

- लोकेन्द्र सिंह राजपूत, ग्वालियर

खूबसूरत और व्यवस्थित खेती का उदाहरण है नरसिंहगढ़ के हर्ष गुप्ता का फार्म। वह खेती के लिए अत्याधुनिक, लेकिन कम लागत की तकनीक का उपयोग करता है। जैविक खाद इस्तेमाल करता है। इसे तैयार करने की व्यवस्था उसने अपने फार्म पर ही कर रखी है। किस पौधे को किस मौसम में लगाना है। पौधों के बीच कितना अंतर होना चाहिए। किस पेड़ से कम समय में अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। किस पौधे को कितना और किस पद्धति से पानी देना है। इस तरह की हर छोटी-बड़ी, लेकिन महत्वपूर्ण जानकारी उसके दिमाग में है। जब वह पौधों के पास खड़ा होकर सारी जानकारी देता है तो लगता है कि उसने जरूर एग्रीकल्चर में पढ़ाई की होगी, लेकिन नहीं। हर्ष गुप्ता इंदौर के एक प्राइवेट कॉलेज से फस्र्ट क्लास टैक्सटाइल इंजीनियर है। उसने इंजीनियरिंग जरूर की थी, लेकिन रुझान बिल्कुल भी न था। सन् २००४ में वह पढ़ाई खत्म करके घर वापस आया। उसने फावड़ा-तसल्ल उठाए और पहुंच गया अपने खेतों पर। यह देख स्थानीय लोग उसका उपहास उड़ाने लगे। लो भैया अब इंजीनियर भी खेती करेंगे। नौकरी नहीं मिल रही इसलिए बैल हाकेंगे। वहीं इससे बेफिक्र हर्ष ने अपने खेतों को व्यवस्थित करना शुरू कर दिया। इसमें उसके पिता का भरपूर सहयोग मिला। पिता के सहयोग ने हर्ष के उत्साह को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया। बेटे की लगन देख पिता का जोश भी जागा। खेतीबाड़ी से संबंधित जरूरी ज्ञान इंटरनेट, पुराने किसानों और कृषि वैज्ञानिकों के सहयोग से जुटाया। नतीजा थोड़ी-बहुत मुश्किलों के बाद सफलता के रूप में सामने आया। उसके फार्म पर आंवला, आम, करौंदा, शहतूत, गुलाब सहित शीशम, सागौन, बांस और भी विभिन्न किस्म के पेड़-पौधे २१ बीघा जमीन पर लगे हैं। हर्ष की कड़ी मेहनत ने उन सबके सुर बदल दिए जो कभी उसका उपहास उड़ाते थे। उसके फार्म को जिले में जैव विविधता संवर्धन के लिए पुरस्कार भी मिल चुका है। इतना ही नहीं कृषि पर शोध और

अध्ययन कर रहे विद्यार्थियों को फार्म से सीखने के लिए संबंधित संस्थान भेजते हैं।
हर्ष का कहना है कि मेहनत तो सभी किसान करते हैं, लेकिन कई छोटी-छोटी बातों का ध्यान न रखने से उनकी मेहनत बेकार चली जाती है। मेहनत व्यवस्थित और सही दिशा में हो तो सफलता सौ फीसदी तय है। मैं इंजीनियर की अपेक्षा किसान कहलाने में अधिक गर्व महसूस करता हूं। हर्ष कहते हैं कि खेती के जिस मॉडल को मैं समाज के सामने रखना चाहता हूं उस तक पहुंचने में कुछ वक्त लगेगा....... हर्ष गुप्ता और उसके फार्म के बारे में बात करने का मेरा उद्देश्य सिर्फ इतना सा ही है कि कामयाबी के लिए जरूरी नहीं कि अच्छी पढ़ाई कर बड़ी कंपनी में मोटी तनख्वा पर काम करना है। लगन हो तो कामयाबी तो साला झक मारके आपके पीछे आएगी। यह कर दिखाया छोटे-से कस्बे नरसिंहगढ़ के फुन्सुक वांगडू 'हर्ष गुप्ता' ने।

Saturday, February 5, 2011

देहरादून से प्रकाशित ‘सरस्वती सुमन‘ के लघुकथा विशेषांक हेतु रचनाएं आमंत्रित.

