Tuesday, May 21, 2013

कहानी - खूनी अंकुर


कहानी
खूनी अंकुर
                           
- डॉ. मधुधवन, चैन्ने


गैंगरेप की खबर ने सारे देश में दहशत फैला दी. हर शहर के हर व्यक्ति की रूह काँप उठी. हर संस्था ने न्याय की गुहार लगाने में कोई कोर कसर नहीं छोडी. सबकी एक ही माँग थी कि इस घिनौने काम करने वालों को फाँसी की सजा दी जाए. मृत्युदंड ही इंसाफ होना चाहिए.
उन्हें सिर्फ फाँसी देकर मारने की अपेक्षा तिल-तिल कर मारने की योजना पर भी विचार किया जाने लगा. अंत में सजा के नाम पर उन्हें नामर्द बनाकर बेबस कर दिया जाए इस पर भी कानून की ओर से विचार होने लगे. इस विषय पर विचार करते- करते अंत में
उन्हें गुमनाम जीवन जीने के लिए दो साल बाद छोड दिया जाए ..इस निर्णय से पहले ही वे भाग निकले....।
तीन डिग्री ठंड से काँपती उँगलियों से हेमंत की माँ ने गैस जलाई और दाल-चावल चढा दिया.आग की लपटों  पर उसकी आँखें टिक गई. मायूस-सी अपने कोरों को पोंछती खडी रही. अंदर पति गुमसुम पडे थे. रह-रह कर उनकी बिलखती हुई आवाज निकलतीं ....कुत्ता....हरामी....ऐसा करने से पहले एक बार नहीं सोचा.... अंदर से लगातार आवाजें आने लगी....हाय ....हाय....ऐसा निकला ...मैंने अपने बेटे से..... मेरी मेहनत ...संस्कार...!!!!! हम तो जिंदा ही मर गए.. एक बेबसी की कराह निकली
. इसी तरह चारों लडकों  के परिवार तडप रहे थे. समाज उनपर लानत-मलानत बरसा रहा था. लोग किस तरह और क्या-क्या कह रहे थे...
मेरे बेटे को कितनी गंदी-गंदी गालियाँ और बदुआएँ दे रहे थे... ऐसे घटिया माँ-बाप को तो मर जाना चाहिए ...उसकी लड़की नहीं है न...दर्द क्या जाने...हेमंत की माँ का मस्तिष्क फटने लगा.
अब हम किस मुहँ से समाज में रहेंगे ...काम ही ऐसा कमीना किया है....कमीना ...हरामजादा कहीं का नहीं छोडा हमें .... बाहर से पत्थर आकर खिडकी पर लगा.  मन एक घिनौने खौफ से भर गया.
हरामी...कुत्ता.... आजतक चैनल की खबरों वाला दृश्य आँखों के आगे घूम गया.
 
क्रोध में मनुष्य अपने मन की नहीं कहता. वह केवल वही कहता है जिससे उसके मन का दर्द लोग समझ सकें. पडोसन दौडती हुई अंदर आ गई.
 ...क्या जल रहा है.... घर में यह धुआँ ही धुआँ...मैं कब से पुकार रही थी कि कुछ जल रहा है....
दिल जल रहा है.उसने कटुता से कहा.
दाल-चावल चढा दिया गया था पर पानी ही नहीं डाला था.
तुम अपने को संभालो. इसमें तुम्हारा क्या कसूर है.पडोसन ने कहा.
हमारा ही तो कसूर है...हम माँ-बाप जो ठहरे...मुझे मालूम होता तो मैं कोख मैं ही मार देती.इन चार दिनों में कितनी बदुआएँ ,अपशब्द सुन चुके हैं कि कान जल रहे हैं सब हमारे चरित्र पर भी कई तरह की फब्तियाँ कस रहे हैं .....हमारा सारा जीवन कोल्हू के बैल की तरह लगा रहा. इसकी पढाई पर इतना खर्चा किया...और बदले में ...वह फूट-फूटकर दहाड मार-मारकर रोने लगी. उसकी दहाड में दर्द का पारावार था. सारा वातावरण एक दहशत से भर गया.पास-पडोस के लोग जमा होने लगे.
          जेल की गाडी से चकमा देकर भाग निकलने में सफल वे चारों  कहीं जंगलों में चले गए थे. कॉलेज के छात्र थे और हर काम जानते थे. अब उन्हें अपने पर गुस्सा आने लगा. उनकी सोच बदले की भावना से भरने लगी.
