Saturday, July 30, 2011

कविता - शाहरूख खान



शाहरूख खान

-मुहम्‍मद सादिक़/Md.Sadiq


मैं भारत की शान हूँ

चाहतों की जान हूँ

अपने फैन का अभिमान हूँ
फिल्‍म युग में मान सम्‍मान हूँ
मैं आधुनिक डान हूँ
मुंबई नगरीय में सोने की खान हूँ

मैं दिल्ली का प्‍यारा
हंसी-खुशियों का दुल्‍हारा
अदाकारी में बड़ा न्‍यारा
धड़कते दिलों का सहारा
मैं फिल्‍म नगर का आन हूँ
मैं शाहरूख खान हूँ

मैं देश में ओम शांति ओम लाया
मैं टेररिस्‍ट नहीं
मैं नेम इस खान कहलाया
बाल बच्‍चों का दिल बहलाया
हर पीढ़ी की जान हूँ

दुनिया में सुपर स्‍टार
शाहरूख खान कहलाया

पत्रकारिता विश्वविद्यालय में रिक्त स्थानों में प्रवेश हेतु ओपन काउन्सलिंग १ अगस्त को


भोपाल, 30 जुलाई| माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में सत्र 2011-12 में संचालित होने वाले पाठ्यक्रमों के शेष बचे रिक्त स्थानों में प्रवेश के लिए ओपन काउन्सलिंग सोमवार, 1 अगस्त 2011 को आयोजित होगी. काउन्सलिंग विश्वविद्यालय के एम.पी.नगर स्थित परिसर विकास भवन में प्रातः 10 बजे प्रारम्भ होगी. ओपन काउन्सलिंग के माध्यम से विश्वविद्यालय के भोपाल समेत नॉएडा एवं खंडवा परिसर में चलाये जा रहे पाठ्यक्रमों के शेष रिक्त स्थानों पर प्रवेश दिया जायेगा.

ओपन काउन्सलिंग में वे सभी उम्मीदवार शामिल हो सकते हैं जो 12 जून 2011 को आयोजित प्रवेश परीक्षा में शामिल हुए थे. इस काउन्सलिंग के माध्यम से उम्मीदवार को चाहे गए पाठ्यक्रम के अतिरिक्त आवेदित पाठ्यक्रम के ग्रुप में शामिल अन्य पाठ्यक्रमों में भी रिक्त स्थानों पर मेरिट के आधार पर प्रवेश की पात्रता होगी. ऐसे उम्मीदवार जिनका चयन किसी कारण से चाहे गए पाठ्यक्रम एवं आवेदित पाठ्यक्रम ग्रुप में नहीं हो पा रहा है, वे अन्य ग्रुप के पाठ्यक्रमों में भी प्रवेश ले सकते हैं. प्रवेश के दौरान उम्मीदवार को परिसर अनुसार पाठ्यक्रम के शुल्क की प्रथम किश्त आवश्यक समस्त प्रपत्रों एवं अंकसूचियों की मूल प्रति एवं दो छायाप्रति एवं 4 पासपोर्ट साइज़ फोटो साथ लाना होगा. ओपन काउन्सलिंग के लिए उम्मीदवार का स्वयं उपस्थित होना आवश्यक है.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.के.कुठियाला ने बताया कि ओपन काउन्सलिंग के माध्यम से विद्यार्थियों को एक बार पुनः अपनी रूचि के अनुसार पाठ्यक्रम चुनने की सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है. इस काउन्सलिंग से मीडिया एवं संचार विधा से जुड़े समस्त एम.बी.ए. पाठ्यक्रम, एम.सी.ए. पाठ्यक्रम, पत्रकारिता, जनसंचार, विज्ञापन-जनसंपर्क, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रसारण पत्रकारिता से संबन्धित स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों, जनसंचार, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, मल्टीमीडिया, ग्राफिक्स एनीमेशन, बी.सी,ए. जैसे स्नातक पाठ्यक्रमों तथा वीडियो प्रोडक्शन, वेब संचार, पर्यावरण संचार, भारतीय संचार परम्पराएँ, योगिक स्वास्थ्य प्रबंधन एवं पी.जी.डी.सी.ए. जैसे पी.जी. डिप्लोमा पाठ्यक्रमों एवं बी.लिब. पाठ्यक्रमों में प्रवेश दिया जायेगा.

ओपन काउन्सलिंग के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी विश्वविद्यालय वेबसाइट www.mcu.ac.in पर उपलब्ध है. इसके अतिरिक्त टेलिफोन नंबर 0755-2553523 (भोपाल) 0120-4260640 (नॉएडा) एवं 0733-2248895 (खंडवा) पर संपर्क किया जा सकता है या mcupravesh@gmail.com पर ई-मेल किया जा सकता है.