देहरादून से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका ‘सरस्वती सुमन‘ विभिन्न विषयों और विधाओं पर विशेषांक जारी कर रही है। इसी क्रम में पत्रिका का जुलाई-सितम्बर 2011 अंक ‘लघुकथा विशेषांक‘ के रूप में प्रस्तावित है। पत्रिका के संपादक डा0 आनंद सुमन सिंह जी ने लघु कथा विशेषांक के अतिथि संपादन का दायित्व मुझे सौंपा है। इस हेतु आपकी सक्रिय भागीदारी की कामना के साथ लघुकथा विशेषांक हेतु लघुकथा पर आलेख अथवा चार सशक्त लघुकथाएं (संक्षिप्त परिचय व फोटोग्राफ सहित) आमंत्रित हैं। सामग्री प्राप्त होने की अंतिम तिथि 30 मार्च 2011 है। संबंधित रचनाएं इस पते पर भेजी जायें- कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवाएं, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, पोर्टब्लेयर-744101.
व्यापक सहभागिता सुनिश्चित करने हेतु कृपया इस प्रकाशन की सूचना अपने लघुकथाकार मित्रों को भी दें और यथासंभव उनकी रचनाएँ भी साथ में प्रेषित करने का कष्ट करें। पत्र-पत्रिकाओं में इस सूचना के प्रकाशन का भी अनुरोध है।
आशा है कि सरस्वती सुमन के इस लघुकथा विशेषांक हेतु आपका पूरा सहयोग मिलेगा !!
सादर,
कृष्ण कुमार यादव

Friday, January 14, 2011

राष्ट्र-किंकर ने आयोजित किया संस्कृति सम्मान समारोह,2011







नई दिल्ली। दिल्ली में पड़ रही जबरदस्त ठण्ड के बावजूद हमेशा की तरह इस बार भी पश्चिम दिल्ली की जनकपुरी के साहित्य कला परिषद सभागार में देश-विदेश से पधारे विद्वानों ने भारतीय संस्कृति को समृद्ध बनाने का संकल्प भी लिया। अवसर था साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था राष्ट्र-किंकर द्वारा आयोजित संस्कृति सम्मान समारोह का। समारोह के मुख्य अतिथि गुजरात से पधारे स्वामी डॉ. गौरांगशरण देवाचार्य तथा दिल्ली के महापौर श्री पृथ्वीराज साहनी ने संस्कृति सम्मान प्रदान करते हुए भारतीय संस्कृति के विश्वव्यापी प्रभावों की चर्चा करते हुए उसे सर्वाधिक वैज्ञानिक बताया। उन्होंने युवाओं विशेष रूप से बढ़ते बच्चों पर विशेष ध्यान देने पर बल दिया। समारोह के अध्यक्ष अंतर्राष्ट्रीय ख्यााति के सिद्धहस्त शिल्पी श्री गिर्राजप्रसाद एवं विशिष्ट अतिथि दिल्ली सरकार की भोजपुरी अकादमी के माननीय सदस्य प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. रमाशंकर श्रीवास्तव व आचार्य चंद्रशेखर शास्त्री ने अपने विशिष्ट अंदाज में स्वयं को तथाकथित मार्डन घोषित करने वालो तथा मीडिया के एक वर्ग द्वारा सांस्कृतिक प्रदूषण फैलाने की आलोचना करते हुए देश के बुद्धिजीवी वर्ग से सक्रिय भूमिका निभाने की अपील की। इससे पूर्व गायत्री परिवार की शाखा भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के प्रदेश संयोजक श्री खैराती लाल सचदेवा ने प्रतिकूल मौसम के बावजूद देश के कोने से कोने से पधारे सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्था के साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक कार्यों की जानकारी दी।
राष्ट्र-किंकर एवं भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा की ओर से हर वर्ष मकर-संक्रांति के अवसर प्रदान किए जाने वाले संस्कृति सम्मान वैदिक विद्वान प्रो. डा. सुन्दरलाल कथूरिया, सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. देवेन्द्र आर्य, डा. शरदनारायण खरे, गुजरात के महंत सुनीलदास, शिलांग के डॉ. अकेला भाई, छात्र शक्ति के श्री दिनेश शर्मा, सेवा भारती के श्री ओमप्रकाश मिश्र, साहिबगंज के श्री सत्येन्द्र पाण्डेय को प्रदान किया गया। दिल्ली में भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा में सर्वाधिक भागीदारी करने वाले तीन विद्यालयों मोहनगार्डन के कमल मॉडल स्कूल, हस्तसाल के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय तथा नागलोई के डी.एस.एम.सी.सै.स्कूल को यह सम्मान प्रदान किया गया। नोएडा के श्री ओ.पी.मुंझाल, झुंझुनू के डॉ. भरतसिंह प्राची, दिल्ली की श्रीमती सुषमा भंडारी, देवबंद के लोकेश वत्स और विजेन्द्र कश्यप, मेरठ के फ़ख़रे आलम को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए साहित्य किंकर सम्मान तथा पत्रकार श्री ओमवीर सिंह को पंचवटी पत्रकारिता सम्मान से अलंकृत किया गया। समारोह के दौरान राष्ट्र-किंकर द्वारा दिल्ली के सर्वश्री अखिलेश द्विवेदी, किशोर श्रीवास्तव एवं देवबंद के डा. शमीम देवबंदी को विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर द्वारा प्रदत्त भाषा रत्न सहित विभिन्न मानद उपाधियों से भी सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर एक कवि सम्मेलन का आयोजन भी किया गया जिसमें अपनी काव्य रचनाओं व हास्य से समा बांधाने वालों में सर्वश्री महेन्द्रपाल काम्बोज, श्रीगोपाल नारसन (रूड़की), डा. सुरजीत सिंह जोबन,, श्रीमती सुषमा भंडारी, नंदलाल रसिक, रशीद सैदपुरी, श्रीमती शोभा रस्तौगी एवं किशोर श्रीवास्तव (दिल्ली) आदि प्रमुख थे।

