Thursday, July 12, 2012

भक्ति और प्रेम

चिंतन

भक्ति और प्रेम

"भक्ति और प्रेम से मनुष्य नि:स्वार्थी बन सकता है। मनुष्य के मन में जब किसी व्यक्ति के प्रति श्रद्धा बढ़ती है तब उसी अनुपात में स्वार्थपरता घट जाती है।"
- विवेकानन्द 
 
(संकलन - डॉ. एस. बशीर, चेन्नई)

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