Friday, March 20, 2009

तुलसी शशि


तुलसी शशि

- वी.डी. विश्वकर्मा, रांची (झारखंड)

-कुमुद कलाधर तुलसी शशि, तुम्हें प्रणाम ।

तेज पुंज, प्रखर प्रकाश, कला कौशल का कर विन्यास,
जग को जिसने प्रदान किया अपना अमर अभ्यास ।

प्रकृति के धानी आंचल से प्रकृत भए तुलसी कवि महान,
अपनी सूक्ष्म सुगम सरल सुबुद्धि में विदित हुए सकल जहान ।

खिल पड़े तड़ाग में कीचड़-जल बीच कुमुतिनी ज्यों,
तू प्रकाश-पुंज बन प्रकट हुए अखिल विश्व में त्यों ।

तम हर प्रकाश दिया मानस में हमारे लिए,
भारत के मान मस्तक को ऊँचा किया कर में पर-कांड लिए ।

विष्णु के अवतार राम, लक्ष्मी के रूप सिय को मानस पियो दियो,
मानव रूप में चित्रण कर जीवन आदर्श का हमें सम्यक ज्ञान दिया ।

मानस के मंदिर में बसाया अनुपम राम सिय को,
प्रेरणा के पंख लगाए, नहलाए जन-जन के हिय को ।

नहीं केवल व्याख्या किया, जग को दिव्य दृष्टि का नया अनुदान दिया,
पुष्पक विमान के उदाहण से मानव को आकाशीय दृष्टिकोण दिया ।

कृषि मुनि के योग बल-प्रदर्शन का दर्शन विज्ञान उसको मिला,
सकल जग को आज टीवी कंप्युटर का विशेष ज्ञान मिला ।

सुंदर प्रकृति चित्रण के यथोचित वर्णन का क्या और ऐसा वर्णन हो सकता है,
इसकी अद्भुत लीला एवं संवेदनशीलता मन को सरोबोर ही कर देता है ।

नारी के हृदय पारखी सौम्य सुशीला सीता का आदर्श जग को,
जननी के अस्तत्व को स्थायित्व आदर्श तूने प्रदान किया ।

प्रेम, भक्ति भावों, अनुरागों से भरा पड़ा यह रामचरित मानस है,
अनुप्राणित हमें कर रहा, शशि तुलसी का यह अथक चिर सफल प्रयास है ।

पवित्र मानस के रचयिता राम सिय के अनन्य प्रेमी भक्त महान,
कुल कुमुद कलाधर तुलसी शशि करता हूँ मैं तुम्हें प्रणाम ।


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