कार्यक्रम का शुभारंभ दीपयज्ञ के पश्चात रेड रोज पब्लिक स्कूल रामापार्क के नन्हें-मुन्ने बच्चों द्वारा वंदेमातरम् से हुआ। कार्यक्रम का अत्यन्त रोचक, ज्ञानवर्द्धक व मनोरंजक संचालन राष्ट्र-किंकर के संपादक श्री विनोद बब्बर ने किया और इसमें उनका साथ दिया योगकिंकर के संपादक दर्शनकुमार एवं यथासंभव के मुनीष गोयल ने। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए श्री अम्बरीश कुमार ने मकर संक्रांति के ऐतिहासिक-पौराणिक महत्व की जानकारी दी। उन्होंने भीष्म पितामह द्वारा उत्तरायण की प्रतीक्षा, स्वामी विवेकानंद के जन्म, मुक्तसर पंजाब के गुरु गोविंद सिंह से जुड़े प्रसंगों की चर्चा कर खचाखच भरे सभागार को रोमांचित कर दिया। सुप्रसिद्ध फोटोग्राफर श्याम प्रसाद ने पिछले वर्ष के समारोह का एक दुर्लभ चित्र कार्यक्रम संयोजक विनोद बब्बर को भेंट किया।





प्रस्तुतिः लाल बिहारी लाल, मीडिया प्रभारी, नई दिल्ली मो. 9868163073

Tuesday, January 11, 2011

अंडमान-निकोबार में पर्यटन को बढ़ावा देते पोस्टकार्ड




भारतीय डाक विभाग ने अंडमान में पर्यटन को बढ़ावा देने वाले मेघदूत पोस्टकार्ड जारी किए हैं . गौरतलब है कि जहाँ सामान्य पोस्टकार्ड 50 पैसे में उपलब्ध होते हैं वहीँ मेघदूत पोस्टकार्ड मात्र 25 पैसे में उपलब्ध होते हैं। मेघदूत पोस्टकार्ड के पते वाले साइड में कुछ लिखा नहीं जा सकता वहाँ पर विभिन्न प्रकार के विज्ञापन या प्रचार सामग्री मुद्रित की जाती है। अंडमान व निकोबार द्वीप समूह के डाक सेवा निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि उक्त मेघदूत पोस्टकार्ड बिक्री हेतु भारत के विभिन्न हिस्सों में उपलब्ध है। इस विज्ञापन में कभी काला पानी के लिए मशहूर पर अब ऐतिहासिक राष्ट्रीय स्मारक सेलुलर जेल, बैरन द्वीप और यहाँ स्थित भारत के एकमात्र सक्रिय बैरन ज्वालामुखी एवं राॅस और स्मिथ द्वीपों इत्यादि के चित्रों को प्रदशित किया गया है. राॅस और स्मिथ द्वीपों की यह विशेषता है कि ज्वार आने पर यह दोनों द्वीप आपस में मिल जाते हैं और भाटा के समय अलग हो जाते हैं. इसी कारण इन्हें सिस्टर-आइलैंड भी कहा जाता है. गौरतलब है कि इन मेघदूत पोस्टकार्डों को सूचना-प्रसार एवं पर्यटन निदेशालय, अंडमान व निकोबार प्रशासन द्वारा विज्ञापित किया गया है। निदेशक श्री यादव ने बताया कि उक्त मेघदूत पोस्टकार्डों की डाकघरों में काफी माँग है और वर्तमान में टूरिस्ट सीजन होने के चलते तमाम विदेशी और भारतीय पर्यटक इन पर पत्र लिखकर अपने परिजनों को भेज रहे हैं. यहाँ से भेजे जाने के कारण इन पर अंडमान के डाकघरों की मुहर भी लगी होती है, इस कारण इनकी फिलेटलिक वैल्यू भी बढ़ जाती है. देश-विदेश से लोग अंडमान में पर्यटन के बहाने आते हैं और एक बार उस सेलुलर जेल के दर्शन जरुर करते हैं जहाँ देशभक्तों ने इतनी यातनाएं सहीं. डाक विभाग भी इसके प्रति सचेत है और यहाँ के पोर्टब्लेयर प्रधान डाक घर से बाहर जाने वाले पत्रों पर जो मुहर लगाई जाती है, उस पर सेलुलर जेल का चित्र अंकित है. ऐसे में इन पत्रों को लोग यादगार के रूप में सहेज कर रखते हैं.

