माँ, मुझे मार ही डाल.....
- नविन धामेचा
प्रथम खंड : ‘बेटी’ है, गर्भपरीक्षण में पाया गया
माँ-बाप(!)ने गर्भपात का निश्चय किया ।
बेटी हूँ,
तो क्या इस दुनिया में आ नहीं सकती ?
माता-पिता का प्यार पा नहीं सकती ?
दोष मेरा क्या है अगर मैं लड़का नहीं
क्या मैं तेरी इच्छा का फल नहीं ?,
मैं तेरे ही बाग का फूल, माँ मुझे मत मार ।
गोद में तेरी खेलूंगी तेरी गुड़िया बनकर
किलकिलाहट से भर दूंगी तेरा ये घर,
तेरा ही रूप, मैं तेरी ही परछाई हूँ
दामन में अपने तुझे ही समेटके लाई हूँ,
मैं हूँ तेरा ही अंश, माँ मुझे मत मार ।
कहते हैं मां तो ईश्वर का रूप होती है
और मुझसे ही तो माँ बनती है,
अगर मुझे ही नहीं अपनाओगे
तो ईश्वर को कहाँ से पाओगे ?
मैं इसका वरदान, माँ मुझे मत मार ।
चुपचाप सब सह लूँगी मुझे जीने दे
जीवन की एक साँस मुझे भी लेने दे,
कुदरत ने बनायी है ये धरती सबके लिये
फिर मेरे साथ ये नाइन्साफी किस लिये ?
मैं एक नन्ही-सी जान, मा मुझे मत मार ।
मा, तू भी तो बेटी बनकर ही आई थी
ममता और करुणा साथ में ही लाई थी,
आज इतनी निर्दयी कैसे हो गई ?
नारी ही नारी की दुश्मन हो गई ?
मैं तो दो घर की ‘शान’, माँ मुझे मत मार ।
दूसरा खंड : ‘बेटी’की काकलूदी सुनी नहीं गई
गर्भपात की सारी तैयारियाँ हो गईं ।
अफसोस, मनुष्य के गर्भ में आ गई
जिंदगी से पहले ही मौत गले लग गई,
काश, अगला जन्म कोई पशु का मिले
जिंदगी जीने का एक मौका तो मिले,
मैं अबला और लाचार, माँ मुझे मत मार ।
शायद अच्छा ही होगा अगर मर जाऊँगी
चलो इस स्वार्थी दुनिया से तो बच जाऊँगी,
मुझे किसीकी माँ, बहन, बीवी नहीं बनना
‘बेटों’ के लिये बनी दुनिया में ‘बेटी’ नहीं बनना,
नहीं बनना मुझे इंसान, माँ मुझे ....
बहुत भावपूर्ण कटु सत्य से भरपूर कविता |
ReplyDeleteआशा
क्टु सत्य के साथ एक सत्य यह भी है... जिस कन्या के की भूण हत्या पर इतना बबाल मचाया जाता है... उसके जन्म लेने और व्याह के बाद उसका जितना शोषण स्वंय नारी... सास, ननद और जेठानी के रूप में करती है.... कभी कभी तो वह कन्या स्वंय कह उठती है कि काश में जन्मी ही न होती.
ReplyDeletebhaavukataa pradhan kavitaaye dil ko nichodteehal aansu bharee daastaa hai
ReplyDeletemaa mujhe mat mar ek bahut hin achchh rachna hai yug mans patrik mujhe bahut achchhi lagi
ReplyDeletemaa mujhe mat mar ek bahut hin achchh rachna hai yug mans patrik mujhe bahut achchhi lagi
ReplyDeleteधन्यवाद आशाजी.
ReplyDeleteमोहिन्दरजी, बिलकुल सही बताया आपने. नारी को उचीत सम्मान देनेकी आवश्यकता है, तभी हम सही अर्थमे सभ्य समाज बना शकते है.
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