Friday, December 25, 2009

भारतीय हिंदी परिषद का अधिवेशन सुसंपन्न


युवा पीढ़ी को हिंदी के साथ जोड़ें - प्यारेलाल



दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए हजारों हिंदी प्रेमियों ने योग दिया है । हिंदी के प्रचलन में तेजी के लिए यह जरूरी है कि आज हम युवा पीढ़ी को हिंदी के साथ जोड़ें । चेन्नई में भारतीय हिंदी परिषद के 38वाँ अधिवेशन के उद्घाटन के अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित तमिलनाडु अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष प्यारेलाल पीतलिया ने यह वक्तव्य दिया । उन्होंने कहा कि आज तमिलनाडु में हिंदी का कोई विरोध नहीं है ।



चेन्नई में चेटपेट स्थित वर्ल्ड यूनिवर्सिटी सर्वीस सेंटर में भारतीय हिंदी परिषद, इलाहाबाद, तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी तथा भाषा संगम के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न इस साहित्यिक समारोह की अध्यक्षता परिषद के अध्यक्ष प्रो. त्रिभुवननाथ शुक्ल ने की । उन्होंने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि हमारी भाषाएँ भले ही भिन्न-भिन्न हो किंतु पूरे भारतीय भाषाओं की मूलचिति एक ही है । आज इंटरनेट के युग में हमारी भारतीय भाषाओं का जो साहित्य पुस्तकालयों की अलमारियों में बंद पड़े थे, वे सभी विश्व स्तर पर इंटरनेट के माध्यम से पाठकों के सामने आ चुके हैं । इस अवसर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के उच्च शिक्षा एवं शोध संस्थान के कुलसचिव प्रो. दिलीप सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत में भाषाई संघर्ष जैसी कोई स्थिति नहीं है, हमारा नारा भारतीयता की सिद्धि की हो, तमाम भारतीय भाषाओं से एक ही स्वर निकलता है ।



इस समारोह में तमिलनाडु के अलावा देश के विभिन्न प्रदेशों से पधारे हिंदी साहित्यकारों, विद्वानों ने भागीदारी ली। उद्घाटन कार्यक्रम के अवसर पर श्रीमती अवतार कौर विरदी ने प्रार्थना के पश्चात् तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी की महासचिव डॉ. मधुधवन ने अतिथियों का स्वागत किया । कार्यक्रम का संचालन परिषद के साहित्य मंत्री डॉ. वीरेंद्र नारायण यादव ने किया ।


पुस्तक विमोचन तथा हिंदी सेवियों का सम्मान


उद्घाटन सत्र में डॉ. शेषन की सात पुस्तकों का तथा निर्मला अग्रवाल एवं रमेशगुप्त नीरद की एक पुस्तक का लोकार्पण मुख्य अतिथि प्यारेलाल पीतलिया के करकमलों से किया गया । इसी अवसर हिंदी सेवियों का सम्मान भी किया गया, सम्मानितों में श्रीमती कामाक्षी, डॉ. शांतिमोहनन्, डॉ. हृदयनारायण पांडेय, डॉ. बशीर अहमद, टी.ई.एस. राघवन, ईश्वरचंद्र झा, डॉ. सुंदरम, डॉ. रवींद्र कुमार सेठ, डॉ. मधुधवन और डॉ. शेषा रत्नम शामिल हैं ।


परिसंवाद एवं काव्य-गोष्ठी


इस दो दिवसीय समारोह में हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के अंतः संबंधों पर परिसंवाद संपन्न हुआ । काव्य, कथा साहित्य, नाटक, आलोचना, लोक साहित्य और प्रयोजनमूलक हिंदी पर केंद्रित आलेख विद्वानों द्वारा प्रस्तुत किए गए । इस अवसर पर काव्य-गोष्ठी भी आयोजित हुई थी । गोष्ठी में प्रस्तुत हस्य-श्रृंगार एवं व्यंग्य कविताओं का स्वागत श्रोताओं ने करताल ध्वनियों से किया ।


समापन समारोह


समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रांची विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. एस.एस. कुशवाहा ने कहा कि हिंदी के विकास में तेजी लाने की जरूरत है । समापन समारोह में विभिन्न प्रदेशों से पधारे पत्रकारों तथा विद्वानों का सम्मान किया गया ।

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