- आचार्य संजीव सलिल, जबलपुर ।
जानता सच और जो सच पर अड़ा है.
मानिए सच वह हकीकत में बड़ा है.
प्राण! की बाहों का जिसको है सहारा
सदा जीता जंग, जब-जब भी लड़ा है.
मन समंदर कौन-कब है नाप पाया?
कौन जाने विष-अमिय कितना पड़ा है?
नहीं जग के काम आया ज्ञान-गुण तो
व्यर्थ जैसे धन ज़मीं-नीचे गडा है.
देव-दानव हमीं में हैं 'सलिल' बसते
तम-उजाला साथ ही पाया खडा है.
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