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Wednesday, October 25, 2017

बाल कविता

बाल कविता .













डॉ.प्रमोद सोनवानी पुष्प
" भौंरा "
  --------

गुन-गुन करता आता भौंरा ,
मीठी तान सुनाता भौंरा ।
फूलों के सम्मुख जा-जाकर,
अपना रंग जमाता भौंरा ।।

फूलों का रस पी-पीकर ।
मन ही मन मुस्काता भौंरा ।।

पराग चुसनें में जो माहिर ।
लोभी वह कहलाता भौंरा ।।



" अजब सलोना गाँव "
   ---------------------------

अजब सलोना,सबसे प्यारा,
गाँव हमारा भाई ।
मस्त मगन हो पक्षी नभ में ,
उड़ रहे हैं भाई ।।

हरी घास है मखमल जैसी,
चहुँ दिशा में हरियाली ।
चहक रही है डाल-डाल पर,
कोयल काली-काली ।।

               

            " श्री फूलेंद्र साहित्य निकेतन "
               तमनार/पड़ीगाँव-रायगढ़(छ.ग.)
ई-मेल:-Pramodpushp10@gmail. com

Tuesday, October 24, 2017

बाल कविताएँ ...... - डॉ.प्रमोद सोनवानी " पुष्प "

बाल कविताएँ ......




 - डॉ.प्रमोद सोनवानी " पुष्प "

" सूरज भैया "
-------------------

नित्य सवेरे उठकर कहती,
राजू को उसकी मैया ।
पूरब में देखो तो राजू ,
आये हैं सूरज भैया ।।1।।

लो सूरज की किरण परी भी ,
चहुं दिशा को हरषाई ।
पानी में देखो सूरज की ,
चमक रही है परछाई ।।2।।


" प्यारे वृक्ष "
  ---------------

प्यारे-प्यारे वृक्ष हमारे ,
सबके मन को भाते हैं ।
शुद्ध हवा देकर ये हमको,
जग की सेवा करते हैं ।।1।।

पास बुला बादल भैया को,
वर्षा खूब कराते हैं ।
शान बढ़ाते हैं धरती की ,
शीतल छाया देते हैं ।।2।।


" मेरा परिवार "
  -----------------

मेरा छोटा सा परिवार ,
इससे हम करते हैं प्यार ।
मम्मी-पाप, सोनू -भैया ,
करते मुझसे प्यार दुलार ।।1।।

मम्मी-पापा से कहता है ,
मेरा प्यारा भैया सोनू ।
हरपल मोनू मुझे सताती ,
करो फैसला तो मैं जानूँ।।2।।

नहीं तो भाई कह देता हूँ ,
खट्टी कह दूँगा इस बार ।
मेरा छोटा सा परिवार ,
इससे हम करते हैं प्यार ।।3।।

            
 डॉ.प्रमोद सोनवानी " पुष्प "
             संपादक- " वनाँचल सृजन "

             "श्री फूलेंद्र साहित्य निकेतन"
             तमनार/पड़ीगाँव-रायगढ़(छ.ग.)
              भारत , पिन:- 496107
ई-मेल :- Pramodpushp10@gmail. com

बाल कविता .. "चलो मंगल ग्रह में "

बाल  कविता ..

"चलो मंगल ग्रह में "
   

 -डॉ.प्रमोद सोनवानी पुष्प

हम भी भेज दिये हैं बच्चों ,
मंगल ग्रह को यह संदेश ।
सकल जहाँ से कम नहीं है,
अपना प्यारा भारत देश ।।1।।


मंगल ग्रह के राजा को हम,
देश का हाल सुनायेंगे ।
देश कैसे बढ़ेगा आगे ,
सबक यही सीख आयेंगे ।।2।।


मंगल वाले दुनियाँ का सच,
चहुँ ओर बगरायेंगे ।
चलो-चलें जी मंगल ग्रह में,
हम सबको समझायेंगे ।।3।।


यहाँ बढ़ रही है जनसंख्या,
चलो वहाँ सब जायेंगे ।
मंगल ग्रह की नगरी में हम,
गीत ख़ुशी के गायेंगे ।।4।।

            
             संपादक- " वनाँचल सृजन "
           " श्री फूलेंद्र साहित्य निकेतन "
             तमनार,पड़ीगाँव -रायगढ़(छ.ग.)
               भारत, पिन- 496107
ई-मेल:-Pramodpushp10@gmail. com

Tuesday, March 19, 2013

बाल कविता: जल्दी आना ...


