दीप ज्योति बनकर हम
-आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
दीप ज्योति बनकर हम
जग में नव प्रकाश फैलाएं.
आत्म और परमात्म मिलाकर
दीप-ज्योति बन जाएँ...
दस दिश प्रसरित हो प्रकाश
तम् तनिक न हो अवरोध.
सबको उन्नति का अवसर हो
स्वाभिमान का बोध.
पढने, बढ़ने, जीवन गढ़ने
का सबको अधिकार.
जितना पायें, शत गुण बाँटें
बढे परस्पर प्यार.
रवि सम तम् पी, बाँट उजाला
जग ज्योतित कर जाएँ.
अंतर्मन का दीप बालकर
दीपावली मनाएँ...
अंधकार की कारा काटें,
उजियारा हो मुक्त.
निज हित गौड़, साध्य सबका हित,
जन-गण हो संयुक्त.
श्रम-सीकर की विमल नर्मदा,
'सलिल' करे अवगाहन.
रचें शून्य से स्रष्टि समूची,
हर नर हो नारायण.
आत्म मिटा विश्वात्म बनें,
परमात्म प्राप्त कर पायें.
'मैं' को 'हम' में कर विलीन,
'सब' दीपावली मनाएँ...
एक दीप गर जले अकेला,
तूफां उसे बुझाता.
शत दीपो से जग रोशन हो,
अंधकार डर जाता.
शक्ति एकता में होती है,
जो चाहे वह कर दे.
माटी के नन्हें दीपक को
तम् हरने का वर दे.
बने अमावस भी पूनम,
यदि दीप साथ जल जाएँ.
स्नेह-साधना करें अनवरत
दीपावली मनाएँ...
दीवाली गीत
हिल-मिल
दीपावली मना रे...
*
चक्र समय का
सतत चल रहा,
स्वप्न नयन में
नित्य पल रहा.
सूरज-चंदा
उगा-ढल रहा.
तम प्रकाश के
तले पल रहा,
किन्तु निराश
न होना किंचित
नित नव
आशा-दीप जला रे.
हिल-मिल
दीपावली मना रे...
*
तन-दीपक
मन बाती प्यारे!
प्यास तेल को
मत छलका रे.
श्वासा की
चिंगारी लेकर,
आशा जीवन-
ज्योति जला रे.
मत उजास का
क्रय-विक्रय कर-
मुक्त हस्त से
'सलिल' लुटा रे.
हिल-मिल
दीपावली मना रे...
दोहों की दीपावली
दोहों की दीपावली, रमा भाव-रस खान.
श्री गणेश के बिम्ब को, 'सलिल' सार अनुमान..
दीप सदृश जलते रहें, करें तिमिर का पान.
सुख समृद्धि यश पा बनें, आप चन्द्र-दिनमान..
अँधियारे का पान कर करे उजाला दान.
मती का दीपक 'सलिल', सर्वाधिक गुणवान..
मन का दीपक लो जला तन की बाती डाल.
इच्छाओं का घृत जले, मन नाचे दे ताल..
दीप अलग सबके मगर, उजियारा है एक.
राह अलग हर पन्थ की, ईश्वर सबका एक..
बुझ जाती बाती 'सलिल', मिट जाता है दीप.
किन्तु यही सूर्य का वंशधर, प्रभु के रहे समीप..
दीप अलग सबके मगर, उजियारा है एक.
राह अलग हर पन्थ की, लेकिन एक विवेक..
दीपक बाती ज्योति को, सदा संग रख नाथ!
रहें हाथ जिस पथिक के, होगा वही सनाथ..
मृण्मय दीपक ने दिया, सारा जग उजियार.
तभी रहा जब परस्पर, आपस में सहकार..
राजमहल को रौशनी, दे कुटिया का दीप.
जैसे मोती भेंट दे, खुद मिट नन्हीं सीप..
दीप ब्रम्ह है, दीप हरी, दीप काल सच मान.
सत-शिव-सुन्दर है यही, सत-चित-आनंद गान..
मिले दीप से दीप तो, बने रात भी प्रात.
मिला हाथ से हाथ लो, दो शह भूलो मात..
ढली सांझ तो निशा को, दीप हुआ उपहार.
अँधियारे के द्वार पर, जगमग बन्दनवार..
रहा रमा में मन रमा, किसको याद गणेश.
बलिहारी है समय की, दिया जलाये दिनेश..
लीप-पोतकर कर लिया, जगमग सब घर-द्वार.
तनिक न सोचा मिट सके, मन की कभी दरार..
सरहद पर रौशन किये, शत चराग दे जान.
लक्ष्मी नहीं शहीद का, कर दीपक गुणगान..
दीवाली का दीप हर, जगमग करे प्रकाश.
दे संतोष समृद्धि सुख, अब मन का आकाश..
कुटिया में पाया जनम, राजमहल में मौत.
आशा-श्वासा बहन हैं, या आपस में सौत?.
पर उन्नति लख जल मरी, आप ईर्ष्या-डाह.
पर उन्नति हित जल मरी, बाती पाई वाह..
तूफानों से लड़-जला, अमर हो गया दीप.
तूफानों में पल जिया, मोती पाले सीप..
तन माटी का दीप है, बाती चलती श्वास.
आत्मा उर्मिल वर्तिका, घृत अंतर की आस..
जीते की जय बोलना, दुनिया का दस्तूर.
जलते दीपक को नमन, बुझते से जग दूर..
मातु-पिता दोनों गए, भू को तज सुरधाम.
स्मृति-दीपक बालकर, करता 'सलिल' प्रणाम..
जननि-जनक की याद है, जीवन का पाथेय.
दीप-ज्योति में बस हुए, जीवन-ज्योति विधेय..
नन्हें दीपक की लगन, तूफां को दे मात.
तिमिर रात का मिटाकर, 'सलिल' उगा दे प्रात..
दीप-ज्योति तन-मन 'सलिल', आत्मा दिव्य प्रकाश.
तेल कामना को जला, तू छू ले आकाश..
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आँखें गड़ाये ताकता हूँ आसमान को.
भगवान का आशीष लगे अब झरा-झरा..
माता-पिता गए तो लगा प्राण ही गए.
बेबस है 'सलिल' आज सभी से डरा-डरा..
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