नज़र बे-जुबाँ और जुबाँ बे-नज़र है
इशारे समझने का अपना हुनर है
सितारों के आगे अलग भी है दुनिया
नज़र तो उठाओ उसी की कसर है
मुहब्बत की राहों में गिरते, सम्भलते
ये जाना कि प्रेमी पे कैसा कहर है
जो मंज़िल पे पहुँचे दिखी और मंज़िल।
ये जीवन तो लगता सिफर का सफ़र है।।
रहम की वो बातें सुनाते हमेशा
दिखे आचरण में ज़हर ही ज़हर है
कई रंग फूलों के संग थे चमन में
ये कैसे बना हादसों का शहर है
है शब्दों की माला पिरोने की कोशिश
सुमन ये क्या जाने कि कैसा असर है
अस्पताल बीमार
पैरों की तकलीफ से वो चलती बेहाल।
किसी ने पीछे से कहा क्या मतवाली चाल।।
बी०पी०एल० की बात कम आई०पी०एल० का शोर।
रोटी को पैसा नहीं रन से पैसा जोड़।।
दवा नहीं कोई मिले डाक्टर हुए फरार।
अब बीमार जाए कहाँ अस्पताल बीमार।।
भूल गया मैं भूल से बहुत बड़ी है भूल।
जो विवेक पढ़कर मिला वही दुखों का मूल।।
गला काटकर प्रेम से बन जाते हैं मित्र।
मूल्य गला है बर्फ सा यही जगत का चित्र।।
बातों बातों में बने तब बनती है बात।
फँसे कलह के चक्र में दिखलाये औकात।।
सोने की चाहत जिसे वह सोने से दूर।
मधुकर सुमन के पास तो होगा मिलन जरूर।।
माँ
मेरे गीतों में तू मेरे ख्वाबों में तू,
इक हकीकत भी हो और किताबों में तू।
तू ही तू है मेरी जिन्दगी।
क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी।।
तू न होती तो फिर मेरी दुनिया कहाँ?
तेरे होने से मैंने ये देखा जहाँ।
कष्ट लाखों सहे तुमने मेरे लिए,
और सिखाया कला जी सकूँ मैं यहाँ।
प्यार की झिरकियाँ और कभी दिल्लगी।
क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी।।
तेरी ममता मिली मैं जिया छाँव में।
वही ममता बिलखती अभी गाँव में।
काटकर के कलेजा वो माँ का गिरा,
आह निकली उधर, क्या लगी पाँव में?
तेरी गहराइयों में मिली सादगी।
क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी।।
गोद तेरी मिले है ये चाहत मेरी।
दूर तुमसे हूँ शायद ये किस्मत मेरी।
है सुमन का नमन माँ हृदय से तुझे,
सदा सुमिरूँ तुझे हो ये आदत मेरी।
बढ़े अच्छाईयाँ दूर हो गन्दगी।
क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी।।
आईना से बहाना क्यूँ है
खुशी से दूर सभी फिर ये ठिकाना क्यूँ है?
अमन जो लूटते उसका ही जमाना क्यूँ है?
सभी को रास्ता जो सच का दिखाते रहते
रू-ब-रू हो ना आईना से बहाना क्यूँ है?
धुल गए मैल सभी दिल के अश्क बहते ही
हजारों लोगों को नित गंगा नहाना क्यूँ है?
इस कदर खोये हैं अपने में कौन सुनता है?
कहीं पे चीख तो कहीं पे तराना क्यूँ है?
बुराई कितनी सुमन में कभी न गौर किया
ऊँगलियाँ उठतीं हैं दूजे पे निशाना क्यूँ है?