Monday, April 18, 2011

श्यामल सुमन के दोहे

निश्छल मन होते जहाँ

सुमन प्रेम को जानकर बहुत दिनों से मौन।
प्रियतम जहाँ करीब हो भला रहे चुप कौन।।

प्रेम से बाहर कुछ नहीं जगत प्रेममय जान।
सुमन मिलन के वक्त में स्वतः खिले मुस्कान।।

जो बुनते सपने सदा प्रेम नियति है खास।
जब सपना अपना बने सुमन सुखद एहसास।।

नैसर्गिक जो प्रेम है करते सभी बखान।
इहलौकिकता प्रेम का सुमन करे सम्मान।।

सृजन सुमन की जान है प्रियतम खातिर खास।
दोनो की चाहत मिले बढ़े हृदय विश्वास।।

निश्छल मन होते जहाँ प्रायःसुन्दर रूप।
सुमन हृदय की कामना कभी लगे न धूप।।

आस मिलन की संग ले जब हो प्रियतम पास।
सुमन की चाहत खास है कभी न टूटे आस।

व्यक्त तुम्हारे रूप को सुमन किया स्वीकार।
अगर तुम्हें स्वीकार तो हृदय से है आभार।।

सोच सुमन नादान।

प्रेम सदा जीवन सुमन जीने का आधार।
नैसर्गिक उस प्रेम का हरदम हो इजहार।।

मन मंथन नित जो करे पाता है सुख चैन।
सुमन मिले मनमीत से स्वतः बरसते नैन।।

भाव देखकर आँख में जगा सुमन एहसास।
अनजाने में ही सही वो पल होते खास।।

जीवन में कम ही मिले स्वाभाविक मुस्कान।
नया अर्थ मुस्कान का सोच सुमन नादान।।

प्रेम-ज्योति प्रियतम लिये देख सुमन बेहाल।
उस पर मीठे बोल तो सचमुच हुआ निहाल।।

प्रेम समर्पण इस कदर करे प्राण का दान।
प्रियतम के प्रति सर्वदा सुमन हृदय सम्मान।।

सुख दुख दोनों में रहे हृदय प्रेम का वास।
जब ऐसा होता सुमन प्रियतम होते खास।।

मान लिया अपना जिसे रहती उसकी याद।
यादों के उस मौन से सुमन करे संवाद।।


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