Tuesday, January 4, 2011

इंजीनियर जगदीप सिंह दाँगी ‘आउटस्टैन्डिंग यंग पर्सन ऑफ़ इंडिया – 2010’ अवार्ड से सम्मानित



लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज युवा कम्प्यूटर इंजीनियर जगदीप सिंह दाँगी को इस वर्ष का राष्ट्रीय पुरस्कार "आउटस्टैन्डिंग यंग पर्सन ऑफ़ इंडिया - 2010" प्रदान किया गया है। यह पुरस्कार उन्हें सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान के लिये विज्ञान एवम् तकनीकि केटेगरी में प्रदान किया गया है। उक्त पुरस्कार श्री दाँगी को दिनाँक 28 दिसम्बर को विशाखापटनम में आयोजित जेसीआई नेटकॉन 2010 राष्ट्रीय समारोह में जेसीआई इंडिया के नेशनल प्रेसिडेन्ट जेसी संतोष कुमार पी. ने प्रदान किया। इस अवसर पर देश के विभिन्न प्रांतों से आये हुए लगभग ढाई हजार जेसीआई डेलिगेट्स उपस्थित थे। यह पुरस्कार राष्ट्रीय स्तर पर दस विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाले युवाओं को प्रदान किये गये। इस वर्ष यह पुरस्कार श्री दाँगी के अलावा, चिकित्सा के क्षेत्र में प्रसिद्ध कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. शलिमा आर गौतम एवम् सीएनएन टॉप टेन हीरो श्री कृष्णन नारायन्न मदुराई सहित अन्य छ्ः हस्तियों को प्रदान किये गये हैं। अन्तर्राष्ट्रीय संस्था जेसीआई द्वारा हर वर्ष यह पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं। इसके पूर्व इस पुरस्कार को पाने वाले श्रेष्ठ युवाओं में प्रसिद्ध क्रिकेटर सचिन टेनडुलकर, कपिल देव, सुनील गावस्कर, पीटी ऊषा आदि हैं।
मध्य-प्रदेश के गंजबासौदा में जन्मे जगदीप सिंह दाँगी ने कम्प्यूटर के क्षेत्र में हिन्दी के विकास में उल्लेखनीय कार्य किया है। यह पुरस्कार उनके प्रथम हिन्दी सॉफ़्ट्वेयर एक्सप्लोरर आई-ब्राउजर++, प्रखर फ़ॉन्ट परिवर्तक, यूनिदेव, शब्द-अनुवादक, शब्द-ज्ञान आदि सॉफ़्ट्वेयर का विकास किया है। इन्हें पूर्व में भी अनेक प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है कंप्यूटर के क्षेत्र में केबिन केयर एविलिटी फ़ाउंडेशन ने जगदीप सिंह दाँगी को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार और एक लाख रूपये की राशि के साथ-साथ वर्ष 2008 का मास्टरी अवार्ड प्रदान किया। वे वर्तमान में अटल बिहारी वाजपेयी - भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी एवम् प्रबंधन संस्थान ग्वालियर में वैज्ञानिक/इंजीनियर के पद पर रह कर हिन्दी सॉफ़्ट्वेयर के क्षेत्र में लगे हुए हैं।

Sunday, December 12, 2010

विधि का विधान : प्रो. सत्य सहाय दिवंगत.....