(डॉ. पवित्र श्रीवास्तव)

निदेशक प्रवेश

बोध-कथा

बोध-कथा

जय श्री राधेय

- रचना गोयल

एक बार की बात है, एक गांव में एक पंडित रहता था, वो बहुत ही विद्वान था, दूर दूर से लोग उसके पास अपनी समस्या लेकर आते और वो सबका उचित समाधान कर देता था लोग उससे बहुत सम्मान दिया करते थे . मगर उसकी खुद की स्थिति बहुत ही खराब थी उसकी पत्नी बहुत ही कर्कशा थी नित्य उसकी जान से रासे किया करती थी हर समय झगडा करती मगर पंडितजी हँस कर सब सह लेते थे . एक बार एक दूसरे गाँव का आदमी उन की प्रशंसा सुनकर उनके पास अपनी समस्या लेकर आया, तब उसने देखा कि पंडितजी की तो बड़ी ही फजीहत हो रही है उन्ही के पत्नी उन्हें बुरा भला कह रही है तो वो वापस जाने लगा कि जो अपना भाग्य नहीं सवार सका वो मेरी क्या मदद करेगा मगर जो उसको वह लेकर आया था वो बोला जब हम इतनी दूर आये हैं तो क्यो न आजमा कर देखे कि लोग इनकी इतनी तारीफ़ क्यों करते हैं और वो अंदर चले गये पंडितजी अपने शांत भाव से ही बैठे थे . उन्होंने पंडितजी को अभिवादन किया और पास में ही बैठ गये अब जो अपनी संशय लेकर आया था उसने कहा पंडितजी मैं आपसे मदद लेने आया था पर मेरे मन में एक संशय है यदि आप मेरे उस संशय को दूर करें तो मैं अपनी समस्या आप से कहूँ . पंडितजी ने कहा आप बिना हिचक मुझ से जो चाहे पूछो, मैं आपकी हर बात का समाधान करने की पूरी कोशिश करूँगा . तब वह व्यक्ति कहने लगा पंडितजी जब हम यहाँ आये तो जो देखा उससे लगता है जब आप अपनी समस्या का समाधान नहीं कर सकते तो हमारी कैसे करेंगे . तब पंडितजी मुस्कुराते हुए कहने लगे, यदि ये इस जन्म में मुझे नहीं पकडती तो हो सकता है ये मुझे किसी और जन्म में पकडती . तब वो कहने लगा ऐसा क्यों पंडितजी आप हमें खुल कर बताये . तब पंडितजी कहने लगे ये पहले जन्म में एक ऊँटनी थी और अपने दल के साथ जा रही थी तब इसका पाँव दलदल में चला गया अब ये जितना कोशिश करती उतना ही अंदर चली जाती . धीरे-धीरे रात घिरने लगी और इसके साथी भी हर प्रयास में असफल रहे तब वो इसे छोड़ कर चले गये. ये वहाँ असहाय होकर छटपटाने लगी उस जन्म में मै एक गिद्ध था और गिद्ध का ये सवभाव जगजाहिर है कि ये एकमात्र ही ऐसा जीव है जो जिन्दा आदमी का माँस खाता है . तब मैं इसका माँस नोंच-२ कर खाने लगा और ये असहाय अवस्था में मुझे हटा न सकी और मुझसे बदला लेने की भावना मन में लिये लिये ही इसने प्राण त्याग दिए उस जन्म में मैंने जैसे इससे नोंच-नोंच कर खाया ये इस जन्म में मुझे इसी तरह कचोटती है यदि मैं अपना भाग्य संवारने के चक्कर में इससे विवाह न करता तो ये मुझे किसी और जन्म में पकडती, इसलिए मैं इसकी इन बातों का बुरा नहीं मानता हूँ......इसलिए हमें इस जन्म में ऐसे कर्म नहीं करने चाहिये कि कोई हमसे बदले की भावना लिये संसार से जाये और हमें किसी न किसी जन्म में पकड़े ।

Friday, July 29, 2011

कविता - खूबसूरत ये जहाँ


खूबसूरत ये जहाँ


-श्यामल सुमन

दिन कटे जब ठीक से तो है इनायत ये जहाँ
और गर्दिश के दिनों में बस क़यामत ये जहाँ

रंग चश्मे का है कैसा देखते हैं किस तरह
बात लेकिन सच यही कि है मुहब्बत ये जहाँ

रोटियाँ भी जब मयस्सर हो नहीं आवाम को
और रौनक कुछ घरों में तो अदावत ये जहाँ


रात दिन कुछ सरफिरे जो बाँटते हैं खौफ को
जब करोड़ों दिल अमन के
है सलामत ये जहाँ

क्या यहाँ पे खूबसूरत कौन अच्छे लोग हैं
चैन हो दिल में सुमन तो खूबसूरत ये जहाँ



मुक्तिका


मुक्तिका

......मुझे दे

संजीव 'सलिल'
*
ए मंझधार! अविरल किनारा मुझे दे.
कभी जो न डूबे सितारा मुझे दे..

