Saturday, March 6, 2010

कविता

पति - पत्नी
- कवि कुलवंत सिंह
अहा ! मन में बिखरी खुशियाँ,
अहा ! दिल में खिलती कलियाँ .
आज यौवना का परिणय है,
अपने सपनों में तन्मय है .

लेकर भाव पूर्ण समर्पण,
करना है यह तन मन अर्पण .
पल्लव मन गुंजारित हर्षित,
लज्जा नारी सुलभ समर्पित .

मृदु-क्रीड़ा, आलिंगन, चुंबन,
रोम रोम में भरते कंपन .
अधीर हृदय की प्रणय पुकार,
उष्ण स्पर्श की मधु झंकार .

पुष्प सुवासित महका जीवन,
सात रंग से बहका जीवन .
किलकारी से खिला संसार,
खुशियों का न पारावार .

जग जीवन ने डाला भार,
कर्तव्यों का बोझ अपार .
मीत की मन में प्रीत अथाह,
देखे लेकिन कैसे राह .

अब शिथिल हुआ है बाहुपाश,
भटका मन है बृहत आकाश .

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मन में कोंपल फूट रही हैं,
सिंधु तरंगे उमड़ रही हैं .
माही को पाने की चाह,
बंधन पावन शुभ्र विवाह .

उन्माद अतुल रूप की राह,
काम तरंगित रुधिर प्रवाह .
भाव भंगिमा अंग उभार,
मोहित करतीं हृदय अपार .

सुरभि सांस में अधर विनोद,
रूप आलिंगन मदिर प्रमोद .
तन मन पर कर पति अधिकार,
आत्मिक सुख पौरुष संसार .

निसर्ग मिलन प्रकृति उपहार,
जीवन नन्हा हुआ साकार .
जग जीवन ने डाला भार,
कर्तव्यों का बोझ अपार .

भूल गया वह बाग बहार,
पाने को सारा संसार .
जग में हो उसका उत्थान,
सभी करें उसका सम्मान .

अब शिथिल हुआ है बाहुपाश,
भटका मन है बृहत आकाश .

1 comment:

dr s. basheer said...

pati patni ke anmol risto ko aapneroomaaniyat tareeke se bemisaal adaa kopesh kiyaahai subh kaamanaaye