Friday, August 1, 2008

कविता

मेरी ख़ामोशी
- दिव्या माथुर
मेरी ख़ामोशी
एक गर्भाशय है
जिसमें पनप रहा है
तुम्हारा झूठ एक
दिन जनेगी ये
तुम्हारी अपराध भावना को
मैं जानती हूँ
तुम साफ़ नकार जाओगे
इससे अपना कोई रिश्ता
यदि मुकर न भी पाए तो
उसे किसी के भी
गले मढ़ दोगे तुम
कोई कमज़ोर तुम्हें
फिर कर देगा बरी
पर तुम
भूल कर भी न इतराना
क्योंकि एक गर्भाशय है
जिसमें पनप रहा है
तुम्हारा झूठ!

(KHAMOSHI – A Hindi Poem by DIVYA MATHUR for YUGMANAS)
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