मकड़ी के जाले
- सुधीर सक्सेना 'सुधि', जयपुर ।
इस कमरे की
खिड़कियाँ खोल दो ।
न जाने कब-से
खिड़की खुलने को
मचल रही है ।
कमरे में जो
उदासी छाई है,
उसे तुम अपनी
मीठी मुस्कान से
भर दो ।
मकड़ी के जाले
साफ़ करने से पहले
ज़रा गौर-से
उनकी बुनावट देख लो ।
क्योंकि बिलकुल
ऐसे ही
खूबसूरत भविष्य को
गढ़ना है तुम्हें ।
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मकड़ी के जाले
साफ़ करने से पहले
ज़रा गौर-से
उनकी बुनावट देख लो ।
क्योंकि बिलकुल
ऐसे ही
खूबसूरत भविष्य को
गढ़ना है
तुम्हें ।
इस सुंदर अभिव्यक्ति को मैं कभी भूल नहीं सकती, मेरी बधाइयाँ ।
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