 

बाल कविता:
जल्दी आना ...


संजीव 'सलिल'
*
मैं घर में सब बाहर जाते,
लेकिन जल्दी आना… 
*
भैया! शाला में पढ़-लिखना 
करना नहीं बहाना. 
सीखो नई कहानी जब भी 
आकर मुझे सुनाना. 
*
दीदी! दे दे पेन-पेन्सिल,
कॉपी वचन निभाना.
सिखला नच्चू , सीखूँगी मैं-
तुझ जैसा है ठाना.
*
पापा! अपनी बाँहों में ले,
झूला तनिक झुलाना. 
चुम्मी लूँगी खुश हो, हँसकर-
कंधे बिठा घुमाना. 
माँ! तेरी गोदी आये बिन,
मुझे न पीना-खाना. 
कैयां में लेगा दे लोरी-
निन्नी आज कराना. 
*
दादी-दादा हम-तुम साथी,
खेल करेंगे नाना. 
नटखट हूँ मैं, देख शरारत-
मंद-मंद मुस्काना. 
***

Sunday, November 18, 2012

शिशु गीत सलिला : 1


शिशु गीत सलिला : 1 

संजीव 'सलिल'
*
1.श्री गणेश



श्री गणेश की बोलो जय,
पाठ पढ़ो होकर निर्भय।
अगर सफलता पाना है-
काम करो होकर तन्मय।।
*
2. सरस्वती


माँ सरस्वती देतीं ज्ञान,
ललित कलाओं की हैं खान।
जो जमकर अभ्यास करे-
वही सफल हो, पा वरदान।।  
*
3. भगवान 


सुन्दर लगते हैं भगवान,
सब करते उनका गुणगान।
जो करता जी भर मेहनत-
उसको देते हैं वरदान।।
*
4. देवी 


देवी माँ जैसी लगती,
काम न लेकिन कुछ करती।
भोग लगा हम खा जाते-
कभी नहीं गुस्सा करती।। 
*
5. धरती माता 


धरती सबकी माता है,
सबका इससे नाता है।
जगकर सुबह प्रणाम करो-
फिर उठ बाकी काम करो।। 
*
6. भारत माता 


सजा शीश पर मुकुट हिमालय,
नदियाँ जिसकी करधन।
सागर चरण पखारे निश-दिन-
भारत माता पावन। 
*
7. हिंदी माता 

हिंदी भाषा माता है,
इससे सबका नाता है।
सरल, सहज मन भाती है-
जो पढ़ता मुस्काता है।।
*
8. गौ माता 


देती दूध हमें गौ माता,
घास-फूस खाती है।
बछड़े बैल बनें हल खीचें
खेती हो पाती है।
गोबर से कीड़े मरते हैं,
मूत्र रोग हरता है,
अंग-अंग उपयोगी
आता काम नहीं फिकता है।
गौ माता को कर प्रणाम 
सुख पाता है इंसान। 
बन गोपाल चराते थे गौ 
धरती पर भगवान।।
*
9. माँ -1 


माँ ममता की मूरत है,
देवी जैसी सूरत है।
थपकी देती, गाती है,
हँसकर गले लगाती है।
लोरी रोज सुनाती है,
सबसे ज्यादा भाती है।।
*
10. माँ -2 


माँ हम सबको प्यार करे,
सब पर जान निसार करे।
माँ बिन घर सूना लगता-
हर पल सबका ध्यान धरे।।
*

Wednesday, November 14, 2012

बाल कविता - चाचा नेहरू की याद में..


