Saturday, July 16, 2011

डॉ. बशीर की दो कविताएँ



एहसास




ये आंसू नहीं शबनम है
इन्‍हें गुलाब के दिल में
छिपाकर रखना ।
ये आंसू नहीं मोती हैं


सीप के सीने में
बसा कर रखना ।

ये पानी नहीं खून है
दिल को ज़िंदा रखने
इसकी हिफ़ाज़त करना ।
ये अल्‍फाज़ नहीं, गज़ल है
ये मेरे दिल का एहसास हैं
तुम पढ़ों तो मेरा दर्द समझोगी
नहीं तो मज़ाक कर डालोगी ।


***



परिवर्तन





वक्‍त सब कुछ बदल सकता है
मजहब व जबान को कभी नहीं
जमीं नहीं बदलती
आसमां कभी नहीं बदलते
सागर नहीं, प्रकृति का धर्म कभी नहीं बदलता
रिश्‍ते-नाते, लोगों के प्‍यार और यार
आखिर नीयत भी बदलते हैं ।

***



डॉ.बशीर/Dr.S.Basheer


प्रबंधक (राजभाषा)/Manager (OL)


हिन्‍दुस्‍तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन/HPCL


चेन्‍नै/Chennai

1 comment:

  1. युग मानस को बधाई .बहुत अच्छा काम कर रहें हैं आप .जो हमारे लिए विशेष ख़ुशी और तसल्ली ला रहा है .

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