Friday, March 5, 2021

मैना की कहानी (कहानी)

कहानी

मैना की कहानी 



तमिल मूल लेखक : एस. सुंदर राजन

हिंदी अनुवादक  : डॉ. कमला विश्वनाथन

 टिनी.... अब मेरा वक्त आ गया है। इस समय क्या हम एक शांत जगह ढूँढ़ सकते हैं?  मुझे भी बदलाव की ज़रूरत है।"

      "हाँ, ज़रूर मिनी। हाल ही में निर्मित नए मकान की बालकनी का एक कोना देखा जा सकता है। उस मकान में बहुत कम लोग रहते हैं और हमें बार-बार परेशान नहीं करेंगे।"

      हम नए मकान की बालकनी में उड़ते हुए पहुँच गए और रेलिंग पर बैठ गए। मकान नया होने के कारण हमें कहीं कोई दरार या छेद नहीं दिखाई दिया। शुरू में हम ज़रा निराश हो गए थे। अचानक टिनी हर्षोल्लास में चीं..चीं करने लगी। "यहाँ देखो, उस दीवार पर लकड़ी का एक घोंसला है। लगता है मकान मालिक भी प्रकृति प्रेमी है। चलो चल कर देखते हैं कि यह हमारे काम के अनुकूल है या नहीं?”

      "यह गौरेया के लिए बना घोंसला लगता है टिनी। परंतु हम बदलाव के रूप में इसे देख सकते हैं। चलो हम पेड़ की टहनी और पत्तियों से इसे आरामदायक बना लेते हैं। हम अंडे सेते वक्त अकसर ऐसा करते हैं, "टिन्नी ऐसा लगता है कि इस परिवार में चार ही सदस्य हैं।”

      "मिनी, तुम्हें कैसे पता?"

      जब हम सुबह यहां उड़ते हुए आए थे तब हमने चार जोड़ी आँखों को परदे के पीछे से हमें उत्सुकतावश घूरते हुए देखा। वे इस बात का भी ध्यान रख रहे थे कि वह हमें परेशान कर उड़ा ना दें।  वहाँ एक बीस साल की खूबसूरत लड़की भी है।  मैंने वहाँ उनके माता-पिता को भी देखा जो हमारी तरह एक दूसरे के लिए ही बने हुए दिख रहे थे। उनके बीच एक बड़ी उम्र की वृद्धा भी थी जो शायद अर्चना की दादी होगी। वह उन्हें प्यार से दादी बुलाती है।”

      “हम पर नज़र पड़ते ही मैंने अर्चना को अपनी दादी को बुलाते हुए देखा। फिर वह उनके साथ खुशी-खुशी बातें करने लगी।”

      "देखो दादी, हमने गौरेया के लिए जो घोंसला बना कर रखा था उसका उपयोग करने मैना आ गई है। उनका रंग भी कितना खूबसूरत है। सिर, गले और ऊपरी छाती का रंग गहरा काला और निचली छाती का रंग गहरा भूरा। उसके पंख के निचले हिस्से में सफेद रंग जैसे छिटका हुआ है। पैर एवं चोंच का रंग गहरा पीला है। आँखें कितनी आकर्षक हैं। वे तीस सेंटीमीटर लंबी पूरी तरह विकसित मैना है। वे प्रजनन के लिए आई हैं। मुझे अत्यंत प्रसन्नता है कि उन्होंने यह घोंसला चुना है। हम उनकी आवाज़ सुनते हुए उन्हें बढ़ते देख खुश हो सकते हैं। उनकी आवाज़ टर्रटराती, चहचहाती, खटखटाती, गुर्राती या सिटी समान होती। वे अकसर अपने पंखों को फुला कर अपना सिर झुकाए गाने लगती।  मैना कई किस्म की होती हैं जिसमें अस्सी प्रतिशत शोर मचाने वाली चुस्त एवं छोटी या मध्यम आकार की चिड़िया होती है।”

            दादी ने कहा, "हाँ अर्चना मैंने भी उन्हें देखा है"। मिनी भी उसी समय अपने घोंसले में प्रवेश कर गई। उसकी रखवाली के लिए टिनी हमेशा साथ रहता। जैसे-जैसे दिन गुज़रते गए हमारी चहचहाहट तीव्र एवं नियमित होती गई।

