Tuesday, November 29, 2011

ममता को सराहौं या सराहौं रमन सिंह को


नक्सलवाद के पीछे खतरनाक इरादों को कब समझेगा देश

नक्सलवाद के सवाल पर इस समय दो मुख्यमंत्री ज्यादा मुखर होकर अपनी बात कह रहे हैं एक हैं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह और दूसरी प.बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी। अंतर सिर्फ यह है कि रमन सिंह का स्टैंड नक्सलवाद को लेकर पहले दिन से साफ था, ममता बनर्जी अचानक नक्सलियों के प्रति अनुदार हो गयी हैं। सवाल यह है कि क्या हमारे सत्ता में रहने और विपक्ष में रहने के समय आचरण अलग-अलग होने चाहिए। आप याद करें ममता बनर्जी ने नक्सलियों के पक्ष में विपक्ष में रहते हुए जैसे सुर अलापे थे क्या वे जायज थे?


-संजय द्विवेदी



मुक्तिदाता कैसे बने खलनायकः आज जब इस इलाके में आतंक का पर्याय रहा किशन जी उर्फ कोटेश्वर राव मारा जा चुका है तो ममता मुस्करा सकती हैं। झाड़ग्राम में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस में सैकड़ों की जान लेने वाला यह खतरनाक नक्सली अगर मारा गया है तो एक भारतीय होने के नाते हमें अफसोस नहीं करना चाहिए।सवाल सिर्फ यह है कि कल तक ममता की नजर में मुक्तिदूत रहे ये लोग अचानक खलनायक कैसे बन गए। दरअसल यही हमारी राजनीति का असली चेहरा है। हम राजनीतिक लाभ के लिए खून बहा रहे गिरोहों के प्रति भी सहानुभूति जताते हैं और साथ हो लेते हैं। केंद्र के गृहमंत्री पी. चिदंबरम के खिलाफ ममता की टिप्पणियों को याद कीजिए। पर अफसोस इस देश की याददाश्त खतरनाक हद तक कमजोर है। यह स्मृतिदोष ही हमारी राजनीति की प्राणवायु है। हमारी जनता का औदार्य, भूल जाओ और माफ करो का भाव हमारे सभी संकटों का कारण है। कल तक तो नक्सली मुक्तिदूत थे, वही आज ममता के सबसे बड़े शत्रु हैं । कारण यह है कि उनकी जगह बदल चुकी है। वे प्रतिपक्ष की नेत्री नहीं, एक राज्य की मुख्यमंत्री जिन पर राज्य की कानून- व्यवस्था बनाए रखने की शपथ है। वे एक सीमा से बाहर जाकर नक्सलियों को छूट नहीं दे सकतीं। दरअसल यही राज्य और नक्सलवाद का द्वंद है। ये दोस्ती कभी वैचारिक नहीं थी, इसलिए दरक गयी।

राजनीतिक सफलता के लिए हिंसा का सहाराः नक्सली राज्य को अस्थिर करना चाहते थे इसलिए उनकी वामपंथियों से ठनी और अब ममता से उनकी ठनी है। कल तक किशनजी के बयानों का बचाव करने वाली ममता बनर्जी पर आरोप लगता रहा है कि वे राज्य में माओवादियों की मदद कर रही हैं और अपने लिए वामपंथ विरोधी राजनीतिक जमीन तैयार कर रही हैं लेकिन आज जब कोटेश्वर राव को सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ में मार गिराया है तो सबसे बड़ा सवाल ममता बनर्जी पर ही उठता है। आखिर क्या कारण है कि जिस किशनजी का सुरक्षा बल पूरे दशक पता नहीं कर पाये वही सुरक्षाबल चुपचाप आपरेशन करके किशनजी की कहानी उसी बंगाल में खत्म कर देते हैं, जहां ममता बनर्जी मुख्यमंत्री बनी बैठी हैं? कल तक इन्हीं माओवादियों को प्रदेश में लाल आतंक से निपटने का लड़ाका बतानेवाली ममता बनर्जी आज कोटेश्वर राव के मारे जाने पर बयान देने से भी बच रही हैं। यह कथा बताती थी सारा कुछ इतना सपाट नहीं है। कोटेश्लर राव ने जो किया उसका फल उन्हें मिल चुका है, किंतु ममता का चेहरा इसमें साफ नजर आता है- किस तरह हिंसक समूहों का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने राजनीतिक सफलताएं प्राप्त कीं और अब नक्सलियों के खिलाफ वे अपनी राज्यसत्ता का इस्तेमाल कर रही हैं। निश्चय ही अगर आज की ममता सही हैं, तो कल वे जरूर गलत रही होंगीं। ममता बनर्जी का बदलता रवैया निश्चय ही राज्य में नक्सलवाद के लिए एक बड़ी चुनौती है, किंतु यह उन नेताओं के लिए एक सबक भी है जो नक्सलवाद को पालने पोसने के लिए काम करते हैं और नक्सलियों के प्रति हमदर्दी रखते हैं।

छत्तीसगढ़ की ओर देखिएः यह स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं कि देश के मुख्यमंत्रियों में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने इस समस्या को इसके सही संदर्भ में पहचाना और केंद्रीय सत्ता को भी इसके खतरों के प्रति आगाह किया। नक्सल प्रभावित राज्यों के बीच समन्वित अभियान की बात भी उन्होंने शुरू की। इस दिशा परिणाम को दिखाने वाली सफलताएं बहुत कम हैं और यह दिखता है कि नक्सलियों ने निरंतर अपना क्षेत्र विस्तार ही किया है। किंतु इतना तो मानना पड़ेगा कि नक्सलियों के दुष्प्रचार के खिलाफ एक मजबूत रखने की स्थिति आज बनी है। नक्सलवाद की समस्या को सामाजिक-आर्थिक समस्या कहकर इसके खतरों को कम आंकने की बात आज कम हुयी है। डा. रमन सिंह का दुर्भाग्य है कि पुलिसिंग के मोर्चे पर जिस तरह के अधिकारी होने चाहिए थे, उस संदर्भ में उनके प्रयास पानी में ही गए। छत्तीसगढ़ में लंबे समय तक पुलिस महानिदेशक रहे एक आला अफसर, गृहमंत्री से ही लड़ते रहे और राज्य में नक्सली अपना कार्य़ विस्तार करते रहे। कई बार ये स्थितियां देखकर शक होता था कि क्या वास्तव में राज्य नक्सलियों से लड़ना चाहता है ? क्या वास्तव में राज्य के आला अफसर समस्या के प्रति गंभीर हैं? किंतु हालात बदले नहीं और बिगड़ते चले गए। ममता बनर्जी की इस बात के लिए तारीफ करनी पड़ेगी कि उन्होंने सत्ता में आते ही अपना रंग बदला और नए तरीके से सत्ता संचालन कर रही हैं। वे इस बात को बहुत जल्दी समझ गयीं कि नक्सलियों का जो इस्तेमाल होना था हो चुका और अब उनसे कड़ाई से ही बात करनी पड़ेगी। सही मायने में देश का नक्सल आंदोलन जिस तरह के भ्रमों का शिकार है और उसने जिस तरह लेवी वसूली के माध्यम से अपनी एक समानांतर अर्थव्यवस्था बना ली है, देश के सामने एक बड़ी चुनौती है। संकट यह है कि हमारी राज्य सरकारें और केंद्र सरकार कोई रास्ता तलाशने के बजाए विभ्रमों का शिकार है। नक्सल इलाकों का तेजी से विकास करते हुए वहां शांति की संभावनाएं तलाशनी ही होंगीं। नक्सलियों से जुड़े बुद्धिजीवी लगातार भ्रम का सृजन कर रहे हैं। वे खून बहाते लोगों में मुक्तिदाता और जनता के सवालों पर जूझने वाले सेनानी की छवि देख सकते हैं किंतु हमारी सरकार में आखिर किस तरह के भ्रम हैं? हम चाहते क्या हैं? क्या इस सवाल से जूझने की इच्छाशक्ति हमारे पास है?