नहीं चाहिए मुझको दुनिया की सत्ता.
करूँ मौज-मस्ती गुजारा मुझे दे..

जिसे पूछते सब, न चाहूँ मैं उसको.
रिश्ता जो जगने बिसारा मुझे दे..

खुशी-दौलतें सारी दुनिया ने चाहीं.
नहीं जो किसी को गवारा मुझे दे..

तिजोरी में जो, क्या मैं उसका करूँगा?
जिसे घर से तूने बुहारा मुझे दे..

ज़हर को भी अमृत समझकर पियूँगा.
नहीं और को दैव सारा मुझे दे..

रह मत 'सलिल' से कभी दूर पल भर.
रहमत के मालिक सहारा मुझे दे..

Thursday, July 28, 2011

लखीराम अग्रवाल होने का मतलब



छत्तीसगढ़ जैसे इलाके में भाजपा की जड़ें जमाने वाले नायक की याद

-संजय द्विवेदी

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लखीराम अग्रवाल को याद करना सही मायने में राजनीति की उस परंपरा का स्मरण है जो आज के समय में दुर्लभ हो गयी है। वे सही मायने में हमारे समय के एक ऐसे नायक हैं जिसने अपने मन, वाणी और कर्म से जिस विचारधारा का साथ किया , उसे ताजिंदगी निभाया। यह प्रतिबद्धता भी आज के युग में साधारण नहीं है।

लखीराम अग्रवाल ने छत्तीसगढ़ के एक छोटे से नगर खरसिया से जो यात्रा शुरू की वह उन्हें मप्र भाजपा के अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद तक ले गयी। वे राज्यसभा के दो बार सदस्य भी रहे। लेकिन ये बातें बहुत मायने नहीं रखतीं। मायने रखते हैं वे संदर्भ और उनकी जीवन शैली जो उन्होंने पार्टी का काम करते समय लोगों को सिखायी। मप्र और छत्तीसगढ़ की भारतीय जनता पार्टी के लिए उनका योगदान किसी से छिपा नहीं है। वे अंततः एक कार्यकर्ता थे और उनका दिल संगठन के लिए ही धड़कता था। भाजपा दिग्गज कुशाभाऊ ठाकरे से उनकी मुलाकात ने सही मायने में लखीराम अग्रवाल को पूरी तरह रूपांतरित कर दिया। वे संगठन को जीने लगे। खरसिया नगर पालिका के अध्यक्ष के रूप में प्रारंभ हुयी उनकी राजनीतिक यात्रा में अनेक ऐसे पड़ाव हैं जो प्रेरित करते हैं और प्रोत्साहित करते हैं। वे यह भी बताते हैं कि कैसे एक साधारण परिवार का व्यक्ति भी एक असाधारण शख्सियत बन सकता है। लखीराम अग्रवाल के हिस्से बड़ी राजनीतिक सफलताएं नहीं हैं, खरसिया से वे विधानसभा का चुनाव नहीं जीत सके। उनका इलाका कांग्रेस का एक ऐसा गढ़ है जहां आजतक भाजपा का कमल नहीं खिल सका। किंतु अपनी इस कमजोरी को उन्होंने अपनी शक्ति बना लिया। वे छत्तीसगढ़ में कमल खिलाने के प्रयासों में लग गए। आज पूरे राज्य में कार्यकर्ताओं का पूरा तंत्र उनकी प्रेरणा से ही काम कर रहा है। वे कार्यकर्ता निर्माण की प्रक्रिया को समझते थे। उनके निर्माण और उनके व्यवस्थापन की चिंता करते थे। संगठन की यह समझ ही उन्हें अपने समकालीनों के बीच उंचाई देती है।

असाधारण बनने का कथाः आप देखें तो लखीराम अग्रवाल के पास ऐसा कुछ नहीं था जिसके आधार पर वे महत्वपूर्ण बनने की यात्रा शुरू कर सकें। खरसिया एक ऐसा इलाका था, जहां भाजपा का कोई आधार नहीं है। एक छोटा नगर जहां की राजनीतिक अहमियत भी बहुत नहीं है। इसके साथ ही लखीराम जी किसी विषय के गंभीर जानकार या अध्येता भी नहीं थे। किंतु उनमें संगठन शास्त्र की गहरी समझ थी। अपने निरंतर प्रवास और श्रम से उन्होंने सारी बाधाओं को पार किया। जशपुर के कुमार साहब दिलीप सिंह जूदेव, कवर्धा के एक डाक्टर रमन सिंह से लेकर तपकरा के एक नौजवान आदिवासी नेता नंदकुमार साय से लेकर आज की पीढ़ी के राजेश मूणत जैसे लोगों को साथ लेने और खड़ा करने का माद्दा उनमें था। छत्तीसगढ़ के हर शहर और क्षेत्र में उन्होंने ऐसे लोगों को खड़ा किया जो आज पार्टी की कमान संभाले हुए हैं। उनके इस चयन में शायद कुछ लोगों के साथ अन्याय भी हुआ हो। किंतु संगठन की समझ रखने वाले जानते हैं कि जब आप पद पर होते हैं तो कुछ फैसले लेते हैं और वह फैसला किसी के पक्ष में और कुछ के खिलाफ भी होता है। वे पूरी जिंदगी शायद इसलिए कार्यकर्ताओं से घिरे रहे और सर्वाधिक आलोचनाओं के शिकार भी हुए। आप मानिए कि उन्होंने कभी इसकी परवाह नहीं की। आलोचनाओं से अविचल रहकर उन्होंने सिर्फ बेहतर परिणाम दिए। खरसिया के उस उपचुनाव को याद कीजिए जिसमें कुमार दिलीप सिंह जूदेव को मप्र के कद्दावर मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के खिलाफ मैदान में उतारा गया था। वह उपचुनाव हारकर भी भाजपा ने छत्तीसगढ़ क्षेत्र में जो आत्मविश्वास अर्जित किया, वह एक इतिहास है। इसके बाद भाजपा ने छत्तीसगढ़ में पीछे मुड़कर नहीं देखा।