            टिनी मैं इस परिवार के चारों सदस्यों को अकसर समय मिलते ही बालकनी (छज्जे) में आते देखती हूँ। वे हमारी गतिविधियाँ जाँचने आते हैं। लगता है कि इस परिवार के सभी सदस्य पक्षियों को प्यार करने वाले हैं। वे हमारी सभी गतिविधियों को बड़े ध्यान से देखते हैं और इसके बारे में आपस में बातें भी करते हैं। अब हम भी यहाँ सुखद अनुभव करते हैं। यद्यपि शुरू-शुरू में उनमें से किसी एक को भी देखने पर हम उड़ जाया करते थे। दो हफ्ते के बाद अर्चना ने धीरे से दादी को बुलाया और बोली, "क्या आप घोंसले से आती चहचहाहट को सुन पा रही है।  मुझे लगता है कि अंडे से बच्चे निकल आए हैं। परंतु मैं उन्हें देख नहीं पा रही हूँ।” मुझे मैना के माता-पिता हमेशा आसपास मंडराते हुए नज़र आते हैं।  माँ मैना हमेशा चोंच में छोटी-मोटी चीजें एवं पिल्लू लेकर घोंसले तक पहुंचती। वह अपनी चोंच को घोंसले में घुसाकर बच्चों को खाना खिलाती।  घोंसले के द्वार पर जम कर बैठ जाती जिससे उनकी सुरक्षा हो जाए। काश मैं उन्हें नजदीक से देख पाती! "

            कुछ दिनों के बाद दादी ने उत्साह से अर्चना को बुलाया और बोली, "देखो....यहाँ तीन छोटी मैना घोंसले के गोल निकास से चोंच बाहर निकाले माँ का व्यग्रता से इंतजार कर रही हैं। उनकी चहचहाहट ऊँची और अधिक बढ़ने लगती जब माँ मैना को आने में देर हो जाती। जब वे अपनी माँ को देखती तो उनकी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहता। हर कोई एक-दूसरे से अपने भोजन को लेने के लिए लड़ने लगती।” जब यह कार्यक्रम नियमित रूप से चलने लगा तो एक दिन टिनी ने मिनी को बहुत ही चिंताग्रस्त देखा।

      "मेरी भावनाएँ बहुत ही मिश्रित हैं। हमारे बच्चों को बाहर निकले तीन हफ्ते हो गए हैं और हम बड़ी जल्दी यहाँ से उड़ जाने वाले हैं। हमने उन्हें पंखों को फैला कर उड़ना सिखा दिया है। परिवार वालों की हमारे प्रति भावनाओं ने मुझे गहराई तक स्पर्श किया है। हमें जल्दी ही इस परिवार के सदस्यों को खुश करने के लिए लौट कर आना होगा।"

       कुछ समय पहले मैंने दादी को अर्चना से कहते सुना था, " मुझे इस मैना से प्यार हो गया है और मैं इन्हें देखते रहना चाहती हूँ। यद्यपि यह हमारे घर में बहुत कम समय से ही रहते आए हैं। जब यह उड़ जाएँगी तो मुझे इनका अभाव अखरेगा।  मैं यही उम्मीद करती हूँ कि ये लौटकर फिर आएँगी। हमारी बालकनी की ज़मीन से बदबू आ रही है।  इन लोगों ने इसे अपनी बीट एवं पत्तियों से गंदा कर दिया है। यह असुविधाएँ उस आनंद की अपेक्षा बहुत कम हैं जो हमें इनके छोटे-छोटे बच्चों को घर में फुदकते देख होता है।  हम वास्तव में ही खुशकिस्मत हैं।

      दादी ने आगे कहा, "तुम जल्दी ही उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने की तैयारी करने लगोगी। इस मैना की तरह मुझे तुम्हारा अभाव भी बहुत खलेगा।" अर्चना ने दादी को प्यार से आलिंगनबद्ध किया और बोली, “चिंता ना करें दादी, मैं घर छोड़कर जाने से पहले सारा प्रबंध करके जाऊँगी जिससे हम हमेशा संपर्क में रहें और बातचीत करते रह सकें।”

      मिनी ने आगे कहा, “उसी दिन अर्चना ने दादी को मोबाइल फोन खरीद कर दिया और उसके मुख्य तत्वों को भी समझाया।  उसने पहले तो स्थानीय नंबर बुलाना सिखाया फिर नंबरों को सुरक्षित करना और फिर किसी को फोन करना हो तो नंबर को कैसे ढूंढा जाए आदि सब कुछ सिखाया।  उसने शांत स्थिति में फोन को रखना एवं मोबाइल को चार्ज करना भी सिखाया।  फिर उसने व्हाट्सएप एवं मेसेज भेजना सिखाया। उसने फिर आई एम ओ (IMO) सिखाया और विडियो कॉल करना भी। एक साथ कई लोगों के साथ 'वीडियो चेट' करना भी उन्हें आ गया।”

      मिनी ने टिनी से गर्व से कहा, “दादी ने जल्दी ही तस्वीर लेना भी सीख लिया। मेरी और मेरे बच्चों की ही पहली तस्वीर उन्होंने खींची। मैं बहुत अधिक खुश हूँ।  मैं यहाँ अकसर आते रहना चाहती हूँ और जल्दी ही इसे अपना घर भी बनाना चाहती हूँ।”  

(श्री एस. सुंदर राजन का लघु कथा संग्रह - नित्यकला में प्रकाशित कहानी)