Wednesday, June 20, 2012

जागरण गीत

जागरण गीत



क्यों सो रहा.....

- आचार्य संजीव 'सलिल'

*

क्यों सो रहा मुसाफिर,

उठ भोर रही है.

चिड़िया चहक-चहककर,

नव आस बो रही है.

*

मंजिल है दूर तेरी,

कोई नहीं ठिकाना.

गैरों को माने अपना-

तू हो गया दीवाना.

आये घड़ी न वापिस

जो व्यर्थ खो रही है...

*

आया है हाथ खाली,

जायेगा हाथ खाली.

नातों की माया नगरी

तूने यहाँ बसा ली.

जो बोझ जिस्म पर है

चुप रूह ढो रही है...

*

दिन सोया रात जागा,

सपने सुनहरे देखे.

नित खोट सबमें खोजे,

नपने न अपने लेखे.

आँचल के दाग सारे-

की नेकी धो रही है...

*

1 comment:

  1. poorree kavtaa mey naseehat aur preranaa jhalaktee hai,khoobsoorat sandes nihit hai subhbkaamanaaye

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