देशतोड़कों की एकताः सवाल यह है कि नक्सलवाद के देशतोड़क अभियान को जिस तरह का वैचारिक, आर्थिक और हथियारों का समर्थन मिल रहा है, क्या उससे हम सीधी लडाई जीत पाएंगें। इस रक्त बहाने के पीछे जब एक सुनियोजित विचार और आईएसआई जैसे संगठनों की भी संलिप्पता देखी जा रही है, तब हमें यह मान लेना चाहिए कि खतरा बहुत बड़ा है। देश और उसका लोकतंत्र इन रक्तपिपासुओं के निशाने पर है। इसलिए इस लाल रंग में क्रांति का रंग मत खोजिए। इनमें भारतीय समाज के सबसे खूबसूरत लोगों (आदिवासियों) के विनाश का घातक लक्ष्य है। दोनों तरफ की बंदूकें इसी सबसे सुंदर आदमी के खिलाफ तनी हुयी हैं। यह खेल साधारण नहीं है। सत्ता,राजनीति, प्रशासन,ठेकेदार और व्यापारी तो लेवी देकर जंगल में मंगल कर रहे हैं किंतु जिन लोगों की जिंदगी हमने नरक बना रखी है, उनकी भी सुध हमें लेनी होगी। आदिवासी समाज की नैसर्गिक चेतना को समझते हुए हमें उनके लिए, उनकी मुक्ति के लिए नक्सलवाद का समन करना होगा। जंगल से बारूद की गंध, मांस के लोथड़ों को हटाकर एक बार फिर मांदर की थाप पर नाचते-गाते आदिवासी, अपना जीवन पा सकें, इसका प्रयास करना होगा। आदिवासियों का सैन्यीकरण करने का पाप कर रहे नक्सली दरअसल एक बेहद प्रकृतिजीवी और सुंदर समाज के जीवन में जहर घोल रहे हैं। जंगलों के राजा को वर्दी पहनाकर और बंदूके पकड़ाकर आखिर वे कौन सा समाज बनना चाहते हैं, यह समझ से परे है। भारत जैसे देश में इस कथित जनक्रांति के सपने पूरे नहीं हो सकते, यह उन्हें समझ लेना चाहिए। ममता बनर्जी ने इसे देर से ही सही समझ लिया है किंतु हमारी मुख्यधारा की राजनीति और देश के कुछ बुद्धिजीवी इस सत्य को कब समझेंगें, यह एक बड़ा सवाल है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

पत्रकारिता विश्वविद्यालय के सांध्यकालीन पाठयक्रमों में आवेदन करने की अंतिम तिथि कल



भोपाल, 28 नवम्बर । माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा प्रारम्भ किये गये सांध्यकालीन पाठयक्रमों के इच्छुक उम्मीदवार कल सायं 5 बजे तक प्रवेश हेतु आवेदन कर सकते हैं। विश्वविद्यालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार सांध्यकालीन पाठयक्रमों में आवेदन करने की अंतिम तिथि 30 नवम्बर 2011 निर्धारित की गई है। विश्वविद्यालय ने शैक्षणिक सत्र 2011-12 में वेब संचार, वीडियो प्रोडक्शन, पर्यावरण संचार, भारतीय संचार परम्पराएँ तथा योगिक स्वास्थ्य प्रबंधन एवं आध्यात्मिक संचार जैसे विषयों में सांध्यकालीन पी.जी. डिप्लोमा पाठयक्रम प्रारम्भ किये गये हैं। यह पाठयक्रम विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थियों के साथ-साथ नौकरीपेशा व्यक्तियों, सेवानिवृत्त लोगों, सैन्य अधिकारियों तथा गृहणियों के लिए भी उपलब्ध होंगे।



विश्वविद्यालय द्वारा पाँच सम्भावनाओं से भरे क्षेत्रों में सांध्यकालीन पी.जी.डिप्लोमा पाठयक्रम प्रारम्भ किये गये हैं। विश्वविद्यालय का सांध्यकालीन वेब संचार पाठयक्रम अखबारों के ऑनलाईन संस्करण, वेब पोर्टल, वेब रेडियो एवं वेब टेलीविजन जैसे क्षेत्रों के लिए कुशलकर्मी तैयार करने के उद्देश्य से प्रारम्भ किया गया है। वीडियो कार्यक्रम के निर्माण सम्बन्धी तकनीकी एवं सृजनात्मक पक्ष के साथ स्टूडियो एवं आउटडोर शूटिंग, नॉनलीनियर सम्पादन, डिजिटल उपकरणों के संचालन आदि के सम्बन्ध में कुशल संचारकर्मी तैयार करने के उद्देश्य से वीडियो प्रोडक्शन का सांध्यकालीन पाठयक्रम प्रारम्भ किया गया है। पर्यावरण आज समाज में ज्वलंत विषय है। पर्यावरण के विविध पक्षों की जानकारी प्रदान करने एवं इस क्षेत्र के लिए विशेष लेखन-कौशल विकसित करने के उद्देश्य से पर्यावरण संचार का सांध्यकालीन पाठयक्रम तैयार किया गया है। योग, स्वास्थ्य और आध्यात्म के क्षेत्र में व्यवहारिक प्रशिक्षण प्रदान करने तथा इस क्षेत्र के लिए कुशल कार्यकर्ता को तैयार करने के उद्देश्य से योगिक स्वास्थ्य प्रबंधन एवं आध्यात्मिक संचार का सांध्यकालीन पाठयक्रम प्रारम्भ किया गया है। भारतीय दर्शन एवं प्राचीन भारतीय धर्मग्रंथों में मौजूद संचार के विभिन्न स्वरूपों की शिक्षा एवं वर्तमान सामाजिक परिदृश्य में उनके सार्थक उपयोग की दृष्टि विकसित करने के उद्देश्य से भारतीय संचार परम्पराओं में सांध्यकालीन पाठयक्रम तैयार किया गया है।



पाठयक्रमों में प्रवेश स्नातक परीक्षा में प्राप्त अंकों की मेरिट के आधार पर दिया जायेगा। पाठयक्रमों की अवधि एक वर्ष है। प्रत्येक पाठयक्रम का शुल्क 10,000 रुपये रखा गया है जो विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित किश्तों में देय होगा। प्रवेश हेतु विवरणिका एवं आवेदन पत्र विश्वविद्यालय के भोपाल परिसर में 150/- रुपये (अ.ज./अ.ज.जा. के लिए 100/- रुपये) जमा कर प्राप्त किये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय की वेबसाईट www.mcu.ac.in से विवरणिका एवं आवेदन पत्र डाउनलोड कर निर्धारित राशि के डी.डी. के साथ आवेदन जमा किया जा सकता है। अधिक जानकारी के लिए टेलीफोन नम्बर 0755-2553523 पर सम्पर्क किया जा सकता है।



(डॉ. पवित्र श्रीवास्तव)निदेशक- प्रवेश

Monday, November 21, 2011

गोवा में मिला ‘हम सब साथ साथ’ के सदस्यों को सम्मान



गोवा में मिला ‘हम सब साथ साथ’ के सदस्यों को सम्मान



गोवा। पिछले दिनों कर्नाटक की प्रसिद्ध शैक्षिक, सामाजिक व सांस्कृतिक संस्था शिक्षक विकास परिषद ने ज्ञानदीप मंडल एवं शिक्षक विकास प्रतिष्ठान के साथ मिलकर गोवा में 17वें राष्ट्रीय शैक्षिक सम्मेलन का 2 दिवसीय आयोजन किया। इस आयोजन की मुख्य अतिथि थीं दिल्ली निवासी प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. राज बुद्धिराजा। अन्य विशिष्ट अतिथियों में सर्वश्री पांडुरंग नाइक, मोहन नाइक, डॉ दिवाकर गौर, विजय पंडित, डॉ. विजयेन्द्र शर्मा, डॉ. आर. एल. शिवहरे आदि शामिल रहे। सम्मेलन के पहले दिन उद्घाटन सत्र में अनेक वक्ताओं ने अपने सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए। संस्था के अध्यक्ष श्री आर. वी. कुलकर्णी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्था की गतिविधियों का परिचय दिया। इस सम्मेलन में कला प्रदर्शनी, शैक्षिक विचार-विमर्श एवं विभिन्न सांस्कृतिक व साहित्यिक कार्यक्रमों का सुदर व भव्य आयोजन किया गया। इसमें ढेर सारे स्कूली बच्चों ने भी भाग लिया।

सम्मेलन के विभिन्न सत्रों में देश के दूर दराज क्षेत्रों से पधारी विभिन्न साहित्यिक, सामाजिक, शैक्षिक व सांस्कृतिक क्षेत्र की अनेक प्रतिभाओं को राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय सम्मान भी प्रदान किया गया। इसमें जहाँ लाइफ टाइम अचीवमेंट राष्ट्रीय अवार्ड से डॉ. राज बुद्धिराजा को सम्मानित किया गया वहीं हम सब साथ साथ के सदस्यों सर्वश्री अखिलेश द्धिवेदी अकेला (दिल्ली) व डॉ. जगदीश चंद्र शर्मा (राजस्थान) को राष्ट्रीय साहित्य भूषण तथा डॉ. दिवाकर दिनेश गौड़ (गुजरात) को राष्ट्रीय शिक्षक भूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया। सम्मेलन के दौरान हम सब साथ साथ के सदस्यों सर्वश्री नमिता राकेश (फरीदाबाद) व किशोर श्रीवास्तव ( दिल्ली ) को भी विशेष सम्मान प्रदान किया गया।

