Thursday, February 26, 2009

कविता

संगोष्ठी

- डॉ. जयप्रभा सी.एस., प्राध्यापिका,


महाराजास कालेज, एरणाकुलम ।


संगोष्ठी - 1
हम तब और अब
कांपते हैं । किंतु
वे नहीं ।
जब किया इस पर विचार
तब उसने कहा,
तुम कांपते हो,
वे कांपते नहीं,
मैं आती तक नहीं ।
संगोष्ठी – 2
भाग एक
आतंकवाद पर भाषण
किसी आतंक से कम नहीं,
शब्द, अस्पष्ट... बम वर्षा सम,
किंतु विचार स्वस्थ ।
कोई लिखते हैं,...... क्या?
कोई सुनते हैं, ..... क्या?
कोई ऊँघते हैं, ..... क्यों?
मैं ने उससे पूछा –
कब होगा यह खतम?
क्यों? – उसने पूछा
क्योंकि पेट में चूहे दौड़ रहे हैं ।
तब हमने लिया निर्णय,
यही है शिक्षा*
(*मलयालम में शिक्षा का अर्थ है दंड)
संगोष्ठी-2
भाग दो
अशोक ने किया था प्रण
आगे से किसी चींटी तक को नहीं मारेंगे
उन्होंने किया इसका पालन
चींटी तो क्या, किसी को नहीं मारा
समय बीतता गया....
अब,
चींटी और मनुष्य को मारते हैं –
एक ही अंदाज़ से ।

1 comment:

  1. सुंदर अभिव्यक्ति!
    मन को स्पर्श करती हैं, डॉ.जयप्रभाजी की ये पंक्तियाँ-
    हम तब और अब
    कांपते हैं । किंतु
    वे नहीं ।

    उन्होंने किया इसका पालन
    चींटी तो क्या, किसी को नहीं मारा
    समय बीतता गया....
    अब,
    चींटी और मनुष्य को मारते हैं –
    एक ही अंदाज़ से ।

    ReplyDelete