लोकतंत्र सचमुच बीमार
- श्यामल सुमन
राष्ट्र-गान आये ना जिनको, वो संसद के पहरेदार।
भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।
कहने को जनता का शासन, लेकिन जनता दूर बहुत।
रोटी - पानी खातिर तन को, बेच रहे मजबूर बहुत।
फिर कैसे उस गोत्र - मूल के, लोग ही संसद जाते हैं,
हर चुनाव में नम्र भाव, फिर दिखते हैं मगरूर बहुत।।
प्रजातंत्र मूर्खों का शासन, कथन हुआ बिल्कुल साकार।
भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।
बहुत शान से यहाँ लुटेरे, "बड़े लोग" कहलाते हैं।
मिहनतकश को नीति-वचन और वादों से सहलाते हैं।
हैं अभाव में अक्सर जीते, जिनके हैं ईमान बचे,
इधर घोषणा बस कागज में, बेबस को बहलाते हैं।।
परिवर्तन लाजिम है लेकिन, शेष क्रांति का बस आधार।
भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।
वीर-शहीदों की आशाएँ, कहो आज क्या बच पाई?
जीवन-पथ पर बहुत कठिन है, धारण करना सच्चाई।
मन - दर्पण में अपना चेहरा, रोज आचरण भी देखो,
निश्चित धीरे-धीरे विकसित, होगी खुद की अच्छाई।।
तब दृढ़ता से हो पायेगा, सभी बुराई का प्रतिकार।
भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।
कर्तव्यों का बोध नहीं है, बस माँगे अपना अधिकार।
सुमन सभी संकल्प करो कि, नहीं सहेंगे अत्याचार।।
मन - दर्पण में अपना चेहरा, रोज आचरण भी देखो,
ReplyDeleteनिश्चित धीरे-धीरे विकसित, होगी खुद की अच्छाई।।
तब दृढ़ता से हो पायेगा, सभी बुराई का प्रतिकार।
भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।
हकीकत बयाँ कर दी सुमन जी आपने .