नहीं छोडेगे.....एक-एक को ध्वंस कर देंगे...क्या समझा है..हमें नामर्द कर हमें जिंदा मरने के लिए छोड देंगे...? असहाय क्रोध से उनके चेहरे तमतमा उठे. ..
तू देखना रवि, जिस दिन मुझे मुझे पता चला कि लोगों ने मेरे माता - पिता को तंग किया है तो देख मैं क्या-क्या करता हूँ....उनकी बहू-बेटियों को भरे बाजार में छोडूँगा नहीं...हेमंत की आँखों में खून उतर आया.
एक तो हमसे गलती हुई ऊपर से हम और नीच काम करेंगे....नहीं...नहीं...ऐसी हरकत मैं सोच भी नहीं सकता...उनकी बहू-बेटियों का क्या दोष...चंदन ने शांत करते हुए कहा.
क्या करेगा तू...कुछ उल्टा सीधा करके फिर जेल जाएगा..और अपने घरवालों का जीना और हराम कर देगा...पता है...माँ किस तरह रो रही है...मेरी बहन ने चूहे मारनेवाला जहर खा लिया है...पिताजी को बाजार में सरेआम पकडकर इतना पीटा कि बेचारे अधमरे पडे हैं....इस तरह कभी सोचा तूने...साले..तेरे कारण हमारी बुद्धि पर पत्थर पड गए थे...रवि ने कहा.
                मुझे अब किसी से कुछ नहीं मतलब....मुझे अब बदला लेना है,,,बदला. मुझे बदला लेना है .इतना कह हेमंत वहाँ से उठकर दूर बहते पानी के पास चला गया.
चंदन, हेमंत, रवि और कदंब बचपन से ही दोस्त थे. एक साथ खेले-खाए-पढे थे. छुटपन से ही उनमें एकता थी. एक कहता तो सारे आगे बढकर एकजुट हो काम करते . काम चाहे कैसा भी हो वे अपने दोस्तों का कहा न टालते. चारों चिदंबरम के पास गाँव में रहते थे. वहाँ के स्कूल में आठवीं पासकर आगे की पढाई के लिए चिदांबरम् के स्कूल में दाखिल हो गए. स्कूल का हॉस्टल काफी अच्छा था. वे अपनी पढाई में लगे रहते किंतु प्लस टू तक आते-आते उन्हें फिल्में देखना , फैशन करना , बाहर खाना, लडकियों पर फब्तियाँ कसना आदि में रुचि होने लगी. अपनी इन इच्छाओं को वे कभी कुछ काम कर अथवा छोटी-मोटी चोरी कर पूरा कर लेते. सबके माता-पिता अपने गाँव में सम्मानपूर्वक रह रहे थे. उनके बडे-बडे खेत थे और वे गन्ने की खेती करते थे. पैसे की कमी होने पर भी  चारों खूब खर्चते थे.
  फिल्मों के भावावेश के दृश्यों का प्रभाव उनपर होने लगा था. एक दिन चंदन  अपनी सहपाठिन अंबुमणि के पास गया और दोस्ती का हाथ बढाया.
..क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगी...?
वह झिझकी... नहीं , मुझे खूब पढाई करनी है.
कितनी पढाई करनी है....? चंदन ने पूछा
मैं कुछ बनना चाहती हूँ.
चंदन उसके साथ-साथ चलने लगा. उसको साथ चलता देख वह रुक गई.
उसको रुका देख वह समझ गया . उसने कहा- तुम जो समझ रही हो वह यह दोस्ती नहीं है. मेरा मतलब आवारागर्दी नहीं बल्कि मिलकर पढाई करने की बात है.
मतलब....?? अंबु ने पूछा ।
मतलब , तुम बहुत होशियार हो अगर मैं तुम्हारे साथ दोस्ती कर लूँगा तो मेरे नंबर भी अच्छे आने लगेंगे... अंबुमणि ने उसके चेहरे पर आए भावों को पढने की कोशिश की . उसके चेहरे पर कहीं भी पढने की इच्छा का भाव उसे दिखाई नहीं दिया. वह मन ही मन समझ गई कि केवल लड़की से दोस्ती करने ही आया है...पढाई-वढाई तो बस बहाना है...
