Wednesday, May 29, 2013

लिख के कोई क्या समझाएं...?


कविता

लिख के  कोई क्या समझाएं...?
-    सुशील यादव
 
 मन तपा हर पल यादों में, छूकर देखो इन अंगारों को
हरा –भरा है बाग़ –बगीचा
अंतस की सूखी खेती है
हाथों से बस उम्रर  फिसलती
मुठ्ठी –भर सांस की रेती है ...
दर्प –चुभा हर –पल सुई सा, क्या उड़ायें गुब्बारों को
 
लिख के कोई क्या समझाएं
मन की बात अधूरी लगती
सम्बन्धों में दरार हो जैसे
टूटी  हुई सी धूरी लगती ...
समझा - समझा के हार गए, संयम के पहरेदारों को

1 comment:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (३०-०५-२०१३) को "ब्लॉग प्रसारण-११" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.

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