वयोवृद्ध शिक्षाविद-अर्थशास्त्री प्रो. सत्यसहाय श्रीवास्तव दिवंगत

- संजीव वर्मा 'सलिल'


बिलासपुर, छत्तीसगढ़ २८.११.२०१०. स्थानीय अपोलो चिकित्सालय में आज देर रात्रि विख्यात अर्थशास्त्री, छत्तीसगढ़ राज्य में महाविद्यालायीन शिक्षा के सुदृढ़ स्तम्भ रहे अर्थशास्त्र की ३ उच्चस्तरीय पुस्तकों के लेखक, प्रादेशिक कायस्थ महासभा मध्यप्रदेश के पूर्व प्रांतीय अध्यक्ष रोटेरियन, लायन प्रो. सत्य सहाय का लम्बी बीमारी के पश्चात् देहावसान हो गया. खेद है कि छत्तीसगढ़ की राज्य सरकार आपने प्रदेश के इस गौरव पुरुष के प्रति पूरी तरह अनभिज्ञ तथा असावधान रही. वर्ष १९९४ से पक्षाघात (लकवे) से पीड़ित प्रो. सहाय शारीरिक पीड़ा को चुनौती देते हुए भी सतत सृजन कर्म में संलग्न रहे. शासन सजग रहकर उन्हें राजकीय अतिथि के नाते एम्स दिल्ली या अन्य उन्नत चिकित्सालय में भेजकर श्रेष्ठ विशेषज्ञों की सेवा उपलब्ध कराता तो वे रोग-मुक्त हो सकते थे.

१६ वर्षों से लगातार पक्षाघात (लकवा) ग्रस्त तथा शैयाशाई होने पर भी उनके मन-मष्तिष्क न केवल स्वस्थ्य-सक्रिय रहा अपितु उनमें सर्व-हितार्थ कुछ न कुछ करते रहने की अनुकरणीय वृत्ति भी बनी रही. वे लगातार न केवल अव्यवसायिक सामाजिक पत्रिका 'संपर्क' का संपादन-प्रकाशन करते रहे अपितु इसी वर्ष उन्होंने 'राम रामायण' शीर्षक लघु पुस्तक का लेखन-प्रकाशन किया था. इसमें रामायण का महत्त्व, रामायण सर्वप्रथम किसने लिखी, शंकर जी द्वारा तुलसी को रामकथा साधारण बोल-चाल की भाषा में लिखने की सलाह, जब तुलसी को हनुमानजी ने श्रीराम के दर्शन करवाये, रामकथा में हनुमानजी की उपस्थिति, सीताजी का पृथ्वी से पैदा होना, रामायण कविता नहीं मंत्र, दशरथ द्वारा कैकेयी को २ वरदान, श्री राम द्वारा श्रीभरत को अयोध्या की गद्दी सौपना, श्री भारत द्वारा कौशल्या को सती होने से रोकना, रामायण में सर्वाधिक उपेक्षित पात्र उर्मिला, सीता जी का दूसरा वनवास, रामायण में सुंदरकाण्ड, हनुमानजी द्वारा शनिदेव को रावण की कैद से मुक्त कराना, परशुराम प्रसंग की सचाई, रावण के अंतिम क्षण, लव-कुश काण्ड, सीताजी का पृथ्वी की गोद में समाना, श्री राम द्वारा बाली-वध, शूर्पनखा-प्रसंग में श्री राम द्वारा लक्ष्मण को कुँवारा कहा जाना, श्री रामेश्वरम की स्थापना, सीताजी की स्वर्ण-प्रतिमा, रावण के वंशज, राम के बंदर, कैकेई का पूर्वजन्म, मंथरा को अयोध्या में रखेजाने का उद्देश्य, मनीराम की छावनी, पशुओं के प्रति शबरी की करुणा, सीताजी का राजयोग न होना, सीताजी का रावण की पुत्री होना, विभीषण-प्रसंग, श्री राम द्वारा भाइयों में राज्य-विभाजन आदि जनरूचि के रोचक प्रसंगों का उल्लेख किया है. गागर में सागर की तरह विविध प्रसंगों को समेटे यह कृति प्रो. सहाय की जिजीविषा का पुष्ट-प्रमाण है.