रपटः इरफान सैफी राही, नई दिल्ली

Saturday, November 19, 2011

नेतृत्व ईमानदार हो तो भारत बनेगा सुपरपावरः डा. गुप्त


पत्रकारिता विश्वविद्यालय में “विविधता और अनेकता में एकता के सूत्र” पर व्याख्यान

प्रख्यात अर्थशास्त्री व दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे डा. बजरंगलाल गुप्त का कहना है कि भारत को अगर ईमानदार, नैतिक और आत्मविश्वासी नेतृत्व मिले तो देश सुपरपावर बन सकता है। वे यहां माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में "विविधता व अनेकता में एकता के सूत्र" विषय पर आयोजित व्याख्यान में मुख्यवक्ता की आसंदी से बोल रहे थे । उन्होंने कहा कि दुनिया के अंदर बढ़ रहे तमाम तरह के संघर्षों से मुक्ति का रास्ता भारतीय संस्कृति ही दिखलाती है क्योंकि यह विविधता में विश्वास करती है। सबको साथ लेकर चलने का भरोसा जगाती है। सभी संस्कृतियों के लिए परस्पर सम्मान व अपनत्व का भाव ही भारतीयता की पहचान है। उनका कहना था कि सारी विचारधाराएं विविधता को नष्ट करने और एकरूपता स्थापित करने पर आमादा हैं, जबकि यह काम अप्राकृतिक है। उन्होंने कहा कि एक समय हमारे प्रकृति प्रेम को पिछड़ापन कहकर दुत्कारने वाले पश्चिमी देश भी आज भारतीय तत्वज्ञान को समझने लगे हैं । जहाँ ये देश एक धर्म के मानक पर एकता की बात करते हैं, वहीं भारत समस्त धर्मों का सम्मान कर परस्पर अस्मिता के विचार को चरितार्थ करता आया है । शिकागो में अपने भाषण में स्वामी विवेकानंद ने भी इसी बात की पुष्टि की थी । उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति की प्रासंगिकता आज भी है, क्योंकि यह वसुधैव कुटुम्बकम की बात करती है। जबकि पश्चिमी देश तो हमेशा से पूंजीवाद व व्यक्तिवाद पर जोर देते आए हैं जो 2007 के सबसे बड़े आर्थिक संकट का कारण बना । वाल स्ट्रीट के खिलाफ चल रहे नागरिक संघर्ष भी इसकी पुष्टि करते हैं। सोवियत संघ का विघटन भी साम्यवाद की गलत आर्थिक पद्धति को अपनाने से ही हुआ। श्री गुप्त ने यह भी कहा कि गरीबों का अमीर देश कहा जाने वाला भारत जैव-विविधता से संपन्न है, जिस पर पश्चिम की बुरी नज़र है । अपनी इसी निधि का संरक्षण हमारा कर्तव्य है, जिससे हम भविष्य में भी स्वावलंबी व मज़बूत बने रहेंगे ।


कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि हमें विकास का नया रास्ता तलाशना होगा। भारतीय जीवन मूल्य ही विविधता स्वीकार्यता और सम्मान देते हैं। इसका प्रयोग मीडिया, मीडिया शिक्षा और जीवन में करने की आवश्यक्ता है। उनका कहना था कि मानवता के हित में हमें अपनी यह वैश्विक भूमिका स्वीकार करनी होगी। कार्यक्रम का संचालन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया। कार्यक्रम के प्रारंभ में कुलपति प्रो.बृजकिशोर कुठियाला ने शाल-श्रीफल पुष्पगुच्छ एवं पुस्तकों का सेट भेंट करके डा.बजरंगलाल गुप्त का अभिनदंन किया। व्याख्यान के बाद डॉ. गुप्त ने श्रोताओं के प्रश्नों के भी उत्तर दिए । कार्यक्रम में प्रो. अमिताभ भटनागर, प्रो. आशीष जोशी, डा. श्रीकांत सिंह, डा. पवित्र श्रीवास्तव, पुष्पेंद्रपाल सिंह, डा. आरती सारंग, दीपेंद्र सिंह बधेल, डा. अविनाश वाजपेयी मौजूद रहे।


संजय द्विवेदी

Wednesday, November 16, 2011

सबसे कम उम्र में 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' Akshitaa honoured as youngest ‘National Child Award’ Winner



सबसे कम उम्र में 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' प्राप्त कर नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) ने बनाया कीर्तिमान

आज के आधुनिक दौर में बच्चों का सृजनात्मक दायरा बढ़ रहा है. वे न सिर्फ देश के भविष्य हैं, बल्कि हमारे देश के विकास और समृद्धि के संवाहक भी. जीवन के हर क्षेत्र में वे अपनी प्रतिभा का डंका बजा रहे हैं. बेटों के साथ-साथ बेटियाँ भी जीवन की हर ऊँचाइयों को छू रही हैं. ऐसे में वर्ष 1986 से हर वर्ष शिक्षा, संस्कृति, कला, खेल-कूद तथा संगीत आदि के क्षेत्रों में उत्कृष्ट उपलब्धि हासिल करने वाले बच्चों हेतु हेतु महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' आरम्भ किये गए हैं। चार वर्ष से पन्द्रह वर्ष की आयु-वर्ग के बच्चे इस पुरस्कार को प्राप्त करने के पात्र हैं.

वर्ष 2011 के लिए 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' 14 नवम्बर 2011 को विज्ञानं भवन, नई दिल्ली में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में भारत सरकार की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती कृष्णा तीरथ द्वारा प्रदान किये गए. विभिन्न राज्यों से चयनित कुल 27 बच्चों को ये पुरस्कार दिए गए, जिनमें मात्र 4 साल 8 माह की आयु में सबसे कम उम्र में पुरस्कार प्राप्त कर अक्षिता (पाखी) ने एक कीर्तिमान स्थापित किया. गौरतलब है कि इन 27 प्रतिभाओं में से 13 लडकियाँ चुनी गई हैं. सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भारतीय डाक सेवा के निदेशक और चर्चित लेखक, साहित्यकार, व ब्लागर कृष्ण कुमार यादव एवं लेखिका व ब्लागर आकांक्षा यादव की सुपुत्री और पोर्टब्लेयर में कारमेल सीनियर सेकेंडरी स्कूल में के. जी.- प्रथम की छात्रा अक्षिता (पाखी) को यह पुरस्कार कला और ब्लागिंग के क्षेत्र में उसकी विलक्षण उपलब्धि के लिए दिया गया है. इस अवसर पर जारी बुक आफ रिकार्ड्स के अनुसार- ''25 मार्च, 2007 को जन्मी अक्षिता में रचनात्मकता कूट-कूट कर भरी हुई है। ड्राइंग, संगीत, यात्रा इत्यादि से सम्बंधित उनकी गतिविधियाँ उनके ब्लाॅग ’पाखी की दुनिया (http://pakhi-akshita.blogspot.com/) पर उपलब्ध हैं, जो 24 जून, 2009 को आरंभ हुआ था। इस पर उन्हें अकल्पनीय प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं। 175 से अधिक ब्लाॅगर इससे जुडे़ हैं। इनके ब्लाॅग 70 देशों के 27000 से अधिक लोगों द्वारा देखे गए हैं। अक्षिता ने नई दिल्ली में अप्रैल, 2011 में हुए अंतर्राष्ट्रीय ब्लाॅगर सम्मेलन में 2010 का ’हिंदी साहित्य निकेतन परिकल्पना का सर्वोत्कृष्ट पुरस्कार’ भी जीता है।इतनी कम उम्र में अक्षिता के एक कलाकार एवं एक ब्लाॅगर के रूप में असाधारण प्रदर्शन ने उन्हें उत्कृष्ट उपलब्धि हेतु 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार, 2011' दिलाया।''इसके तहत अक्षिता को भारत सरकार की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती कृष्णा तीरथ द्वारा 10,000 रूपये नकद राशि, एक मेडल और प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया.

यही नहीं यह प्रथम अवसर था, जब किसी प्रतिभा को सरकारी स्तर पर हिंदी ब्लागिंग के लिए पुरस्कृत-सम्मानित किया गया. अक्षिता का ब्लॉग 'पाखी की दुनिया' (www.pakhi-akshita.blogspot.com/) हिंदी के चर्चित ब्लॉग में से है और इस ब्लॉग का सञ्चालन उनके माता-पिता द्वारा किया जाता है, पर इस पर जिस रूप में अक्षिता द्वारा बनाये चित्र, पेंटिंग्स, फोटोग्राफ और अक्षिता की बातों को प्रस्तुत किया जाता है, वह इस ब्लॉग को रोचक बनता है.

Akshitaa honoured as youngest ‘National Child Award’ Winner

Coming events cast their shadows before. All that's required afterwards is nurturing of talent. It’s come true for Akshitaa, a 4 year 8 months old girl. Studying in KG-I grade of Carmel Sr. Secondary School, Port Blair, Akshitaa's exceptional performance as an artist and as a blogger at such a young age, has earned her the ‘National Child Award’ for Exceptional Achievement, 2011. The award was presented by Hon'ble Smt. Krishna Tirath, Minister of State for Women and Child Development, Government of India on 14th November, 2011 on Children's Day at Vigyan Bhavan, New Delhi.

It is mentionworthy that The Government of India instituted the National Child Awards for Exceptional Achievement in 1996 to give recognition to children with exceptional abilities who have achieved outstanding status in fields such as academics, culture, arts, sports, music, etc. Children in the age group of 4-15 years are eligible for this award. This year Award was given to 27 Awardees from different states/UTs of India and Andaman-Nicobar Islands was represented by Akshitaa. Among 27 awardees Akshitaa was youngest child. Hon'ble Minister Smt. Krishna Tirath was so impressed to see such a young girl as Awardee and she blessed her wishes for her bright future. Akshitaa was not only youngest child to get the award but she also created history as this was the first time when any award for exceptional performance as a blogger was given by Govt. of India. The Award carries a cash prize of Rs. 10,000/- , a silver medal and a Certificate.