आतंक के बीच सरकार के सपनेः छत्तीसगढ़ राज्य का गठन इस क्षेत्र के निवासियों का एक बड़ा सपना था। इसमें दिल्ली में भाजपा की सरकार बनना एक सुखद संयोग साबित हुआ। यह भी संयोग ही था कि दिल्ली में राज्यसभा के सदस्य के नाते ही नहीं, एक संगठनकर्ता के नाते लखीराम अग्रवाल अपनी एक साख पहचान बना चुके थे। उनके प्रभाव और क्षमताओं का पूरा दल लोहा मानने लगा था। राज्य गठन को लेकर उनकी पहल का भी एक खास असर था कि तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के लिए सहमत हो गए। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ का अपना भूगोल प्राप्त हो गया। राज्य में कांग्रेस विधायकों की संख्या के आधार पर अजीत जोगी राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बने। उनकी कार्यशैली से भाजपा का संगठन हिल गया। भाजपा के 12 विधायकों का दलबदल करवाकर जोगी ने भाजपा की कमर तोड़ दी। ऐसे में संगठन के मुखिया के नाते लखीराम अग्रवाल के संयम, धैर्य और रणनीति ने भाजपा को सत्ता में लाने के लिए आधार तैयार किया। सरकारी आतंक के बीच भाजपा की वापसी साधारण नहीं थी। किंतु लखीराम अग्रवाल, डा. रमन सिंह, दिलीप सिंह जूदेव, नंदकुमार साय, रमेश बैस, बलीराम कश्यप, बृजमोहन अग्रवाल, वीरेंद्र पाण्डेय, बनवारीलाल अग्रवाल,प्रेमप्रकाश पाण्डेय जैसे नेताओं की एकजुटता और सतत श्रम ने भाजपा को अपनी सरकार बनने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।यह विजय साधारण विजय नहीं थी। ऐसे कठिन समय में संगठन में प्राण फूंकने और उसे नया आत्मविश्वास देने के लिए लखीराम अग्रवाल और तत्कालीन संगठन मंत्री सौदान सिंह के योगदान के बिसराया नहीं जा सकता। यह वही समय था जब लोग राज्य में भाजपा के समाप्त होने की घोषणाएं कर रहे थे और भाजपा का मर्सिया पढ़ रहे थे। किंतु समय ने करवट ली और भाजपा ने डा. रमन सिंह के नेतृत्व में अपनी सरकार बनायी।

