Monday, June 10, 2013

तेलुगु भाषा में हाइकु कविता का प्रचलन


आलेख
तेलुगु भाषा में हाइकु कविता का प्रचलन
       डॉ. वी. वेंकटेश्वरा

विश्व की प्रमुख भाषाओं में प्रचलित विधा-विशेष के रूप में हाइकुका अपना महत्व है । हाइकु मूलत: जापानी साहित्य की प्रमुख विधा है । बौद्ध धर्म की महायान शाखा पर आधारित जेन संप्रदाय का हाइकु कविता पर गहरा प्रभाव परिलक्षित है । विद्वानों का मत है कि जेन शब्द संस्कृत के ध्यान शब्द का जापानी प्रतिरूप है ।
हाइकु अपने मूल रूप में 5,7,5 क्रम के सत्रह अक्षरीय त्रिपदी मुक्तक रचना है । किसी क्षण-विशेष की सघन अनुभति की सरल एवं मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति हाइकु कहलाती है । चूंकि हाइकु को सहज अभिव्यक्ति का माध्यम माना जाता है, अत: इसमें अलंकारों का प्रयोग वर्जित  है । जापान के हाइकु कवियों में मात्सुओ बाशो (1644 - 1694), योसा बुशोन (1716-1784), कोबायाशि इस्सा (1762 - 1827), शिकि (1862 - 1902) आदि प्रसिद्ध हैं । 
तेलुगु में हाइकु कविता का श्रीगणेश बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुआ । प्रख्यात कवि दुव्वीरि रामिरेड्डी ने सन् 1923 में जापानी भाषा की कुछ हाइकुओं का तेलुगु में अनुवाद किया । प्रमुख साहित्यकार राळ्ळपल्लि अनंतकृष्ण शर्मा द्वारा प्राकृत भाषा से तेलुगु में अनूदित गाथा सप्तशती काव्य की भूमिका (सन् 1931) में प्रसिद्ध आलोचक सर कट्टमंचि रामलिंगा रेड्डी ने जापानी हाइकु कविता का जिक्र किया । तदुपरांत लंबे अरसे तक हाइकु विधा को तेलुगु साहित्य में स्थान नहीं मिला ।
1990 से तेलुगु में हाइकु प्रचलित होने लगी ।  तेलुगु में हाइकु विधा का सूत्रपात करने का श्रेय डॉ. गालि नासर रेड्डी को जाता है, जिनके पांच हाइकु आंध्रभूमि दैनिकी के दिनांक 4.3.1990 के रविवारीय अंक में प्रकाशित हुए । ये जून,1990 में प्रकाशित उनके काव्य-संग्रह 19 कवितलु (यानी 19 कविताएँ) में संकलित हैं । स्वर्गीय संजीवदेव तथा स्वर्गीय इस्माइल ने हाइकु कविता पर सारगर्भित निबंध लिखकर तेलुगु साहित्य में हाइकु को विशेष पहचान दिलाई । गालि नासर रेड्डी, इस्माइल, डॉ. पेन्ना शिवरामकृष्णा आदि हाइकुकारों ने इस विधा को गति प्रदान की । डॉ. पेन्ना शिवरामकृष्णा कृत रहस्य द्वारम् तेलुगु का प्रथम हाइकु-संग्रह है, जिसका प्रकाशन 1991 में हुआ । कंजिरा पत्रिका ने 1994 में गालि नासर रेड्डी द्वारा अनूदित हाइकु कविताओं का एक विशेषांक प्रकाशित किया, इसे गालि नासर रेड्डी का हाइकु अनुवाद संग्रह भी माना जा सकता    है ।  डॉ. तलतोटि पृथ्वीराज ने वर्ष 2002 में अनकापल्लि (विशाखपट्टणम् जिला) में इंडियन हाइकु क्लब की स्थापना की । वे पूरी तत्परता के साथ इस अभियान में जुड़े हुए हैं और हाइकु नाम से एक पत्रिका का संपादन कर रहे हैं । श्री वाड्रेवु चिनवीरभद्रुडु के अनेक लेख प्रकाशित हो चुके हैं । डॉ. अद्देपल्लि राममोहन रावु, डॉ. रेंटाला श्रीवेंकटेश्वर रावु, श्री माकिनीडि सूर्यभास्कर आदि समालोचकों का योगदान भी उल्लेखनीय है । डॉ. सत्य श्रीनिवासु ने हाइकु पर शोधकार्य किया है । उनका कहना है कि अन्य भारतीय भाषाओं की तुलना में हाइकु विधा तेलुगु में अधिक समृद्ध है ।