Akshita is a very small aged girl, but she has an inner self lit with creativity which shall be seen by her drawings and imagination in that. Not only that, she is a very famous blogger too. Being in a very small age It can’t think that she will write herself, but in her blog all the thoughts are given by Akshitaa and it is expressed in words by her parents. In the beginning, when her first drawing was seen by her parents they thought of it only as rubbish as every parents think. But they became serious when they got an appeal in her drawing. Her drawing is not only appreciated in India but also abroad. Her father Mr. K.K Yadav is Director of Postal Services in A&N islands and mother Mrs. Akanksha is a lecturer in College. Both of them are well known writers, poets & bloggers . Name of Akshitaa’s blog is – ‘Pakhi Ki Dunia’ (http://pakhi-akshita.blogspot.com). By this name itself someone can feel how the blog will be; and in real it is so sweet and exciting with many colorful things like her drawing, her curiosity to know everything, variety of knowledge etc. By seeing that so many people think whether it is possible for a 4 year 8 months old girl, but it’s true that talent is beyond any rule and regulation like age. It needs only the right way to express itself.


Monday, November 14, 2011

माखनलाल विवि के पराक्रम ने दिल्ली में दिखाया पराक्रम



राष्ट्रीय वाद-विवाद प्रतियोगिता में जीता प्रथम पुरस्कार


राष्ट्रीय वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाने वाले पराक्रम सिंह शेखावत को पुरस्कृत करते हुए संसद सदस्य एवं भारतीय संसदीय संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ. पी.के. पटासानी।



भोपाल 14 नवंबर । माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के विद्यार्थी पराक्रम सिंह शेखावत ने दिल्ली में आयोजित सातवीं सतपाल मित्तल अंतर विश्वविद्यालयीन राष्ट्रीय वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार जीतकर विश्वविद्यालय का ही नहीं, बल्कि पूरे मध्यप्रदेश का नाम रौशन किया है। भारतीय संसदीय संस्थान – जनसंख्या एवं विकास (आईएपीपीडी) के तत्त्वावधान में आयोजित इस अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालयीन प्रतियोगिता में देश भर के 42 विश्वविद्यालयों ने भाग लिया। इस वर्ष प्रतियोगिता का विषय ‘पर्यावरण संरक्षण के प्रति महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अधिक सचेत हैं’, था।

एमबीए (मनोरंजन संचार) पाठ्यक्रम के विद्यार्थी पराक्रम सिहं ने विषय के पक्ष में विचार रखते हुए न केवल बार-बार दर्शकों व प्रतिभागियों की तालियां बटोरीं, बल्कि निर्णायक मंडल ने भी उसकी प्रस्तुति की खुलकर प्रशंसा की। प्रथम पुरस्कार के रूप में पराक्रम सिंह को एक ट्रॉफी और प्रमाणपत्र के अलावा 15000 रुपये की राशि का चैक प्राप्त हुआ है। विश्वविद्यालय की टीम में पराक्रम सिंह के अलावा एमए विज्ञापन एवं जनसंपर्क पाठ्यक्रम के विद्यार्थी शुभ तिवारी शामिल हुए और टीम इन्चार्ज और मार्गदर्शक के रूप में विश्वविद्यालय के शिक्षक श्री सुरेन्द्र पॉल ने टीम का प्रतिनिधित्व किया।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने प्रथम पुरस्कार प्राप्त करने पर पराक्रम सिंह को हार्दिक बधाई और आशीर्वाद दिया है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में सांस्कृतिक और सृजनात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय ने विशेष योजना बनाई है। इसके तहत विश्वविद्यालय विद्यार्थियों को विशेष सुविधाएं मुहैया करा रहा है। पराक्रम सिंह की उपलब्धि विश्वविद्यालय के अन्य विद्यार्थियों को भी सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करेगी।

भारतीय संसदीय संस्थान ने देश भर के विश्वविद्यालयों को वाद-विवाद प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए पत्र लिखा था। जिसके तहत प्रत्येक विश्वविद्यालय से एक विद्यार्थी को पक्ष में और एक विद्यार्थी को विपक्ष में नामांकित किया जाना था एवं विश्वविद्यालय स्तर पर संपन्न होने वाली अंतर विभागीय वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को भी पुरस्कृत करने का प्रावधान था। विश्वविद्यालय द्वारा 10 अक्टूबर 2011 को आयोजित वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर पराक्रम सिंह शेखावत, द्वितीय स्थान पर शुभ तिवारी एवं तृतीय स्थान पर एमजे पाठ्यक्रम की छात्रा अंशु सिन्हा रही। भारतीय संसदीय संस्थान –जनसंख्या एवं विकास ने इन छात्रों को क्रमशः प्रथम स्थान के लिए रूपये 3000 द्वितीय स्थान के लिए रूपये 2000 एवं तृतीय स्थान के लिए 1500 रूपये का पुरस्कार एवं प्रमाणपत्र भी प्रदान किया है। इसी तारतम्य में पराक्रम सिहं शेखावत एवं शुभ तिवारी ने अखिल भारतीय स्तर पर विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया।

(डॉ. पवित्र श्रीवास्तव)

अध्यक्ष विज्ञापन एवं जनसंपर्क विभाग

पत्रकारिता विश्वविद्यालय में सांध्यकालीन पाठयक्रम प्रारम्भ

पत्रकारिता विश्वविद्यालय में सांध्यकालीन पाठयक्रम प्रारम्भ




माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा मीडिया एवं संचार शिक्षा के क्षेत्र में नई पहल करते हुये अंशकालिक सांध्यकालीन पाठयक्रम प्रारम्भ किये हैं। यह पाठयक्रम विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थियों के साथ-साथ नौकरीपेशा व्यक्तियों, सेवानिवृत्त लोगों, सैन्य अधिकारियों तथा गृहणियों के लिए भी उपलब्ध होंगे। विश्वविद्यालय द्वारा वैब संचार, वीडियो प्रोडक्शन, पर्यावरण संचार, भारतीय संचार परम्पराएँ तथा योगिक स्वास्थ्य प्रबंधन एवं आध्यात्मिक संचार जैसे विषयों में सांध्यकालीन पी.जी. डिप्लोमा पाठयक्रम प्रारम्भ किये गये हैं।

विश्वविद्यालय द्वारा पाँच सम्भावनाओं से भरे क्षेत्रों में सांध्यकालीन पी.जी.डिप्लोमा पाठयक्रम प्रारम्भ किये गये हैं। विश्वविद्यालय का सांध्यकालीन वैब संचार पाठयक्रम अखबारों के ऑनलाईन संस्करण, वैब पोर्टल, वैब रेडियो एवं वैब टेलीविजन जैसे क्षेत्रों के लिए कुशलकर्मी तैयार करने के उद्देश्य से प्रारम्भ किया गया है। वीडियो कार्यक्रम के निर्माण सम्बन्धी तकनीकी एवं सृजनात्मक पक्ष के साथ स्टुडियो एवं आउटडोर शूटिंग, नॉनलीनियर सम्पादन, डिजिटल उपकरणों के संचालन आदि के सम्बन्ध में कुशल संचारकर्मी तैयार करने के उद्देश्य से वीडियो प्रोडक्शन का सांध्यकालीन पाठयक्रम प्रारम्भ किया गया है। पर्यावरण आज समाज में ज्वलंत विषय है। पर्यावरण के विविध पक्षों की जानकारी प्रदान करने एवं इस क्षेत्र के लिए विशेष लेखन-कौशल विकसित करने के उद्देश्य से पर्यावरण संचार का सांध्यकालीन पाठयक्रम तैयार किया गया है। योग, स्वास्थ्य और आध्यात्म के क्षेत्र में व्यवहारिक प्रशिक्षण प्रदान करने तथा इस क्षेत्र के लिए कुशल कार्यकर्ता को तैयार करने के उद्देश्य से योगिक स्वास्थ्य प्रबंधन एवं आध्यात्मिक संचार का सांध्यकालीन पाठयक्रम प्रारम्भ किया गया है। भारतीय दर्शन एवं प्राचीन भारतीय धर्मग्रंथों में मौजूद संचार के विभिन्न स्वरूपों की शिक्षा एवं वर्तमान सामाजिक परिदृश्य में उनके सार्थक उपयोग की दृष्टि विकसित करने के उद्देश्य से भारतीय संचार परम्पराओं में सांध्यकालीन पाठयक्रम तैयार किया गया है।