याद करना है जरूरीः लखीराम अग्रवाल सही मायने में राज्य भाजपा के अभिभावक होने के साथ छत्तीसगढ़ में एक नैतिक उपस्थिति भी थे। उनके पास जाकर किसी भी स्तर का कार्यकर्ता अपनी बात कह सकता था। वे परिवार के एक ऐसे मुखिया थे जिनके पास सबकी सुनने का धैर्य और सबको सुनाने का साहस था। वे अपने कद और परिवार की मुखिया की हैसियत से किसी को भी कोई आदेश दे सकने की स्थिति में थे। उनकी बात प्रायः टाली नहीं जाती थी। वे एक ऐसा कंधा थे जिसपर आप अपनी पीड़ाएं उड़ेल सकते थे। असहमतियों के बावजूद वे सबके साथ संवाद करने के लिए दरवाजा खुला रखते थे। रायपुर से दिल्ली तक उन्होंने जो रिश्ते बनाए उनमें कृत्रिमता और बनावट नहीं थी। वे हमेशा अपने जीवन और कर्म से केवल और केवल पार्टी की सोचते रहे। जीवन के अंतिम दिनों में उन पर पुत्रमोह जैसे आरोप चस्पा करने के प्रयास हुए जो बेहद बचकानी सोच ही दिखते हैं। उनके पुत्र अमर अग्रवाल ने अपने गृहनगर खरसिया और रायगढ़ को छोड़कर छत्तीसगढ़ के एक अलग शहर बिलासपुर को अपना कार्यक्षेत्र बनाया,युवा मोर्चा के कार्यकर्ता के नाते काम प्रारंभ किया और वहां कांग्रेस की परंपरागत सीट पर चुनाव जीतकर अपनी जगह बनाई।आज वे छत्तीसगढ़ के सक्षम मंत्रियों में गिने जाते हैं। उनकी क्षमताओं पर किसी को संदेह नहीं है।ऐसे कठिन समय में जब राजनीति में मर्यादाविहीन आचरण के चिन्ह आम हैं। हर तरह का पतन राजनीतिक क्षेत्र में दिख रहा है। लखीराम अग्रवाल जैसे नायक की याद हमें प्रेरित करती है और बताती है कि कैसे व्यापार में रहकर भी शुचिता बनाए रखी जा सकती है। गृहस्थ होकर भी किस तरह से समाज के काम पूरा समय देकर किए जा सकते हैं। लखीराम का अपराध शायद सिर्फ यही था कि वे एक व्यापारी परिवार में पैदा हुए। क्या सिर्फ इस नाते समाज के लिए किए गए उनके योगदान को नजरंदाज कर दिया जाना चाहिए ? क्या आप इसे साहस नहीं मानेंगें कि एक व्यापारी किस तरह मप्र के सबसे कद्दावर मुख्यमंत्री रहे अर्जुन सिंह के खिलाफ अपने क्षेत्र में व्यूह रचना तैयार करता है और जिसके परिणामों की चिंता नहीं करता? अजीत जोगी जैसे ताकतवर मुख्यमंत्री के सामने तनकर खड़ा होता है और अपने दल की सरकार की स्थापना के लिए पूरा जोर लगा देता है। आज जब परिवार जैसी पार्टी को, कंपनी की तरह चलाने की कोशिशें हो रही हैं क्या तब भी आपको लखीराम अग्रवाल की याद बहुत स्वाभाविक और मार्मिक नहीं लगती?

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प्रसंगः आज खरसिया में भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने लखीराम अग्रवाल की प्रतिमा का अनावरण किया है।

Wednesday, July 27, 2011

मैं चिराग हूँ (कविता)


मैं चिराग हूँ


डॉ.बशीर/Dr.S.Basheer

प्रबंधक राजभाषा/Manager (OL)

एचपीसीएल, चेन्‍नै/HPCL, Chennai

मैं बूंद हूँ सागर से टकराता हूँ

मैं लहर हूँ, किनारों को घबराता हूँ

मैं परिंदा हूँ बादलों को लटता हूँ

मैं बिंदु हूँ सिंधु से डरता नहीं

दुआ करो अय हवाओं और फि़ज़ाओं, सलामत रहें

हिम्‍मत तेरी मज़बूत रहें जि़गर मेरा लोहा बन

सदियों से संघर्ष करता मैं, जलता हूँ मैं

एक छोटा सा चिराग हूँ

मुझे बुझाने के लिए अभी भी

आंधियों की कोशिश जारी है ।

मैं सदियों से डालता हूँ ।

ग़ज़ल एक ... (कविता)


ग़ज़ल एक ...


डॉ.बशीर/Dr.S.Basheer

प्रबंधक राजभाषा/Manager (OL)

एचपीसीएल, चेन्‍नै/HPCL, Chennai

इश्‍क का इख्तियार

महबूबा का प्‍यार

जिगर का यार

माँ का दुलार

ग़ज़ल एक ...

सागर की लहर

प्रेमियों का तपती दुपहर श्रुंगार

दुल्‍हन का शिंगार

ग़ज़ल एक ...

तन-मन की बिजली

खिल खिलाती यौवन की कली

लुभाती रंग रंगों की होली

कसमसाती मादकता भरी मधु की प्‍याली

ग़ज़ल एक ...

क्रांति वीरों की झंकार

प्‍यासों की पुकार

शायरों का हुंकार

दुश्‍मनों पर प्रहार

ग़ज़ल एक ...

गालिब की दास्‍तान

इक़बाल का कर्मान

फैज़ का अरमान

मीर की शान

ग़ज़ल एक ...

