Thursday, February 18, 2010

सुधीर शुल्का ‘सावन’* की दो कविताएँ

सुधीर शुक्ला ‘सावन’* की दो कविताएँ

आज की ज़िंदगी

आज की ज़िंदगी ने किसको क्या है दिया
हमसे पूछो न अगर आज तो बेहतर होगा
कुछ को रंगीनियाँ मेहफिल की मिली, कुछ को ग़म
इस पर करो न शिकवा, तो बेहतर होगा
आज की ज़िंदगी परेशान है खुद अपनों से
छोड़ दो साथ न कहना, तो बेहतर होगा
शक्स से शक्स जुदा, रहते फिर भी पास में है
कहना उनसे न कभी, आज तो बेहतर होगा
आज की ज़िंदगी में सच ही तो बुरा होता है
कडुवा सच न तुम कहो तो बेहतर होगा ।

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बहुत प्यारा

तेरा हमदम ऐ दोस्त बहुत प्यारा
पास आकर के शर्माना भी बहुत प्यारा है
आँखों में उसकी सिर्फ़ चाहत तेरी
दिल में सिर्फ़ प्यार का छुपाना बहुत प्यारा है
देखा ‘सावन’ ने प्यार करते बहुत लोगों को
उसका खुद में शर्माना बहुत प्यारा है
हवाँ के झोंकों से लगता है कि वो आए हैं
पलट के देखना भी उसका बहुत प्यारा है
आज मैं उसकी तारीफ़ करूँ तो कम है
तुम तो बहुत भोले हो, कह जाना बहुत प्यारा है
सोचते हम तो हैं कि हो कोई अपना भी
जिसको मैं कह सकता, तू तो बहुत प्यारा है ।

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*हवलदार मेजर (तकनीकी), 14 कार्फ जोन वर्कशाप, द्वारा 56 एपीओ, लेह

1 comment:

  1. namas kaar saawanji 1 kavita mey zindagee ka nichod pesh kiya hai
    2 bahut pyaraa kavita bilkul alag hai
    badee pyaare kavitahai prarambh acha lagaa dherr saaree subh kaamanaaye ummeed hai kee aapkeelekh neese talvaar jisee kavitaaye aayegee

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