Thursday, September 3, 2015

हिंदी उपन्यासों में सूचना प्रौद्योगिकी का प्रभाव – ‘मुन्नी मोबाईल' उपन्यास के विशेष सन्दर्भ में

हिंदी उपन्यासों में सूचना प्रौद्योगिकी का प्रभाव – ‘मुन्नी मोबाईल'

उपन्यास के विशेष सन्दर्भ में  

नंदकुमार. सी.

     सूचना प्रौद्योगिकी की गति पिछले दशकों में बहुत शीघ्र होती जा रही है । यह मनुष्य को सोचने-विचारने और संप्रेषण करने के लिए तकनीकी सहायता उपलब्ध करती है । पिछले दो दशकों के पहले सूचना-प्रौद्योगिकी का क्षेत्र सीमित था । लेकिन अब मैको इलेक्ट्रॉनिक्स  और संचार के नूतनतम सामग्रियों भी इसमें शामिल हैं । इसके विकास का नवीनतम रूप हमें इंटरनेट, मोबाईल, रेडियो, टेलिविशन, उपग्रह प्रसारण कंप्यूटर के रूपों में दिखाई देते हैं । इन सब के द्वारा आज सूचना प्रौद्योगिकी ने पूरे विश्व को एक सूत्र में बाँधा है ।  इससे ‘वसुधैव कुटुंबकम ‘ की उपनिषदीय अवधारणा साकार हो गयी है । लेकिन इस अवसर पर भी हमें देखना है कि सूचना – प्रौद्योगिकी का प्रभाव हमारी संस्कृति पर किस प्रकार है, सकारात्मक है या नकारात्मक ।
    किसी भी देश की उन्नति उसकी वैज्ञानिक, तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी प्रगति पर निर्भर रहती  है । इस दृष्टी से देखें तो आज हमारा देश भी विकास की आते बढ़ रहा है । सॉफ्टवेर इंडस्ट्री जो सूचना-प्रौद्योगिकी का हिस्सा है हमारे देश के आन-शां-बाण बनी है । कंप्यूटर के प्रयोग से उत्पादकता और गुणवत्ता पर बढ़ावा मिला है । Digital Economy  याने सूचना परक अर्थव्यवस्था और  Knowledge Economy  याने ज्ञान परक अर्थव्यवस्था विश्व अर्थव्यवस्था के आधार स्तंभ बन गए   हैं । वर्तमान समय और समाज भौगोलीकरण, उदारीकरण, बाज़ारीकरण और उत्तराधुनिकता के दौर पर से गुज़र रहे हैं ।  इस प्रकार के एक सामजिक माहौल पनपने में प्रौद्योगिकी के विकास का योगदान महत्वपूर्ण है । विश्व के तमाम भाषा-साहित्य में यही संस्कृति अपनी पूरी गरिमा के साथ उभर रही  है । भारतीय साहित्य खासकर हिंदी साहित्य भी इसमें पीछे नहीं है । कहानी, नाटक, कविता, उपन्यास आदि साहित्य की सभी विधाओं में इस तकनीकी संस्कृति का गहरा प्रभाव पड़ा   है ।
  प्रदीप सौरभ का ‘मुन्नी मोबाईल’ पिछले दो–तीन दशकों की घटनात्मक प्रस्तुति है । लेखक के द्वारा दी गयी सूचना में इसे उपन्यास कहा गया है, लेकिन उसमें न तो कोई सीढ़ी कताहवस्तु है न ही कोई सीधा कथानक । मुन्नी और आनंद भारती की बिलकुल अलग-अलग जिंदगियों को रचनाकार ने एक दूसरे से जोड़े रखा है । पूरा उपन्यास विवाराणात्मक शैली में है, और घटना प्रधान भी  ।  सुप्रसिद्ध आलोचक सुधीश पचौरी ने कहा कि इसमें डायरी, रिपोर्टिंग, कहानी की विधाएं मिक्स होकर वृत्तान्त के रूप ले लेती है । पतरकारिता और कहानी कला को मिक्स कारके अमेरिका में  जो कथा – प्रयोग टॉंम वुल्फ ने किये हैं वाही प्रदीप ने यहाँ किये हैं ।
   उपन्यासकार प्रदीप सौरभ मूलत: पत्रकार है । वे अछे फोटोग्राफर भी है । गुजरात के दंगों की यथातथ रिपोर्टिंग के लिए पुरस्कृत हुए हैं । पहला हिंदी का बाल अखबार ‘मुक्ति’ का संपादक है । ‘मुन्नी मोबाईल’ उनका प्रथम उपन्यास है जो 2009 में प्रकाशित है । उपन्यास का नायक है आनंद भारती जो प्रतिष्ठा प्राप्त पत्रकार एवं चित्रकार है । अपनी नौकरी के दौरान वे देश-विदेश में बहुत सफ़र करते हैं । जीवन के विभिन्न प्रसंगों से गुजरने का अवसर उनको मिलता है । गुजरात दंगे का आँखों देखा रिपोर्टिंग उन्होंने की  । इसी कारण वे शासक वर्ग की अप्रीति का कारण बनते हैं । उनपर हमला हुआ  । संपादक उन्हें दिल्ली वापस बुला लिया । आनंद भारती दिल्ली के सपनों में डूब गए । इद्सी शहर ने उनको सब कुछ दिए । इसी शहर में उनकी पहचान का विस्तार हुआ ।