प्रो. सत्यसहाय जीवंत व्यक्तित्व, कर्मठ कृतित्व तथा मौलिक मतित्व की त्रिविभूति-संपन्न ऐसे व्यक्तित्व थे जिन पर कोई भी राज्य-सत्ता गर्व कर सकती है. ग्राम रनेह (राजा नल से समबन्धित ऐतिहासिक नलेह), तहसील हटा (राजा हट्टेशाह की नगरी), जिला दमोह (रानी दमयन्ती की नगरी) में जन्में, बांदकपुर स्थित उपज्योतिर्लिंग जागेश्वरनाथ पुण्य भूमि के निवासी संपन्न-प्रतिष्ठित समाजसेवी स्व. सी.एल. श्रीवास्तव तथा धर्मपरायण स्व. महारानी देवी के कनिष्ठ पुत्र सत्यसहाय की प्राथमिक शिक्षा रनेह, ग्राम, उच्चतर माध्यमिक शिक्षा दमोह तथा महाविद्यालयीन शिक्षा इलाहाबाद में अग्रज स्व. पन्नालाल श्रीवास्तव (आपने समय के प्रखर पत्रकार, दैनिक लीडर तथा अमृत बाज़ार पत्रिका के उपसंपादक, पत्रकारिता पर महत्वपूर्ण पुस्तक के लेखक) के सानिंध्य में पूर्ण हुई. अग्रज के पद-चिन्हों पर चलते हुए पत्रकारिता के प्रति लगाव स्वाभाविक था. उनके कई लेख, रिपोर्ताज, साक्षात्कार आदि प्रकाशित हुए. वे लीडर पत्रिका के फ़िल्मी स्तम्भ के संपादक रहे. उनके द्वारा फ़िल्मी गीत-गायक स्व. मुकेश व गीता राय का साक्षात्कार बहुचर्चित हुआ.

उन्हीं दिनों महात्मा गाँधी के निजी सचिव स्व. महेशदत्त मिश्र पन्नालाल जी के साथ रहकर राजनीति शास्त्र में एम.ए. कर रहे थे. तरुण सत्यसहाय को गाँधी जी की रेलयात्रा के समय बकरीका ताज़ा दूध पहुँचाने का दायित्व मिला. गाँधी जी की रेलगाड़ी इलाहाबाद पहुँची तो भरी भीड़ के बीच छोटे कद के सत्यसहाय जी नजर नहीं आये, रेलगाड़ी रवाना होने का समय हो गया तो मिश्रजी चिंतित हुए, उन्होंने आवाज़ लगाई 'सत्य सहाय कहाँ हो? दूध लाओ.' भीड़ में घिरे सत्यसहाय जी जोर से चिल्लाये 'यहाँ हूँ' और उन्होंने दूध का डिब्बा ऊपर उठाया, लोगों ने देखा मिश्र जी डब्बा पकड़ नहीं पा रहे और रेलगाड़ी रेंगने लगी तो कुछ लम्बे लोगों ने सहाय जी को ऊपर उठाया, मिश्र जी ने लपककर डब्बा पकड़ा. बापू ने खिड़की से यह दृश्य देखा तो खिड़कीसे हाथ निकालकर उन्हें आशीर्वाद दिया. मिश्रा जी के सानिंध्य में वे अनेक नेताओं से मिले. सन १९४८ में अर्थशास्त्र में एम.ए. करने के पश्चात् नव स्वतंत्र देश का भविष्य गढ़ने और अनजाने क्षेत्रों को जानने-समझने की ललक उन्हें बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ले आयी.

पन्नालाल जी अमृत बाज़ार पत्रिका और लीडर जैसे राष्ट्रीय अंग्रेजी अख़बारों में संवाददाता और उपसंपादक रहे थे. वे मध्य प्रान्त और विदर्भ के नेताओं को राष्ट्री क्षितिज में उभारने में ही सक्रिय नहीं रहे अपितु मध्य अंचल के तरुणों को अध्ययन और आजीविका जुटने में भी मार्गदर्शक रहे. विख्यात पुरातत्वविद राजेश्वर गुरु उनके निकट थे, जबलपुर के प्रसिद्द पत्रकार रामेश्वर गुरु को अपना सहायक बनाकर पन्नालाल जी ने संवाददाता बनाया था. कम लोग जानते हैं मध्य-प्रदेश उच्च न्यायालय के विद्वान् अधिवक्ता श्री राजेंद्र तिवारी भी प्रारंभ में प्रारंभ में पत्रकार ही थे. उन्होंने बताया कि वे स्थानीय पत्रों में लिखते थे. गुरु जी का जामाता होने के बाद वे पन्नालाल जी के संपर्क में आये तो पन्नालाल जी ने अपना टाइपराइटर उन्हें दिया तथा राष्ट्रीय अख़बारों से रिपोर्टर के रूप में जोड़ा. अपने अग्रज के घर में अंचल के युवकों को सदा आत्मीयता मिलते देख सत्य सहाय जी को भी यही विरासत मिली.

