आकांक्षा यादव की तीन कविताएँ
मैं अजन्मी
मैं अजन्मी
हूँ अंश तुम्हारा
फिर क्यों गैर बनाते हो
है मेरा क्या दोष
जो ईश्वर की मर्जी झुठलाते हो
मै माँस-मज्जा का पिंड नहीं
दुर्गा लक्ष्मी और भवानी हूँ
भावों के पुंज से रची
नित्य रचती सृजन कहानी हूँ
लड़की होना किसी पाप की
निशानी तो नहीं
फिर
मैं तो अभी अजन्मी हूँ
मत सहना मेरे लिए क्लेश
मत सहेजना मेरे लिए दहेज
मैं दिखा दूँगी
कि लड़कों से कमतर नहीं
माद्दा रखती हूँ
श्मशान घाट में भी अग्नि देने का
बस विनती मेरी है
मुझे दुनिया में आने तो दो।
21वीं सदी की बेटी
जवानी की दहलीज पर
कदम रख चुकी बेटी को
माँ ने सिखाये उसके कर्तव्य
ठीक वैसे ही
जैसे सिखाया था उनकी माँ ने
पर उन्हें क्या पता
ये इक्कीसवीं सदी की बेटी है
जो कर्तव्यों की गठरी ढोते-ढोते
अपने आँसुओं को
चुपचाप पीना नहीं जानती है
वह उतनी ही सचेत है
अपने अधिकारों को लेकर
जानती है
स्वयं अपनी राह बनाना
और उस पर चलने के
मानदंड निर्धारित करना।
सिमटता आदमी
सिमट रहा है आदमी
हर रोज अपने में
भूल जाता है भावनाओं की कद्र
हर नयी सुविधा और तकनीक
घर में सजाने के चक्कर में
देखता है दुनिया को
टी. वी. चैनल की निगाहों से
महसूस करता है फूलों की खुशबू
कागजी फूलों में
पर नहीं देखता
पास-पड़ोस का समाज
कैद कर दिया है
बेटे को भी
चहरदीवारियों में
भागने लगा है समाज से
चैंक उठता है
कॉलबेल की हर आवाज पर
मानो
खड़ी हो गयी हो
कोई अवांछित वस्तु
दरवाजे पर आकर।
आकांक्षा यादव,
प्रवक्ता, राजकीय बालिका इंटर कॉलेज
नरवल, कानपुर-209401
4 comments:
सुंदर अभिव्यक्ति । बधाई । - श्रीविराज
आपने सचाई कह दी है । आज लड़की पैदा होने से पहले ही उसकी निर्मम हत्या कर दी जा रही है । आजन्मी की विनती हृदय को छू जाती है । अन्य दोनों कविताएँ भी पसंद आईं । आपकी लेखनी से ऐसी कई कविताएँ सृजित हो ।
तीनों ही कवितायेँ प्रासंगिक हैं.
आकांक्षा यादव जी को बहुत बधाई.
डा. सी. जय शंकर बाबु को भी बधाई, अच्छी कविताओं के प्रकाशन के लिए.
-सुधीर सक्सेना 'सुधि'
sudhir.sudhi8@gmail.com
वाकई आकांक्षा यादव जी की कविता पढ़कर आनंद आ गया. बड़ी खूबसूरती से आप विषय और शब्दों का चयन करती हैं.
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