तेलुगु के कुछ प्रमुख हाइकु कवि और उनके हाइकु-संग्रह हैं –
1.      बी.वी.वी.प्रसाद – दृश्यादृश्यम् (1995), हाइकु (1997),पूलु रालायि (फूल गिरे हैं - 1999)
2.      इस्माइल       - कप्पल निश्शब्दम् (मेंढकों का मौन - 1997)
3.      माकिवीडि सूर्यभास्कर – हाइकु चित्रालु (1997)
4.      ललितानंद प्रसाद – आकाश दीपालु (1997)
5.      शिरीषा    - सीताकोक चिलुका (तितली - 1997)
6.      आकोंडि श्रीनिवास रावु – वर्ष संगीतम् (1998)
7.      के. रामचंद्रा रेड्डी – रंगुल निंगि (रंगीन आकाश - 1998)
8.      शंकर वेंकट नारायण रावु - हाइकु समयम् (1999)
9.      तलतोटि पृथ्वीराज – चिनुकुलु (बूंदें - 2000), वेन्नेला (चांदिनी - 2000)
10.  यडवल्लि रत्नमाला – वेन्नेल रात्रि वाना (चांदिनी रात की वर्षा - 2000)
11.  भग्वान – एटि ओड्डुन प्रयाणम् (नदी तट पर यात्रा - 2000)
12.  डॉ. रावि रंगारावु – सामाजिक हैकूलु (सामाजिक हाइकु - 2000)
13.  डॉ. एन. शैलजा – बाल्कनीलो पिच्चुका (छज्जे में गौरैया - 2000)
14.  पी.श्रीनिवास गौड – मुंजंत मृदुवैन हाइकु ( मुंजल-सा कोमल हाइकु - 2001)
15.  डॉ. रेंटाल श्रीवेंकटेश्वर रावु – पिट्टल कालनी (पक्षियों की कॉलोनी - 2010)
16.  लंका वेंकटेश्वर्लु – आकाशम् नेल पालयिंदि (आकाश धराशायी हो गया )
17.  अनिशेट्टि रजिता – दस्तखत
18.  शिखा आकाश – ऊरु, एरु, वेन्नेला (गाँव, तालाब और चांदनी)
इन संग्रहों के अलावा, अनेक कवियों के हाइकुओं से युक्त हाइकु-संकलन भी प्रकाशित हुए हैं, जिनमें से निम्नलिखित हाइकु-संकलन उल्लेखनीय हैं -
1.      मूडु बिंदुवुलु (यानी तीन बिंदुएं) - इसमें दासरि राजबाबु, एम. निर्मल कुमार तथा कट्टा श्रीनिवास रावु के हाइकु संकलित हैं ।
2.      नेलवंका (यानी चांद) - इसमें डॉ. तलतोटि पृथ्वीराज, गणपतिराजु चंद्रशेखर राजु, इम्मिडिशेट्टि चक्रपाणि, माधवी सनारा, पिळ्ळा नूकराजु, अच्युत गणपतिराजु नपसिंहराजु तथा जी. रंगबाबु के हाइकु संकलित हैं ।
3.      संबोधि - इसमें डॉ. तलतोटि पृथ्वीराज, इम्मिडिशेट्टि चक्रपाणि, डॉ. मळ्ळ राम अप्पारावु तथा डॉ. दाके अशोक कुमार के हाइकु संकलित हैं ।
4.      अरटि कुटीरम् (यानी केले का कुटीर) – यह राष्ट्रीय स्तर का तेलुगु हाइकु-संकलन है । डॉ. तलतोटि पृथ्वीराज ने इसका संपादन किया और इसमें 156 कवियों के 660 हाइकु संकलित हैं । 2004 में प्रकाशित यह संकलन तेलुगु हाइकु के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखता है ।
अन्य हाइकु कवियों में बी. वेंकट रावु, डालि, पी.एल.आर. स्वामी, शिखामणि, जुगाषविलि, बोल्लिमुंत वेकट रमणारावु, नल्ला नरसिंहमूर्ति, डॉ. पत्तिपाका मोहन, तुम्मिडि नागभूषणम्, जी. गोपालय्या, गोपिरेड्डि रामकृष्णा रावु, बोब्बिलि जोसेफ, रौतु रवि, वसुधा बसवेश्वर रावु, डॉ. डी. रूप कुमार आदि के नाम उल्लेखनीय हैं ।
प्रस्तुत हैं कुछ तेलुगु हाइकु –
1.      अनाथ बालिका
दया देकर दान में
चली गई                 बी.वी.वी. प्रसाद