आदर्श शिक्षक तथा प्रशासनविद:

बुंदेलखंड में कहावत है 'जैसा पियो पानी, वैसी बोलो बनी, जैसा खाओ अन्न, वैसा होए मन'- सत्यसहाय जी के व्यक्तित्व में सुनार नदी के पानी साफगोई, नर्मदाजल की सी निर्मलता व गति तथा गंगाजल की पवित्रता तो थी ही बिलासपुर छत्तीसगढ़ में बसनेपर अरपा नदीकी देशजता और शिवनाथ नदीकी मिलनसारिता सोने में सुहागा की तरह मिल गई. वे स्थानीय एस.बी.आर. महाविद्यालय में अर्थशास्त्र के व्याख्याता हो गये. उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व, सरस-सटीक शिक्षण शैली, सामयिक उदाहरणों से विषय को समझाने तथा विद्यार्थी की कठिनाई को समझकर सुलझाने की प्रवृत्ति ने उन्हें सर्व-प्रिय बना दिया. जहाँ पहले छात्र अर्थशास्त्र विषय से दूर भागते थे, अब आकर्षित होने लगे. सन १९६४ तक उनका नाम स्थापित तथा प्रसिद्ध हो चुका था. इस मध्य १९५८ से १९६० तक उन्होंने नव-स्थापित 'ठाकुर छेदीलाल महाविद्यालय जांजगीर' के प्राचार्य का चुनौतीपूर्ण दायित्व सफलतापूर्वक निभाया और महाविद्यालय को सफलता की राह पर आगे बढ़ाया. उस समय शैक्षणिक दृष्टि से सर्वाधिक पिछड़े राज्य छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा की दीपशिखा प्रज्वलित करनेवालों में अग्रगण्य स्व. सत्य सहाय अपनी मिसाल आप थे.जांजगीर महाविद्यालय सफलतापूर्वक चलने पर वे वापिस बिलासपुर आये तथा योजना बनाकर एक अन्य ग्रामीण कसबे खरसिया के विख्यात राजनेता-व्यवसायी स्व. लखीराम अग्रवाल प्रेरित कर महाविद्यालय स्थापित करने में जुट गये. लम्बे २५ वर्षों तक प्रांतीय सरकार से अनुदान प्राप्तकर यह महाविद्यालय शासकीय महाविद्यालय बन गया. इस मध्य प्रदेश में विविध दलों की सरकारें बनीं... लखीराम जी तत्कालीन जनसंघ से जुड़े थे किन्तु सत्यसहाय जी की समर्पणवृत्ति, सरलता, स्पष्टता तथा कुशलता के कारण यह एकमात्र महाविद्यालय था जिसे हमेशा अनुदान मिलता रहा.

उन्होंने रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर में अधिष्ठाता छात्र-कल्याण परिषद्, अधिष्ठाता महाविद्यालयीन विकास परिषद् तथा निदेशक जनजाति प्रशासनिक सेवा प्रशिक्षण के रूप में भी अपनी कर्म-कुशलता की छाप छोड़ी.

आपके विद्यार्थियों में स्व. बी.आर. यादव, स्व. राजेंद्र शुक्ल. श्री अशोक राव, श्री सत्यनारायण शर्मा आदि अविभाजित मध्यप्रदेश / छतीसगढ़ के कैबिनेट मंत्री, पुरुषोत्तम कौशिक केन्द्रीय मंत्री तथा स्व. श्रीकांत वर्मा सांसद और राष्ट्रीय राजनीति के निर्धारक रहे. अविभाजित म.प्र. के वरिष्ठ नेता स्वास्थ्य मंत्री स्व. डॉ. रामाचरण राय, शिक्षामंत्री स्व. चित्रकांत जायसवाल से उनके पारिवारिक सम्बन्ध थे. उनके अनेक विद्यार्थी उच्चतम प्रशासनिक पदों पर तथा कई कुलपति, प्राचार्य, निदेशक आदि भी हुए किन्तु सहाय जी ने कभी किसीसे नियम के विपरीत कोई कार्य नहीं कराया. अतः उन्होंने सभी से सद्भावना तथा सम्मान पाया.
सक्रिय समाज सेवी:
प्रो. सत्यसहाय समर्पित समाज सुधारक भी थे. उन्होंने छतीसगढ़ अंचल में लड़कियों को शिक्षा से दूर रखने की कुप्रथा से आगे बढ़कर संघर्ष किया. ग्रामीण अंचल में रहकर तथा सामाजिक विरोध सहकर भी उन्होंने न केवल अपनी ४ पुत्रियों को स्नातकोत्तर शिक्षा दिलाई अपितु २ पुत्रियों को महाविद्यालयीन प्राध्यापक बनने हेतु प्रोत्साहित तथा विवाहोपरांत शोधकार्य हेतु सतत प्रेरित किया. इतना ही नहीं उन्होंने अपने संपर्क के सैंकड़ों परिवारों को भी लड़कियों को पढ़ाने की प्रेरणा दी.