जयशंकर प्रसाद की कामायनी

दिनकर की ऊर्वशी

पंत की पल्‍लवी

निराला की संध्‍या सुंदरी

Tuesday, July 26, 2011

कारगिल विजय दिवस का आयोजन








देशभक्ति की भावना जगाने की जरूरतः विजयवर्गीय






भोपाल 26 जुलाई। देशवासियों में राष्ट्र की सेवा के जज्बे की कमी नहीं है लेकिन मौजूदा माहौल में नकारात्मकता हावी हो गई है। इसने देशभक्ति की भावना को गौण कर दिया है। मीडिया ही इस माहौल को एक सकारत्मक दिशा दे सकता है। यह बात मप्र के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में आयोजित कारगिल विजय दिवस समारोह में कही। वे कार्यक्रम के मुख्य अतिथि की आसंदी से बोल रहे थे। इस अवसर पर श्री विजयवर्गीय ने देश भक्ति गीत के माध्यम से विद्यार्थियों से देश की रक्षा की अपील की ।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार एवं सांसद तरूण विजय ने कहा कि दिल्ली में बैठी सरकार को कारगिल विजय दिवस मानने की फुर्सत ही नहीं है। वह सिर्फ पैसे के पीछे भागती है। कांग्रेस शासन की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि देश ने आजादी के बाद जो जमीन खोई है, उसके लिए तत्कालीन केंद्र सरकारें जिम्मेदार है। सैनिकों की उपेक्षा से व्यथित तरूण विजय ने कहा कि देश का युवा आऊटसोर्सिंग द्वारा लाया जा रहे दूसरे देशों का काम करना पसंद कर रहा है, पर वह सेना में नहीं जाना चाहता। लोग सैनिकों के काम को पुण्य मानते हैं किंतु सैनिकों का सम्मान न तो सरकार कर रही है और न ही समाज। उन्होंने कहा कि कारगिल दिवस को गौरव-गाथा के रूप में याद किया जाना चाहिए न कि सैनिक सुविधा की माँग करते हुए उनके अभिभावकों की बेचारगी के रूप में। उन्होंने विद्यार्थियों को सेना और सैनिकों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने के लिए प्रेरित किया।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि कर्नल आजाद कृष्ण चतुर्वेदी ने अपने सेना के अनुभव के माध्यम से कारगिल युद्ध की संवेदनशीलता को महसूस कराने की कोशिश की। उन्होंने बताया कि मई के करीब कारगिल युद्ध को होना संयोग नहीं था, बल्कि यह पाकिस्तान की एक सोची-समझी रणनीति थी। लेकिन कारगिल युद्ध की हार के बाद पाकिस्तान यह समझ गया कि वह किसी भी हालात में भारत से नहीं जीत सकता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि ऐसा महसूस हो रहा है कि देशवासियों की राष्ट्रप्रेम की भावना में कमी आई है। उन्होंने कहा कि देश के नागरिकों को देश की रक्षा को बोध स्वयं में होना चाहिए, रक्षा करने का काम केवल सैनिकों का ही नहीं समझना चाहिए, यह हर नागरिक का कर्तव्य है।

कार्यक्रम का आरम्भ दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ । अतिथियों को पुष्प गुच्छ,प्रतीक चिन्ह एवं पुस्तकें देकर स्वागत किया गया। संचालन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी एवं आभार प्रबंधन विभाग के अध्यक्ष अमिताभ भटनागर ने व्यक्त किया। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा, विजयमनोहर तिवारी, रामभुवन सिंह कुशवाह, सुरेश शर्मा, अंजनी कुमार झा, पीएन साकल्ले, दीपक शर्मा, विकास बोंद्रिया, जीके छिब्बर, डा. श्रीकांत सिंह, डा. पवित्र श्रीवास्तव, पुष्पेंद्रपाल सिंह, पी.शशिकला, रजिस्ट्रार चंदर सोनाने , डा. अविनाश वाजपेयी, ,सौरभ मालवीय, डा. मोनिका वर्मा, लालबहादुर ओझा, डा. संजीव गुप्ता, डा. राखी तिवारी, अभिजीत वाजपेयी, मनीष माहेश्वरी सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थी मौजूद रहे।

विजयवर्गीय के सुरों पर झूमे विद्यार्थी






इस अवसर पर उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने विद्यार्थियों की मांग पर “कर चले हम फिदा जानोतन साथियों...अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों।” गीत गाकर माहौल को भावुक बना दिया। उनकी सुर-लहरियों पर उनके सुर में सुर मिलाकर विद्यार्थी भी गीत के बोलों पर झूम उठे। इससे पूरा माहौल सरस हो गया।







( संजय द्विवेदी)

Friday, July 22, 2011

हिंदुस्तान पेट्रोलियम कोयंबत्तूर क्षेत्रीय कार्यालय में हिन्दी कार्यशाला सुसंपन्न



कोयंबत्तूर रिटेल क्षेत्रीय कार्यालय में दो दिवसीय हिन्दी कार्यशाला का आयोजन जुलाई 21 और 22 , 2011 को क्षेत्रीय कार्यालय के सम्मेलन कक्ष में किया गया । केरल और तमिलनडू में स्थित हमारे कार्यालयों से कुल 18 कर्मचारियों ने हिन्दी कार्यशाला में भाग लिया था ।