सांध्यकालीन पाठयक्रमों के सम्बन्ध में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.के.कुठियाला ने बताया कि विश्वविद्यालय में अपनी अकादमिक विस्तार योजना के तहत अंशकालिक सांध्यकालीन पाठयक्रम प्रारम्भ किये हैं। आज के प्रतिस्पर्धापूर्ण दौर में युवाओं को सामान्य डिग्री के साथ विशेषीकृत शिक्षा की आवश्यकता है। इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए विश्वविद्यालय में सांध्यकालीन पाठयक्रम प्रारम्भ करने का निर्णय लिया है। यह पाठयक्रम विभिन्न विषयों का अध्ययन कर रहे विद्यार्थियों को अपनी नियमित पढ़ाई के साथ ही सांध्यकालीन समय में उपलब्ध होंगे। साथ-साथ नौकरीपेशा व्यक्ति, सेवानिवृत्त व्यक्ति, गृहणियाँ तथा सैन्य अधिकारी भी इन पाठयक्रमों में प्रवेश ले सकते हैं।

पाठयक्रमों में प्रवेश स्नातक परीक्षा में प्राप्त अंकों की मेरिट के आधार पर दिया जायेगा। पाठयक्रमों की अवधि एक वर्ष है। प्रत्येक पाठयक्रम का शुल्क 10,000रुपये रखा गया है जो विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित किश्तों में देय होगा। प्रवेश हेतु विवरणिका एवं आवेदन पत्र विश्वविद्यालय के भोपाल परिसर में 150रुपये जमा कर प्राप्त किये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय की वेबसाईट www.mcu.ac.in से विवरणिका एवं आवेदन पत्र डाउनलोड कर 150 रुपये का डी.डी. के साथ आवेदन जमा किया जा सकता है। आवदेन करने की अंतिम तिथि 19 नवम्बर 2011 है। अधिक जानकारी के लिए टेलीफोन नम्बर 0755-2553523 पर सम्पर्क किया जा सकता है।



(डॉ. पवित्र श्रीवास्तव)निदेशक, प्रवेश

नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' हेतु चयनित

नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' हेतु चयनित



प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती. तभी तो पाँच वर्षीया नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) को वर्ष 2011 हेतु राष्ट्रीय बाल पुरस्कार (National Child Award) के लिए चयनित किया गया है. सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भारतीय डाक सेवा के निदेशक और चर्चित लेखक, साहित्यकार, व ब्लागर कृष्ण कुमार यादव एवं लेखिका व ब्लागर आकांक्षा यादव की सुपुत्री अक्षिता को यह पुरस्कार 'कला और ब्लागिंग' (Excellence in the Field of Art and Blogging) के क्षेत्र में शानदार उपलब्धि के लिए बाल दिवस, 14 नवम्बर 2011 को विज्ञानं भवन, नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में भारत सरकार की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती कृष्णा तीर्थ जी द्वारा प्रदान किया जायेगा. इसके तहत अक्षिता को 10,000 रूपये नकद राशि, एक मेडल और प्रमाण-पत्र दिया जायेगा.



यह प्रथम अवसर होगा, जब किसी प्रतिभा को सरकारी स्तर पर हिंदी ब्लागिंग के लिए पुरस्कृत-सम्मानित किया जायेगा. अक्षिता का ब्लॉग 'पाखी की दुनिया' (www.pakhi-akshita.blogspot.com/) हिंदी के चर्चित ब्लॉग में से है. फ़िलहाल अक्षिता पोर्टब्लेयर में कारमेल सीनियर सेकेंडरी स्कूल में के. जी.- प्रथम की छात्रा हैं और उनके इस ब्लॉग का सञ्चालन उनके माता-पिता द्वारा किया जाता है, पर इस पर जिस रूप में अक्षिता द्वारा बनाये चित्र, पेंटिंग्स, फोटोग्राफ और अक्षिता की बातों को प्रस्तुत किया जाता है, वह इस ब्लॉग को रोचक बनता है.



नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) को इस गौरवमयी उपलब्धि पर अनेकोंनेक शुभकामनायें और बधाइयाँ !!



- दुर्ग विजय सिंह 'दीप'


उपनिदेशक-आकाशवाणी (समाचार प्रभाग)


, आल इण्डिया रेडियो, पोर्टब्लेयर


अंडमान-निकोबार द्वीप समूह.

Sunday, November 13, 2011

सुधीर, गीताश्री और संदीप को सृजनगाथा सम्मान


बैंकाक में सम्मानित होंगे हिन्दी के रचनाकार







रायपुर । वरिष्ठ कवि व 'दुनिया इन दिनों' के प्रधान संपादक डॉ. सुधीर सक्सेना,

भोपाल को उनकी कविता संग्रह 'रात जब चंद्रमा बजाता है' तथा स्त्री विमर्श के

लिए प्रतिबद्ध लेखिका व आउटलुक, हिन्दी की सहायक संपादिका, गीताश्री को उनकी

संपादित कृति 'नागपाश में स्त्री' तथा युवा पत्रकार, दैनिक भारत भास्कर

(रायपुर) के संपादक श्री संदीप तिवारी 'राज' की पहली कृति 'ये आईना मुझे बूढ़ा

नहीं होने देता' के लिए वर्ष 2011 के सृजनगाथा सम्मान (www.srijangatha.com )

से नवाजा गया है । यह निर्णय देश के चुनिंदे 1000 युवा साहित्यकार-पाठकों की

राय पर निर्धारित किया गया । यह सम्मान उन्हें चौंथे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन,

बैंकाक, थाईलैंड में 17 दिसंबर, 2011 को दी जायेगी । सम्मान स्वरूप उन्हें

11-11 हजार का चेक, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह और साहित्यिक कृतियां भेंट की

जायेंगी ।

ज्ञातव्य हो कि साहित्य, संस्कृति और भाषा के लिए प्रतिबद्ध साहित्यिक संस्था

(वेब पोर्टल )सृजन गाथा डॉट कॉम पिछले पाँच वर्षों से ऐसी युवा विभूतियों को

सम्मानित कर रही है जो कला, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय

योगदान दे रहे हैं । इसके अलावा वह तीन अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलनों का

संयोजन भी कर चुकी है जिसका पिछला आयोजन मॉरीशस में किया गया था ।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी और हिंदी-संस्कृति को प्रतिष्ठित करने के लिए

संस्था द्वारा, किये जा रहे प्रयासों और पहलों के अनुक्रम में आगामी 15 से 21

दिसंबर तक थाईलैंड में चतुर्थ अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया जा

रहा है । सम्मेलन में हिंदी के आधिकारिक विद्वान, अध्यापक, लेखक, भाषाविद्,

पत्रकार, टेक्नोक्रेट एवं हिंदी प्रचारक भाग ले रहे हैं । सम्मेलन का मूल

उद्देश्य स्वंयसेवी आधार पर हिंदी-संस्कृति का प्रचार-प्रसार, भाषायी

सौहार्द्रता एवं सांस्कृतिक अध्ययन-पर्यटन का अवसर उपलब्ध कराना है। उक्त अवसर

पर आयोजित संगोष्ठी – हिन्दी की वैश्वकिता पर प्रतिभागी अपना आलेख पाठ कर

सकेंगे । इसके अलावा प्रतिभागियों के लिए बैंकाक, पटाया, कोहलर्न आईलैंड थाई

कल्चरल शो, गोल्डन बुद्ध मंदिर, विश्व की सबसे बड़ी जैम गैलरी, सफारी वर्ल्ड

आदि स्थलों का सांस्कृतिक पर्यटन का अवसर भी उपलब्ध होगा । आयोजन

संयोजकजयप्रकाश मानस व डॉ. सुधीर शर्मा ने बताया है कि इस वर्ष इसके

अलावा मुंबई की

कथाकार संतोष श्रीवास्तव, संस्कृति कर्मी सुमीता केशवा, हिन्दी ब्लॉगिंग के

लिए प्रतिबद्ध रवीन्द्र प्रभात (लखनऊ), आधारशिला के संपादक दिवाकर भट्ट

(देहरादून), सिनेमा लेखन के लिए प्रमोद कुमार पांडेय (मेरठ), नागपुर विवि के

हिंदी विभागाध्यक्ष प्रमोद कुमार शर्मा, प्रवासी लेखिका देवी नागरानी (यूएसए),

ओडिया से हिन्दी अनुवादक श्री दिनेश माली(ब्रजराजनगर, ओडिसा) हिन्दी के

प्रकाशक श्री शांति स्वरूप शर्मा (यश पब्लिकेशंस, दिल्ली), युवा लेखिका अलका

सैनी (चंडीगढ़) आदि को उनकी उल्लेखनीय सेवा के लिए सृजनश्री से सम्मानित किया

जायेगा ।



रायपुर से डॉ. सुधीर शर्मा की रपट

Thursday, November 10, 2011

हिंदी विभाग, पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय में दि. 2-3 दिसंबर, 2011 को राष्ट्रीय संगोष्ठी

भारतीय भाषाओं में महिला लेखन विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी 
निमंत्रण-पत्र

Tuesday, November 8, 2011

पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय में 2-3 दिसंबर को भारतीय भाषाओं में महिला लेखन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी


पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय में 2-3 दिसंबर को

भारतीय भाषाओं में महिला लेखन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन



दि.2-3 दिसंबर, 2011 को हिंदी विभाग, पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के सौजन्य से तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी, चेन्नै तथा तमिलनाडु बहु-भाषी हिंदी लेखिका संघ द्वारा हिंदी तथा भारतीय भाषाओं में महिला लेखन विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय, पुदुच्चेरी में किया जा रहा है । अकादमी की महासचिव डॉ. मधुधवन ने एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि संगोष्ठी का उद्घाटन दि.2 दिसंबर, 2011 को सुबह 10 बजे पांडिच्चेरी के माननीय उप-राज्यपाल डॉ. इकबाल सिंह के करकमलों से किया जाएगा । तदवसर पर पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति पद्मश्री प्रो. जे.ए.के. तरीन उपस्थित रहेंगे । कई महत्वपूर्ण कृतियों का विमोचन भी तदवसर पर होगा । विभिन्न भाषाओं के विद्वान, लेखक संगोष्ठी में पधार रहे हैं ।

संगोष्ठी प्रपत्र प्रस्तुत करने के लिए उत्सुक विद्वान अपनी भागीदारी की पूर्वी सूचना संगोष्ठी के संयोजक डॉ. सी. जय शंकर बाबु को ई-मेल द्वारा दि.10 नवंबर, 2011 तक दे सकते हैं । ई-मेल का पता है – yugmanas@gmail.com.