स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति के पश्चात् वे सामाजिक ऋण-की अदायगी करने में जुट गये. प्रादेशिक चित्रगुप्त महासभा मध्य प्रदेश के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने जबलपुर, बरमान (नरसिंहपुर), उज्जैन, दमोह, बालाघाट, बिलासपुर आदि अनेक स्थानों पर युवक-युवती, परिचय सम्मलेन, मितव्ययी दहेज़रहित सामूहिक आदर्श विवाह सम्मलेन आदि आयोजित कराये. वैवाहिक जानकारियाँ एकत्रित कर चित्राशीष जबलपुर तथा संपर्क बिलासपुर पत्रिकाओं के माध्यम से उन्होंने अभिभावकों को उपलब्ध कराईं.

विविध काल खण्डों में सत्यसहाय जी ने लायन तथा रोटरी क्लबों के माध्यम से भी सामाजिक सेवा की अनेक योजनाओं को क्रियान्वित कर अपूर्व सदस्यतावृद्धि हेतु श्रेष्ठ गवर्नर पदक प्राप्त किये. वे जो भी कार्य करते थे दत्तचित्त होकर लक्ष्य पाने तक करते थे.

छतीसगढ़ शासन जागे :

बिलासपुर तथा छत्तीसगढ़ के विविध अंचलों में प्रो. असत्य सहाय के निधन का समाचार पाते ही शोक व्याप्त हो गया. छतीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश के अनेक महाविद्यालयों ने उनकी स्मृति में शोक प्रस्ताव पारित किये. अभियान सांस्कृतिक-साहित्यिक संस्था जबलपुर, रोटरी क्राउन जबलपुर, रोटरी क्लब बिलासपुर, रोटरी क्लब खरसिया, लायंस क्लब खरसिया, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, सनातन कायस्थ महापरिवार मुम्बई, विक्रम महाविद्यालय उज्जैन, शासकीय महाकौशल महाविद्यालय जबलपुर, कायस्थ समाज बिलासपुर, कायस्थ कल्याण परिषद् बिलासपुर, कायस्थ सेना जबलपुर आदि ने प्रो. सत्यसहाय के निधन पर श्रैद्धांजलि व्यक्त करते हुए उन्हें युग निर्माता निरूपित किया है. छत्तीसगढ़ शासन से अपेक्षा है कि खरसिया महाविद्यालय में उनकी प्रतिमा स्थापित की जाये तथा रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर एवं गुरु घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर में अर्थशास्त्र विषयक उच्च शोध कार्यों हेतु प्रो. सत्यसहाय शोधपीठ की स्थापना की जाए.

दिव्यनर्मदा परिवार प्रो. सत्यसहाय के ब्रम्हलीन होने को शोक का कारण न मानते हुए इसे देह-धर्म के रूप में विधि के विधान के रूप में नत शिर स्वीकारते हुए संकल्प लेता है कि दिवंगत के आदर्शों के क्रियान्वयन हेतु सतत सक्रिय रहेगा. हिन्दी को विश्व भाषा के रूप में विकसित करने की प्रो. सत्यसहाय की मनोकामना को मूर्तरूप देने के लिये सतत प्रयास जारी रहेंगे. आप सब इस पुनी कार्य में सहयोगी हों, यही सच्ची कर्मांजलि होगी.

प्रो. सत्यसहाय के प्रति :
स्मृति गीत:
न मानता...
- संजीव 'सलिल'
*
मन न मानता
चले गये हो...
*
अभी-अभी तो यहीं कहीं थे.
आँख खुली तो कहीं नहीं थे..
अंतर्मन कहता है खुदसे-
साँस-आस से
छले गये हो...
*
नेह-नर्मदा की धारा थे.
श्रम-संयम का जयकारा थे..
भावी पीढ़ी के नयनों में-
स्वप्न सदृश तुम
पले गये हो...
*
दुर्बल तन में स्वस्थ-सुदृढ़ मन.
तुम दृढ़ संकल्पों के गुंजन..
जीवन उपवन में भ्रमरों संग-
सूर्य अस्त लख
ढले गये हो...
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