Thursday, September 24, 2015

83 वर्ष बाद पुनर्प्रकाशित हुआ महावीर प्रसाद द्विवेदी अभिनंदन ग्रंथ

83 वर्ष बाद पुनर्प्रकाशित हुआ महावीर प्रसाद द्विवेदी अभिनंदन ग्रंथ

द्विवेदी अभिनंदन ग्रंथ स्वयं में एक विश्व हिंदी सम्मेलन है: रामबहादुर राय
-आशुतोष कुमार सिंह

दिल्ली में आए दिन साहित्यिक आयोजन होते रहते हैं। किताबों के लोकार्पण से लेकर हिन्दी की दशा-दिशा विषयक परिचर्चाएं आम हैं। लेकिन 20 सितंबर, 2015 को प्रवासी भवन में जो साहित्यिक आयोजन हुआ वह ऐतिहासिक था। एक महान साहित्यिक-पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी को याद किया जा रहा था। उनके साहित्यिक अवदान की चर्चा हो रही थी। मौका था ‘महावीर प्रसाद द्विवेदी अभिनंदन ग्रंथ’ ( पुनर्प्रकाशित ) के लोकार्पण का। 
इस मौके पर अपनी बात रखते हुए प्रख्यात लेखक व साहित्य आकदेमी के अध्यक्ष डॉ.विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि, ‘‘ पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी युग निर्माता और युग-प्रेरक थे। उन्होंने प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त जैसे लेखकों की रचनाओं में संशोधन किए। उन्होंने विभिन्न बोली-भाषा में विभाजित हो चुकी हिंदी को एक मानक रूप में ढालने का भी काम किया। वे केवल कहानी-कविता ही नहीं, बल्कि बाल साहित्य, विज्ञान, किसानों के लिए भी लिखते थे। हिंदी में प्रगतिशील चेतना की धारा का प्रारंभ द्विवेदी जी से ही हुआ।’’ 
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. मैनेजर पांडे ने इस ग्रंथ की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि, “यह भारतीय साहित्य का विश्वकोश है।” उन्होंने आचार्य जी की अर्थशास्त्र में रूचि व ‘‘संपत्ति शास्त्र’’ के लेखन, उनकी महिला विमर्श और किसानों की समस्या पर लेखन की विस्तृत चर्चा की। इस ग्रंथ में उपयोग की गयीं दुर्लभ चित्रों को अपनी चर्चा का विषय बनाते हुए गांधीवादी चिंतक अनुपम मिश्र ने इन चित्रों में निहित सामाजिक पक्ष पर प्रकाश डाला। उन्होंने नंदलाल बोस की कृति ‘‘रूधिर’’ और अप्पा साहब की कृति ‘‘मोलभाव’’ पर विशेष ध्यान दिलाते हुए उनकी प्रासंगिकता को रेखांकित किया और कहा कि सकारात्मक कार्य करने वाले जो भी केन्द्र हैं उनका विकेन्द्रिकरण जरूरी है। 
नीदरलैड से पधारीं प्रो. पुष्पिता अवस्थी ने कहा कि हिंदी सही मायने में उन घरों में ताकतवर है जहाँ पर भारतीय संस्कृति बसती है। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास की निदेशक व साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित लेखिका डॉ. रीटा चैधरी ने कहा कि, यह अवसर न्यास के लिए बेहद गौरवपूर्ण व महत्वपूर्ण है कि हम इस अनूठे ग्रंथ के पुनर्प्रकाशन के कार्य से जुड़ पाए। इस तरह की विशिष्ट सामग्री वाली पुस्तकों/ग्रंथों का अनुवाद अन्य भारतीय भाषाओं में भी होना चाहिए। डॉ. चौधरी ने इस ग्रंथ की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि यह ग्रंथ हिंदी का ही नहीं बल्कि भारतीयता का ग्रंथ है और उस काल का भारत-दर्शन है। 
चर्चा को आगे बढ़ाते हुए प्रख्यात पत्रकार रामबहादुर राय ने इन दिनों मुद्रित होने वाले नामी गिरामी लोगों के अभिनंदन ग्रंथों की चर्चा करते हुए कहा कि, “ऐसे ग्रंथों को लोग घर में रखने से परहेज करते हैं, लेकिन आचार्य द्विवेदी की स्मृति में प्रकाशित यह ग्रंथ हिंदी साहित्य, समाज, भाषा व ज्ञान का विमर्ष है न कि आचार्य द्विवेदी का प्रशंसा-ग्रंथ।” इस ग्रंथ की प्रासंगिकता व इसकी साहित्यिक महत्व को उल्लेखित करते हुए श्री राय ने यहां तक कहा कि, “यह ग्रंथ अपने आप में एक विश्व हिन्दी सम्मेलन है।” 
कार्यक्रम के प्रारंभ में गौरव अवस्थी ने महावीर प्रसाद द्विवेदी से जुड़ी स्मृतियों को पावर प्वाइंट के माध्यम से प्रस्तुत किया। इस प्रेजेंटेशन यह बात उभर कर सामने आयी कि किस तरह से रायबरेली का आम आदमी, मजूदर व किसान भी आचार्य द्विवेदी जी के प्रति स्नेह-भाव रखते हैं। अंत में पत्रकार अरविंद कुमार सिंह ने इस ग्रंथ के प्रकाशन हेतु राष्ट्रीय पुस्तक न्यास व इस आयोजन के लिए रायबरेली की जनता को धन्यवाद किया। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति, रायबरेली और राइटर्स एंड जर्नलिस्ट एसोसिएशन, दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम का संचालन पंकज चतुर्वेदी ने किया।
हिंदी साहित्य में क्यों महत्वपूर्ण है यह ग्रंथ?
हिन्दी साहित्य अपने आरंभ काल से लेकर अब लगातार विकास की ओर अग्रसर है। तमाम विधाओं में सामग्रियों का भंडार है हिंदी के पास। बावजूद इसके इस अभिनंदन ग्रंथ की महत्ता कुछ अलग ही है। सन् 1933 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा आचार्य द्विवेदी के सम्मान में प्रकाशित इस ग्रंथ मंब महात्मा गांधी, ग्रियर्सन, प्रेमंचद, सुमित्रानंदन पंत व सुभद्रा कुमारी चौहान सहित देश-दुनिया के ज्यादातर लोगों ने आलेख लिखे थे। कई दुर्लभ चित्रों से सज्जित यह ग्रंथ उस दौर की भारतीय संस्कृति व सरोकार को हमारे सामने आइने की तरह प्रस्तुत करता है। विगत कई वर्षों से यह दुर्लभ ग्रंथ पाठकों की सीमा से दूर था। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ तिवारी भी भी इस ग्रंथ का अवलोकन नहीं कर पाए थे। इस बात की पुष्टि इस कार्यक्रम में उन्होंने खुद की। वर्तमान पीढ़ी के लिए यह हर्ष का विषय है कि महावीर प्रसाद द्विवेदी युगिन साहित्य व संस्कृति को समझने हेतु कई नए आयाम यह ग्रंथ खोलेगा। 83 वर्ष पूर्व प्रकाशित यह ग्रंथ दुर्लभ हो चुका था, जिसे नेशनल बुक ट्रस्ट ने पुनर्प्रकाशित कर सुलभ बनाया है। इस सुलभ ज्ञान को आप पाठक कितना सहेज पाते हैं यह तो आप पर निर्भर करता है।

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