बुन्देली मुक्तिका:
बात नें करियो
संजीव
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बात नें करियो तनातनी की.
चाल नें चलियो ठनाठनी की..
होस जोस मां गंवा नें दइयो
बाँह नें गहियो हनाहनी की..
जड़ जमीन मां हों बरगद सी
जी न जिंदगी बना-बनी की..
घर नें बोलियों तें मकान सें
अगर न बोली धना-धनी की..
सरहद पे दुसमन सें कहियो
रीत हमारी दना-दनी की..
मुझे तो मुक्तिकाएं रोचक लगीं और सरल भी !
ReplyDeleteपढकर आनन्द आ गया .बुन्देली रचना बहुत कम मिल पाती है पढ़ने को ..मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है
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