   दिल्ली में उन्होंने फिर घर बसाया । लेकिन संभालने वाला कोई नहीं था । काम करने केलिए एक औरत मिली, चुस्त-तन्दुरस्त मुन्नी । खाना बनाने से लेकर कपडे धोने तक का सारा काम उसके कन्धों पर डाले गए । बाद में घर की चाभी भी उसके पास रखी गयी । इतने में आनंद भारती को इलाहाबाद जाना था । वहां विश्व विद्यालय में लेक्चर देना थी । इलाहाबाद उनकी भावुकता को शोभा देती थी । इसी विश्वविध्यालय में उनकी शिक्षा हुई थी । उनके युवाकाल के कई मोहक वर्ष यहाँ  बीते । अपने संघर्ष का एक लंबा समय यहाँ व्यतीत हुआ । रूमानी अहसासों से भरा मुहब्बत कस्न्गम भी यहाँ हुआ । इस मुहब्बत में उनकी संगिनी थी मानसी ।  उनकी हर रह्काना का प्रथम वाचक भी थी मानसी ।
    मानसी उन्हें पत्र लिखती थी । वह पात्र उसी समय उनकेलिए  जीव वायु के समान था । पूरे तीन वर्ष तक वह रिश्ता सरल, सहज, और नैसर्गिक था । आनंद मानसी को कदापि दुःख नहीं देना चाहते थे । ऐसा वह सोचा भी नहीं सकता था । पर उस समय की समाजिक सीमाओं के अंदर रहकर  आनंद मानसी के साथ का अपने रिश्ते को परिभाषित नहीं कर पाए । आनंद उससे अक्सर कहा करते थे कि यही तुम मेरे मौन को नहीं समझती हो तो शब्दों  को भी नहीं समझोगी । शाददों का पथ शान्ति का पथ हो । मानसी और आनंद का रिश्ता अटूट रहा ।
    तीन दिन के  सेमीनार के बाद आनंद दिल्ली वापस आये । मुन्नी घर चलने में काबिल हो गयी थी । वह पास पड़ोस के घरों में भी काम करने लगी । मिन्नी की मांग के अनुसार आनंद ने दीपावली-भेंट के रूप में उसे एक मोबाईल खरीद दी । घरों में नौकरी करनेवाली अन्य महिलाओं से उसका निरंतर संपर्क हुआ । अंत में कामवाली महिलाओं को सप्लाई करनेवाली एक छोटी एजेंसी की मालकिन बन गयी मुन्नी । मोबाईल फोन ने उसके धंधे में उनकी बड़ी सहायता की । उसका नाम ही पड़ा ‘ मुन्नी मोबाईल ‘ काम की तलाश में आनेवाली महिलाएं सबसे पहले मुन्नी से संपर्क करती   थी । मुन्नी का काम प्रौद्योगिकी की सहायता से बहुत अच्छा चल रहा पत्रकारों और लिपिकों के ज्यादा पैसा मुन्नी कमाती थी ।
    आनंद भारती एक कोंफेरेंस में भाग लेने लन्दन गए । वहां अपने मित्र राजेश जोशी के साथ भ्रमण किया । आर्थिक मंडी का समय था । काल सेंटर उसके सबसे बड़े शिकार हुए जहाँ हज़ारों नौजवान काम करते थे । नौकरों का संकट हुआ । भारत के सभी उद्योग धंधों में इसका बुरा असर हुआ । लेकिन मुन्नी का कारोबार इससे मुक्त रहा । उसका एक बड़ा मकान बनकर तैयार हुआ । मकान के नीचे तीन दूकानें बनायीं गयी । मुन्नी में तरक्की की लालसा प्रबल हो गयी थी । भारती के घर से एक कंप्यूटर मुन्नी ने अपने घर ले लिया । भारती ने सोचा कि कंप्यूटर के आगमन से उसके घर में पढाई-लिखी का एक अच्छा माहौल पैदा होगा । उसके बच्चों पर इसका अच्छा प्रभाव पडेगा । बड़ी बेटी रेखा ने तो कंप्यूटर पर गेम्स की शुरुआत की ।
   मुन्नी एजेंसी  काम में ऊब गयी थी । ज्यादा पैसा कमाने केलिए बड़े काम धंधे की तलाश में वह जुड़ गयी । आखिर उसने एक बस  खरीद ली । दिल्ली में स्थानीय गुंडों की सहायता के बिना कोई भी मालिक बस चला नहीं सकता । हर टर्मिनल पर गुंडों का कब्ज़ा है । इन सब चुनौतियों का सामना करती हुई मुन्नी आगे बढ़ी ।  वह गाज़ियाबाद की एक बस ठेकेदार बनी । दो साल के बाद मुन्नी ने एक दूसरा घर खरीद लिया । रेखा कालेज जाने लगी । मुन्नी ने बेटी को लैपटॉप खरीद  ली । वायरलेस इंटरनेट कनेक्शन भी लगाईं गयी । घर में बैठकर या कार में बैठकर रेखा नेट के ज़रिये दुनिया की सैर करती रही । दुनिया उसके उंगली के नीचे नाच रही थी । धीरे-धीरे वह अपनी माँ के धंधे संभालने लगी । हर चीज़  का हिसाब, हर सूचना उसकी लैपटॉप में थी । माँ की तरह बेटी भी होशियार निकली । प्रौद्योगिकी की सहायता से यह आगे बढ़ी । मुन्नी के घमंड का कोई टिका न  रहा । उसे लगता था कि दुनिया उसके पैरों के नीचे है । पैसा उसका मालिक बन गया । पैसे केलिए वह कुछ भी करने केलिए तैयार थी ।
