नैतिकता व धार्मिकता ही कर सकती है स्थाई चरित्र निर्माण
-विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र
सदा से कोई भी ग़लत काम करने से समाज को कौन रोकता रहा है ? या तो राज
सत्ता का डर या फिर मरने के बाद ऊपर वाले को मुंह दिखाने की धार्मिकता , या
आत्म नियंत्रण अर्थात स्वयं अपना डर ! सही ग़लत की पहचान ! अर्थात नैतिकता
.
वर्तमान में भले ही क़ानून बहुत बन गये हों किन्तु वर्दी वालों को खरीद
सकने की हकीकत तथा विभिन्न श्रेणी की अदालतों की अति लम्बी प्रक्रियाओं के
चलते कड़े से कड़े क़ानून नाकारा साबित हो रहे हैं . राजनैतिक या आर्थिक रूप
से सुसंपन्न लोग क़ानून को जेब में रखते हैं . फिर बलात्कार जैसे अपराध जो
स्त्री पुरुष के द्विपक्षीय संबंध हैं , उनके लिये गवाह जुटाना कठिन होता
है और अपराधी बच निकलते हैं . इससे अन्य अपराधी वृत्ति के लोग प्रेरित भी
होते हैं .
धर्म निरपेक्षता के नाम पर हमने विभिन्न धर्मों की जो
अवमानना की है , उसका दुष्परिणाम भी समाज पर पड़ा है . अब लोग भगवान से
नहीं डरते . धर्म को हमने व्यक्तिगत उत्थान के साधन की जगह सामूहिक शक्ति
प्रदर्शन का साधन बनाकर छोड़ दिया है . धर्म वोट बैंक बनकर रह गया है . अतः
आम लोगों में बुरे काम करने से रोकने का धार्मिक का डर नहीं रहा . एक बड़ी
आबादी जो तमाम अनैतिक प्रलोभनों के बाद भी अपने काम आत्म नियंत्रण से करती
थी अब मर्यादाहीन हो चली है .
पाश्चात्य संस्कृति के खुलेपन की सीमाओं व उसके लाभ को समझे बिना नारी
मुक्ति आंदोलनो की आड़ में स्त्रियां स्वयं ही स्वेच्छा से फिल्मों व
इंटरनेट पर बंधन की सारी सीमायें लांघ रही हैं . पैसे कमाने की चाह में इसे
व्यवसाय बनाकर नारी देह को वस्तु बना दिया गया है .
ऐसे विषम समय में नारी शोषण की जो घटनायें रिपोर्ट हो
रही हैं , उसके लिये मीडिया मात्र धन्यवाद का पात्र है . अभी भी ऐसे ढ़ेरो
प्रकरण दबा दिये जाते हैं .
आज समाज नारी सम्मान हेतु जागृत हुआ
है . जरूरी है कि आम लोगों का स्थाई चरित्र निर्माण हो . इसके लिये समवेत
प्रयास किये जावें . धार्मिक भावना का विकास किया जावे . चरित्र निर्माण
में तो एक पीढ़ी के विकास का समय लगेगा तब तक आवश्यक है कि क़ानूनी
प्रक्रिया में असाधारण सुधार किया जावे . त्वरित न्याय हो . तुलसीदास जी ने
लिखा है " भय बिन होय न प्रीत " ..ऐसी सज़ा जरूरी लगती है जिससे दुराचार की
भावना पर सज़ा का डर बलवती हो .
ओ बी ११
विद्युत मण्डल कालोनी रामपुर , जबलपुर
मो ९४२५८०६२५२
समाज के लिये स्वास्थ्यवर्धक विचार , सराहनीय !
ReplyDeleteअति सुन्दर संदेश
ReplyDeleteधन्यवाद
अति सुन्दर संदेश
ReplyDeleteधन्यवाद
आदरणीय देवदत्त जी और आदरणीय कमलेश जी, आपकी सार्थक प्रतिक्रियाओं के लिए हार्दिक आभार ।
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