कार्यशाला का शुभारंभ एच पी गीत के साथ हुआ । श्री जी केके वी उमाशंकरजी , वरिष्ठ क्षेत्रीय प्रबंन्धक महोदय ने कार्यशाला का उद्घाटन किया था । उद्घाटन करके उन्होंने बताया कि कार्यशाला का लक्ष्य कर्मचारियों को राजभाषा कार्यपर परिचय कराना और कार्यालय में राजभाषा कार्य करने केलिए उन्मुख कराना है । कोयंबत्तूर क्षेत्र में पिछले तीन वर्षों से कोयंबत्तूर टोलिक द्वारा उत्तम राजभाषा का कार्य की निष्पादन केलिए लगातार तीन बार पुरस्कार प्रदान किया गया है ।

राजभाषा कार्य परहमारे कार्पोरेशन को अखिल भारतीय स्तर पर एक ऐसा नाम है वह कोयंबत्तूर भी बनाये रखते हैं । हिन्दी पत्राचार , हिन्दी टिप्पणी लिखना , हिन्दी में बातचीत करना , कार्यालय प्रमुख द्वारा कोयंबत्तूर टोलिक बैठक में इरूगूर इन्स्टलेशन के कार्यालय प्रमुख के साथ भाग लेना अत्यंत सराहनीय बात है । कोयंबत्तूर के इरूगूर इन्स्टलेशन के हिन्दी समन्वयक को पिछले वर्ष दिसंबर में तिरुच्चिरप्पल्ली में आयोजित समन्वयकों के हिन्दी कार्यशाला के दौरान उत्तम राजभाषा समन्वयक के रूप में चयन किया था , श्री के एस बैजू , राजभाषा समन्वयक , इरूगूर कार्यालय , इसके लिए बधाई केलिए पात्र बने हैं । उसी प्रकार कोयंबत्तूर रिटेल क्षेत्रीय कार्यालय के श्री श्रीरामन एस ने अनेक नवोन्मेषी कार्य राजभाषा की प्रगति की दृष्टि से कार्यालय में लाने केलिए अत्यंत प्रयास किया है । उनके द्वारा आयोजित हिन्दी पाठ्यक्रम कक्ष में भाग लेकर कोयंबत्तूर रिटेल क्षेत्रीय कार्यालय के 7 कर्मचारियों ने इस बार प्रबोध परीक्षा में 70 प्रतिशत से अधिक अंक से परीक्षा पास होने पर वह दक्षिणांचल केलिए एक नया रिकार्ड भी बन गया है । एक कार्यालय से इतने स्टाफ सद्स्य एक ही साथ पाठ्यक्रम में भाग लेना , इतना अंक से पास होना अब तक संभव नहीं हुआ था । मैं इन दोनों समन्वयकों को हार्दिक बधाईयां देता हू । साथ ही कोचिन के क्षेत्रीय राजभाषा समन्वयक श्री रमेश प्रभु को और दक्षिणांचल के श्री बशीरजी को भी इस अवसर पर अभिनंदन देता हूं । आगे भी हमें लक्ष्य की ओर बढने केलिए अनेक कार्य राजभाषा की दृष्टी से करने का है । हमारे लक्ष्य प्राप्ति केलिए हम एक साथ हाथ मिलायेंगें और बढेंगें ।

हमारे मुख्य अतिथि के रूप में आए श्री सी स्वामिनाथनजी , वे कोयंबत्तूर के सबसे पुराने हिन्दी प्रचारक एवं प्रशिक्षक रहें । उनके मार्गदर्शन से कोयंबत्तूर में हमें राजभाषा का कार्य करने का मदद मिलता रहता है । श्री बशीरजी , प्रबंधक राजभाषा – दक्षिणांचल ने अपने अनुग्रह भाषण में कोयंबत्तूर को बहुत सराहना दी । राजभाषा कार्य को करना हरेक स्टाफ सदस्यों का दायित्व मानने पर उन्होंने जोर दिया ।

कार्यशाला का शुभारंभ में सभा का स्वागत श्री रमेश संपत्तजी , प्रबंधक – वित्त ,कोयंबत्तूर रिटेल क्षेत्रीय कार्यालय ने किया था और कृतज्ञता को श्रीरामन एस ने अदा किया ।

हिन्दी कार्यशाला में कुल 6 सत्र थे , इसके अलावा प्रतिभागियों केलिए हिन्दी कुशलता का प्रदर्शन करने वाले 5 परीक्षाओं का भी आयोजन किया था । उद्घाटन के उपरांत कार्यशाला में पहला सत्र का संचालन श्री एस स्वामीनाथन जी ने किया था । उन्होंने कार्यालयीन भाषा का प्रयोग , हिन्दी शब्दों का प्रयोग , पत्राचार एवं टिप्पणी लेखन पर सदस्यों को सिखाया । दूसरा सत्र डा एस बशीर जी का था । उन्होंने व्यावहारिक रूप में कार्यालयीन भाषा को राजभाषा हिन्दी में परिवर्तित करने केलिए सिखाया । दक्षिणांचल की राजभाषा की वर्तमान स्थिति को सुधारने केलिए उपाय भी दिया । हिन्दी भाषा का महत्व एवं स्थान पर श्रीमती किरण श्रीनाथन , वे कोयंबत्तूर के एयरफोर्स स्कूल के अद्यपिका हैं , उनके द्वारा राजभाषा एवं राष्ट्रभाषा पर खुल्लंखुला चर्चा की गई ।

