Saturday, December 17, 2011

ये किताबें पुस्‍तकालयों, वाचनालयों, जरूरतमंद विद्यार्थियों, घनघोर पाठकों और पुस्‍तक प्रेमियों तक पहुंचें

मित्रो


मैंने मन बना लिया है कि अपने जीवन की सबसे बड़ी, अमूल्‍य और प्रिय पूंजी अपनी किताबों को अपने घर से विदा कर दूं। वे जहां भी जायें, नये पाठकों के बीच प्‍यार का, ज्ञान का और अनुभव का खजाना उसी तरह से खुले हाथों बांटती चलें जिस तरह से वे मुझे और मेरे बच्‍चों को बरसों से समृद्ध करती रही हैं। उन किताबों ने मेरे घर पर अपना काम पूरा कर लिया है बेशक ये कचोट रहेगी कि दोबारा मन होने पर उन्‍हें नहीं पढ़ पाऊंगा लेकिन ये तसल्‍ली भी है कि उनकी जगह पर नयी किताबों का भी नम्‍बर आ पायेगा जो पढ़े जाने की कब से राह तक रही हैं।

लाखों रुपये की कीमत दे कर कहां कहां से जुटायी, लायी, मंगायी और एकाध बार चुरायी गयी मेरी लगभग 4000 किताबों में से हरेक के साथ अलग कहानी जुड़ी हुई है। अब सब मेरी स्‍मृतियों का हिस्‍सा बन जायेंगी। कहानी, उपन्‍यास, जीवनियां, आत्‍मकथाएं, बच्‍चों की किताबें, अमूल्‍य शब्‍दकोष, एनसाइक्‍लोपीडिया, भेंट में मिली किताबें, यूं ही आ गयी किताबें, ‍रेफरेंस बुक्‍स सब कुछ तो है इनमें।

ये किताबें पुस्‍तकालयों, वाचनालयों, जरूरतमंद विद्यार्थियों, घनघोर पाठकों और पुस्‍तक प्रेमियों तक पहुंचें, ऐसी मेरी कामना है।

24 और 25 दिसम्‍बर 2011 को दिन में मुंबई और आस पास के मित्र मेरे घर एच 1/101 रिद्धि गार्डन, फिल्‍म सिटी रोड, मालाड पूर्व आ कर अपनी पसंद की किताबें चुन सकते हैं। बाहर के पुस्‍तकालयों, वाचनालयों, जरूरतमंद विद्यार्थियों, घनघोर पाठकों और पुस्‍तक प्रेमियों को किताबें मंगाने की व्‍यवस्‍था खुद करनी होगी या डाक खर्च वहन करना होगा।

मेरे प्रिय कथाकार रवीन्‍द्र कालिया जी ने एक बार कहा था कि अच्‍छी किताबें पतुरिया की तरह होती है जो अपने घर का रास्‍ता भूल जाती हैं और एक पाठक से दूसरे पाठक के घर भटकती फिरती हैं और खराब किताबें आपके घर के कोने में सजी संवरी अपने पहले पाठक के इंतजार में ही दम तोड़ देती हैं।

कामना है कि मेरी किताबें पतुरिया की तरह खूब लम्‍बा जीवन और खूब सारे पाठक पायें।

आमीन

सूरज


mail@surajprakash.com

भारतीय भाषाओं में महिला लेखन विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
पांडिच्चेरी में 2-3 दिसंबर, 2011 को संपन्न राष्ट्रीय संगोष्ठी के चित्र देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए ।

http://yugmanas.blogspot.com/2011/12/blog-post.html

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