अधिक जानकारी व अद्यतन सूचनाओं के लिए http://www.yugmanas.blogspot.com ब्लॉग पर देखा जा सकता है । चूँकि यह संगोष्ठी स्वैच्छिक हिंदी सेवी संस्थाओं के द्वारा आयोजित हो रही है, मार्ग व्यय प्रतिभागियों को स्वयं वहन करना होगा । भोजन और आवास की निःशुल्क व्यवस्था अकादमी की ओर से की जा रही है ।

क्या इस रात की कोई सुबह नहीं होगी


कब तक छले जाएंगें हम भारत के लोग
क्या इस रात की कोई सुबह नहीं होगी

-प्रो. बृजकिशोर कुठियाला



भारत की आम जनता आज सकते में है,वैचारिक और व्यावहारिक दोनों ही स्तरों पर कि कर्तव्यविमूढ़ स्थिति में है। आध्यात्मिक योग गुरू रामदेव व सिद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे का राजनीति के लिए सुधारवादी अभियानों से जो प्रकाश की किरणें दिखने लगी थीं, वे अब आम आदमी को भ्रम की अनुभूति देने लगी हैं। मानो रात में घने बादलों के घोर अन्धरे में बिजली कड़की, क्षणिक प्रकाश हुआ, आशा बंधी और फिर से सब अंधकारमय।

रामदेव का आंदोलन जिस प्रकार क्रांति पकड़ता दिखा उससे लगा कि वर्षों से चले आ रहे कदाचार में कुछ कमी आएगी। आम आदमी इतनी तो समझ रखता है कि सरकार और उसका तन्त्र उचित अनुचित में भेद किए बिना किसी भी प्रकार रामदेव जैसे आन्दोलनों को कमजोर करने में कसर नहीं छोडेंगे। ऐसा हुआ भी। रात के अंधेरे में पुलिस की कार्यवाही हुई। परन्तु जिस प्रकार बाबा वहां से निकले, उसकी कल्पना आमजन को नहीं थी। आम भारतीय तो अपने नेतृत्व से वीरता, साहस व विवेक की अपेक्षा करता है। महिलाओं के कपड़े पहनकर कर्मस्थली से पलायन तो कुशल नेतृत्व के व्यवहार से विपरीत लगता है। साधारण भारतीय ने तो भगतसिंह, सुभाष और गांधी जैसे अनेक महापुरूषों के पौरूष व त्याग को श्रद्धा प्रकट की है। पलायन को तो उसने कभी नहीं स्वीकारा। बाबा के आन्दोलन का पहला दृश्य भारतीय जनता के लिए दुखान्त रहा और उसकी आशा के टूटने की आवाज तो हुई पर किसी ने सुनी नहीं।

परन्तु एक दूसरे बाबा अन्ना हजारे तुरन्त ही राजनीति के आकाश में उभरे और ऐसा लगा कि आखिरकार तो भ्रष्टाचार व अव्यवस्था की रात की सुबह होगी ही। अन्ना ने तो दुर्लभ साहस व विवेक का भी परिचय दिया। जेल भी गए, अनशन भी किया, डरे भी नहीं और अपनी बात पर स्थिर रहे। संसद को भी मजबूर कर दिया। मांग पूरी होने के आश्वासन को सफलता मानकर पूरा देश खुशी से झूमा भी और उम्मीदों के पकवान की हंडी मानों चूल्हे पर चढ़ गई हो।

अन्ना व उसके सहयोगियों पर आक्षेप लगेंगे, आक्रमण होंगे और उनकी छवि पर दाग लगाने का भी प्रयास होगा - यह सब देश की जनता जानती थी। परन्तु विश्वास था कि अन्ना व उसकी टीम के सदस्य इस अग्नि परीक्षा में सफल होंगे। धीरे-धीरे यह विश्वास भी टूटा, फिर से आशाओं के दर्पण में दरार आई, टूटती मौन ध्वनि को फिर किसी ने नहीं सुना।

आर्थिक शुचिता के स्तर पर अन्ना व उसकी टीम के दो सदस्य अनुतीर्ण हुए। कितना भी तर्क किया जाए भ्रष्टाचार विरोधी नेतृत्व में व्यावहारिक व आर्थिक ईमानदारी तो शक के दायरे में भी नहीं आनी चाहिए। ऐसी स्थितियों में भूल न होने पर भी भूल लगने जैसी बात हो तो उसके लिए क्षमा मांगना व प्रायश्चित करने से मान-सम्मान बढ़ता है। यहां तो विपरीत ही हो रहा है। हमने जो गलत किया वह तो तार्किक और क्षम्य है, परन्तु दूसरों ने जो किया या नहीं किया उसके लिए सजा मिलनी ही चाहिए। इस समय इस प्रश्न का उत्तर तलाशना चाहिए कि यदि अन्ना द्वारा प्रस्तावित लोकपाल बिल लागू होता तो इनके बारे में क्या निर्णय होते। आम भारतीय के मन में यह उतना ही बड़ा अपराध है जितना राजा का या कलमाड़ी का।

टीम के एक अन्य सदस्य ने तो देश की अखंडता पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया। जनभावना ऐसी है कि चीन व पाकिस्तान द्वारा अधीकृत भारत देश की भूमि को वापस लेना चाहिए, परन्तु इन महोदय ने तो देश के एक हिस्से को भारत से अलग करने का ही सुझाव दे दिया। यदि उनके सुझाव के मानना प्रारम्भ कर दें तो शायद आदरणीय प्रधानमंत्री केवल दिल्ली प्रान्त के ही प्रधानमंत्री रह जाएंगे और आसपास खालिस्तान, दलितस्थान, मुगलिस्थान, द्वविड़स्थान आदि ऐसे कई देश विदेश बन जाएंगे। टीम अन्ना के सक्रिय सदस्य होने के नाते ऐसे विचारों के व्यक्तित्व को ऐसी टीम में होना जो देश में क्रांति लाने का संकल्प किए हुए हैं, कुछ नहीं बहुत अटपटा लगता है।

तीन और घटनाक्रमों की चर्चा भी प्रासंगिक लगती है। देश में अनेकों छोटे बड़े अभियान भ्रष्टाचार विरोध में और व्यवस्थाओं के सुधार के पक्ष में प्रारम्भ हुए हैं। सभी राजनीतिक दल भी पहले से अधिक सचेत हुए हैं। देश के सबसे बड़े छात्रों के संगठन ने ‘एक्शन अगेंस्ट करप्शन’ का अभियान भी चलाया है। अनेक सामाजिक संस्थाओं ने भी कार्यक्रम घोषित किये है। पूरे सामाजिक और राजनीतिक संवाद में भ्रष्टाचार मुख्य मुद्दा बना है। देखने वाली बात यह है कि आम समाज इनसे कितना जुड़ पाता है और समस्याओं के समाधान की क्या कल्पना यह सब प्रस्तुत करते हैं।

दूसरा रामदेव व अन्ना टीम की फिर से सक्रियता प्रारम्भ हुई है। रामदेव तो प्रवास पर निकले हैं और योग गुरू के चोले के साथ-साथ अपने को सुधारवादी सक्रिय सन्त के रूप में स्थापित करने के प्रयास में है। जनता का जोश कुछ कम है परन्तु यदि जनमानस को कार्य सिद्ध करने की इच्छाशक्ति और प्रभावी उपायों का आभास हुआ तो हताश जनता एक बार फिर जुड़ सकती है। टीम अन्ना तो किसी भी छोटे राजनीतिक संगठन की तरह व्यवहार कर रही है। अपने झूठ को ही झुठलाने में लगी है। लगता है कि अस्तित्व की ही लड़ाई लड़ रही है। अन्ना का मौन आत्मशुद्धि है या प्रायश्चित। या तपस्या। या पलायन। जनता नहीं जानती, जब तब वे कुछ कहते या करते नहीं।

