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Monday, July 20, 2020

सीता (एक महाकाव्य) अंग्रेज़ी मूल कवि - डॉ. नंदिनी साहू, हिंदी अनुवादक - दिनेश कुमार माली

सीता महाकाव्य का धारावाहिक प्रकाशन
(डॉ. नंदिनी साहू जी कृत महाकाव्य सीता का हिंदी अनुवाद श्री दिनेश कुमार माली जी ने किया है ।  इस अनूदित महाकाव्य को युग मानस में धारावाहिक प्रकाशन दि.18 जुलाई, 2020 से किया जा रहा है ।  25 सर्गों के इस महाकाव्य की प्रस्तावना और प्रथम सर्ग के प्रकाशन के बाद इसी क्रम में आज द्वितीय सर्ग का प्रकाशन किया गया है ।  आशा है, 'युग मानस' के सुधी पाठक वर्ग इस महाकाव्य पर अपनी आत्मीय प्रतिक्रिया देने की कृपा अवश्य करेंगे । - डॉ. सी. जय शंकर बाबु)



सीता (महाकाव्य)


द्वितीय सर्ग

डॉ. नंदिनी साहू





जनक-नंदिनी-जानकी- मेरा नाम सीता
मैं इकलौती पुत्री, राजा जनक मेरे पिता  
यज्ञ-पूजिता पावन धरती मेरी माता ।

पूरी तरह निर्विवादित प्रिया
पक्के इरादों वाली संतोष हिया  
भगवान राम की सुंदर भार्या

पितृसत्तात्मक समाज की प्रचलित धारा
बनी “सीताय चरितम् महत:”- का मुहावरा
और मेरे सिर का आकर्षक जेवर ।


उर्मिला, मांडवी और श्रुतिकीर्ति-मेरी तीन बहन
जिनका हुआ पाणिग्रहण सम्पन्न
राम के भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ।


क्या मैं इसे 'बहिनापा' कहूँया कुछ और कथन ?
उनकी नियति भी मेरे जितनी जटिल,लिए अधूरापन  
अनेक प्रभावशाली महिलाओं से हुए मेरे कथोपकथन :

ऋषि अत्रि की पत्नी अनसूया,
प्रसिद्ध गार्गी, मैत्रेयी,
कात्यायनी, अरुंधति, लोपामुद्रा, अहल्या ।

 फिर असुर और वानर रानी,
 मंदोदरी और तारा
 इन महिलाओं के दुनिया की कहानी ।

उन नारियों का बंधन
उनके अविश्वसनीय संस्मरण  
उनकी चमत्कारी कहानी-किस्सों के निष्कर्षण।

मेरी कहानी का आधार है अनुभव
शोध कर सकते हो तुम जब-तब
या दे सकते हैं अपने तार्किक विभव  

मेरा अपहरणकर्ता दस सिर वाला रावण  
लघिमा-गरिमा में सिद्धहस्त हनुमान
दीर्घ निद्रालु पेटू दानव कुम्भकर्ण ।  

राम-सेतु बना मेरे खातिर समुद्र के धरातल  
 "यह संभव है?" मत पूछना यह सवाल
 भौहें चढ़ाकर, निकालना मत मेरी नकल

मेरी कहानी में जो भी है थोड़ा-बहुत कथानक
वह है सीता का सीधा-सादा सीतापन,
पवित्र, निष्पक्ष और सती महिला का वर्णन।   

मेरा अनुग्रह और चारित्रिक बल 
अलंकारिक तर्कों के बावजूद हुआ सफल
और किया जन-मानस का काया-पटल

मैंने अपने जीवन में देखे अनेक जीवन,
काली-विद्या का घनघोर कालापन
जिससे हुआ मेरी महाकाव्यिक भूमिका में अधोपतन।

स्वर्ण-हिरणराक्षस, साँप-सँपेरे, माया सीता
काली-विद्या ने कभी नहीं पहुंचाया आघात  
और नहीं किया बुरे भाग्य को आमंत्रित ।
  
मगर प्यार और पवित्रता के नाम  
बार-बार धकेला गया मुझे चौराहे पर खुले-आम
मेरे महाकाव्यिक भूमिका को किया गया बदनाम ।

