Tuesday, February 17, 2009

दिव्या माथुर जी की तीन कविताएँ

शैतान

शैतान का पिता है झूठ
लम्बा चौड़ा और मज़बूत
सच है गांधी जैसा कृशकाय
बदन पे धोती लटकाए!

औकात

जानते हुए कि
वह झूठ बोल रहा है
सब चुपचाप सुनते रहे
जानते हुए कि
मैं सच बोल रही हूँ
किसी ने मेरी न सुनी
बात सच या झूठ की नहीं
औकात की है!
अर्थी

इसने रुलाया कितनों को
इसे रुलाने की
हिम्मत नहीं है
झूठ की अर्थी
खुशी से उठाएं
सच को उठाने को
कँधा नहीं है.

1 comment:

  1. सच को उठाने को
    कँधा नहीं है.
    आभार

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