Friday, February 26, 2010

ईद-ए-मिलाद-उन-नबी एवं होली की शुभकामनाएँ...

श्यामल सुमन, जमशेदपुर

श्यामल सुमन की दो कविताएँ


खून से मँहगा लगता पानी

जब आँखों से रिसता पानी
कुछ न कुछ तब कहता पानी

प्रियतम दूर अगर हो जाए
तब आँखों से बहता पानी

पानी पानी होने पर भी
कम लोगों में रहता पानी

कभी कीमती मोती बनकर
टपके बूंद लरजता पानी

तीन भाग पानी पर देखो
न पीने को मिलता पानी

चीर के धरती के सीने को
कितना रोज निकलता पानी

ऐसे हैं हालात देश के
खून से मँहगा लगता पानी

कुम्हलाता है रोज सुमन अब
जड़ से दूर खिसकता पानी


माँ


मेरे गीतों में तू मेरे ख्वाबों में तू,
इक हकीकत भी हो और किताबों में तू।
तू ही तू है मेरी जिंदगी ।
क्या करूँ माँ तेरी बंदगी ।।

तू न होती तो फिर मेरी दुनिया कहाँ?
तेरे होने से मैंने ये देखा जहाँ।
कष्ट लाखों सहे तुमने मेरे लिए,
और सिखाया कला जी सकूँ मैं यहाँ।
प्यार की झिरकियाँ और कभी दिल्लगी।
क्या करूँ माँ तेरी बंदगी ।।

तेरी ममता मिली मैं जिया छाँव में।
वही ममता बिलखती अभी गाँव में।
काटकर के कलेजा वो माँ का गिरा,
आह निकली उधर, क्या लगी पाँव में?
तेरी गहराइयों में मिली सादगी।
क्या करूँ माँ तेरी बंदगी ।।

गोद तेरी मिले है ये चाहत मेरी।
दूर तुमसे हूँ शायद ये किस्मत मेरी।
है सुमन का नमन माँ हृदय से तुझे,
सदा सुमिरूँ तुझे हो ये आदत मेरी।
बढ़े अच्छाइयाँ दूर हो गंदगी ।
क्या करूँ माँ तेरी बंदगी ।।

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