मेरे पति मेरे प्रभु  राम एक ओर   
बाकी अदृश्य गतिशील संघर्ष दूसरी ओर
तान रहे थे मेरे विवेक और स्वतंत्र इच्छा की डोर ।

 हां, मैं सीता हूँ निरपराध
स्वेच्छा से निर्वासित नारी
बिना किसी अपवाद

फिर भी, मानव-मन का आवारापन,
ज्ञान-शक्ति का उर्ध्वीकरण ,
पर्यावरण-नारीवादियों का सशक्तिकरण ।

और सबसे महत्वपूर्ण मानव-मस्तिष्क 
प्रौद्योगिकी से होगा प्रदूषित
लगेगा उस पर खतरनाक कलंक

मेरा महाकाव्य है- मेरी आत्मा का द्वार और मेरे सर्जन का कुंजी-पटल  
मेरा महाकाव्य दर्शाता है- नाट्य-मंच बनाम वनस्पतियों और जीवों का संबंध अटल
धीरे-धीरे तुम्हारे सामने लाता है पार्थिव और ब्रह्मांडीय जगत-जंजाल !

पेड़-पौधेनदी-नाले, आकाश-बादल, सूरज, चाँद, सितारे,धूमकेतु,नर-नारी !
मैं हूँ अमर, कालजयी, दयालु और हितकारी
मैं हूँ मृत्युहीन देवी हूँ, अधिवास मेरा प्रत्येक जीवित-नारी ।

 यह सत्य है, मैं भूमिजा,कैसे बताऊँ मेरी व्यथा ?
नहीं मिटा सकती थी अपनी संप्रभुता,
राम ने जब कहा,रचूँगा दूसरी अग्नि-परीक्षा की गाथा।  

तब तक निभा चुकी थी मैं पुत्री, पत्नी और माता के दायित्व,
सारे पारिवारिक कर्त्तव्य  
पितृसत्तात्मक जोड़-घटाव और घरेलू कलंक से परे निर्भय

मेरा हृदयस्पर्शी इतिहास हर पल याद दिलाता राम-रावण
मैं दोहराने को विवश हो जाती अपना परिकल्पन
इस कवितायन का अपूर्व शानदार वर्णन
अंग्रेज़ी मूल - डॉ. नंदिनी साहू

हिंदी अनुवाद - दिनेश कुमार माली

Sunday, July 19, 2020

सीता (एक महाकाव्य) अंग्रेज़ी मूल कवि - डॉ. नंदिनी साहू, हिंदी अनुवादक - दिनेश कुमार माली

सीता महाकाव्य का धारावाहिक प्रकाशन
(डॉ. नंदिनी साहू जी कृत महाकाव्य सीता का हिंदी अनुवाद श्री दिनेश कुमार माली जी ने किया है ।  इस अनूदित महाकाव्य को युग मानस में धारावाहिक प्रकाशन दि.18 जुलाई, 2020 से किया जा रहा है ।  25 सर्गों के इस महाकाव्य की प्रस्तावना 18 जुलाई, 2020 को प्रकाशन किया गया था ।  इसी क्रम में आज प्रथम सर्ग का प्रकाशन किया गया है ।  आशा है, 'युग मानस' के सुधी पाठक वर्ग इस महाकाव्य पर अपनी आत्मीय प्रतिक्रिया देने की कृपा अवश्य करेंगे । - डॉ. सी. जय शंकर बाबु)



सीता (महाकाव्य)
प्रथम सर्ग

डॉ. नंदिनी साहू






 भले ही,कहो उसे- सीता, जानकी,वैदेही, रामा
मगर रहेगी वह हमेशा ही वामा
हर महिला में बन आदर्श का जामा ।

जिसने चयन किया स्व-निर्वासन;
जिसका बार-बार पितृसत्ता ने किया दमन  
ताकि हो उसकी उन्मुक्त-चेतना का पतन

मगर वह कहाँ रहती चुप, क्यों मानती हार ?  
वापस आ, वह धरती के उदर से, हमारे भीतर ,
ब्रह्मांड की सामूहिक चेतना के अंदर

सृष्टि के आरंभ से वह उपस्थित
समाज के बदले रूपों को करती परिभाषित   
अलग-अलग रूपों, प्रतिकृतियों में अलिखित

