Friday, November 21, 2008

जीव-हत्या JEEV HATYA

Cattle restrained for stunning just prior to slaughter. Dr Temple Grandin को धन्यवाद सहित ।



जीव-हत्या

- लक्ष्मी ढौंडियाल, नई दिल्ली

बरसों से अरमां सजाए
हाथों में मेहँदी लग जाए
खुश थी कितनी मुद्दत बाद
मिलने वाली थी मन मुराद
आने वाली थी बारात
बस चंद रोज ही शेष बचे थे
मदमस्त गाँव गलियारे जाती
झूम झूम जंगल में गाती
अकस्मात् एक दिन जंगल में
शेर खड़ा था उसके पास
उसने कहा मुझे छोड़ दो
मेरे सभी अरमां हैं बाकि
मुझे मेहँदी लगवानी है
दुल्हन बन पी घर जाना है
शेर में जज्बात कहाँ
दिया झपट्टा मार गिराया
पल में प्राण पखेरू उड़ गए
रह गए सभी अरमां अधूरे
वो तो पशु था
दिल भी पशुवत
हम मनुष्य हैं फिर भी पग पग
पशुता ही दिखलाते हैं
बकरी को चारा दिया
हिष्ट पुष्ट तंदुरुस्त बन जाए
मुर्गी को दाना दिया
अंग अंग कोमल हो जाए
मछली को भोजन दिया
निगलें तो कांटा न आए
सब जीवों को हमने पाला
स्वाद स्वाद में वध कर डाला
बरछी भाला चाकू छुरी से
कितने जीव कर दिए हलाल
तब तो तनिक भी रूह न कांपी
अपने पाँव में शूल चुभे तो
कैसी चीखें चिल्लाते हो
मूक निरीह कमजोर जीव का
मांस चाव से खाते हो
धर्म कर्म उपदेश की बातें
मानव क्यूँ दोहराते हो
सोचो गर तुम्हें कोई मारे
अंग अंग छिन्न भिन्न कर डाले
भुने आग में
तले तेल में
हल्दी मिर्च का लेप लगाए
शरीर तुम्हारा मृतप्राय पर
आत्मा रह रह चिल्लाए
एक माँ की ममता हो तुम
एक पिता का गहन दुलार
पत्नी के माथे की बिंदी
बहन की राखी से बंधा प्यार
भूखे बच्चों की रोटी हो
सबकी आँखों का मोती हो
तुम्हे कोई स्वाद की चाह में मारे
सोचने से भी घबराते हो
वो जीव भी माता पिता हैं
वो भी किसी की आँख के तारे
तो फिर क्यूँ तुम मनुष्य होकर
अधम पशु बन जाते हो
स्वाद स्वाद में
हत्या दर हत्या
कितने पाप कमाते हो ।

***
JEEV HATYA - A POEM IN HINDI BY LAKSHMI DHAUNDIYAL, NEW DELHI
***

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2 comments:

  1. A beautiful self-explanatory creation that educes every person to rethink on his brutality over animals. It is promptly said that man has been a heartless animal. The thought of putting oneself into the shoes of animals thereby asking for response is highly appreciable.Expecting many more penning from your sharp-edge.

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  2. रामदेव भक्त - सुनिल दैय्या जाटियावास द्वारा - जीव हत्या पाप है - सभी जीव जंतु अपना अपना प्राण बचाना चाहते है ॥ लेकिन इंसान जीव जंतु को मारकर खा जाते है ॥ हर इंसान का अपना अपना धर्म होता है, और हरेक इंसान को अपना अपना धर्म का पालन करना चाहिए, हिन्दु धर्म हमारा पवित्र धर्म है, हिन्दु धर्म मे हमारे दो पवित्र ग्रंन्थ है, रामायण और महाभारत इसमे ईश्वर के प्रति आस्था रखना, और जीव जंतुओ की सेवा करना एवं उनका प्राण बचाना मनुष्य का सबसे बङा धर्म माना जाता है, और दान पुण्य करना चाहिए और साधु संत महात्मा की सेवा करना, प्यासा को पानी एवं भुखा को भोजन करवाना चाहिए एवं दीन दुःखियो एवं गरीबो की सेवा करनी चाहिए, ये रामायण एवं महाभारत मे बाते बतायी गई है, एक हिन्दु की पहचान है - आस्तिक एवं शाकाहारी होना ये हिन्दु की पहचान है,- धन्यवाद

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