कविता
दीप जले एक ऐसा जिससे जग में हो उजियारा
- हरिहर वैष्णव
दीप जले एक ऐसा जिससे जग में हो उजियारा
ऐसा मन में हो उजियारा।
मिटे हृदय का भेद, भेद दे जो भव का अँधियारा
जिससे जग में हो उजियारा।
रक्पात-हिंसा का आलम, जल जाये जिस दीप से
स्नेह और ममता का सागर, छलके नव उन्मेष से
ऐसा दीप हमें हो प्यारा, जिससे जग में हो उजियारा।
दीप जले एक ऐसा, जिससे मिटे कलुष मानव का
युगों से होता आया संचित, जिससे वले द्वेष अंतर-तल का
जो दूर करे अँधियारा, जिससे भव में हो उजियारा।
मंगलमय हो दीप पर्व, कर दे मंगल-मंगल सर्व
दीपित हों मन-मन्दिर सबके, ऐसा हो यह मंगल पर्व।
उम्दा पंक्तियाँ ..बेह्तरीन अभिव्यक्ति .बहुत अद्भुत अहसास.सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाये आपको और आपके समस्त पारिवारिक जनो को !
मंगलमय हो आपको दीपो का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..