मैंने कभी दोस्त नहीं बनाए हैं.और न ही मुझे पता है कि लडकों से दोस्ती कैसे की जाती है.
...तो यह बात है. लडकों से दोस्ती करने का यह फायदा होता है कि कई समस्याएँ लडके चुटकी में सुलझा देते हैं... जहाँ जाने में लड़कियाँ डरती रहती हैं उन जगहों पर उनका काम लडके कर देते हैं.
चंदन की बातें सुन अंबुमणि को लगा कि दोस्ती की जा सकती है. और वह थोड़े ही गई थी , उसने स्वयं बुलाया था

   अंबुमणि के साथ सबकी दोस्ती सप्ताह हो चुका था। अंबु को भी अच्छा लगने लगा.
 अंबु की माँ ने जब दोस्ती की बात सुनी तो उसने अपनी इकलौती पुत्री को समाज की ऊँच-नीच को समझाते हुए कहा कि इस उम्र में लडकों पर भरोसा करना सही नहीं. अंबु को सतर्क रहने की हिदायत देते हुए कहा--- बेटी , दोस्ती करना बुरी बात नहीं है किंतु अपनी मर्यादा की सीमा में रहकर...।
समय उडता हुआ चला जा रहा था दोस्ती भी बढती जा रही थी. प्लस टू हो चुकने के बाद अंबु कॉलेज करना चाहती थी. अंबु के माता-पिता नहीं चाहते थे लेकिन अंबु की जिद के सामने उन्हें झुकना पड़ा. अंबु कुम्हार की बेटी थी. उसके माता-पिता के पास इतना पैसा नहीं था अतः चारों लडकों ने मिलकर अंबु की फीस भर दी. अंबु ने बी.कॉम में प्रवेश ले लिया था. एक साल बीत गया चारों अंबु के बिना नहीं रहते और अंबु भी सच्चे मित्र की तरह थी. साथ खाना खाते-पढते-फिल्में देखते-पिकनिक जाते और पढ़ाई में भी अव्वल रहते. सब उनकी तरह बनने की कोशिश करने लगे.
                 अमावस की रात चंदन की नीयत में कुछ खोट आने लगा. उसने अंबु के गोरे रंग उसकी पतली कमर की तुलना फिल्मी हिरोइन से करनी शुरु कर दी और बातों ही बातों में अपने दोस्तों को उसको पाने की बात जाहिर कर दी. सब यौवन की पहली उमंग से भरपूर हो रहे थे. एक बार तीनों ने इस ख्याल को धोखा कहा और इंकार कर दिया किंतु चंदन ने उन्हें खूब समझाया जीवन का रंग उमंग कैसे हो बताया जवानी का वास्ता दिया और साथ ही बताया कि उसे खबर भी न होगी. हम इस प्रकार उसका इस्तेमाल करेंगे कि वह दोस्त ही बनी रहेगी.
            चंदन ने बड़ आदर के साथ अंबु से फिल्म देखने की माँग की और मेटनी की पाँच टिकटें ले आया. फिल्म के बाद उन्होंने ढाबे में खाना खाया. चंदन ने सबकी आँख बचाकर अंबु के खाने में नींद की दो गोलियाँ डाल दी थीं. उसे पता था कि प्रोजेक्ट के चलते अंबु कई दिनों से सोई नहीं थी और सुबह पिकनिक रखने का कारण था उसे थकाना . वह बहुत थक चुकी थी. नींद की गोलियाँ ठीक असर करेगी . खाना खाकर
 खेतों की ओर से  शार्टकट से हॉस्टल की ओर निकले. रास्ते में धान के खेतों  के पास आते ही चंदन ने कुछ इस तरह धक्का दिया कि वे सब एक-एक कर पानी से भरे खेत में जा गिरे . सब एक-दूसरे को झपट-झपट कर पकडने लगे. सबने तो नहीं पर चंदन ने कई बार अंबु को गले लगा लिया था. एक बार तो ऐसा फिसलने का नाटक किया कि अंबु को भी अपने ऊपर गिरा लिया और एक मीठी तृप्ति का अनुभव किया. धान के खेतों
से उठना निकलना बडा कठिन हो गया था. अंबु के कपडे कीचड से बुरी तरह सन गए थे. नौ-नौ मन मिट्टी लग गई थी. सबने अपने-अपने कपडे किसी तरह उतार दिए थे. रात काली थी. कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. रात के सात ही बजे थे लेकिन लगता था कि रात के दो बज रहे हों.