तीसरी महत्वपूर्ण प्रक्रिया राजनीति में आत्म विवेचना की है। सभी रंगों के राजनैतिक दलों में दिखने और बोलने वालों के साथ-साथ अदृश्य व मौन परन्तु सक्रिय दुष्टों की कमी नहीं है। परन्तु सज्जन राजनीतिज्ञों की संख्या भी नगण्य नहीं है। पिछले पांच छः महीनों में इस सज्जन शक्ति ने अपने अन्दर झांकना प्रारम्भ किया है और अपने से ही प्रश्न किया है आखिर कब तक ? देश व समाज के प्रति कर्तव्यबोध उनसे प्रश्न करता है कि कौन बड़ा - देश या पार्टी। यह प्रक्रिया अभी व्यक्तिगत स्तर पर है, कुछ-कुछ प्रयास सामूहिकता से चिन्तन करने का ही रहा है। आशा करनी चाहिए कि पूरे देश की राजनीतिक व्यवस्था में जो सज्जन शक्ति है, पार्टी व विचारधारा से उपर उठकर संगठित होगी और आम जनता में जो आशा का दीपक बुझ गया है उसे फिर से जलाएगी। ऐसा नहीं हुआ तो आम आदमी का संयम का बोध टूटना अनिवार्य है। त्वरित उफान से जब जनमानस उठता है तो परिवर्तन की आंधी को साथ लाता है पर वह आंधी रक्तिम भी हो सकती है इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता। जनता जनार्दन को कुछ लोग कुछ समय के लिये धोखा दे सकते हैं परन्तु यदि हर ओर से और हर विषय में धोखा मिलेगा तो विपरीत प्रतिक्रिया होना स्वभाविक है।

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति हैं)

Friday, November 4, 2011

प्रभाष जोशी स्मृति व्याख्यान

प्रभाष जोशी स्मृति व्याख्यान आज


प्रख्यात पत्रकार स्व. प्रभाष जोशी की द्वितीय पुण्यतिथि (5 नवंबर,2011) पर उनकी स्मृति में एक व्याख्यान का आयोजन माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में किया गया है। इंडिया पालिसी फाउंडेशन के मानद निदेशक डा. राकेश सिन्हा 5 नवंबर,2011 को दिन में 11 बजे विश्वविद्यालय में ‘मीडया का समाजशास्त्र’ विषय पर व्याख्यान देंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला करेंगें।

दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर डा. सिन्हा प्रख्यात स्तंभलेखक हैं और उनकी राजनीतिक संदर्भों पर कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘राजनीतिक पत्रकारिता’ शीर्षक से भी उनकी एक महत्वपूर्ण किताब पत्रकारिता विश्वविद्यालय की शोध परियोजना के तहत प्रकाशित हो चुकी है।

पद्मश्री मुकुटधर पांडेय स्मृति रचना शिविर रायगढ़ में

पद्मश्री मुकुटधर पांडेय स्मृति रचना शिविर
रायगढ़ में




रायगढ़ । रचनाकारों की संस्था, प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, रायपुर, छत्तीसगढ़ द्वारा इंटरनेट पर सक्रिय तथा युवा ब्लॉगरों (कवियों/लेखकों/निबंधकारों/कथाकारों/लघुकथाकारों/गीतकारों/ग़ज़लकारों/ बाल साहित्यकारों) को देश के विशिष्ट और वरिष्ठ रचनाकारों द्वारा साहित्य के मूलभूत सिद्धातों, विधागत विशेषताओं, परंपरा, विकास और समकालीन प्रवृत्तियों से परिचित कराने, उनमें संवेदना और अभिव्यक्ति कौशल को विकसित करने, प्रजातांत्रिक और शाश्वत जीवन मूल्यों के प्रति उन्मुखीकरण तथा स्थापित लेखक तथा उनके रचनाधर्मिता से तादात्मय स्थापित कराने के लिए तृतीय अ.भा.त्रिदिवसीय/रचना शिविर (7, 8, 9 जनवरी, 2012) सृजनात्मक लेखन कार्यशाला का आयोजन छायावाद के जनक कवि पद्मश्री मुकुटधर पांडेय और कत्थक सम्राट राजा चक्रधर की नगरी रायगढ़, (अग्रोहा भवन, गौरीशंकर मंदिर के पास), छत्तीसगढ़ में किया जा रहा है जिसमें देश के महत्वपूर्ण रचनाकार और विशेषज्ञ मार्गदर्शन हेतु उपस्थित रहेंगे । इसके पूर्व मुक्तिबोध स्मृति रचना शिविर और श्रीकांत वर्मा स्मृति रचना शिविर का सफल आयोजन क्रमशः राजनांदगांव और कोरबा में किया जा चुका है । इस तृतीय अखिल भारतीय स्तर के कार्यशाला में देश के 150 युवा रचनाकारों तथा उभरते हुए रचनाकारों को सम्मिलित किया जायेगा ।


संक्षिप्त ब्यौरा निम्नानुसार है-

1. प्रतिभागियों को 25 दिसंबर, 2011 तक अनिवार्यतः निःशुल्क पंजीयन कराना होगा । पंजीयन फ़ार्म संलग्न है ।

2.प्रतिभागियों का अंतिम चयन पंजीकरण में प्राप्त आवेदन पत्र के क्रम से होगा ।

पंजीकृत एवं कार्यशाला में सम्मिलित किये जाने वाले रचनाकारों का नाम ई-मेल से सूचित किया जायेगा ।

3. प्रतिभागियों की आयु 18 वर्ष से कम एवं 45 वर्ष से अधिक ना हो ।

4. प्रतिभागियों में 20 स्थान हिन्दी के स्तरीय ब्लॉगर के लिए सुरक्षित रखा गया है ।

5. प्रतिभागियों को संस्थान/कार्यशाला में एक स्वयंसेवी रचनाकार की भाँति, समय-सारिणी के अनुसार अनुशासनबद्ध होकर कार्यशाला में भाग लेना अनिवार्य होगा ।

6. प्रतिभागी रचनाकारों को प्रतिदिन दिये गये विषय पर लेखन-अभ्यास करना होगा जिसमें वरिष्ठ रचनाकारों द्वारा मार्गदर्शन दिया जायेगा ।

7. कार्यशाला के सभी निर्धारित नियमों का आवश्यक रूप से पालन करना होगा ।

8. प्रतिभागियों को सैद्धांतिक विषयों के प्रत्येक सत्र में भाग लेना अनिवार्य होगा । अपनी वांछित विधा विशेष के सत्र में वे अपनी इच्छानुसार भाग ले सकते हैं । प्रतिभागियों के आवास, भोजन, स्वल्पाहार, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह, संदर्भ सामग्री की व्यवस्था संस्थान द्वारा की जायेगी ।

9.प्रतिभागियों को अपना यात्रा-व्यय स्वयं वहन करना होगा ।

10. प्रतिभागियों को 6 जनवरी, 2012 शाम 6 बजे के पूर्व कार्यशाला स्थल – अग्रोहा भवन, गौरी शंकर मंदिर के पास, रायगढ़, छत्तीसगढ़ में अनिवार्यतः उपस्थित होना होगा ।

पंजीयन हेतु आवेदन-पत्र नमूना

01.नाम -

02. जन्म तिथि व स्थान (हायर सेंकेंडरी सर्टिफिकेट के अनुसार) -

03. शैक्षणिक योग्यता –

04. वर्तमान व्यवसाय -

05. लेखन की केंद्रीय विधा -

05. प्रकाशन (पत्र-पत्रिकाओं के नाम) –

06. प्रकाशित कृति का नाम –

07. ब्लॉग्स का यूआरएल – (यदि हो तो)

08. अन्य विवरण ( संक्षिप्त में लिखें)

09. पत्र-व्यवहार का संपूर्ण पता -

10. मो. नं.

11. ई-मेल –

10. हस्ताक्षर


संपर्क सूत्र

जयप्रकाश मानस


कार्यकारी निदेशक


प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, छत्तीसगढ़


एफ-3, छगमाशिम, आवासीय परिसर, पेंशनवाड़ा, रायपुर, छत्तीसगढ – 492001


ई-मेल-pandulipipatrika@gmail.com


मो.-94241-82664

प्रखर देवनागरी फ़ॉन्ट परिवर्तक का नवीन वर्जन 2.2.5.0 जारी

प्रखर देवनागरी फ़ॉन्ट परिवर्तक का नवीन वर्जन 2.2.5.0 जारी

आज प्रखर देवनागरी फ़ॉन्ट परिवर्तक का नवीन वर्जन 2.2.5.0 जारी किया है। अब यह टेक्स्ट-तालिका (Text-Table) के पाठ को भी पूरी शुद्धता के साथ टेक्स्ट-तालिका के रूप में परिवर्तित करने में पूर्ण सक्षम है। इस नवीन वर्जन को आप दी जा रही लिंक से डाउनलोड कर सकते हैं। विभागीय कार्य अधिकांशतः तालिका के रूप में होता है तो अब यह नवीन वर्जन विभागीय उपयोग के लिए बहुत ही बेहतर साबित होगा। कृपया इस नवीन सॉफ़्टवेयर के बारे में अपने स्तर से अन्य विभागीय मित्रों को फ़ॉरवर्ड कर उपयोग करनें की जानकारी देने की कृपा करें।