सीता रहती भारत के सीतापुर, रामपुर, उदयपुर;
इंटरनेट, टीवी-धारावाहिक,सड़क, कॉल सेंट, विश्वविद्यालय,घर,मंदिर,
चर्च, श्रीलंका, केरल-समुद्र-तट, तुम्हारी ध्यान-धारणा और भारतीय संविधान के पन्नों पर

वह है भारत की महिला प्रधान मंत्री,महिला राष्ट्रपति,कामकाजी माता
वह है गृहिणीरात में दिल्ली बस में गैंगरेप की शिकार निर्भया  
वह है एम्स के ट्रॉमा सेंटर में अवसाद-ग्रस्त जामाता

वह है गरीबों के गर्म, असहाय आँसुओं में छिपा हुआ डर
फिर भी आश्वस्त, अडिग, आत्म-निर्भर
वह है तेजस्वी नई महिला, पेगासस का लचीला आधार

वह नहीं, केवल काल्पनिक या शिक्षाविदों तक सीमित  
वह वास्तव में है अनुप्राणित और जीवित,
वह है अनित्य-अनंत

वह है सर्वव्यापी, वर्तमान और अतीत
चाहे हो, सामाजिक, राजनीतिक या धार्मिक रीत
प्रगतिशील भारतीय महिला में सदैव उपस्थित ।

दुखों को झेलकर भी पीछे नहीं देखने का दूसरा नाम है सीता
मैं हूँ एक नई औरत सुविचारिता   
कैसे मुझे समझ पाओगे, बिना समझे सीता

कर पाओगे मुझ पर सामूहिक विश्वास, बिना किए सीता का खंडन  ?
बचेगा तुम्हारे भीतर सहानुभूति, स्वानुभूति, जिज्ञासा का दामन
लेकर हमारी खंडित पहचान ?

कर पाओगे इस दुनिया की महिलाओं का चित्रांकन,  
समझ पाओगे कामकाजी या चूल्हा संभालने वाली औरतों का मन,
बिना समझे सुविचारित औपचारिक सीता का चरित्र-चित्र?

सीता है सांप्रदायिक और समाज के बंद गवाक्षों की अनुवादक,
राजत्व की सुदूर नियंत्र,  
निर्वासन की नैतिकता, दायित्व, समर्पण और त्याग-भावना का प्रतीक।   

इसलिए लिख रही मैं श्लोक बद्ध यह सीता-महाकाव्य 
पढ़कर ऋषि वाल्मीकि का शास्त्रीय रामायण अद्वितीय  
यह अनूठा संस्करण होगा सुश्रव्य और दिव्य।  

वाल्मीकि ने देखा क्रौंच पक्षी मर्माहत  
हुआ वह एक शिकारी द्वारा आहत,
विधाता के क्रूर खेल से उनका मन हुआ विचलित।

क्या समझ पाओगे किसी के जीवन का आधार
मन में व्याप्त किसी की करुणा और डर
बिना पढ़े उत्तर-कांड में सीता का खोया-प्यार  ?

सीता ने अकेले पाले अपने पुत्र  
इसलिए लव-कुश कहलाए 'सीता-पुत्र',
कहो वाल्मीकि!, क्या कहलाएंगे 'राम-पुत्र' ?

क्या समझ सकते हैं किसी माता की पीर
बिना जाने सीता की तकदीर ?
अनेक अकेली माताओं का जीवन दोहराता वही चित्रहार ?

न कालीदास का रघुवंश’, भवभूति की उत्तर-रामायण
करती सीता के जीवन का बखान
कैसे कहूँ मैं उन्हें महान व्याख्यान ?

इस महाकाव्य में है नारीत्व पर अनुसंधान;
सीता की ज़िंदादिली, प्रेम-भावनाअग्नि-परीक्षा और वन-गमन
कराते मेरे भीतर वीर छंद उत्पन्न ।  

इस कविता का हो रहा मेरे भीतर अवतरण   
देखकर मेरे स्नेह-संबंध, बलिदान और वचन
और सामाजिक मूल्यों का उन्मुक्त-गान

     अंग्रेज़ी मूल - डॉ. नंदिनी साहू

हिंदी अनुवाद - दिनेश कुमार माली