Saturday, September 6, 2008

कवि कुलवंत सिंह की कृतियों का लोकार्पण कार्यक्रम सुसंपन्न


'चिरंतन' एवं 'हवा नूँ गीत' काव्य संग्रहों का विमोचन

किरणदेवी सराफ ट्रस्ट के सहयोग से कवि श्री कुलवंत सिंह की काव्य पुस्तकों "चिरंतन" एवं "हवा नूँ गीत" (पूर्व काव्य संग्रह निकुंज का गुजराती अनुवाद - श्री स्पर्श देसाई द्वारा) का विमोचन समारोह कीर्तन केंद्र सभागृह, विले पार्ले, मुंबई में २१ अगस्त, २००८ को संपन्न हुआ। पुस्तकों का विमोचन प्रसिद्ध उद्योगपति एवं समाजसेवी श्री महावीर सराफ जी के कर कमलों द्वारा संपन्न हुआ । कार्यक्रम की अध्यक्षता की - 'महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी' के अध्यक्ष श्री नंद किशोर नौटियाल जी ने। विशिष्ट अतिथि के रूप में महानगर के अनेक गणमान्य एवं साहित्य के शीर्षस्थ योद्धा पधारे । जिनमें प्रमुख थे - नवनीत के पूर्व मुख्य संपादक श्री गिरिजाशंकर त्रिवेदी, कुतुबनुमा की संपादिका श्रीमती राजम नटराजम, फिल्म कथाकार श्री जगमोहन कपूर, अंजुमन संस्था के अध्यक्ष एवं प्रमुख शायर खन्ना मुजफ्फरपुरी, प्रमुख शायर श्री जाफर रजा, श्रीमती देवी नागरानी, श्रुति संवाद के अध्यक्ष श्री अरविंद राही, ह्यूमर क्लब के अध्यक्ष श्री शाहिद खान, कथाबिंब के संपादक श्री अरविंद, संयोग साहित्य के संपादक श्री मुरलीधर पांडेय, श्री देवदत्त बाजपेयी एवं अन्य अनेक गणमान्य गीतकार, कवि एवं शायर । जिन्होने नवोदित कवि एवं गीतकार श्री कुलवंत सिंह के लिए अपने अनेकानेक आशीषों की झड़ी लगा दी ।

कार्यक्रम में पुस्तक पर समीक्षा प्रस्तुत की डॉ. श्रीमती तारा सिंह एवं श्री अनंत श्रीमाली ने। कार्यक्रम का संचालन किया मंचो के प्रसिद्ध संचालक श्री राजीव सारस्वत ने।

कार्यक्रम का प्रारंभ हंसासिनी माँ सरस्वती पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन से किया गया । माँ सरस्वती का आवाहन पण्डित जसराज जी के शिष्य श्री नीरज कुमार ने कुलवंत सिंह द्वारा रचित वंदना को अपने कण्ठ से अभिनव स्वर प्रदान कर की । पुस्तकों के विमोचन के उपरांत कवि कुलवंत सिंह के गीतों पर संगीतमय प्रस्तुति की - श्री सुरेश लालवानी ने। शिप्रा वर्मा ने भी एक गीत को सुर प्रदान किये।

इस अवसर पर कुलवंत सिंह की रचनाओं पर टिप्पणी करते हुए अध्यक्ष श्री नौटियाल जी ने कहा कि कुलवंत की कुछ रचनाएँ भले ही काव्य के पारखियॊं की दृष्टि में उतनी खरी न उतरें; लेकिन ऐसी ही एक पंक्ति का जिक्र करते हुए 'हो भूख से बेजार जब उतारता कोई स्वर्ण मुद्रिका जल रही चिता के हाथ' जब उन्होंने इसे अपनी पसंदीदा कविताओं में दर्ज कराया तो यह पंक्ति पढ़ते हुए उनकी आखें सजल हो उठीं ।

राजम नटराजम ने कुलवंत की एक कविता 'पदचिन्ह' की इन पंक्तियों को पढ़ते हुए - 'बचपन में मैने गौतम बुद्ध को पढ़ा था, उनका साधूपन भाया था / सोचा था / मैं भी, तन से न सही, मन सेअवश्य साधू बनूंगा / समझ नही आता, आज लोग मुझे बेवकूफ क्यों कहते हैं'; टिप्पणी की कि काश यह बेवकूफपना हम सभी में बना रहे । एक माँ इस तरह बेवकूफ बन कर ही एक बच्चे का लालन पालन करती है। एक पिता अपने बच्चे के लिए इसी बेवकूफपने के तहत अपनी भविष्यनिधि से बच्चे का बर्तमान बनाता है । अपने अति व्यस्त कार्यक्रम से समय निकालकर श्री आलोक भट्टाचार्य भी अपना आशिर्वाद देने पहुँचे। इस अवसर पर प्रसिद्ध कथाकारा डा श्रीमती सूर्यबाला जी ने भी अपना संदेश भेजा ।

गुजराती अनुवाद के सर्वेसर्वा श्री स्पर्श देसाई ने अपने अनुभवों को व्यक्त करते हुए दो छोटी कविताएं गुजराती में पढ़ीं । कार्यक्रम के अंत में कवि कुलवंत ने माँ सरस्वती सहित सभी आगंतुको का हार्दिक दिल से धन्यवाद किया ।

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