बाल मानस
चाचा नेहरू की याद में..
                                                   Mohammed Sadiq -UK
आज 14 नवंबर
बच्चों का दिन है यादगार
कहते है इसे बाल दिवस
बच्चे -  बडे मनाते है उत्साह से
सांस्कृतिक कार्यक्रमों का होता उत्सव
चाचा नेहरू को बडा प्यार था
बच्चों से और गुलाब से
सब नन्हें मुन्ने बच्चों से करें प्यार
प्रकृति ने बच्चों को दिया वरदान प्यार
विश्व जनित, प्यार बच्चों का उपहार
सब अपनाओं मेरे यार .
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        

Thursday, March 22, 2012

कविता - संस्कृत अमृत






 
  
 - सी.  विजयेंद्र बाबु


है एक अमृत हमारा संस्कृत


किसी भी राज्य की भाषा नहीं यह

समस्त  भारत की भाषा है यह

कौटिल्य ने लिखा अर्थशास्त्र


सरल संस्कृत भाषा में

महर्षी वेदव्यास ने लिखा

महाभारत संस्कृत में

महर्षी वाल्मीकी ने लिखा

रामायण संस्कृत में ...

अर्थशास्त्र,  महाभारत,  रामायण ही नहीं

समस्त वेद पुराण  हैं संस्कृत में

इस पूरे ब्रह्मांड की गाथा ही 

लिखा हुआ है संस्कृत में

इसलिए संस्कृत है अमृत

पूरे देश भर में ।







Tuesday, November 2, 2010

बाल मानस

एम.डी. सादिक, चेन्नई की दो कविताएँ


आप कर सकते हैं... लेकिन

आप बेच सकते हैं
कुछ भी
आप खो सकते हैं
कुछ भी
आप कर सकते हैं
कुछ भी
लेकिन खोना नहीं
माँ, मातृभाषा और मातृभूमि को ।

योग्यता

डॉक्टर के लिए एमबीबीएस
वकील के लिए एलएलबी
कलेक्टर-आईएएस
लेकिन एक राजनेता बनने के लिए ?

Friday, July 24, 2009

बाल दोहे





पेंग्विन सबकी मीत है


- आचार्य संजीव 'सलिल'


बर्फ बीच पेंग्विन बसी, नाचे फैला पंख ।
करे हर्ष-ध्वनि इस तरह, मानो गूँजे शंख ।।


लंबी एक कतार में, खड़ी पढ़ाती पाठ ।
अनुशासन में जो रहे, होते उसके ठाठ ।।


श्वेत-श्याम बाँकी छटा, सबका मन ले मोह ।
शांति इन्हें प्रिय, कभी भी, करें न किंचित क्रोध ।।


यह पानी में कूदकर, करने लगी किलोल ।
वह जल में डुबकी लगा, नाप रही भू-गोल ।।


हिम शिखरों से कूदकर, मौज कर रही एक ।
दूजी सबसे कह रही, खोना नहीं विवेक ।।


आँखें मूँदे यह अचल, जैसे ज्ञानी संत ।
बिन बोले ही बोलती, नहीं द्वेष में तंत ।।


माँ बच्चे को चोंच में, खिला रही आहार ।
हमने भी माँ से 'सलिल', पाया केवल प्यार ।।


पेंग्विन सबकी मीत है, गाओ इसके गीत ।
हिल-मिलकर रहना सदा, 'सलिल' सिखाती रीत ।।


********

Sunday, July 12, 2009

बाल मानस

बाल गीत


- संजीव 'सलिल'


रुन-झुन करती आयी पारुल.


सब बच्चों को भायी पारुल.


बादल गरजे, तनिक न सहमी.


बरखा लख मुस्कायी पारुल.


चम-चम बिजली दूर गिरी तो,


उछल-कूद हर्षायी पारुल.


गिरी-उठी, पानी में भीगी.


सखियों सहित नहायी पारुल.


मैया ने जब डांट दिया तो-


मचल-रूठ-गुस्सायी पारुल.


छप-छप खेले, ता-ता थैया.


मेंढक के संग धायी पारुल.


'सलिल' धार से भर-भर अंजुरी.


भिगा-भीग मस्तायी पारुल.