             अंबु , तुम उस रेतीले स्थान पर थोडी़ देर सुस्ता लो कीचड सने कपडे अभी सूख जाएँगे. चंदन ने कहा.
 अंबु ने बडी कठिनाई से हँसते हुए उठकर एक तरफ जाने की कोशिश की किंतु कीचड बुरी तरह चिपक गया था. अंबु को पास में पानी बहने की आवाज सुनाई दी. उसने कहा--- तुम सब इधर ही रहो मैं बहते पानी में जिस्म पर लगे कीचड को धोकर आती हूँ.
कीचड धोकर वह खेत के एक ओर कटहल के बगीचे में आकर घास पर साडी का ज्यादा भाग पसार कर बैठ गई. हल्की-हल्की हवा से वह ऊँघने लगी. चारों साथी वहीं खेत के पास थे. सन्नाटा छाया था .थोडी देर में उसपर नींद की गोलियों ने असर करना शुरु किया. वह गहरी नींद में चली गई.
         कब उसका प्रेमपूर्वक आलिंगन हुआ . कब एक-एक कर सबने अपने-अपने ढंग से आगोश में लिया. कब किसने क्या किया किसी को कोई खबर नहीं. परंतु पहली बार में जो आनंद आया उसका नशा उन पर चढ गया था. उन्होंने जैसे-तैसे उसको कपडों में लपेटा और उसी के साथ सो गए.
 अचानक अंबुमणि ने करवट बदली तो एक काँटा चुभ गया वह कराह उठी . उसकी आवाज सुनते ही चंदन ने पूछा क्या हुआ...?
काँटा....आ...आ...आ.. अंबु ने बडी रुआँसी आवाज में कहा.
उठाऊँ तुम्हें... चंदन ने पूछा
प्लीज....
उसके मुँह से हामी का स्वर सुनते ही सब उसकी ओर लपके.
उसने खडे होकर जगह बदली अंधेरा गहरा था फिर भी अंदाज से आगे हो गए.
अंबु चलने लगी तो उसकी साडी गिर गई. उसने झटपट उसे बाँध लिया.मन ही मन अंधेरे का शुक्रिया अदा किया. हाय इन चारों में से कोई देख लेता तो....
चलते हुए उसे लगा कि थकावट बहुत ज्यादा है. और रक्तस्राव होने लगा था.
हॉस्टल का पहरेदार आ गया था. उसने कई प्रश्न कर डाले. अंबु ने बस इतना कहा ---
मैं धान के खेत में गिर गई थी जितनी बार उठने की कोशिश करती गिर जाती बडी मुश्किल से उठकर अपने को धोया - सुखाया इसलिए इतना समय हो गया. चौकीदार ने गेट खोल दिया. कमरे में आकर अंबु ने देखा उसके कपडे गंदे हो चुके थे. उसने अपने को खूब अच्छी तरह साफ किया .घंटों नहाती रही पर कीचड़ उतरने का नाम ही नहीं लेता था. काफी देर तक पानी में रहने से खूब थक गई थी इसलिए वह लेटते ही सो गई ..दूसरे दिन भी उसे नींद ने घेरे रखा . वह न खाने के लिए उठी और न ही और किसी काम के वास्ते .  शनिवार  और इतवार का आराम में कट गया था. इतवार रात तीन बजे उसकी नींद टूटी. उसने अपने को तरोताजा पाया.
          चारों डरे सहमे और उत्सुक थे . अभी तक अंबु कॉलेज क्यों नहीं पहुँची थी.
कॉलेज शुरु हो गया था किंतु अंबु कहाँ रह गई. उनको कई तरह के प्रश्न घेरने लगे.
थोडी देर में अंबु अंदर आती दिखाई दी. उसका खिला चेहरा आज कुछ ज्यादा चमक रहा था. जब वह बडे प्यार से मिली तो उनको राहत मिली.
    अब उनमें साहस बढने लगा . वे जब भी शनिवार-इतवार दो छुट्टियाँ होती या कॉलेज से टूर पर जाने का प्रोग्राम होता तो वे अवश्य जाते और वहाँ से एक रात के लिए किसी और जगह का ठिकाना भी ढूँढ लेते और अंबु को फुसला लेते. वहाँ वही करते जो वह करना चाहते. अंबु दुबली-पतली थी इसलिए उसे उठाना लाना लेजाना उनके लिए भारी न था. उनकी किसी भी हरकत से अंबु को उनपर संदेह न होता. वह भोली-भाली पढाकू कुंभकर्ण की बहन थी. खूब गहरी नींद सोती और अपने में मस्त रहती.