2.      अगर मिलना है मुझसे
तो आ जाना तुम सीधे
मेरे घर के पिछवाड़े में   -     डॉ. तलतोटि पृथ्वीराज

3.      जल रही है लाश
खुद नष्ट करते हुए
अपनी छाया को  -           लंका वेंकटेश्वर्लु
4.      मुँह धोने के लिए
मैंने तालाब से लिया
आसमान का टुकड़ा      -     भगवान

5.      वर्षा की स्मृति
बांट रही है छत
धरा को               -     वसुधा बसवेश्वर रावु

कई तेलुगु हाइकुकारों ने हाइकु के छंद का पालन नहीं किया । यहां इस तथ्य को रेखांकित करने की आवश्यकता है कि 5,7,5 क्रम के 17 अक्षरों (सिलेबिल्स) का जो ढांचा है, उसका उल्लंघन बाशो और बुशोन की रचनाओं में भी पाया जाता है, अत: अपवाद को स्वीकार करना चाहिए - लीक छाँड़ि तीनों चलें सायर, सिंह, सपूत है न ! हाइकु में प्रकृति को अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, जबकि तेलुगु हाइकुकारों ने प्राकृतिक अंशों के साथ-साथ प्रचुर मात्रा में सामाजिक विषयों को भी समाहित किया है । फलत: तेलुगु हाइकु का वर्ण्य-विषय बहुत व्यापक हो गया है । दुर्भाग्यवश कुछ भी लिखकर हाइकु की संज्ञा देने की प्रवृत्ति भी देखी जा सकती है ।
आजकल तेलुगु में हाइकु कविता को लेकर बहुत कार्य हो रहा है ।  हाइकु खूब लिखे जा रहे हैं, पत्र-पत्रिकाएँ इनका प्रकाशन कर रही हैं और इस विधा पर गंभीरता से चर्चा हो रही है । निरंतर हाइकु संग्रह प्रकाशित हो रहे हैं, जिनमें कुछ हल्के संग्रह हैं तो कुछ अच्छे संग्रह भी हैं ।
***
संदर्भ ग्रंथ / लेख
1.  मूल्यांकनम् (निबंध-संग्रह) – बी. हनुमा रेड्डी (सं.), प्रकाशम् जिला रचयितला संघम्, ओंगोलु 2003.
2. हाइकु प्रस्थानम् (लेख) – लंका वेंकटेश्वर्लु, हाइकु मासिक, सितंबर, 2003       
3. तोलुगुलो हाइकु प्रवेशम् एप्पुडु (लेख) – पी. श्रीनिवास, आंध्र ज्योति दैनिकी, 13.9.2004

2 comments:



  1. aap haiku lekh ek darpan saa lagtaa hai, udaaharan bhee laajawaab hai, aur bhee adhyan kar lekh 2 mey jodle to h aur bhee rang jamegaa shubh kaamanaaye

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  2. aap haiku lekh ek darpan saa lagtaa hai, udaaharan bhee laajawaab hai, aur bhee adhyan kar lekh 2 mey jodle to h aur bhee rang jamegaa shubh kaamanaaye

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