http://www.4shared.com/file/zXERndaY/PrakharParivartak.html

इंजी॰ जगदीप दाँगी

Profile: http://www.iiitm.ac.in/?q=users/dangijs

http://www.youtube.com/watch?v=aBLnEwg7UEo&feature=mfu_in_order&list=UL

http://www.4shared.com/u/5IPlotQZ/DangiSoft_India.html

कथाकार स्वयं प्रकाश को कथाक्रम सम्मान

विख्यात कथाकार स्वयं प्रकाश को कथाक्रम सम्मान की घोषणा


लखनऊ : वरिष्ठ कथाकार स्वयं प्रकाश को वर्ष 2011 के प्रतिष्ठित ‘आनंद सागर कथाक्रम सम्मान’ से नवाजा जाएगा। कथाक्रम के संयोजक शैलेन्द्र सागर ने बताया कि स्वयं प्रकाश को यह पुरस्कार आगामी 12-13 नवम्बर को आयोजित होने वाले ‘कथाक्रम-2011’ कार्यक्रम के मौके पर प्रदान किया जाएगा। यह निर्णय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त प्रख्यात लेखक श्रीलाल शुक्ल की अध्यक्षता वाली कथाक्रम सम्मान समिति द्वारा लिया गया है। कथा लेखन के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान करने वाले लेखक को प्रतिवर्ष दिये जाने वाले इस पुरस्कार के तहत 15 हजार रुपए नकद तथा प्रशस्ति पत्र दिया जाता है। बीस जनवरी 1947 को इंदौर में जन्मे स्वयं प्रकाश अपनी कहानियों और उपन्यासों के लिये विख्यात हैं। वह अब तक पांच उपन्यास लिख चुके हैं जबकि उनके नौ कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। अपने समकालीन कथाकारों-कवियों-संस्कृतिकर्मियों पर केन्द्रित उनके रेखाचित्रों के संकलन 'हमसफ़रनामा' के लिए स्वयं प्रकाश के गद्य और चित्रण की बड़ी चर्चा हुई है. का इससे पहले स्वयं प्रकाश को राजस्थान साहित्य अकादमी के रंगे राघव पुरस्कार तथा पहल सम्मान से नवाजा जा चुका है। मूलत: राजस्थान (अजमेर) के निवासी स्वयं प्रकाश के कथा साहित्य में वैज्ञानिक सोच और सहजता का अनूठा और विरल संगम है. उनकी रचनाएं पाठक को अपने साथ बहाकर ले जाते हुए वैचारिक रूप से उद्वेलित और समृद्ध भी करती हैं. अपनी अधिकतर रचनाओं में वे मध्यमवर्गीय जीवन के विविध पक्षों को सामने लाते हुए उनके अंतर्विरोधों, कमजोरियों और ताकतों को कुछ इस तरह से प्रस्तुत करते हैं कि वे हमारे अपने अनुभव संसार का हिस्सा बन जाते हैं. साम्प्रदायिकता एक और ऐसा इलाका है जहां स्वयं प्रकाश की रचनाशीलता अपनी पूरी क्षमता के साथ प्रदर्शित होती है. स्वयं प्रकाश की खिलंदड़ी भाषा और अत्यधिक सहज शैली का निजी और मौलिक प्रयोग उन्हें हमारे समय के सर्वाधिक लोकप्रिय कथाकार बनाने में बड़ा योगदान है.

New issue of kritya is on line

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कृत्या  (http://www.kritya.in/) कविता की पत्रिका है, जो हिन्दी सहित सभी भारतीय एवं वैश्विक भाषाओं में लिखी जाने वाली आधुनिक एव प्राचीन कविता को हिन्दी के माध्यम से प्रस्तुत करती है। यह इन्टरनेट के माध्यम से साहित्य को जन सामान्य के सम्मुख लाने की नम्र कोशिश है। इसका उद्देश्य हिन्दी भाषा के प्रति सम्मान जगाना भी है।


Kritya (www.kritya.in) is a platform facilitating a rich cultural blending, and over the years we have come to realize the importance of translation in such a setting. Here our poets talk, interact and present their poems in original and in translation. Often, it is entirely up to the translators to provide a clear idea of the poet's creative genius, a task in which they cannot afford to fail.

Translation is a difficult process, and when it comes to poetry the effort is herculean. Let me borrow a couple of lines from Rabindranath Tagore, to give better expression to the process of translation: "When we express our thought in words, the medium is not found easily. There must be a process of translation, which is often inexact, and then we fall into error." Tagore was talking about the translation of thoughts into words. Translators struggle with the translation of thoughts as well as words into a new medium. Almost all translators must face a similar kind of problem when attempting to find words that would best express their source text. Unlike prose, even seemingly simple poems pose quite a challenge to the translator. A good poem is the quintessence of the poet's feelings, aspirations and exhortations, expressed in just the required number of words. That means each word is infused with power that very often defies translation. In addition, the stylistic techniques, imagery, metaphor, the inherent wit, the philosophy, cultural nuances all demand precise translation. Another consideration of course is the energy illuminating the poem, which is an active expression of the poetic soul. Can this be brought out effectively in a translation?

The translation of a poem can be like the reproduction of an original painting, the original expressed in a different, maybe even unique way characteristic of the translator. The original poetic flourishes can be transformed into something new and distinguished in the work of translation. At the same time, a good poem may also be completely destroyed by a poor translation, in which case the translator is doing gross injustice to his source poet. This brings us to the very crucial role of the translator, who has to be forever conscious that he is treading on extremely sensitive ground. Keeping in full view the original poem, the sincere translator has to provide a translation that would convey the individual characteristics of the original poet and be creative enough to smoothen any irregularities that may crop up in the process of translation.

To quote Petrarch, translators can "write just as the bees make honey, not keeping the flowers but turning them into a sweetness of our own, blending many different flavors into one, which shall be unlike them all, and better."

This issue of Kritya highlights Dr. Vasile Grigore Latis, one of the inspired poets of Romania in the section "In the Name of Poetry'. We have Rabindranath Tagore for you in 'Our Masters' and the Editor's Choice this time is Mousa Bidaj, the Iranian poet, fiction writer, scholar and translator. Enjoy the photo poetry of Bharati Kapadia in this issue.

Artist of this issue-

Bombay based artist Bharati Kapadia is a well-known personality on the contemporary Indian art platform. Over the years, she has consistently shown work which is strikingly original in formal innovation. Dealing with issues related to inner evolution, memory and identity, she works with techniques in which the intervention of light becomes crucial for a complete experience of the art work.

Warm regards,

Jayasree Ramakrishnan Nair

Please also check the site of poetry festival

http://www.kritya.in/kritya2012/en/index-fest.html

http://www.kritya.in/kritya2012/en/Poetry%20festivals-8-programme.html

Rati Saxena
http://www.kritya.in/

Thursday, November 3, 2011

महेंद्रभटनागर की कविताएँ फ्रेंच में

  

         महेंद्रभटनागर की कविताएँ फ्रेंच में
द्वि-भाषिक (हिंदी और अँगरेज़ी) यशस्वी कवि महेंद्रभटनागर की 108 कविताओं के फ्रेंच-काव्यानुवादों की एन्थोलोजी [‘ A Modern Indian Poet Dr. Mahendra Bhatnagar — UN POÈTE INDIEN ET MODERNE’] Indian Publisher’s Distributors, 166-D, Kamla Nagar, Delhi — 110 007 ने प्रकाशित की है (Pages 292; Price Rs. 320/-)
फ्रेंच-काव्यानुवादबर्दवान विश्विविद्यालय, दुर्गापुर’ (पश्चिम बंगाल) की पूर्व फ्रेंच-प्रोफ़ेसर, अँगरेज़ी-बाँगला की लब्ध-प्रतिष्ठ कवयित्री / निबंध-लेखिका /आलोचक श्रीमती पूर्णिमा राय ने किये हैं।
इन फ्रेंच-काव्यानुवादों के माध्यम से जापानी भाषा में भी काव्यानुवाद उपलब्ध हैं। अनुवादक हैंMr. Seiji Hino. ये जापानी-काव्यानुवाद  Gendaishi Kenkyu’ नामक प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका में क्रमश: प्रकाशित हो रहे हैं।
फ्रेंच-काव्यानुवादों की इस विशिष्ट एन्थोलोजी पर, फ्रेंच-विद्वानों द्वारा फ्रेंच में लिखित समीक्षात्मक आलेख ‘Poet Mahendra Bhatnagar : His Mind And Art’  नामक आलोचना-ग्रंथ में समाविष्ट हैं। यह समीक्षा-ग्रंथ ‘Vista International Publishing House, v-196 Yamuna Vihar, Delhi — 110 053’ द्वारा प्रकाशित है ।               

 इस महत्त्वपूर्ण उपलब्धि पर डॉ॰ महेंद्रभटनागर को हार्दिक बधाई!
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[‘ A Modern Indian Poet Dr. Mahendra Bhatnagar — UN POÈTE INDIEN ET MODERNE’]
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‘Poet Mahendra Bhatnagar : His Mind And Art’ 
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