एक दिन रवि पीछे हट गया. मैं इसे अब गलत कह रहा हूँ. दो साल तक हमने उसके मजे लिए अब बस.
हम उसपर खर्चते हैं तो हमें हक है.ऐसा सोचो . हेमंत ने कहा.
सारे रिश्ते स्वार्थ पर टिके हैं....यही सच है शेष सब ढकोसला...
हमें अंबु को बता देना चाहिए ...या उसे भी अपनी गैंग में शामिल कर लेना चाहिए. पिछली बातें बताने की जरूरत नहीं है ... बस अब से..रवि ने कहा..
दुनिया में कौन नहीं जानता कि औरत दो वक्त की रोटी और सामाजिक सुरक्षा के नाम पर अपना तन-मन सब पुरुष के हवाले कर देती है. ,,,,और कुछ नहीं...चंदन ने कहा.
पुरुष यानी पति ...पर हम तो चार हैं...हम सुरक्षा नहीं चुपके से लूट रहे हैं.रवि ने स्पष्ट किया.
नहीं , हम अपनी शारीरिक भूख मिटाने की कोशिश कर रहे हैं ...हेमंत ने खुलासा किया.
औरत आदमी को पालती है या आदमी औरत को पालता है ...तो केवल अपने लिए. 
पर हम बीमार मानसिकता को पाल रहे हैं. कल अंबु चली जाएगी..तब क्या होगा..रवि ने पूछा.
तब दूसरी अंबु आएगी...
हमारी शादी होगी ..तब...
वह भी अंबु ही होगी...हमारे लिए...
पूरे चार महीने कुछ हरकत नहीं हुई. सब अपनी पढाई पूरी करने में लग गए. अँबु की माँ की तबीयत ठीक नहीं थी वह घर गई हुई थी. चंदन को अंबु की याद सता रही थी. वह सीधे अबु के गाँव पहुँच गया. अभी बस से उतरा ही था कि सामने अंबु सामान के साथ आती दिखाई दी. उसकी खुशी की ठिकाना न रहा.
अंबु ने अपनी खुशी जाहिर की . जब उसे पता चला कि वह खास उसके लिए आया है तो उसे हैरानी हुई. कॉलेज में दो हजार छात्र हैं ...कौन किसको मिस करता है.
चंदन ने पांडेचेरी जानेवाली बस की टिकट ली और दोनों चढ गए.
पर यह तो बस पांडेचेरी जा रही है. अंबु ने कहा.
हाँ, मुझे कुछ जरूरी काम है. वैसे भी कल और परसों छुट्टी है.
पांडेचेरी आकर उसने अँबु के लिए एक फ्रैंच सेंट लिया.पेन किलर , क्रीम की शीशी, नारियल तेल ,कोंडम, कुछ खाने के सामान तथा विस्कुट आदि
                    कक्ष धुएँ से भरा था. अंबु को मितली-सी आने वगी. चंदन ने सही मौका जान गर्भनिरोधक गोली यह कहकर दे दी कि मितली नहीं आएगी.
नादान अंबु ने गोली उसके हाथ से ले ली . उसके ऊपर कोई नाम न देख वह उसे उलट-पलट कर देखने लगी. अंबु को माँ की बात स्मरण हो आई थी. इस उम्र में किसी पर विश्वास न करना.
क्या मुझ पर विश्वास नहीं... चंदन ने बडी लापरवाही से पूछा.
वह बात नहीं .अँबु ने कहा.
फिर..
आदत सी हो गई है हर दवा का नाम पढने की..अंबु ने कहा.
चंदन अपनी चालाकी जाहिर होने देना नहीं चाहता था . उसने पानी की बोतल पकडा़ गोली खिला ही दी.
गोली खाकर अंबु को लगा कि वह ठीक हो गई है. चंदन उसे कई नई-नई बातें बताने-दिखाने लगा वे दोनों भी वहीं बैठ गए. अंबु को मजा आ रहा था चंदन उसको मजा दे रहा था. और उसे उसी रंग में डुबोए जा रहा था. चंदन की एक आँख अंबु पर थी कि कब उसे सरुर आए और कब वह अपना अगला कदम उठाए. .
