Friday, July 10, 2015

जब तक मैं जीवित हूँ, ज़िंदा तो रहने दें

जब तक मैं जीवित हूँ, ज़िंदा तो रहने दें


रायपुर । विष्णु प्रभाकर जी की अंतिम अवस्था में कभी-कभी उनके बेटे के पास संपादकों के फ़ोन आते थे – "चलो, जो हुआ वही ईश्वर को मंजूर था ।"
बेटा भौंचक होकर पूछता – "हुआ क्या आख़िर ?" तो संपादक कहते – "प्रभाकर जी हमें अकेले छोड़ गये.... । "अरे नहीं भई, क्या हुआ पिताजी को ? वे तो पूरी तरह जीवित है, क्षमा करें, आपके पास ग़लत सूचना है ।"
आदरणीय प्रभाकर जी कहते थे – पालीवाल, धन्य हैं हिंदी के संपादक, जब तक मैं जीवित हूँ, ज़िंदा तो रहने देते !
कल वरिष्ठ कवि-कथाकार राकेश कुमार पालीवाल ने रायपुर में अनेक साहित्यकारों के रोचक, अनुकरणीय और रंगारग संस्मरण सुनाया ।
उन्होंने वरिष्ठ रचनाकार सुभाष पंत को याद करते हुए कहा कि उनका मानना था कि रचनाकार को अपनी रचना के समान ही अच्छा होना चाहिए ।
वीरेन्द्र कुमार वर्णवाल के अनुसार अच्छा लिखने के लिए अच्छा पढ़ना चाहिए । मैंने जब उनसे पूछा कि आख़िर कितना पढ़ना चाहिए तो श्री वर्णवाल ने कहा था कि 1 कविता या कहानी लिखने के लिए कम से कम 100 कविता या कहानी पढ़ना चाहिए।
ख्यात कथाकार कामतानाथ जी मेरे मित्रों में सर्वाधिक आत्मीय हैं । वे बिना अनुभव के कुछ भी नहीं लिखते थे । कालकथा में उन्हें वीर सावरकर पर एक अध्याय लिखना था । हम दोनों सेलुलर जेल पहुँचे । जेल के उस सेल में पहुँचते ही उन्होंने मुझसे कहा –"भाई मुझे अब बिलकुल अकेला छोड़ दें । मैं अकेले इस काल कोठरी में अनुभव करना चाहता हूँ कि आख़िर सावरकर ने कैसा अनुभव किया होगा ?" और वे उस सेल में आधे घंटे अकेले बैठे रहे ।
अब श्रीलाल शुक्ल जी का एक रोचक संस्मरण सुनें – मैने उनसे पूछा शुक्ल जी, लोग इतनी शराब पीते क्यों है कि वे गंदे नाली का भी दर्शन कर आते हैं ? उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा – "अमा, जनता को पता तो चलना चाहिए कि अमूक लेखक पीकर गिर पड़ा और गिरने-पड़ने से ही ख़बर फैलती है ।"
श्री देवेन्द्र इस्सर ऐसे इकलौते रचनाकार-समीक्षक हैं जो समान लय में हिंदी, उर्दू और अँगरेज़ी में रचते रहे और जिन्हें समान श्रद्धा से भारत और पाकिस्तान में पढ़ा-गुना जाता है ।
श्री पालीवाल ने गोविन्द मिश्र, नरेश सक्सेना, शिवमूर्ति, शैलेन्द्र सागर, डॉ.चंद्रकांत बांदिवडेकर, आबिद सुरती आदि उन सभी वरिष्ठ रचनाकारों से जुड़े एक से बड़कर एक संस्मरण मोहक और रोचक शैली में सुनाया ख़ास तौर पर जिन पर पिछले वर्षों में ‘शब्दयोग’ पत्रिका ने विशेषांक निकाले हैं ।
इसके अलावा उन्होंने स्थानीय रचनाकार और पाठकों की विशेष माँग पर कई कविताओं का पाठ भी किया ।
वरिष्ठ कथाकार तेजिन्दर ने श्री पालीवाल को आदिवासी और बेजुबानों की आवाज़ को शामिल करने गद्यकार और कवि बताते हुए अपनी चिंता में कहा कि डिजीटल इंडिया की ओर बढ़ते देश की 80 प्रतिशत आदिवासी जनता अभी भी वीर सावरकर की अँधेरी सैल में फँसी हुई है ।
वरिष्ठ व्यंग्यकार और संपादक गिरीश पंकज ने श्री पालीवाल को प्रिंसिपल कमिश्नसर (आयकर) जैसे शक्तिशाली पद पर रहने के बाद परम सहज, सरल और सादगी का पर्याय मानते हुए भूलने वाले समय में याद करने और करानेवाले रचनाकार बताया ।
कवि-निबंधकार सुरेशपंडा ने अपने मुख्य समीक्षात्मक आलेख में श्री पालीवाल को एक तीक्ष्ण अवलोकन और परीक्षण करने वाले प्रकृति का सफल कवि बताया ।
कवि-कथाकार राजेन्द्र गायकवाड़ ने पालीवाल की कविताओं के मूख्य स्वर प्रकृति और आदिवासी चेतना के साथ-साथ दलित, उपेक्षित और दरिद्र वर्ग के लिए साहित्य में विशेष स्पेस पर सबका ध्यान आकृष्ट किया ।
इसके पूर्व युवा कलाकार प्रगति रथ ने श्री पालीवाल के सम्मान में पहली बार सार्वजनिक मंच से गिटार पर अपनी एक 'सेमी क्लासिकल' प्रस्तुति से सबका मन मोह लिया ।
इस अवसर पर सभी संस्थाओं की ओर से श्री पालीवाल का आत्मीय सम्मान भी किया गया ।
कार्यक्रम का सफल संचालन किया युवा लेखक अजय अवस्थी ने और धन्यवाद माना डॉ. सुधीर शर्मा ने ।
वृंदावन लायब्रेरी पाठक मंच और राजधानी की प्रमुख संस्थाओं ताराचंद बिमलादेवी फाउंडेशन, सृजनगाथा डॉट कॉम, छत्तीसगढ़ राष्ट्र भाषा प्रचार समिति, गुरुघासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, नाचा थियेटर, दैनिक भारत भास्कर, मिनी माता फाउंडेशन, वैभव प्रकाशन, सद्भावना दर्पण, छत्तीसगढ़ मित्र आदि के संयुक्त तत्वाधान संपन्न इस एकल पाठ में डॉ. सुशील त्रिवेदी, जयप्रकाश मानस, राजेश अग्रवाल, रामशरण टंडन, मृणालिका ओझा, राजेंद्र रंजन, राजेश गनोदवाले, सुधीर कुमार सोनी, अमरनाथ त्यागी, ताहिर हैदरी, निसार अली, चेतन भारती, भूपेश भ्रमण, सुरेश मिश्रा, आयकर आयुक्त संजय कुमार, अपर आयुक्त नगर निगम, रायपुर डॉ. जे आर सोनी, भारती यजुर्वेदी (कंट्रोलर व्यापम), शिव सोनी, कल्पना रथ, सुधा अवस्थी, प्रकाश अवस्थी, आदि बड़ी संख्या में रचनाकार और पाठक उपस्थित थे ।

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