Sunday, June 26, 2011

बेटियाँ



बेटियाँ





-अशोक जांगड़ा





ओस की बूंदों सी होती हैं बेटियाँ !

खुरदरा हो स्पर्श तो रोती हैं बेटियाँ !!



रौशन करेगा बेटा बस एक ही वंश को !

दो - दो कुलों की लाज ढोतीं हैं बेटियाँ !!


कोई नहीं है दोस्तों एक दूसरे से कम !

हीरा अगर है बेटा तो मोती हैं बेटियाँ !!


काँटों की राह पर खुद चलती रहेंगी !

औरों के लिए फूल ही बोती हैं बेटियाँ !!


विधि का है विधान या दुनिया की है रीत !

क्यों सबके लिए भार होती हैं बेटियाँ !!


धिक्कार है उन्हें जिन्हें बेटी बुरी लगे !

सबके लिए बस प्यार ही संजोती है बेटियाँ

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