नई दुनिया के नजारों से मोहित अंबु को उसने एक लंबा कश खींचने को कहा और .अँबु ने कश ले लिया उसे सरुर आने लगा. चंदन ने उसे वहाँ से उठाया उसकी कमर में हाथ डाला अंबु की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. बस ,उसने समझा हरि झंडी है. चार घंटे उस धुएँ को पीने के बाद दोनों कमरे में आ गए और चंदन ने उसे पूरा नशा चढा कर मदहोश कर लिया था. आज कोई न था उसके साथ. भरपूर आनंद लेने लगा. सारी रात वह थका नहीं. उसने सुबह होने ही नहीं दी.  पता नहीं कितनी बार और किस-किस प्रकार उसने अंबु को वश कर लिया था.बेहोशी की मदहोश हालत में  अँबु भी जी खोलकर आनंद ले रही थी शायद उसने उसे हिरोइन का इंजेक्शन लगा दिया था.
   तीसरी शाम सब नार्मल हो चुका था .बाकी के दोस्त आ गए थे. वे खुलकर उसको अपनी हवस का शिकार बनाने लगे.
  अँबु खूब चीखी-चिल्लाई . अपनी दोस्ती का वास्ता देती रही. लेकिन वे अपने मैं मस्त अपनी दुनिया में वहशी दरिंदे बने हुए थे.
 गैंगरेप. में चारों पकडे गए थे .  फिर दाँव लगते ही हेमंत और रवि भाग गए थे 
इस बात को हुए दो साल भी नहीं बीते थे कि चोरियाँ , डकैतियाँ , गैंगरेप, अपहरण खुलेआम हो गया. गुमनाम जीवन जीनेवालों को छोड देना बहुत बडा गलत कदम था. वे समय के साथ बदले की भावना से भरते चले गए और खून ही नहीं करने  लगे अपितु अपनी गैंग भी बनाने लगे जो किसी कारणवश जीवन से निराश थे.


  हेमंत  को आया देख कॉलेज का प्राचार्य सकते में आ गया.
तू जानता है , ......यहाँ आने पर तेरे साथ क्या-क्या होगा....?
सर, मैं जानता हूँ कि हमने गुनाह किया है . यह उस समय का है जब हमें अपने से आगे कुछ दीखता ही नहीं था.मैंने आज तक कोई अपराध नहीं किया है.
मैं कैसे मान लूँ. तुम चारों खून करने में झिझकते नहीं...
कई बरस हो गए हैं .. कहते हैं कि समय बहुत बडी मलहम है. समय के साथ शरीर क्या आत्मा पर लगी चोट भी भर जाती है.
पर तुमने तो नासूर बना दिया है. प्राचार्य ने समझाया.
 यही तो हम चाहते हैं बिलकुल यही. हम मरेंगे भी नहीं. जब तक अपना बदला न ले लें...हेमंत ने कहा.
किस बात का बदला...? प्राचार्य ने पूछा.
हमें नामर्द बनाने का...भयानक अट्टहास से वातावरण काँप उठा. पेड पर बैठे पक्षी डर से उडने लगे..... हर कारण और कार्य साथ-साथ चलते हैं अब समाज भुक्तेगा....
  पुलिस तेरे पीछे पडी है. पूरा समाज तेरा दुश्मन है. तेरे जैसों को अब सीधा एनकांउटर किया जाता है.
वह अपने हृष्ट-पुष्ट लंबे  शरीर के साथ बाहर निकलते हुए बोला पुलिस क्या कर लेगी..?
उसे क्या छोड देंगे..... हा..हा.. वह भयावनी हँसी हँसता हुआ  निकल गया. उसके बाद हर दिन टी.वी पर आजकल चैनल से सुनाई पडता . आज पाँच साल की बच्ची के साथ तो आज ग्यारह साल की तो आज सौतेली बच्चियों के साथ ... पिता ने...आदि..आदि..। 
अगले दिन अखबार में बस इतना ही छपा था कि गैंगवार हादसे में जिन दुष्कर्मियों को असहाय नामर्द बनाकर छोड दिया गया था उसके अंजाम में  नए खूनी दरिंदे अंकुरित  हो गए हैं..
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  Dr. Madhu Dhawan, K-3, Annanagar East, Chennai-600 102

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