कार्यशाला के दूसरा दिवस राममोहन रेड्डीजी , शाखा प्रबंधक कोयंबत्तूर शाखा , ऩ्यू इन्डिया इन्शोरेंन्स एवं भूतपूर्व सचिव कोयंबत्तूर टोलिक ने राजभाषा नियम और अधिनियम पर कक्षा का संचालन किया था । श्री रमेश प्रभु मुख्य राजभाषा अनुवादक , कोचिन नेहिन्दी में कंप्यूटर की अध्यतन सुविधाओं पर सदस्यों को जानकारी दी । युनिकोड का महत्व एवं राजभाषा का प्रयोग करने की सुविधाओं पर सदस्यों को प्रशिक्षित किया था । उन्होंने 5 परीक्षाओं का भी आयोजन किया था । उन परीक्षाओं के माध्यम से स्टाफ सदस्यों को हिन्दी लिखना , पढना , सुनना , पत्र तैयार करना , टिप्पणी लिखना , अनुवाद करना , बोलचाल करना इत्यादि पर आत्म विश्वास एवं उत्साह हिन्दी के प्रति और भी बढ गया था ।

अंतिम सत्र के रूप में डा वी पद्मा , हिन्दुस्तान कालेज के हिन्दी प्रोफेसर ने राजभाषा का कार्य कार्यालय में कैसे करें और क्या करें पर सत्र का संचालन किया था । वे भूतपूर्व हिन्दी प्रभारी , कोर्पोरेशन बेंक , कोयंबत्तूर में कार्यरत थी ।

समापन सभा का स्वागत श्री रमेश प्रभु ने किया । सभा के मंच पर उपविष्ठ वरिष्ठ क्षेत्रीय प्रंबधक महोदय ने प्रतिभागियों से फीडबैक ली । श्री एन एस नायरजी , वरिष्ठ प्रबंधक , इरूगूर इन्स्टलेशन ने खुद दो दिवसीय कार्यशाला में सक्रिय रूप से भाग लेकर अपनी प्रतिभागिता का अनुभव प्रकट किया । प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र का वितरण भी किया ।

मंच पर विराजित श्रीमती डां वी पद्मा ने हिन्दुस्तान पेट्रोलियम की कार्य प्रणाली एवं राजभाषा कार्य पर किये गये प्रगति पर अत्यंत प्रशंशा प्रकट की । श्री रजत चतुर्वेदी , बिक्री अधिकारी ने सभा को कृतज्ञता प्रकट किया ।

(श्री एस श्रीरामन, राजभाषा समन्वयक, कोयंबत्तूर रिटेल क्षेत्रीय कार्यालय)

Tuesday, July 19, 2011

बेकल है आज दुनिया

बेकल है आज दुनिया


- श्यामल सुमन



कैसी अजीब दुनिया इन्सान के लिए
महफूज अब मुकम्मल हैवान के लिए

कातिल जो बेगुनाह सा जीते हैं शहर में
इन्सान कौन चुनता सम्मान के लिए

मिलते हैं लोग जितने चेहरे पे शिकन है
आँखें तरस गयीं हैं मुस्कान के लिए

पानी ख़तम हुआ है लोगों की आँख का
बेकल है आज दुनिया ईमान के लिए

किस आईने से देखूँ हालात आज के
कुछ तो सुमन से कह दो संधान के लिए


Saturday, July 16, 2011

डॉ. बशीर की दो कविताएँ



एहसास




ये आंसू नहीं शबनम है
इन्‍हें गुलाब के दिल में
छिपाकर रखना ।
ये आंसू नहीं मोती हैं


सीप के सीने में
बसा कर रखना ।

ये पानी नहीं खून है
दिल को ज़िंदा रखने
इसकी हिफ़ाज़त करना ।
ये अल्‍फाज़ नहीं, गज़ल है
ये मेरे दिल का एहसास हैं
तुम पढ़ों तो मेरा दर्द समझोगी
नहीं तो मज़ाक कर डालोगी ।


***



परिवर्तन





वक्‍त सब कुछ बदल सकता है
मजहब व जबान को कभी नहीं
जमीं नहीं बदलती
आसमां कभी नहीं बदलते
सागर नहीं, प्रकृति का धर्म कभी नहीं बदलता
रिश्‍ते-नाते, लोगों के प्‍यार और यार
आखिर नीयत भी बदलते हैं ।

***



डॉ.बशीर/Dr.S.Basheer


प्रबंधक (राजभाषा)/Manager (OL)


हिन्‍दुस्‍तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन/HPCL


चेन्‍नै/Chennai