    आनंद भारती मन ही मन मुन्नी के व्यवहार से दुखी थे । बहुत दिनों के बाद उन्होंने उसे मोबाईल पर फोन किया तो बेटी से पता चला कि मुन्नी की हत्या हुई । पुलिस से उसे मालूम हुआ कि मुन्नी ने बस  का बिसिनस छोडकर काल गर्ल्स का एक धंधा शुरू किया था । प्रौद्योगिकी से प्रभावित, बेटी रेखा उसकी बड़ी सहायता करती थी । देश-विदेश में नेट के ज़रिये काम का विस्तार हो गया । अंत में बिसिनस क्षेत्र के आपसी शत्रुता से किसी विदेशी लड़की के मामले पर किसी ने मुन्नी की हत्या कर ली । यह विषय भी आनंद भारती की खोजी पत्रकारिता का हिस्सा बन गया ।  
    मुन्नी के पति अपने बेटों को लेकर अपना गाँव चला गया । रेखा अपनी माँ के बिसिनस में ही अटी रही । । कॉल गर्ल्स वर्ल्ड में मुन्नी मोबाईल की जगह रेखा ने ले ली । तकनिकी की सहायता से धंधा आगे बढ़ा । यही इस उपन्यास की कथा वस्तु है ।
   वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जब विश्वग्राम की संकल्पना की जा रही है, तो सूचना-प्रौद्योगिकी क्रांति मानव-मानव को निकट लाने में बहुत सहायक बनती है । इस क्रांति के मोहजाल से हम प्रथक हो नहीं सकते । मानव समाज के बढती आवश्यकताओं की पूर्ती केलिए प्रौद्योगिकी अनिवार्य बन गयी  है । इस उपन्यास की विषयवस्तु में सूचना और प्रौद्योगिकी का दर्शन है । मुख्यपात्र मुन्नी नारी व्यापार केलिए सूचना और प्रौद्योगिकी का सही लेती है । इसके व्यापार की वृद्धि में आनंद भारती का मोबाईल और कंप्यूटर का महत्वपूर्ण स्थान है । विकास की ओर जो दौड़ है उसमें मानवीय मूल्यों का कोई स्थान नहीं है । विकास की इस अवधारणा ने उपभोक्तावादी जीवनशैली को जन्म दिया है । यह वर्तमान व्यवस्था मनुष्य को बुराइयों की ओर घसीट ली जाती है ।  नैतिकता की उसमें कोई जगह नहीं है । मूल्य शब्द का अर्थ ही बदल गया है । वह केवल पैसों  का हिसाब बन गया है । प्रौद्योगिकी की सहायता से आगे बढ़ी मुन्नी अंत में साइबर अपराध में फंस जाती है । उसकी बेटी रेखा होशियार थी लेकिन अपनी माँ की हत्या के बाद वह भी माँ के पथ पर ही चलती  है । प्रौद्योगिकी के सहारे सेक्स राकेट का बिसिनेस वह अच्छी तरह चलाती है । इंटरनेट, ब्लॉग आदि का उपयोग में रेखा समर्थ निकलती है ।
   प्रौद्योगिकी के विकास को केवल भौतिक सुखों केलिए इस्तेमाल करते हैं आज का मानव । मनुष्य केवल भौतिक चीज़ ही नहीं, उसके भीतर चेतना है, संवेदनशीलता भी है । उनकी तृप्ति प्रेम, करुणा, दया, सहानुभूति आदि कोमल भावों से होती है । संस्कृति को समझाये बिना जो तरक्की होती है वह समाज केलिए खतरनाक है । भौगोलिकरण और विश्वग्राम की परिकल्पना के इस अवसर पर हमारी संस्कृति की खूबियों के प्रसारण मैं सूचना और प्रौद्योगिकी का अहम भूमिका है ।

नंदकुमार. सी. डॉ. के.पी. पद्मावती अम्मा के निर्देशन में कर्पगम विश्वविद्यालय, कोयम्बतूर में शोधरत हैं ।
                                         


                                                         


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